धर्म और रोजगार
आज तोताराम पूरी तैयारी से आया था |बोला- वास्तव में मंथन से ही सत्य और ज्ञान का अमृत निकलता है |यह बात और है कि इस चक्कर में विष और वारुणी भी निकलते हैं |इन्हें देखकर घबराना नहीं चाहिए |अपना कर्म करते रहना चाहिए |कभी न कभी अमृत , कल्प वृक्ष, चन्द्रमा, लक्ष्मी, कामधेनु भी निकलेंगे ही |
हमने कहा- क्या बात है तोताराम ? आज तो मोदी जी की तरह 'मन की बात' के बहाने आस्था चेनल हुआ जा रहा है |
बोला- मेरी बात ध्यान से सुन |और हाँ, पकौड़ा शब्द आने पर घबराकर भाग मत खड़ा होना |
हमने कहा- तो क्या संसद अब तक पकौड़े ही तल रही है या कोई ढंग का काम भी कर रही है |
बोला- जब मोदी जी ने पकौड़े बेचने को रोजगार कहा तो चिदंबरम जी कहा- कल को ये भीख माँगने को भी रोजगार का दर्ज़ा दे देंगे |लेकिन मोदी जी कहाँ चूकने वाले हैं |पहले जैसे चाय को मुद्दा बनाया था वैसे ही अब शाह साहब पकौड़े वालों की अस्मिता के पैरोकार बन गए |
हम भो सोचें | क्या यह भीख माँगने वालों का अपमान नहीं है ? क्या वे इंसान नहीं हैं ? क्या उनका कोई सम्मान नहीं है ? क्या भीख माँगना इतना सरल काम है |जब हमारे शास्त्रों में चोरी करना, सेंध लगाना तक को कला माना गया है तो भीख और भिखारी की अवमानना क्यों ?
हमने पूछा- वैसे बन्धु, भीख माँगना कब से रोजगार हो गया ?
बोला- मैं बिना प्रमाण के बात नहीं करता |यह कथन मेरा नहीं है बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश जी भाई साहब का है |इंद्र देवताओं के राजा और ये उसके भी ईश |इसलिए पद और प्रभाव में कोई शंका नहीं हो सकती |उन्होंने कहा है कि धर्म भी रोजगार देता है |देश में २० करोड़ भिखारी हैं | जो भिक्षा में कैरियर बनाने के लिए शहर आते हैं और लगभग ४० वर्ष की आयु के बाद 'स्टार्ट अप' के लिए अपने मूलस्थान चले जाते हैं |
हमने कहा- हम तो देश की इज्ज़त का ख्याल रखते हुए डरते-डरते हुए भिखारियों की संख्या एक करोड़ बताया करते थे लेकिन अब तो प्रामाणिक तथ्य सामने आ गया तो इसे कहीं भी कोट किया जा सकता है | क्या यह गिनती केवल अपने महान हिन्दू धर्म में रोजगार प्राप्त भिखारियों की है या इसमें अन्य धर्म भी शामिल है ? क्या धार्मिक स्थानों में भीख माँगने वालों को ही इसमें गिनोगे या वहाँ जूते उठाने वालों और जेब काटने वालों को भी इसमें शुमार करोगे ? वैसे गौशाला, मंदिर, भंडारा, जागरण, आश्रम आदि भी तो धर्म से ही संबंध रखते हैं |इन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए | यह भी कहा जाता था कि तीर्थ स्थानों में एड्स के मरीज अधिक पाए जाते हैं क्योंकि वहाँ वेश्या वृत्ति भी बहुत चलती है तो क्या इसे भी धार्मिक रोजगार में जोड़ोगे ?
बोला - बात सुननी है तो ठीक है सुन |वरना क्यों बिना बात किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने के चक्कर में स्वयं सेवकों को अपनी कपाल-सेवा का मौका देता है ?
हमने कहा- बन्धु, हम तो सामान्य जन की तरह जिज्ञासा कर रहे हैं वैसे हम जानते हैं कि यह वैसे ही नहीं कहा गया है- 'धर्म की जड़ सदा हरी' और 'धर्मो रक्षति रक्षितः' |यदि धर्म में बल और चमत्कार नहीं होते तो सिक्किम के पूर्व जज और पूर्व राज्यपाल सुन्दरनाथ भार्गव जोधपुर में कोर्ट के बाहर आसाराम बापू के पैर नहीं छूते |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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