दिवाली, हिन्दू और ट्रंप
आज तोताराम ट्रंप से कुछ खफा था |आते ही कहने लगा- भले का तो ज़माना ही नहीं है |यहाँ हम चुनाव में उसकी जीत के लिए यज्ञ करते रहे, अमरीका में भारत मूल के खुशामदी 'अबकी बार : मोदी सरकार' की तर्ज़ पर 'अबकी बार : ट्रंप सरकार' का नारा देकर लोटपोट हो रहे थे और ये महाशय दिवाली में उपलक्ष्य में बधाई देते समय हिन्दुओं का नाम तक भूल गए |
हमने कहा- अपने राजस्थान में कहावत है- 'मानै ना तानै ना, मैं लाडो की बुआ' | तो समझले हम लोगों का वही हाल है |बिना बात इधर-उधर मुँह निकालते रहते हैं |ऐसे ही उत्साहीलाल बिहार में उसी समय हिलेरी की जीत के लिए भी यज्ञ कर रहे थे | इससे पहले एक पंडित जी ने ओबामा को हनुमान जी की एक छोटी-सी मूर्ति भेजने की खबर छपवाई थी |
बोला- यह तो हमारी महानता, उदारता और सर्वधर्मसमभाव है कि हम अमरीका और ब्रिटेन के भी सभी त्यौहार मानते हैं |
हमने कहा- महानता नहीं, बिना बात बड़े देशों के मुँह लगने वाली बात है |वे तो इस तरह तुम्हारे त्यौहार नहीं मनाते |जैसे कि मोदी जी तुम्हारी कोई फरियाद नहीं सुनते लेकिन तुम लोग उनके 'मन की बात' रेडियो या टीवी पर सुनते हुए फोटो खिंचवाकर प्रचारित करते हो |जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म के कुछ नियम-कायदे और सिद्धांत हैं जिनके कारण उन्हें धर्म का दर्ज़ा दिया गया है | ठीक है कि इन धर्मों के सब लोग मूलतः भारत के ही लोग हैं लेकिन अब वे अपने को हिन्दू नहीं मानना चाहते |इसी तरह से दलित, आदिवासी भी अपने को उपेक्षित अनुभव करते हैं |हो सकता है कल को वे भी इनकी तरह अपना कोई नया धर्म बना लें |ट्रंप से बधाई की बजाय सभी भारतीयों को तो एकता और प्रेम के सूत्र में बाँध लो |वैसे ट्रंप की बधाई को ही क्या चाटोगे ? अरे, जब घर में खाने को दाने हों तो दिवाली है नहीं तो दिवाला |
पूर्णिमा और अमावस्या दो प्रमुख तिथियाँ हैं- एक में पूरा चाँद और दूसरी में घोर अँधेरा |ये तिथियाँ अच्छी तरह याद रह जाती है |इसीलिए अधिकतर महापुरुष इसी दिन पैदा होते हैं |वैसे यदि राम न हुए होते या वन में नहीं गए होते या अन्य भारतीय धर्मों के महापुरुष दिवाली के दिन नहीं जन्मे होते तो भी दिवाली मनती क्योंकि यह फसलों के घर आने का पर्व है |मनुष्य के परिश्रम का पुरस्कार है |मनुष्य का श्रम ही उसकी लक्ष्मी है |यही दीपों में तेल है |यही तेल जलाकर हम उजाला पाते हैं |
अमरीका में इसका नाम दिवाली न सही लेकिन वहाँ का हैलोवीन या थैंक्स गिविंग डे भी तो फसल घर आने के दिन ही हैं |
इसलिए झूठी बधाइयों की औपचारिकता से निकलो |परिश्रम करो, मितव्ययिता से रहो और अपने श्रम को सब के साथ साझा करो यही दिवाली है, यही रामराज है, यही धर्म है और यही धर्म सृष्टि को धारण करने की क्षमता रखता है |
बोला- और श्रम के फल के रूप में दिवाली मनाने वालों को किसी नेता की ओर से बधाइयों का इंतज़ार करने की भी ज़रूरत नहीं है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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