बाँध-दिवस उर्फ़ मोदी जी का जन्म दिन १४ सितम्बर २०१७ को हमने तोताराम को बीजेपी ट्रेन अर्थात बुलेट ट्रेन की बधाई दी थी तो आज तोताराम ने घर के बाहर से ही कोर्ट के हरकारे की तरह जोर से चिल्लाकर हमें बधाई दी- भाई साहब, बाँध-दिवस की बधाई हो | आजकल पता नहीं, लोगों और सरकारों को कोई काम है या नहीं ? एक दिन में कई-कई दिवस मना डालते हैं | और कुछ नहीं तो हाथ धो दिवस, कान कुचर दिवस, नाक साफ़ कर दिवस, मच्छर-दिवस, मक्खी-दिवस |अरे भले आदमियो ! कभी 'काम-दिवस', कभी 'चुप-रह-दिवस', कभी 'अपनी प्रशंसा मत कर दिवस', कभी 'सामान्य रह दिवस' जैसा भी तो कुछ कर लिया करो |जिसे काम नहीं करना हो वह दुनिया को दिवसों में उलझाता है |कोई कहे बच्चियाँ सुरक्षित नहीं हैं | सरकार कुछ करे | तो सरकार कहती है- 'बालिका बचाओ दिवस' मना तो रहे हैं |अखबारों में विज्ञापन नहीं देखते ? रैलियाँ, जुलूस, गोष्ठियाँ कर तो रहे हैं |विद्यालयों में रंगोली, मेहंदी, चित्रकला, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि हो तो रहे हैं | हमने कहा- बाँध-दिवस पर हमें हाथ-पैर बाँध कर पटकेगा क्या ? मोदी जी भी अपने भाषणों से मुसीबतों की मारी जनता को हिलने का मौका नहीं दे रहे हैं |बाँधे हुए हैं अपनी भाषण कला से जादू से |पता नहीं, यह सम्मोहन कब टूटेगा ? बोला- मैं तुम्हारी इस प्रतीकात्मक भाषा में नहीं, वास्तव में कह रहा हूँ कि आज मोदी जी का जन्म दिन है और अब आगे से देश इस दिन को बाँध-दिवस के रूप में मनाएगा | हमने कहा- ऐसी क्या बात है ? बाँध तो इस देश में बहुत पहले से बनते चले आ रहे हैं |आजादी से पहले भी सिंचाई के लिए बाँध बनते ही थे | नेहरू जी ने भी स्वतंत्रता मिलने के बाद बहुत से बाँध बनवाए, कृषि विश्वविद्यालय खुलवाए, खाद के कारखाने स्थापित करवाए |तभी तो आज हम इतनी बड़ी आबादी का पेट भर पा रहे हैं | यह बात और है कि प्रशासन अपनी क्षमता के बल पर गोदामों में अन्न सड़ा भी रहां है | बोला- मोदी जी ने बताया है कि यदि पटेल और अम्बेडकर होते तो नर्मदा बाँध कब का बन गया होता | मेरे ख्याल से १९६० में ही बन गया होता | वैसे कांग्रेस तो इस बाँध को बनने ही नहीं देना चाहती थी | हमेशा अडचनें और डालती रही | हमने कहा- बन्धु, किसी और को उल्लू बनाना | हम कोई बच्चे या अनपढ़ नहीं है |पटेल १९५० में गुज़र गए थे और अम्बेडकर १९५६ में |जब कि इस बाँध का प्रस्ताव १९५० में बना और १९६१ में नेहरू जी ने इसका शिलान्यास किया |यदि कांग्रेस इस बाँध को नहीं बनाना चाहती तो फिर शिलान्यास ही क्यों किया ?चलो कोई बात नहीं |बाँध बन गया |यदि एहसान नहीं मानना है तो न सही | लेकिन इस अवसर पर भी कांग्रेस को कोसना हमें तो ओछापन लगता है | बोला- कोसें कैसे नहीं ? यदि कांग्रेस होती तो यह बाँध अब तक भी नहीं बनता |यह तो भगवान की कृपा से २०१४ में मोदी जी प्रधान सेवक बनकर आ गए और ताबड़-तोड़ मेहनत करके मात्र तीन साल में ही बाँध बनवा दिया |इतना बड़ा बाँध और इतनी जल्दी ! अब तो कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उनके पास 'तत्काल टिकट' की तरह 'तत्काल बाँध बना' तकनीक सीखने के लिए आने लगे हैं |अब ऐसे में उनके जन्म दिन को 'बाँध-दिवस' के रूप में मनाने में क्या, क्यों और कैसा संकोच ? हमने कहा- तोताराम, यदि मोदी जी १८३७ में पैदा हो गए होते तो १८५७ में ही देश को आज़ाद करवा दिया होता और हमें गुलाम भारत में जन्म ही नहीं लेना पड़ता | बोला- लेकिन किया क्या जाए ? सब संयोग की बात है, बन्धु ! मैं तो कहता हूँ यदि मोदी जी चाणक्य के समय में पैदा हो गए होते तो अंग्रेज ही क्या यवन, शक, हूण, तुर्क, तातार, मुग़ल, फ्रांसीसी, पुर्तगाली आदि कोई भी इस देश कर कब्ज़ा तो दूर आँख उठाकर भी नहीं देखा सकता था |एक मज़े की बात तुझे पता है ? मोदी जी के आते ही अकबर ने बैक डेट से हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी हार स्वीकार कर ली है |और देख नहीं लिया कि मोदी जी के डर से चीन कैसे डोकलाम से दुम दबाता, माफ़ी माँगता हुआ भाग खड़ा हुआ |पाकिस्तान की घिग्घी बँधी हुई है |और तुम्हें क्या बताऊँ, जब भी बाहर निकलता हूँ तो मुझे जगह-जगह सड़क पर कमर टूटे हुए आतंकवादी, काले धन वाले, घूसखोर और जमाखोर आदि मिलते हैं | हमने कहा- सत्य वचन, महाराज |
जहँ-जहँ चरण पड़े संतन के... हमारे सामने अखबार रखते हुए तोताराम इतना नज़दीक आगया जितना कि नीति, सिद्धांत और जनहित की रक्षा के लिए नीतीश जी भाजपा के निकट आ गए हैं |हमने पूछा- आज कोई ख़ास बात है क्या ? बोला- ख़ास ही नहीं, बहुत ख़ास है | तू हमेशा भाजपा और उसकी पितृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना करता रहता है | उन्हें मनुवादी, सांप्रदायिक, जातिवादी और कट्टर बताता रहता है | लेकिन आजतक किस धर्मनिरपेक्ष सरकार ने कबीर का स्मारक बनवाया ? जब कि भाजपा ने यू.पी. में आते ही बनारस में दस करोड़ रुपए की लागत से कबीर का म्यूजियम बनवाने के प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी है | हमने कहा- पंजाब के चुनावों से पहले वहाँ दलित से सिक्ख बने रविदासियों के आदिगुरु रैदास का स्मारक बनाने के लिए भी बड़े पॅकेज की घोषणा की थी लेकिन चुनाव हारते ही रैदास जी ठंडे बस्ते में |सो कबीर जी के म्यूजियम का भी वही हाल होगा | बोला- नहीं, ऐसी बात नहीं है |उज्जैन में कुम्भ मेले में अन्य संतों के साथ बनारस के कबीर चौरा के गादीपति को भी बुलाया था |और अब उसी कबीर-भक्ति को आगे बढ़ाते हुए उनके म्यूजियम को भी सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दे दी | हमने कहा- यह सैद्धांतिक मंजूरी, कबीर के सिद्धांतों के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि कबीर के सिद्धांतों की हत्या है | बोला- तुझे तो हमारी पार्टी के किसी भी काम में कोई अच्छाई नज़र आती ही नहीं |कुछ करो तो मुश्किल और कुछ न करो तो मुश्किल | हमने कहा- कबीर और रैदास ने कभी कोई स्मारक, मंदिर, अखाड़ा और आश्रम नहीं बनाया |लोग तो हरामखोरी के लिए साधु का बाना धारण करते हैं | लेकिन कबीर कहते हैं- मूँड मुँडाए तीन गुण मिटी टाट की खाज | बाबा बाज्या जगत में मिला पेटभर नाज || तुलसी भी कहते हैं- नारि मुई घर सम्पति नासी | मूँड मुण्डाय भये सन्यासी || कबीर और रैदास दोनों ने अपनी दिन भर की कमाई से खुद भोजन करके और अतिथियों को खिलाकर हरिभजन किया है |रैदास कहते हैं- मन चंगा तो कठौती में गंगा | और कबीर भी कहते हैं- मौकों कहाँ ढूँढे बन्दे मैं तो तेरे पास में | ना तीरथ में, ना मूरत में, ना एकांत निवास में | ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबा-कैलाश में | ऐसे निर्गुण, सीधे-सच्चे संतों को स्मारक, म्यूजियमों में कैद करना उनके सिद्धांतों की हत्या नहीं तो और क्या है ? जब सरकारी पैसे से अड्डा बनेगा तो चार ठलुए वहाँ बैठक जमाएँगे, पुरस्कार-सम्मान और पद की राजनीति करेंगे | कबीर चौरा में तो पहले से ही कब्ज़ा किए हुए लोग भक्तों से कबीर की खडाऊँ और माला के आगे मत्था टिकवाकर चढ़ावा ले रहे हैं |अब पता नहीं, सरकार कबीर का और क्या तमाशा बनाना चाहती है ? कभी सोचा हैं, कबीर जिन लफंगों से धर्म को बचाना चाहते थे अब उन्हीं के हाथों में कबीर को सौंपने से उनकी आत्मा को कितना कष्ट होगा ? बोला- तो क्या अपनी संस्कृति और परंपरा को ऐसे ही अनारक्षित छोड़ दें ? हमने कहा- नोट और वोट की भूखी सरकारों और व्यक्तियों ने जब-जब धर्म, शिक्षा, सेवा, संस्कृति, भाषा, भाईचारा, गाय, गंगा आदि को बचाने धंधा शुरू किया तब-तब ये और अधिक संकट में फँस गए | सावधान रहें कि यह 'कबीर-चौरा-प्रेम' कबीर को एक क्षेपक न बना दें |
गड्ढा किसने खोदा २९ अगस्त २०१७ को मोदी जी ने एहतियात के तौर पर उदयपुर आकर कुछ योजनाओं का शिलान्यास और कुछ का लोकार्पण किया |कारण आप जानते ही हैं- आजकल उपलब्धियाँ बड़ी मनचली हो गई हैं |भेजो कहीं और चली कहीं और जाती हैं |और फिर चुनाव भी तो आ रहे हैं अगले वर्ष सो उपलब्धियों की डिलीवरी देने खुद ही आना पड़ा | इसका सीधा प्रसारण सीकर के पास एक गाँव गनेडी में भी होना था लेकिन ऐन वक्त पर बारिश ने काम बिगाड़ दिया | उस दिन तोताराम ने यह कह कर चाय पीने से मना कर दिया कि मोदी ने देख लिया तो हम दोनों पर जी.एस.टी. का कोई चक्कर चला देंगे | आज तोताराम ने आते ही फिर वही २९ अगस्त वाली घोषणा कर दी कि चाय नहीं पीनी |हमने पूछा तो बोला- आज के मेरे भविष्य में लिखा है कि स्वास्थ्य के मामले में सावधानी बरतें |घर से बाहर कहीं कुछ न खाएँ | हमने कहा- ये सब जनता को अन्धविश्वासी बनाने वाली बातें हैं |अवैज्ञानिक हैं |इसी के चक्कर में तो इस देश का सत्यानाश हो गया |पुरुषार्थ करने की बजाय झूठे और लम्पट बाबाओं में चक्कर में फँसने लगे हैं |दवा करने की बजाय झाड़-फूँक और गंडा-ताबीज करने लगे हैं | बोला- ऐसी बात नहीं है |कुछ देशद्रोही और भारतीय संस्कृति के विरोधी झूठी अफवाहें फैलाते हैं |यदि ज्योतिष में कुछ बात नहीं होती तो बड़े-बड़े नेता नामांकन भरने और शपथ लेने के लिए ज्योतिषियों से मुहूर्त नहीं निकलवाते | हमने कहा- कुछ कट्टर और अन्धविश्वासी लोग ऐसा करते हैं | बोला- मैं सब समझता हूँ |तेरा इशारा भाजपा की ओर है | हमने कहा- हमारा मतलब सभी अंधविश्वासियों से है |नरसिंहा राव भी सब काम राहुकाल और ज्योतिष के अनुसार किया करते थे |बाबरी मस्जिद के समय राहुकाल था इसलिए उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया | तोताराम ने हमारी नरसिंहा राव वाली बात से कांग्रेस को पकड़ लिया, कहने लगा- मोदी जी के चुने जाने के बाद जब पेट्रोलियम के दाम कम हुए तो कांग्रेस ने कहा था- यह तो नसीब की बात है कि मोदी जी के आते ही अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के भाव कम हो गए |मतलब कि वे भी नसीब को मानते हैं |कर्म की बजाय नसीब की बात करना ही तो वह बिंदु है जहाँ से ज्योतिष प्रारंभ होता है | और तुझे याद होना चाहिए कि बिहार के चुनावों में महागठबंधन के विरुद्ध प्रचार करते हुए मोदी जी ने कहा था- कांग्रेस कहती है कि मोदी के नसीब से तेल के दाम कम हो गए |तो आप भी फूटे नसीब वालों की जगह अच्छे नसीब वालों को क्यों नहीं चुनते ? जनता ने नसीब वालों को नहीं चुना |लेकिन नसीब में मोदी जी लिखे थे तो कुछ महीनों बाद चुने-चुनाए नीतीश जी जदयू के राजग हो गए |पायजामे से चड्डीधारी हो गए |भाग्य का लिखा कोई नहीं टाल सकता | हमने कहा- यदि नेता के नसीब से सब कुछ होता है तो बिहार, उत्तर प्रदेश, आसाम में बाढ़ और अब मुम्बई में वर्षा का यह कहर किसके भाग्य से है ? जब सारे देश के अच्छे-बुरे दिन मोदी जी के भाग्य से ही जुड़े हैं तो यह बाढ़ भी उनके सौभाग्य-दुर्भाग्य का ही परिणाम मानी जानी चाहिए | बोला- भविष्य हमेशा एक जैसा नहीं रहता |वैसे तूने उनका उदयपुर वाला भाषण ध्यान से नहीं सुना |मोदी जी ने कहा था कि कांग्रेस ने सत्तर साल से देश को गड्ढे में डाल रखा था |और गड्ढे में पानी तो भरेगा ही ना | वैसे विश्वास रख, 'संकल्प से सिद्धि' अवश्य मिलती है |२०२२ तक यह गड्ढा भी भर ही देंगे |वैसे तुझे पता होना चाहिए कि बिहार के जल संसाधन मंत्री ललन सिंह और आपदा प्रबंधन मंत्री दिनेश चन्द्र यादव ने अपने एक्सपर्ट कमेंट्स में बता दिया है कि बाढ़ मोदी जी के दुर्भाग्य के कारण नहीं बल्कि चूहों द्वारा बाँधों के तटबंध खोद डालने से आई है | हमने कहा- लेकिन इन चूहों ने ये तटबंध जदयू से भाजपा में आने से पहले खोदे या बाद में ? बोला- यह तो अमित जी भी नहीं बता पाएँगे क्योंकि पहले राजनीति में घोड़ों का धंधा चलता था आजकल चूहों का बड़ी मात्रा में आयात हो रहा है |अब कैसे पता चले कि कौनसा चूहा कब, कहाँ से आया है ?
आते ही तोताराम तनिक झुका और बोला- हे वयः प्राप्त, वरिष्ठ ! वंदन | तोताराम जब कभी मूड में होता है तो हमें अपना राम कहता है और स्वयं को हनुमान |आज उसके स्वर में वही भाव अनुभव हुआ | सो हमने भी कहा- कहो मारुतिनंदन ? बोला- यह वंदन और अभिनन्दन अपनी तरफ से नहीं बल्कि प्रधान सेवक जी की तरफ से कह रहा हूँ | हमने कहा- प्रधान सेवक कौन ? मोदी जी ? बोला- आज के इस बदतमीज़ और कृतघ्न संसार में मोदी जी जितना विनम्र और कौन हो सकता है ? क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने स्वयं को प्रधान सेवक कहा ?बैठे बिठाए हम जैसे सरकार के आजीवन नौकर रहे लोगों को स्वामी का दर्ज़ा दे दिया |और आज ! आज तो सीधे-सीधे हम वयः वृद्ध लोगों को सम्मानित करते हुए एक योजना भी शुरू कर दी है |और हमारे सामने अखबर पटकते हुए कहा-ले, पढ़ ले | 'प्रधानमंत्री वय वंदन योजना' जिसका आज जेतली जी विधिवत लोकार्पण करेंगे | हमने कहा- बन्धु, हमें तो तब से ही वंदन और अभिनन्दन से डर लगता है जब एक अभिन्दन समारोह में किसी ने हमारी नई चप्पलें पार कर दी थीं और एक बार एक शिष्य ने अचानक इस अदा से हमारे चरण-स्पर्श किए कि हम गिर पड़े थे |और फिर मोदी जी ने जब वंदन करते-करते अडवाणी जी को ही बर्फ में लगा दिया तो यह वंदन हमारा क्या हाल करेगा पता नहीं ? बोला- तू कभी तो सकारात्मक सोचा कर |अडवाणी जी वाली तो राजनीतिक बात है |हमें उससे क्या लेना ? उनका 'पारिवार' का मामला है | हमने कहा- बन्धु, हमें तो जेतली जी और मोदी जी की नीयत पर शक है |यदि वरिष्ठ जनों के प्रति इतनी ही श्रद्धा है तो हमारा सातवाँ वेतन आयोग क्यों दबाए बैठे हैं ? किसी का पैसा देना है तो समय से दे दो | हिज्र की रात लेकिन इतनी भी लम्बी क्या कि दुलहन इंतज़ार में ही बूढ़ी हो जाए | बोला- अपना ही रोना रोएगा या आगे भी कुछ सुनेगा ? हमने कहा- ठीक है सुना दे | बोला- मोदी जी और उनके जनहितकारी वित्त मंत्री जेतली जी ने वृद्धों का विशेष ध्यान रखते हुए जीवन बीमा के माध्यम से एक योजना शुरु की है जिसमें दस वर्ष के लिए अधिक से अधिक साढ़े सात लाख रुपए की राशि स्वीकार की जाएगी और उस पर आठ प्रतिशत की दर से प्रतिमाह पाँच हजार रुपए ब्याज दिया जाएगा |दस वर्ष बाद राशि वापिस कर दी जाएगी |यदि बीच में कोई मर गया तो पूरी राशि वापिस कर दी जाएगी |यदि किसी संकट के समय आप अपनी राशि निकालना चाहें तो मूल का २ प्रतिशत कटेगा |ब्याज पर टेक्स लगेगा | हमने कहा- तोताराम, इसमें नया क्या है ? इसके पहले से ही पोस्ट ऑफिस में वरिष्ठ नागरिकों के लिए मासिक आय योजना है |इसमें तो पैसा दस वर्ष के लिए जमा करवाना पड़ेगा जबकि उसमें तो पाँच साल के लिए ही जमा करवाना पड़ता है |पहले एक बार मनमोहन सिंह जी ने कहा था- मैं तो सेल्समैन हूँ |मुझे लगता है इस समय मोदी जी से बड़ा सेल्समैन भारत क्या, दुनिया में नहीं है |जो योजना पहले से है उसीका इस तरह से विज्ञापन मानों पता नहीं जनहित का कौन-सा बड़ा काम कर दिया |अधिकतर काम जैसे मनरेगा, जी.एस.टी., जन कल्याण औषधि भण्डार आदि सब नई पेकिंग में पुराना माल है |वैसे बन्दे की सबसे बड़ी खासियत है अंदाज़ |जैसे कि ग़ालिब का अंदाज़े बयाँ | बोला- तो इसी पर दाद दे मगर दे तो सही |कवि भी तो कहता - साक़ी ! शराब न दे, न सही पर शराब की बात तो कर | और एक बात ध्यान से सुन ले |ज्यादा चूँ चपड़ मत किया कर |बन्दे के पास स्पष्ट बहुमत है |अगर पोस्ट ऑफिस में जमा तेरे पैसों पर ब्याज देने की बजाय रखवाली करने के नाम पर आठ प्रतिशत वार्षिक काट लेगा तो भी कोई हाथ पकड़ने वाला नहीं है | तुझे पता होना चाहिए कि नोटबंदी वाले कदम से देश-विदेश से सारा काला धन बैंकों में लौट आया है | अब सरकार के पास वैसे ही नोट रखने तक की जगह नहीं है |