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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
चूड़ी टाइट करनी पड़ेगी
आज तोताराम बहुत उद्विग्न था । बरामदे में बैठा तो भी ऐसे ध्यानमग्न और बुदबुदाता हुआ जैसे मोदी जी विवेकानंद स्मृति शिला पर बैठे, मौन व्रत का ध्यान रखते हुए मन ही मन मंत्र बुदबुदा रहे हों । हमने उसके मुँह के पास कान ले जाकर सुनने का प्रयत्न किया तो भी सफलता नहीं मिली, तो पूछ ही लिया; क्या बात है ? किस पर नाराज है ? मन की बात साफ साफ कह ही दे जो शांति मिले ।
बोला- क्या कह दूँ, किससे कह दूँ ? अब कहने लायक रह ही क्या गया है ?
हमने कहा- ऐसा क्या हो गया ? अब भी अपनी देशभक्त, राष्ट्रीय, विकासवादी और संस्कारी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी ही हुई है । और जिनको गालियां दीं, ताने मारे अब उन्हीं को झुककर, मनाकर सरकार भी बन ही रही है । मतलब सरकार बनने से है, कैसे भी बने ।
बोला- यह सरकार बनना भी कोई सरकार बनना है, लल्लू ?
हमने कहा- क्यों ? मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन तो रहे हैं ?
बोला- कानूनी रूप से तो ठीक है लेकिन यह वही नाई वाला कंबल है ?
हमने कहा- 46 डिग्री में इस कंबल की क्या जरूरत आ पड़ी ?
बोला- बस, तेरा साहित्य यहीं तक है ? अरे, यह तो मोदी जी की स्थिति को बयान करती एक कहानी है ?
एक ठाकुर साहब थे । कभी हालत अच्छी रही होगी तब रही होगी लेकिन अब तो हालत यह कि सर्दी में ओढ़ने के लिए कंबल भी नहीं । ससुराल में शादी, बिना कंबल के जाएँ तो लोग क्या सोचेंगे । संयोग से उनके घरेलू नाई के पास एक पुराना कंबल था । जब ठाकुर साहब ने उससे कंबल मांगा तो उसने शर्त रख दी कि वह भी उनके साथ उनके ससुराल जाएगा । मजबूरन ठाकुर साहब को शर्त मनानी पड़ी ।
ठाकुर साहब ने पुरानी तलवार निकाली, मूँछें रँगीं और मरियल घोड़ी पर बैठकर ससुराल चले । घोड़ी में इतना दम नहीं कि दोनों चढ़ लें । सो ठाकुर साहब घोड़ी पर और नाई पैदल । प्रोटोकॉल के हिसाब से जब कोई भी पूछे तो जवाब नाई दे । और जवाब कुछ इस तरह- ये अमुक गाँव के ठाकुर साहब हैं। अपने ससुराल अमुक गाँव जा रहे हैं । यह घोड़ी भी इनकी है, तलवार भी इनकी है, और मूँछें भी इनकी ही हैं लेकिन यह जो कंबल इन्होंने कंधे पर डाल रखा वह हमारा है । इस प्रकार सारी महानता के बाद अंतिम वाक्य में सारे रुतबे और नेहरू जी से समतुल्यता का सत्यानाश ।
हमने कहा- ठीक है, कहानी का प्रसंग, संदर्भ और व्यंजना हमारी समझ में आ गई लेकिन तू चूड़ी किसकी टाइट कर रहा है ? दस साल में मॉब लिन्चिंग, बुलडोज़र, झटका हलाल, मंदिर मस्जिद, श्मशान कब्रिस्तान, तरह तरह के जिहादों के आरोप लगाकर भी अब्दुल की चूड़ी टाइट करके तुम्हारा मन नहीं भरा ? क्या अब भी कुछ बाकी है ?
बोला- क्या बताया जाए मास्टर, अबकी बार तो इन दुष्ट हिंदुओं ने ही धोखा दे दिया । अयोध्या में दुनिया का सबसे महंगा और भव्य राम मंदिर बनवाया , रामलला को टेंट से गर्भगृह में लाए, शंकाराचार्यों के अतिरिक्त देश के सभी श्रेष्ठ, राष्ट्रवादी, उच्च हिन्दू नायकों की उपस्थिति में स्वयं राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा की, अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनवाया, सड़कें चौड़ी करवाईं, बड़े बड़े होटल और मॉल बन रहे हैं, सेलेब्रिटी आ रहे हैं, रोज अनंत अंबानी की प्री वेडिंग जैसा माहौल हो रहा है । मंदिर में हर महीने सैंकड़ों हजारों करोड़ का चढ़ावा आ रहा है । फिर भी इन दुष्टों ने अयोध्या में ही राम को हरा दिया ।
हमने कहा- तो क्या इस बार अयोध्या से रामलला भी चुनाव लड़ रहे थे ? रामलला तो अभी नाबालिग हैं, तभी तो मोदी जी की अंगुली पकड़कर मंदिर की तरफ जाते हुए उनका फ़ोटो वाइरल हुआ था । वैसे ‘मोदी है तो मुमकिन है’ फिर भी हमारा मानना है कि मोदी जी रामलला को गर्भगृह में स्थापित करने की बजाय किसी अच्छे स्कूल में भेजें क्योंकि अगर पढ़ाई ढंग से नहीं हुई तो वे भी बड़े होकर जब राजा बनेंगे तो अनपढ़ राजा की तरह अयोध्या का सत्यानाश कर डालेंगे ।
बोला- अयोध्या से चुनाव तो पहले जीते हुए भाजपा के सांसद लल्लू ही लड़ रहे थे । प्रॉपर अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में तो मात्र पंद्रह सौ मुसलमान बचे हैं । यह पाप तो इन हिंदुओं ने ही किया है ।
हमने कहा- हो सकता है सपा के ‘अवधेश’ नाम से लोगों ने समझ लिया हो कि खुद अवध नरेश ही तो मैदान में नहीं है ? सो दे दिया वोट ।
बोला- ऐसा नहीं है । राम और हनुमान से जुड़ी नौ अन्य जगहों में तो ‘अवधेश’ या ‘हनुमान’ चुनाव नहीं लड़ रहे थे ।
हमने कहा- तोताराम, अकेले अयोध्या में ही हजारों घर, दुकानें, मकान विकास के नाम पर तोड़े गए हैं, सहज सामान्य रूप को बदलकर उसे किसी बड़े मॉल या पाँच सितारा होटल का रूप दिया जा रहा है । यह संस्कृति ही कुछ और है । इसीकी चपेट में वाराणसी है और इसी की चपेट में बापू का साबरमती आश्रम आ गया है । यह राम और उसकी मर्यादा का विकास और विस्तार नहीं है यह तो संस्कृति और धर्म का कॉर्पोरेटीकरण है । यही मोदी जी के विकास का मॉडेल है ।
हो सकता है मोदी जी के विकास के इसी मॉडेल से घबराकर राम और हनुमान से जुड़े अन्य नौ स्थानों में भी लोगों ने अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भाजपा को हरा दिया हो ।
बोला- तभी तो अयोध्या के तपस्वी छावनी के जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने आशीर्वाद दिया है कि अवधेश 1-2 महिने में मर जाएंगे । हमने कहा- तोताराम, माया मोह में फंसे ऐसे परमहंसों के न तो श्राप फलते है और न ही आशीर्वाद । गीदड़ों की हाय से ऊंट नहीं मरते ।
लोगों को पहले रोटी, रोजी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा और सम्मान चाहिए । काम के बाद राम आते हैं । धार्मिक स्थानों से पंडे -पुजारियों, मुल्ला-मौलवियो, पादरियों और ग्रंथियों के ठाठ चलते हैं । किसान मजदूर को हाड़ तोड़े बिना रोटी नहीं मिलती और न ही कोई देश-समाज धार्मिक स्थानों के बल पर विकसित होता है ।
भूखे भजन नहीं होता ।
दुनिया हमसे जलती क्यों है
हमारे किसी प्रश्न या मुद्दा उछालने से पहले ही तोताराम ने अपना दुखड़ा रोना शुरू कर दिया, मास्टर, दुनिया हमसे जलती क्यों है ?
हमने कहा- दुनिया का तो पता नहीं लेकिन आजकल पूरा उत्तर भारत तो जल ही रहा है । कल ही हमारे सुरेन्द्रनगर, गुजरात के एक मित्र बता रहे थे कि उनके यहाँ पारा 47 डिग्री चला गया है । अपने यहाँ सीकर में भी 46-47 ही चल रहा है । बाड़मेर में तो 50 पहुँच गया । इसी तरह छत्तीसगढ़, झारखंड में खनिजों के लिए धरती को खोदे डाल रहे देश के ‘विकास-मित्र’ पेड़ काटते रहे तो मोदी जी का अमृत काल पूरा होते न होते और 80 करोड़ लोगों को पाँच-पाँच किलो अनाज देने के बावजूद देश की जनसंख्या हिन्दू-मुसलमान का भेद किये बिना एक सिरे से आधी रह जाएगी ।
बोला- मास्टर, तेरा भी जवाब नहीं । मैं ग्लोबल वार्मिंग की बात नहीं कर रहा हूँ ।
हमने कहा- ग्लोबल वार्मिंग कहाँ है ? ग्रेटा थनबर्ग के गुस्से पर महामनीषी ट्रम्प ने क्या कहा था- कहाँ है ग्लोबल वार्मिंग ? हमारे यहाँ तो सर्दी पड़ रही है ।
बोला- फिर वही जान बूझकर बात को घुमाना । अरे, मैं उस जलने की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं ईर्ष्या से जलने की बात कर रहा हूँ । दुनिया हमारी प्रगति को देखकर ईर्ष्या से जल रही है ।
हमने कहा- यह तो सच है । 10 साल के इतने छोटे से अर्से में हमने जो प्रगति की है वह दुनिया को जलाने के लिए पर्याप्त है । अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, जापान, इंग्लैंड सबकी सम्मिलित आबादी जितने लोगों को हम फ्री में पाँच-पाँच किलो अनाज दे रहे हैं । दुनिया के प्रथम 100 विश्वविद्यालयों की रेंकिंग में हम कहीं नहीं हैं, हंगर इंडेक्स और प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में हम बड़ी तेजी से नीचे जा रहे हैं, हम लिंचिंग और बुलडोजर से त्वरित न्याय कर देते हैं , हम कपड़ों से आतंकवादी को पहचान लेते हैं, हर खाते में 15-15 लाख रुपए डाल रहे हैं, हर साल दो करोड़ नौकरियां दे रहे हैं ।
बोला- इन बातों को छोड़ । इन्हें नापने और मापने का कोई पैमाना नहीं है। ये सब ऐसे ही सर्वे हैं। मैं तो एक सामान्य सी बात बताना चाहता था जिसे तूने संयुक्त राष्ट्र संघ का अधिवेशन और ‘सेंट्रल विष्ठा’ का उद्घाटन सत्र बना दिया ।
हमने कहा- तो फिर बता क्या बात है ?
बोला- समाचार है कि डेनमार्क दुनिया में सद्भावना राजधानी के रूप में उभरा है । डेनमार्क के 74% लोग मानते हैं कि अधिकांश लोगों पर भरोसा किया जा सकता है । यह दुनिया के किसी भी देश की अपेक्षा सबसे अधिक है ।
भारत जैसे प्रेम, सद्भावना और विश्वास से भरे देश और समाज को विश्वास और सद्भावना की रेंकिंग में कहीं न रखना क्या दुनिया के भारत और उसकी प्रगति से जलने का ठोस प्रमाण नहीं है ?
हमने कहा- हाँ, यह बात तो है । हम कहीं भी हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-भंगी नहीं करते, धनी-निर्धन नहीं करते । कितना प्रेम से मिलजुलकर रहते हैं । मोहर्रम, काँवड़ यात्रा, होली, राम नवमी के जुलूस आदि पर पुलिस की तैनाती इसी प्रेम भाव को ध्यान में रखकर ही तो होती है ।
बोला- मैं सब समझता हूँ तू कहाँ बोल रहा है ? लेकिन इतना तो तुझे मानना ही पड़ेगा कि पिछले दस वर्षों से जनता का सरकार में कितना विश्वास बढ़ा है तभी तो सभी नेता शांत भाव से रैली और भाषण कर रहे हैं, कहीं कोई उलटा-सीधा, घृणा और द्वेष वाला वक्तव्य नहीं दे रहे हैं और तभी तो सब बड़े आत्मविश्वास से कह रहे हैं- अबकी बार 400 पार ।
हमने कहा- सरकार और विपक्षी दलों के बीच ही नहीं, देश के अन्य सभी वर्गों के बीच भी कितना प्रेम और विश्वास है । तभी तो हम सरलता से किसी काढ़े को कोरोना की दवा मान लेते हैं, परीक्षण में फेल किसी दवा कंपनी की दवा की सरकारी खरीद कर लेते हैं, किसी भी लंपट बाबा के चक्कर में आ जाते हैं, रुपए-गहने दुगुने करने वाले तांत्रिक का विश्वास कर लेते हैं, विदेश भेजने या नौकरी या परीक्षा में पास करवा देने के नाम पर किसी भी उचक्के को दो-पाँच लाख रुपए थमा देते हैं ।
बोला- लेकिन हमारे यहाँ गीत में कृष्ण कहते है- विश्वासः फलदायकं ।
हमने कहा- तभी तो जगह जगह लिखा रहता है- किसी अनजान व्यक्ति से खाने की कोई वस्तु स्वीकार न करें उसमें नशा या बेहोश करने वाला पदार्थ मिल हो सकता है ।
बोला- ऐसे तो क्या पता तू ही मुझे चाय में कुछ उलटा-सीधा पिला सकता है ।
हमने कहा- यह अमृत काल चल रहा है कुछ भी मुमकिन हो सकता है । जब चरण छूने के बहाने मानव बम विस्फोट हो सकता है और माला पहनाने के बहाने यमुना तीरे कृष्ण कन्हैया को झाँपड रसीद किया जा सकता है या लोकतंत्र की अम्मा के देखते देखते उम्मीदवारों को डरा धमकाकर नामांकन वापिस या खारिज करवाया जा सकता है या छिद्दू चमार लतियाया जा सकता है या श्याम रंगीला को हड़काया जा सकता है तो विश्वासघात के लिए सब जगह प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं ।
हो गया स्नान-ध्यान ?
आज जैसे ही तोताराम आया, उसके बोलने से पहले ही हमने मोदी जी के प्रायोजित साक्षात्कार की तरह भावी चर्चा की कमान अपने हाथ में लेते हुए पूछा- क्या हवा-तवा है मतदान के अंतिम चरण का प्रचार समाप्त होने के बाद ?
तोताराम ने पलट कर पूछा- स्नान-ध्यान हो गया ?
हमने कहा- तोताराम, यह संवाद का एक बहुत ही बदमाश तरीका है कि सामने वाले के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय उससे नितांत ही भिन्न किसी विषय पर प्रश्न करके चर्चा को किसी गलत पाले में ले जाना । अगर तुझसे कोई अपना उधार दिया पैसा मांगने आए और तू उसे पूछे कि पहले यह बता कि कांग्रेस वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में क्यों नहीं गए ?तो वह उत्तर देने कि बजाय तेरे थोबड़े पर एक झाँपड़ रसीद कर देगा ।
हम पूछ रहे हैं तेरे अनुसार चुनाव का संभावित परिणाम और तू ई डी की तरह हमारे स्नान-ध्यान जैसे नितांत व्यक्तिगत मामले पर प्रश्न कर रहा है ।
बोला- अब छोड़ भी ये व्यर्थ के सांसारिक झंझट और माया मोह । 82 साल का होने वाला है । 22 साल से आडवाणी जी की तरह ‘बरामदा विष्ठा’ में बैठा दिन गिन रहा है और सांसें हैं कि अटकी हैं चुनाव परिणाम में !
अरे, मात्र पौने चोहत्तर साल की कच्ची आयु में मृदुभाषी और मितभाषी मोदी जी को देख जो कोई और चेहरा न होने के कारण मजबूरी में दिन रात भाजपा का धुआंधार प्रचार करते रहे लेकिन जैसे ही अंतिम चरण का प्रचार बंद हुआ झट से मौन व्रत धारण किया और चले गए विवेकानंद स्मृति शिला स्मारक में 48 घंटे का ध्यान करने के लिए और एक तू है जो स्नान-ध्यान के बारे में पूछने पर ही बिखर गया ?
अरे, माया मोह में पड़े प्राणी, अब और कितने दिन बचे हैं जो गाफिल हुआ बैठा है । अब नहीं तो कब करेगा अगले लोक को सुधारने और आत्मा की शांति का उपाय ?
हमने कहा- मोदी जी के ‘हर घर में नल, नल में जल, कल कल, छल छल’ के नारे के बावजूद शाम को 5-7 मिनट के लिए पानी आता है और वह भी मोटर चलाने पर टूट टूट कर । किसी तरह देर सुबह 11-12 बजे एक बाल्टी में शरीर चुपड़ लेते हैं और बचे हुए पानी से कपड़े निचोड़ लेते हैं । वैसे ही जैसे जिसे एक वख्त ही खाना मिलता है वह सुबह का खाना इतनी देर से खाता है कि दोनों टाइम का काम एक बार से ही चल जाए । बस, समझ ले हमारा भी वही हाल है । और रही ध्यान की बात सो 47 डिग्री तापमान में सारे दिन सड़क की छाती कूटते वाहन और ट्रेक्टर ट्रॉलियाँ गुजरते हैं कि ध्यान तो दूर, रात को भी ढंग से नींद नहीं आती । लेकिन मोदी जी को इतनी दूर कन्याकुमारी जाने की क्या जरूरत थी । यहीं दिल्ली में ही उनका 12 एकड़ में एकांत, शांत, हरे भरे वातावरण में सभी सुविधाओं से युक्त आवास फैला है, वहीं कर लेते ध्यान और मौन व्रत । दिन में चार बार नहाते, प्यास लगाने पर दिन में दस बार अमरस पीते और ए सी में मजे से सोते । तन, मन और आत्मा सब शांत हो जाते ।
बोला- क्या करें, यहाँ ये मीडिया वाले पीछा ही नहीं छोड़ते । हर वक्त पीछे पड़े रहते हैं। मोर को दाना डालो तो लोग कैमरा लिए पीछा करते रहते हैं, किसी के हवाई जहाज में उसके साथ यात्रा करो तो फ़ोटो खींच लेते हैं, माँ से मिलने जाओ तो मीडिया वाले तंग करते हैं, केदारनाथ की गुफा में जाओ तो लोग चैन से ध्यान नहीं लगाने देते । और देखना, अब ये मीडिया वाले कन्याकुमारी में भी पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं ।
हमने कहा- लेकिन मोदी जी को किसी को बताना नहीं चाहिए था कि वे ध्यान करने कन्याकुमारी जा रहे हैं । अब जब बता दिया तो देखा नहीं, उनके पहुँचने से पहले ही दसों कैमरे वाले पहुँच गए ध्यान भंग करने । हमारा तो मानना है कि भोजन, भजन और भोग विलास सब एकांत में सबकी निगाहों से दूर शांति से करने चाहियें ।
बोला- मोदी जी तो व्यर्थ के प्रचार-प्रसार में कतई विश्वास नहीं करते लेकिन क्या करें, एक तो यह देश ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ जो ठहरा, दूसरे यहाँ ‘टू मच डेमोक्रेसी’ है, तीसरे मोदी जी नितांत पारदर्शिता में विश्वास करने वाले विनम्र और संकोची नेता हैं इसलिए कुछ कह नहीं पाते हैं और ये मीडिया वाले हैं कि पीछे ही पड़े रहते हैं । जबकि उनसे पहले के सभी प्रधानमंत्री बहुत घुन्ने और रहस्यमय व्यक्ति थे। किसी को पता ही नहीं लगने देते थे कि वे आम खाते भी हैं या नहीं और खाते भी हैं तो काटकर या चूसकर खाते हैं लेकिन जब मोदी जी से एक पत्रकार ने यह नितांत व्यक्तिगत और कठिन प्रश्न पूछ ही लिया तो बेचारे भले और भोले व्यक्ति है सो बताया दिया साफ साफ । अन्यथा बता कि आज तक किसी प्रधान मंत्री ने अपने जीवन की ऐसी गुप्त बात किसी को बताई ? पता नहीं कि आम खाते भी थे या नहीं । मनमोहन सिंह जी ने तो यह भी नहीं बताया कि वे कैसे नहाते हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत मोदी जी ने जब ड्रोन से जांच करवाई कि तो पता चला कि महोदय रेन कोट पहनकर नहाते हैं ।
हमने कहा- इतना सीधापन भी ठीक नहीं । मोदी जी को हर बात में मीडिया को ऐसे ऐसे नितांत व्यक्तिगत प्रश्न पूछने की छूट नहीं देनी चाहिए । आज जो चारों तरफ कैमरे लगाकर उनके ध्यान में विघ्न डाल रहे हैं वे कल को उनके भांति भांति के शंका समाधानों तक का लाइव टेलेकास्ट करने लग जाएंगे तो क्या होगा ? मोदी जी को शायद पता नहीं है कि कई विदेशी नेता तो अपना मोबाइल टॉइलेट साथ लाते हैं और उसे किसी विदेशी धरती पर विसर्जित करने कि बजाय अपने देश वापिस ले जाते हैं ।
वैसे तोताराम, तूने मोदी जी के विवेकानंद स्मारक में ध्यान लगाते फ़ोटो पर पता नहीं गौर किया या नहीं लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे फ़ोटो खिंचवाने के लिए ही बैठे हैं, एकदम फिटफाट । और तो और अपना वही दो-चार लाख का चश्मा भी लगा रखा है ।
बोला- क्या करें, दुनिया में उनके करोड़ों भक्तों की तरह भगवान जगन्नाथ जी भी तो उनके भक्त हैं । पता नहीं, कब दर्शन करने आ जाएँ इसलिए हर समय ढंग से रहना पड़ता है । फिर 20-20 घंटे जागने की आदत जो ठहरी । ध्यान बड़ी मुश्किल से लगेगा । और चश्मा भी जरूरी है । पता नहीं, कब इधर-उधर से भारत के विकास की कोई योजना या अच्छे दिन गुजरते दिखाई दे जाएँ तो उन्हें राष्ट्रहित में लपक लें ।
अभी ‘दस साल वाला’ तो ट्रेलर था । 2047 तक के अमृत काल की मुख्य फिल्म तो अभी बाकी है ।