वरांडा विष्टा
आज कई दिनों बाद बरामदे में बैठना संभव हुआ । तोताराम ने आते ही आदेश दिया- यह क्या ? ठीक है, बरामदा है फिर भी निर्देशक मण्डल का हैडक्वार्टर है। कोई मज़ाक थोड़े है । दो -चार ढंग की कुर्सियाँ डालकर रखा कर ।
हमने कहा- क्यों कोई वी वी आई पी आ रहा है क्या ?
बोला- वैसे तो आजकल गौरक्षक तक वी वी आई पी ही होता है । जो किसी भी खास वेशभूषा वाले को हड़काकर कर हफ्ता वसूली कर सकता है । अन्यथा भी यह बरामदा कोई साधारण स्थान थोड़े है । राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाले निर्देशकों का मुख्यालय है । और फिर आज तो इसके नए भवन 'वरांडा विष्टा' का 'शिलापूजन' होने वाला है ।
हमने कहा- क्या शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार जैसे सभी छोटे-मोटे काम हो चुके ? क्या कोई ढंग का काम नहीं बचा जो 'वरांडा विष्टा' का यह नाटक ले आया ।
बोला- क्या यह कोई नाटक है । देश की आस्था और अस्मिता के लिए अत्यंत आवश्यक काम है । देख नहीं रहा; काशी कॉरीडोर, राम जन्म भूमि कॉरीडोर, महाकाल लोक, विंध्यावासिनी कॉरीडोर और अब १३८ करोड़ के अंबरबाथ कॉरीडोर की परियोजना की घोषणा भी हो चुकी है ।
हमने कहा- इसके लिए तो सरकारों के पास गैस और डीजल पेट्रोल की महंगाई बढ़ाकर कमाया लाखों करोड़ रुपया है। हम कहाँ से बजट लाएंगे ? और फिर किसे विस्थापित करके इस बरामदे का विस्तार करेंगे ?
बोला- इसीलिए तो कॉरीडोर न बनाकर 'विष्टा' बना रहे हैं ।
हमने कहा- विष्टा कौन सस्ता बनता है ? बीस हजार करोड़ का पड़ रहा है । यदि विलंब हो गया तो तीस-चालीस हजार का भी पड़ जाएगा ।
बोला- हम ज्यादा खर्च नहीं करेंगे । एक-दो सौ करोड़ में काम चला लेंगे ।
हमने कहा- इस सात गुना दस के बरामदे में क्या क्या बनाएगा ? एक साइकल का पार्किंग स्थल तो बनेगा नहीं। कॉरीडोर में थियेटर, जलपान गृह, प्रदर्शनी केंद्र, एम्फिथिएटर जाने क्या क्या होता है ?
बोला- हम यहाँ विशेषरूप से प्रदर्शनी स्थल बनाएंगे ।
हमने पूछा- उसमें प्रदर्शन किस चीज का करेगा ? चाय के गिलास का, इन दो स्टूलों का ?
बोला- उसमें तेरे-मेरे परिवार के सभी सदस्यों की मूर्तियों लगाएंगे ।
हमने कहा- क्या यह परिवारवाद नहीं होगा ?
बोला- परिवारवाद कहाँ नहीं है ? सबका अपना अपना परिवारवाद है । किसी का बीस-तीस का तो किसी का लाखों का । किसी वंश-वृक्ष की दो-चार शाखाएं होती हैं तो किसी की हजारों ।
हमने कहा- लेकिन इस सौ-दो सौ करोड़ की योजना के नाम से ईडी वाले सक्रिय हो गए तो क्या करेंगे ?
बोला- अपन कोई डरते थोड़े हैं । देख ले , तनख्वाह और पेंशन के अलावा पास बुक में कुछ आया हो तो ।
हमने कहा- हो सकता है ईडी वालों से बच भी जाए लेकिन कोई आसाम पुलिस की तरह तुझ पवन खेड़ा को इस बरामदा रूपी प्लेन से नीचे घसीट तो सकता ही है । फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट से राहत ही क्यों न मिल जाए ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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