Dec 3, 2018

विजय तो विजय है



विजय तो विजय है

आते ही तोताराम ने हमारे सामने अख़बार फेंका और बोला- ले देख, हमारी विजयी शुरुआत |

हमने कहा- अभी तो वोटिंग भी पूरी नहीं हुई तो विजय कैसी ? सर्वे भी कोई बहुत साफ़ नहीं हैं |और सर्वे का क्या ?  वे तो ज्योतिषियों, अखबारों और चैनलों की तरफ दो पैसे फेंककर कभी भी, किसी भी तरह के करवाए जा सकते हैं |

बोला- यह कोई सर्वे नहीं है |ये तो महंत जी के धर्मयुक्त सत्य वचन हैं |उन्होंने कह दिया है कि राहुल गाँधी का जनेऊ दिखाना हमारी नैतिक विजय है |

हमने कहा- तोताराम, यह योगी जी का स्टेटमेंट नहीं हो सकता |

पूछने लगा- क्यों नहीं हो सकता ? आजकल तो जाने कैसे-कैसे घटिया स्टेटमेंट आने लगे हैं |इस स्टेटमेंट में क्या कमी है ?

हमने कहा- योगी जी तो नाथ पंथ को मानने वाले हैं |नाथ पंथ तो बौद्ध धर्म से ही विकसित हुआ है | बौद्ध धर्म शुरू ही वैदिक काल में अनावश्यक कर्मकांड और आडम्बरों के विरुद्ध हुआ था | योगी और संत तो चाहे जिस पंथ के हों वे आडम्बरों में विश्वास नहीं करते |वे सभी प्रकार के कर्मकांडों से मुक्त हो जाते हैं |वे खुद भी जनेऊ धारण नहीं करते |

बोला- लेकिन योगी जी अब केवल मठ और नाथपंथ तक ही सीमित थोड़े हैं |अब वे भाजपा के स्टार प्रचारक हैं |उन्होंने कह दिया है कि हनुमान जी की तरह जब तक वे भाजपा को जिता नहीं देते तब तक 'मोहि कहाँ बिसराम' | इसलिए उन्हें वह सब कुछ करना पड़ेगा जो चुनाव जीतने के लिए किसी भी पार्टी और नेता को करना पड़ता है |यह तो उनकी सज्जनता है जो वे इतने कोमल शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं अन्यथा ब्रह्मचर्य का तेज और जोश तथा तपस्या की शक्ति ! चाहें तो एक क्षण में विपक्षी रावण का घर जला दें |

हमने कहा- लेकिन यह नैतिक विजय क्या है ?

बोला- इसका मतलब यह है कि भाजपा के नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के समाज में प्रेमभाव बढ़ाने वाले, जात-पाँत, ऊँचनीच मिटाने वाले, दलितों को गले लगाने वाले, सर्वसमभावी एवं समरसतावादी बयानों और आचरणों के कारण कांग्रेस भी उदार होने के लिए मजबूर हो गई है |इससे बड़ी नैतिक विजय और क्या होगी ?

हमने कहा- तोताराम, ठीक है |संतों का काम संसार को प्रेम का सन्देश देना है | गुरु नानक के अनुयायियों ने अमृतसर में जो स्वर्ण मंदिर बनाया है उसकी नींव एक मुसलमान के हाथों रखवाई गई थी |सांप्रदायिक सद्भाव का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है ? लेकिन हमारा मानना है कि जब राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना हो जाता है तो वह लोकतंत्र नहीं बल्कि युद्ध हो जाती है | और कोई भी युद्ध भले ही, वह 'धर्म-युद्ध' के नाम पर लड़ा जाता हो लेकिन समाप्त होते-होते 'अधर्म-युद्ध' में बदल जता है |फिर चाहे वह योगिराज कृष्ण के नेतृत्त्व में लड़ा जाने वाला महाभारत का युद्ध ही क्यों हो ?

बोला- मास्टर, विजय तो विजय है |चाहे वह नैतिक हो या अनैतिक | अंग्रेजी में भी तो कहा गया है-नथिंग सक्सीड्स लाइक सक्सेस |















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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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