मुँहतोड़ जवाब
पत्नी का भी अब अस्सीवाँ वर्ष चल रहा है। यदि राजनीति में होती तो किसी अवतारी जनसेवक के निष्कंटक वर्चस्व के लिए उसे एक तरफ कर दिया जाता । लेकिन वह हम, तोताराम और उसकी पत्नी के साथ-साथ स्वेच्छा से ही बरामदा संसद की स्थायी सदस्य है। आडवाणी जी की तरह उसके भी इस पद को कोई खतरा नहीं है । हालांकि आडवाणी जी की तरह वह अब सजग और आशावादी नहीं है। बस, किसी तरह हमारे चाय पर चर्चा के उपक्रम के इंफ्रा स्ट्रक्चर को संभाले हुए है ।
वैसे २०२० में एक बार लटपटा गई थी लेकिन साथ-संयोग शेष था सो लौट आई । अब विगत १२ फरवरी को फिर एक झटका लगा । जयपुर भर्ती करवाना पड़ा । भगवान ने फिर लाज रख ली । कल १८ फरवरी को देर रात डिस्चार्ज होकर लौटे । तोताराम को तत्काल खबर नहीं दी लेकिन सुबह तो खबर हो ही गई ।
आज हम बरामदे में नहीं बैठे । तोताराम अंदर ही आ गया । कई देर तक कुछ नहीं बोला । हमने ही मौन भंग किया- कुछ तो बोल । अब तो तेरी भाभी एक बार लौट ही आई ।लेकिन आज चाय हम बनाते हैं ।
बोला- चाय की कोई जरूरत नहीं। घर से पीकर आया हूँ । वैसे भी आज मूड ठीक नहीं है। हम यहाँ बैठे हैं और उधर देश के शत्रु सक्रिय हो रहे हैं ।
हमने कहा- तोताराम, इस देश को कोई खतरा नहीं है । यह देश महान हैं, विश्वगुरु है । यहाँ के वीर लाल आँखों वाले और ५६ इंची सीने वाले हैं । जिन्हे देखते ही अच्छे-अच्छों को दस्त लगने लग जाते हैं । हमारे वीर पुरुष नेता ही नहीं, नेत्रियाँ भी एक से एक वीरांगनाएं हैं । कभी रसोई वाले चाकू तो कभी जुबान वाले चाकू तेज किये हुए ही रखती हैं। और कुछ नहीं तो गालियों से ही शत्रुओं की हालत खराब कर देंगी ।
देश की जनता को जाग्रत और सक्रिय रखने के लिए ऐसे आह्वान किये ही जाते । जैसे हर चुनाव में हेमामलिनी शोले की 'बसंती' की इज्जत को खतरे में बताकर वोट ले ही जाती हैं । अभी कुछ दिन पहले अदानी जी ने बताया था कि हिंडनबर्ग नामक किसी असुर ने देश पर हमला कर दिया है । अब और क्या चक्कर पड़ गया ?
बोला- दो दिन पहले ही स्मृति ईरानी ने बताया है कि अमरीका का कोई एक बूढ़ा सेठ है । पता नहीं, क्या नाम है -कोई सोरॉस-फ़ोरोस । वह मोदी जी को निशाना बना कर भारत के लोकतंत्र को खत्म करना चाहता है । स्मृति जी ने आह्वान किया है कि हम सब भारतीयों को मिलकर उस बूढ़े को मुँहतोड़ जवाब देना है ।
हमने कहा- ईरानी स्मृति हो या विस्मृति, मोदी नरेंद्र, सुरेन्द्र या महेंद्र कोई भी हो, लोकतंत्र को कभी कोई खतरा नहीं होता । वैसे हमेशा खतरा बताया जरूर जाता है । जब 'क' को कुर्सी मिल जाती है तो 'ख' का और 'ख' को कुर्सी मिल जाती है तो 'क' का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है । जिसके पास पैसे होते हैं उसका भी लोकतंत्र कभी खतरे में नहीं पड़ता । वह चुने-चुनाए लोकतंत्र को आवश्यकतानुसार बाजार भाव से दो पैसे फालतू देकर लोकतंत्र खरीद लेता है । जब किसी को बीफ वाला होटल खोलना होता है या किसी को अपने चुनावी फंड के लिए हजारों करोड़ का बेनामी चन्दा लेना होता है तो कोई हमें न पूछता है, न जवाब देने को कहता है ।
बोला- फिर भी जब देश का मामला है तो हम इस प्रकार तटस्थ नहीं रह सकते ।
हमने कहा- लेकिन यह लोकतान्त्रिक बात है । लोकतंत्र में बात का उत्तर बात से दिया जाता है । यह नहीं कि किसी ने तुलसीदास की समीक्षा कर दी तो उसकी जीभ काटने का फरमान जारी कर दिया जाए । या गाय लेकर जा रहे किसी खास तरह के पायजामे या दाढ़ी वाले को कोई स्वघोषित गौ सेवक मारकर कार में डालकर जला दे ।
हमारे लिए संकट के समय कौन आता है ? सब अपने स्वार्थ के लिए ४०० रुपए के सिलेंडर पर प्रदर्शन करते हैं और ११०० रुपए के सिलेंडर पर चुप रह जाते हैं ।
बोला- तो कोई बात नहीं । लोकतंत्र में कभी-कभी कुछ अवतारी नेताओं के विकल्प नहीं होते अन्यथा देश के तथाकथित शत्रुओं को सीधा करने के लिए तो विकल्प होते ही हैं । यदि तुझे 'मुँहतोड़ जवाब' पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं; तू हाथ तोड़, कमर तोड़, घुटना तोड़, नाक तोड़ जैसे विकल्पों में से अपनी पसंद का विकल्प चुन सकता है ।
हमने कहा- 'तोड़' के साथ इस शब्द युग्म में एक शब्द 'जोड़' भी आता है । हम 'तोड़' से पहले 'जोड़' को भी आजमाना चाहते हैं ।
बोला- लेकिन हममें इतना धीरज नहीं है । कोई बात नहीं। चलूँ, सभी तुझ जैसे कायर नहीं हैं । यह वीर भूमि है । लोग धार लगा सब्जी वाला चाकू लेकर सड़क पर तैयार खड़े हैं ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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