घोटाला : अगण्य या नगण्य
आज तोताराम बरामदे में बैठने की बजाय, हमें लगभग ठेलता हुआ कमरे में ले गया और हमारे कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाया- नब्बे हजार सडकें कितने रुपए में बनती हैं ?
हमने कहा- इतना बड़ा हिसाब तो किसी बहुत बड़े ठेकेदार से लगवा |हमसे तो ज़िन्दगी भर अपना आयकर का हिसाब ही नहीं लगा |वैसे हिसाब तो तब लग सकता है जब यह पता चले कि एक किलोमीटर सड़क कितने में बनती है और इन नब्बे हजार सड़कों की लम्बाई कितनी है |दूसरी बात सड़कें केवल लम्बाई में ही नापी नहीं जातीं |उनका रेट उनकी चौड़ाई और गहराई पर भी निर्भर करता है |और फिर सामग्री के हिसाब से भी रेट बदल जाते हैं |यदि सही हिसाब लगवाना है तो ये सब डिटेल्स लेकर आ |
बोला- डिटेल्स का मुझे क्या पता ? लेकिन घोटाला है बहुत बड़ा |अगर एक सड़क पाँच किलोमीटर की भी हुई तो साढ़े चार लाख किलोमीटर लम्बी सड़कों का मामला है |
हमने कहा- तो फिर मोदी जी चिट्ठी लिख दे |उन्होंने अपना फोन नंबर और मेल का पता सबको दे रखे हैं |वे तो किसी स्कूली बच्चे तक की चिट्ठी को गंभीरता से लेते हैं फिर यह तो खरबों रुपए का घपला है |
बोला- बन्धु, कोई कुछ भी कहे लेकिन मैं ऐसा जोखिम नहीं ले सकता |
हमने कहा- इसमें जोखिम क्या है ? उन्होंने तो पद संँभालते ही कह दिया था- न खाऊँगा और न खाने दूँगा |
बोला- तुझे पता हैं ना, अटल जी के समय में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में ईमानदारी का झंडा उठाने वाले एक इंजीनीयर सत्येन्द्र दुबे हुआ करते थे |उन्होंने इस योजना में एक बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते हुए अटल जी को एक पत्र लिखा था |वह पत्र उन्हीं अधिकारियों के पास पहुँच गया जो उस भ्रष्टाचार में शामिल थे | और नतीजा सबको मालूम ही है |
हमने कहा- वैसे मोदी जी घोटालों का पूरा -पूरा रिकार्ड रखते हैं |कोई भी बात उछलती है तो वे झट से कांग्रेस के पूरे कार्यकाल में हुए एक-एक घोटाले को क्रमशः गिना देते हैं |ऐसा कैसे हुआ कि उन्हें भनक ही नहीं लगी और तू सारे डिटेल्स निकाल लाया ?
बोला- मैं क्या निकाल लाया |वह तो देश के सबसे विश्वसनीय अखबार के १२ जनवरी २०१८ के जयपुर संस्करण के १२ वें पेज पर यह समाचार छपा था | वाशिंगटन की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और पेरिस स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के रिसर्च में यह दावा किया गया है कि सन २००० से शुरु हुई 'प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना' में अब तक १७ वर्षों में नब्बे हजार सड़कें बनाई ही नहीं गईं लेकिन उनका भुगतान ठेकेदारों को कर दिया गया है |
हमने कहा- पिछले सत्रह वर्षों में सात साल भाजपा के प्रधान मंत्री और दस साल कांग्रेस के प्रधान मंत्री रहे हैं |इसलिए इस हिसाब से कांग्रेस ५३ हजार और भाजपा ४७ हजार सड़कों के बारे में ज़वाबदेह है |
बोला- अब कांग्रेस है नहीं, अटल जी कुछ बता नहीं सकते |
हमने तो कहा- ठीक है लेकिन फिर भी मोदी जी अपने काल की साढ़े अठारह हजार सड़कों का ज़वाब तो दें |
बोला- लेकिन मोदी जी जब प्रधान मंत्री नहीं हैं तो 'प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना' के लिए वे ज़िम्मेदार कैसे हो सकते हैं ?
हमने कहा- क्या बात करता है ? मोदी जी प्रधान मंत्री कैसे नहीं हैं |
बोला- वे तो प्रधान सेवक हैं |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
आज तोताराम बरामदे में बैठने की बजाय, हमें लगभग ठेलता हुआ कमरे में ले गया और हमारे कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाया- नब्बे हजार सडकें कितने रुपए में बनती हैं ?
हमने कहा- इतना बड़ा हिसाब तो किसी बहुत बड़े ठेकेदार से लगवा |हमसे तो ज़िन्दगी भर अपना आयकर का हिसाब ही नहीं लगा |वैसे हिसाब तो तब लग सकता है जब यह पता चले कि एक किलोमीटर सड़क कितने में बनती है और इन नब्बे हजार सड़कों की लम्बाई कितनी है |दूसरी बात सड़कें केवल लम्बाई में ही नापी नहीं जातीं |उनका रेट उनकी चौड़ाई और गहराई पर भी निर्भर करता है |और फिर सामग्री के हिसाब से भी रेट बदल जाते हैं |यदि सही हिसाब लगवाना है तो ये सब डिटेल्स लेकर आ |
बोला- डिटेल्स का मुझे क्या पता ? लेकिन घोटाला है बहुत बड़ा |अगर एक सड़क पाँच किलोमीटर की भी हुई तो साढ़े चार लाख किलोमीटर लम्बी सड़कों का मामला है |
हमने कहा- तो फिर मोदी जी चिट्ठी लिख दे |उन्होंने अपना फोन नंबर और मेल का पता सबको दे रखे हैं |वे तो किसी स्कूली बच्चे तक की चिट्ठी को गंभीरता से लेते हैं फिर यह तो खरबों रुपए का घपला है |
बोला- बन्धु, कोई कुछ भी कहे लेकिन मैं ऐसा जोखिम नहीं ले सकता |
हमने कहा- इसमें जोखिम क्या है ? उन्होंने तो पद संँभालते ही कह दिया था- न खाऊँगा और न खाने दूँगा |
बोला- तुझे पता हैं ना, अटल जी के समय में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में ईमानदारी का झंडा उठाने वाले एक इंजीनीयर सत्येन्द्र दुबे हुआ करते थे |उन्होंने इस योजना में एक बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते हुए अटल जी को एक पत्र लिखा था |वह पत्र उन्हीं अधिकारियों के पास पहुँच गया जो उस भ्रष्टाचार में शामिल थे | और नतीजा सबको मालूम ही है |
हमने कहा- वैसे मोदी जी घोटालों का पूरा -पूरा रिकार्ड रखते हैं |कोई भी बात उछलती है तो वे झट से कांग्रेस के पूरे कार्यकाल में हुए एक-एक घोटाले को क्रमशः गिना देते हैं |ऐसा कैसे हुआ कि उन्हें भनक ही नहीं लगी और तू सारे डिटेल्स निकाल लाया ?
बोला- मैं क्या निकाल लाया |वह तो देश के सबसे विश्वसनीय अखबार के १२ जनवरी २०१८ के जयपुर संस्करण के १२ वें पेज पर यह समाचार छपा था | वाशिंगटन की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और पेरिस स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के रिसर्च में यह दावा किया गया है कि सन २००० से शुरु हुई 'प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना' में अब तक १७ वर्षों में नब्बे हजार सड़कें बनाई ही नहीं गईं लेकिन उनका भुगतान ठेकेदारों को कर दिया गया है |
हमने कहा- पिछले सत्रह वर्षों में सात साल भाजपा के प्रधान मंत्री और दस साल कांग्रेस के प्रधान मंत्री रहे हैं |इसलिए इस हिसाब से कांग्रेस ५३ हजार और भाजपा ४७ हजार सड़कों के बारे में ज़वाबदेह है |
बोला- अब कांग्रेस है नहीं, अटल जी कुछ बता नहीं सकते |
हमने तो कहा- ठीक है लेकिन फिर भी मोदी जी अपने काल की साढ़े अठारह हजार सड़कों का ज़वाब तो दें |
बोला- लेकिन मोदी जी जब प्रधान मंत्री नहीं हैं तो 'प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना' के लिए वे ज़िम्मेदार कैसे हो सकते हैं ?
हमने कहा- क्या बात करता है ? मोदी जी प्रधान मंत्री कैसे नहीं हैं |
बोला- वे तो प्रधान सेवक हैं |
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