मन की बात तो सुननी ही पड़ेगी
मिस्टर ट्रंप,
जब आपके वहाँ 'महामहिम' और 'माननीय' जैसे शब्द चलते ही नहीं तो फिर हमारे लिए ही कौन सी मजबूरी है, यह औपचारिकता निभाने की |और फिर हम आपसे उम्र में भी तो बड़े हैं |खैर |
भारत द्वारा अफगानिस्तान में एक पुस्तकालय को आर्थिक सहायता देने और मोदी जी द्वारा आपके सामने उसका उल्लेख करने को लेकर आपने उनका जो मज़ाक बनाया वह आपके पद के अनुकूल नहीं था लेकिन आपके स्वभाव के अनुरूप ज़रूर था |आदमी अपने स्वभाव से लाचार होता है |स्वभाव के चलते आदमी लचर भी हो जाता है और जहाँ-तहाँ अपना लीचड़पन दिखाने से भी बाज नहीं आता |महिला पत्रकारों के साथ आपके व्यवहार में और आपकेअपने ही बहुत से साथियों के आपको छोड़कर चले जाने में भी आपकी इस विशेषता का पता चलता है |तभी हमारे यहाँ कहा गया है कि चोर चोरी से जाए लेकिन हेरा-फेरी से नहीं जाता |
आपने कहा कि मोदी जी अफगानिस्तान में जिस पुस्तकालय के वित्त पोषण की बात करते हैं उतना तो अमरीका अफगानिस्तान में ५ घंटे में खर्च कर देता है |बात खर्च के पैसों की नहीं है, बात यह है कि कौन किस भाव से, कैसे काम के लिए खर्च करता है |पैसे का हिसाब रंडी रखती है |उसे व्यक्ति से नहीं धंधे से मतलब होता है |धंधा करने वाला रंडी की तरह ही होता है |पैसे लेकर नाचने वाला भांड होता है भले ही वह एक रात के पचास करोड़ लेता हो या पचास |
आप प्रोपर्टी डीलर रहे हैं |भारत के सब लोग जानते हैं कि प्रोपर्टी डीलर किस प्रकार के लोग होते हैं, कैसी बातें कते हैं और कैसे-कैसे उलटे-सीधे काम करते हैं |अपने बाप से भी दलाली नहीं छोड़ते |मंदिर, मस्जिद, कब्र किसी की भी ज़मीन जाली कागज बनाकर बेच देते हैं |एक ही प्लाट को कई-कई बार बेच देते हैं |
और बातों को छोडिए, एक अमरीकी भारतीय ने आपको चुनाव-अभियान के दौरान बुलाया था, चंदा भी दिया था और नारा भी सुझाया था- अबकी बार, ट्रंप सरकार | अब यह तो पता नहीं कि आप उस नारे के बल पर जीते थे या अमरीकी वोटरों की मूर्खता के कारण | वैसे मूर्खता पर केवल अमरीकियों का ही अधिकार नहीं हो सकता |मूर्ख कहीं भी हो सकते हैं |हमने भी इसी नारे के कारण वोट दे दिया था |आपको पता होना चाहिए कि यह नारा मोदी जी ने ही दिया था | वाराणसी में लोगों ने आपके चुनाव में विजयी होने के लिए यज्ञ भी किया था |हम भारतीय बहुत चतुर होते हैं इसलिए हिलेरी क्लिंटन के लिए पटना में यज्ञ किया था |सुलभ शौचालय वाले विन्ध्येश्वरी दुबे ने सफाई कर्मचारियों के लिए बनाई कॉलोनी का नाम किसी सहायता की आशा में 'ट्रंप-विलेज' रखा था कुछ महिलाओं को भगवा कपड़े पहनाकर और कुछ मंत्र रटवाकर मोदी जी के पास भी ले गए थे |जहाँ से भी, जो भी मिल जाए |दे उसका भी भला, न दे उसका भी भला |
अमरीका ने जापान पर बम गिराए, वियतनाम में युद्ध में रोज करोड़ों रुपए फूँके लेकिन इस खर्च की सार्थकता क्या है ?जर्मनी ने भी साठ लाख यहूदियों को मरवाने और उनकी लाशों को जलवाने में करोड़ों रुपए खर्च किए थे लेकिन क्या वह उल्लेखनीय है ? अफगानिस्तान और ईराक का पुनर्निर्माण क्या है ? पहले अमरीका ने ही उन्हें बमों से तहस-नहस किया और फिर पुनर्निर्माण के नाम पर धूल के भाव उनका तेल लेते रहने का समझौता कर लिया |हथियारों का धंधा ज़ारी रखने के लिए दुनिया में तनाव बनाए रखने के लिए अरबों रुपए खर्च करने का क्या औचित्य है ?
आपको पता होना चाहिए कि जब दुनिया में कट्टरवादियों का शासन आता है या वे कहीं आक्रमण करते हैं तो सबसे पहले बुद्धिजीवियों को मारते हैं और पुस्तकालयों को जलाते हैं |हर तथाकथित धर्म और घटिया शासक सबसे पहले शिक्षा को कब्ज़े में लेकर लोगों को कूढ़ मगज बनाते हैं |अनुशासन और राष्ट्रवाद के नाम पर संवाद की जगह मात्र आदेश की पालना की 'यस सर' वाली संस्कृति लादते हैं |इसीलिए तो आपकी प्राथमिकता गरीबों के लिए बनाई गई 'ओबामा केयर' को बंद करना और मेक्सिको सीमा पर दीवार बनवाना है, भले ही इसके लिए कर्मचारियों को छुट्टी पर ही क्यों न भेजना पड़े |
दुनिया मेंआप जैसे और भी बहुत से सिरफिरे हैं जो जाति-धर्म और गोत्र के नाम पर अपने-अपने देशों में तरह-तरह की दीवारें खड़ी कर रहे हैं लेकिन किसी को एक ही ट्रिक से दो बार बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता |
जहाँ तक अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाए पुस्तकालय की थोड़ी सी राशि के ज़िक्र पर आप द्वारा अपनी समृद्धि की आड़ में भारत का मज़ाक उड़ाने की बात है तो सुन लीजिए |जब आपके पूर्वज योरप में पिछड़ा जीवन जी रहे थे तब यह देश सोने की चिड़िया था |हम नहीं गए थे उन्हें खोजने |वे ही हमें खोजते-खोजते आए थे |हमारे ज्ञान और हमारी समृद्धि से अभिभूत होकर |यह बात और है कि आपने हमारी फूट का लाभ उठाकर हम पर ही राज किया और अब भी हमें उल्लू बना रहे हैं |
याद रखिए, इस देश में अब भी बहुत दम है |इस सीमेंट में जान है |आपके देश ने अपने जीवन काल में राम-राम करके लिबर्टी की एक प्रतिमा बनाई और इस देश ने मात्र चार साल में उससे दुगुनी ऊँची पटेल की प्रतिमा बना डाली |अब उससे भी ऊँची की प्रतिमा विचाराधीन है |उससे भी ऊँची राम की प्रतिमा की तैयारी है |अब देखते जाइए, प्रतिमाएँ ही प्रतिमाएँ हो जाएँगी देश में |आप कह सकते हैं कि इससे पैसे की बर्बादी होती है |यह भी कोई काम है ?कोई बात नहीं लेकिन इससे हमारी क्षमता और समृद्धि का तो पता चलता ही है |आप अपने बेकारों को सौ डालर के फ़ूड स्टाम्प पकड़ाकर बड़े कल्याणकारी राज्य बने फिरते हो |हमारे यहाँ तो सरकारें आज़ादी के बाद पैदा हुए को स्वतंत्रता सेनानी का दर्ज़ा देकर हजारों रुपया पेंशन दे सकती हैं |इमरजेंसी में सजा पाने के नाम पर जाने कितने नकली लोग पेंशन ले रहे हैं | कई हिस्ट्री शीटर लोकतंत्र सेनानी की पेंशन ले रहे हैं | अब आन्ध्र में चुनाव जीतने के लिए ब्राह्मण युवकों को कार देने की अफवाह है |चुनाव में वोटरों को टी वी, मोबाइल फोन देना तो सामान्य बात है |
आप इसे तर्क के आधार पर चुनाव जीतने के लिए दी गई रिश्वत कह सकते हैं |अरबों रुपए की खर्चीली शादियाँ होती हैं, आप उन्हें फिजूल खर्ची कह सकते हैं लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि यह देश गरीब नहीं है |
और फिर जब खर्चा किया जाए तो उसे गाया भी तो जाना चाहिए |पैसा फेंकें तो उसकी खनखनाहट का सुख भी तो लिया जाए जैसे जब अमरीका ने अफगानिस्तान में फूड पैकेट गिराए थे तो उसके साथ अमरीका का झंडा भी लगा हुआ था |क्या यह टुच्चा काम नहीं था ?
वैसे आपके चाल, चरित्र और चेहरे के बारे में तो दुनिया को तभी पता चल गया था जब सातवीं क्लास के एक बच्चे से कोई चुटकुला लिखने को कहा गया था तो उसने आपका नाम लिख दिया था |
वैसे मोदी जी आपको हजारों करोड़ की हथियारों की बिक्री करवाते हैं तो आपको उनके 'मन की बात' सुननी ही पड़ेगी |
आपको बता दें कि आप जिसे पुस्तकालय कह रहे हैं वह वास्तव में अफगानिस्तान का संसद भवन है |वैसे प्रोपर्टी डीलर के लिए भावनाओं और प्रतीकों का कोई महत्त्व नहीं होता |वह तो ज़मीन और मकान के दाम और खुद को मिलने वाले कमीशन के बारे में सोचता है |
आपको पता होना चाहिए कि जब दुनिया में कट्टरवादियों का शासन आता है या वे कहीं आक्रमण करते हैं तो सबसे पहले बुद्धिजीवियों को मारते हैं और पुस्तकालयों को जलाते हैं |हर तथाकथित धर्म और घटिया शासक सबसे पहले शिक्षा को कब्ज़े में लेकर लोगों को कूढ़ मगज बनाते हैं |अनुशासन और राष्ट्रवाद के नाम पर संवाद की जगह मात्र आदेश की पालना की 'यस सर' वाली संस्कृति लादते हैं |इसीलिए तो आपकी प्राथमिकता गरीबों के लिए बनाई गई 'ओबामा केयर' को बंद करना और मेक्सिको सीमा पर दीवार बनवाना है, भले ही इसके लिए कर्मचारियों को छुट्टी पर ही क्यों न भेजना पड़े |
दुनिया मेंआप जैसे और भी बहुत से सिरफिरे हैं जो जाति-धर्म और गोत्र के नाम पर अपने-अपने देशों में तरह-तरह की दीवारें खड़ी कर रहे हैं लेकिन किसी को एक ही ट्रिक से दो बार बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता |
जहाँ तक अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाए पुस्तकालय की थोड़ी सी राशि के ज़िक्र पर आप द्वारा अपनी समृद्धि की आड़ में भारत का मज़ाक उड़ाने की बात है तो सुन लीजिए |जब आपके पूर्वज योरप में पिछड़ा जीवन जी रहे थे तब यह देश सोने की चिड़िया था |हम नहीं गए थे उन्हें खोजने |वे ही हमें खोजते-खोजते आए थे |हमारे ज्ञान और हमारी समृद्धि से अभिभूत होकर |यह बात और है कि आपने हमारी फूट का लाभ उठाकर हम पर ही राज किया और अब भी हमें उल्लू बना रहे हैं |
याद रखिए, इस देश में अब भी बहुत दम है |इस सीमेंट में जान है |आपके देश ने अपने जीवन काल में राम-राम करके लिबर्टी की एक प्रतिमा बनाई और इस देश ने मात्र चार साल में उससे दुगुनी ऊँची पटेल की प्रतिमा बना डाली |अब उससे भी ऊँची की प्रतिमा विचाराधीन है |उससे भी ऊँची राम की प्रतिमा की तैयारी है |अब देखते जाइए, प्रतिमाएँ ही प्रतिमाएँ हो जाएँगी देश में |आप कह सकते हैं कि इससे पैसे की बर्बादी होती है |यह भी कोई काम है ?कोई बात नहीं लेकिन इससे हमारी क्षमता और समृद्धि का तो पता चलता ही है |आप अपने बेकारों को सौ डालर के फ़ूड स्टाम्प पकड़ाकर बड़े कल्याणकारी राज्य बने फिरते हो |हमारे यहाँ तो सरकारें आज़ादी के बाद पैदा हुए को स्वतंत्रता सेनानी का दर्ज़ा देकर हजारों रुपया पेंशन दे सकती हैं |इमरजेंसी में सजा पाने के नाम पर जाने कितने नकली लोग पेंशन ले रहे हैं | कई हिस्ट्री शीटर लोकतंत्र सेनानी की पेंशन ले रहे हैं | अब आन्ध्र में चुनाव जीतने के लिए ब्राह्मण युवकों को कार देने की अफवाह है |चुनाव में वोटरों को टी वी, मोबाइल फोन देना तो सामान्य बात है |
आप इसे तर्क के आधार पर चुनाव जीतने के लिए दी गई रिश्वत कह सकते हैं |अरबों रुपए की खर्चीली शादियाँ होती हैं, आप उन्हें फिजूल खर्ची कह सकते हैं लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि यह देश गरीब नहीं है |
और फिर जब खर्चा किया जाए तो उसे गाया भी तो जाना चाहिए |पैसा फेंकें तो उसकी खनखनाहट का सुख भी तो लिया जाए जैसे जब अमरीका ने अफगानिस्तान में फूड पैकेट गिराए थे तो उसके साथ अमरीका का झंडा भी लगा हुआ था |क्या यह टुच्चा काम नहीं था ?
वैसे आपके चाल, चरित्र और चेहरे के बारे में तो दुनिया को तभी पता चल गया था जब सातवीं क्लास के एक बच्चे से कोई चुटकुला लिखने को कहा गया था तो उसने आपका नाम लिख दिया था |
वैसे मोदी जी आपको हजारों करोड़ की हथियारों की बिक्री करवाते हैं तो आपको उनके 'मन की बात' सुननी ही पड़ेगी |
आपको बता दें कि आप जिसे पुस्तकालय कह रहे हैं वह वास्तव में अफगानिस्तान का संसद भवन है |वैसे प्रोपर्टी डीलर के लिए भावनाओं और प्रतीकों का कोई महत्त्व नहीं होता |वह तो ज़मीन और मकान के दाम और खुद को मिलने वाले कमीशन के बारे में सोचता है |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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