Feb 4, 2023

बरामदे का नाम परिवर्तन


 बरामदे का नाम परिवर्तन       


आज तोताराम ने आते ही एक विचित्र घोषणा की- मास्टर, आज तेरे बरामदे का नाम परिवर्तन कर देते हैं । 

हमने कहा- हमने तुझसे ऐसा कोई कौल-करार नहीं किया जिसके पूरा न होने पर नाम बदल देने की शर्त रही हो । और यह कोई नाम थोड़े है । यह तो सहज, सरल जातिवाचक संज्ञा है । नाम तो उस व्यक्तिवाचक संज्ञा का बदला  जाता है जिसमें देशद्रोही, आतंकवादी और आततायी भाषा की बदबू आती हो  जैसे इलाहाबाद, फैजाबाद, मोरादाबाद, हैदराबाद, आदि ।मतलब देश कोई दुश्मन आबाद नहीं रहना चाहिए । रहें तो बस, जगह-जगह घृणा के बिन्दु और बहाने । यह बात अलग है कि इससे अकबर इलाहाबादी, इलाहाबादी अमरूद, हैदराबादी बिरियानी और मोरादाबादी पीतल के सामान की पहचान भले ही खत्म हो जाए । 

बोला- हम इतने फैनेटिक नहीं हैं । देखा नहीं, हमने तो संस्कृत नाम 'संसद' की जगह 'सेंट्रल विष्ठा' बनाया है । संस्कृत और संस्कृति के गढ़ काशी में 'काशी कॉरीडोर' बनाया है । 

हमने कहा- यदि बदलना ही है तो 'बरामद बैकुंठ' रख दे । 

बोला- वैसे अनुप्रास तो फिट बैठता है लेकिन कल ही पता चला है कि 'बरामदा' फारसी का शब्द है । अब जानते- बूझते तो मक्खी नहीं निगली जा सकती ना । 

हमने कहा- तो फिर काशी के साथ अनुप्रास के चक्कर में कॉरीडोर क्यों रखा ?

बोला- यह अनुप्रास का चक्कर नहीं है । धंधे का मामला है । अब हम धर्म को धंधे में बदलना चाहते हैं । 'कॉरीडोर' कहने से विदेशी पर्यटक अधिक सरलता से समझ सकेंगे कि यह केवल अज्ञात परलोक सुधारने का मामला ही नहीं बल्कि सांसारिक ऐश की भी सभी सामग्रियाँ उपलब्ध होंगी । सो आकर्षित होंगे । 

हमने कहा- जैसे कि साबरमती आश्रम को फाइव स्टार बनाने से और गांधीनगर रेलवे स्टेशन पर रूफ़ टॉप बार बनाने से धंधा चलेगा । क्योंकि इससे पर्यटकों को यह अनुभव करके कितना रोमांच होगा कि वे शराब के घोर विरोधी 'गांधी' के राज्य में जहां शराबबंदी है, वहाँ उसके आश्रम को देखते हुए दारू पी रहे हैं ।   

बोला- हम यहाँ बिना किसी कुंठा के मुक्त भाव से सबकी छिलाई करते हैं तो इसका नाम 'बरामद बैकुंठ' रख सकते हैं । 

हमने कहा- लेकिन फारसी 'बरामदे' का क्या होगा ?

बोला- लेकिन मुझे तत्काल बरामदे का कोई पर्यायवाची याद नहीं आ रहा है । 

हमने कहा- तत्सम तो नहीं लेकिन एक देशज शब्द जरूर है - 'ओसारा' । 

बोला- तो फिर ठीक है । जैसे मोदी जी ने इस अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में गुलामी के चिह्न 'मुगल गार्डन' का नाम बदलकर 'अमृत उद्यान' कर दिया वैसे तेरे बरामदे का नाम 'अमृत ओसारा' किए देते हैं । इस बहाने बरामदे का भी अमृत महोत्सव हो जाएगा । 

हमने कहा- तुझे पता होना चाहिए कि अंग्रेजों द्वारा रखे गए मुग़ल गार्डन का कहीं भी मुगलों के महिमामंडन से नहीं बल्कि यह गार्डन मुगलों के बगीचे बनाने कि शैली के आधार पर बना है जैसे शालीमार बाग, निशात बाग ।  लेकिन तोताराम, क्या इस 'अमृत ओसारा' नाम से ऐसा नहीं लगता कि हम किसी छप्पर वाली झुग्गी में बैठे हैं जिसमें एक तरफ भूसा पड़ा हुआ है और एक तरफ कोई गाय-भैंस बंधी हुई है । 

बोला- तो फिर मास्टर यदि तेरी आमिष आहार में रुचि है तो कुछ  'अमृत' परिवर्तित' व्यंजनों का आनंद भी लगे हाथ ले ही ले, जिनका आविष्कार लेखिका मृणाल पांडे ने किया है- 

-मुगलई दस्तर खान - अमृत भोज पट्टिका 
- मटन शोरबा -अजामृत रस
- मटन बिरियानी -अजओदनामृत 
- चिकन बिरियानी -कुक्कुटोदनामृत 
-क़बाब - अमृत अंगार धूम्र सिंचित पिंड 
- मुगलई रान- अमृत जंघा 

-रमेश जोशी 

 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment