Jun 2, 2024

दुनिया हमसे जलती क्यों है


दुनिया हमसे जलती क्यों है 


हमारे किसी प्रश्न या मुद्दा उछालने से पहले ही तोताराम ने अपना दुखड़ा रोना शुरू कर दिया, मास्टर, दुनिया हमसे जलती क्यों है ?


हमने कहा- दुनिया का तो पता नहीं लेकिन आजकल पूरा उत्तर भारत तो जल ही रहा है । कल ही हमारे सुरेन्द्रनगर, गुजरात के एक मित्र बता रहे थे कि उनके यहाँ पारा 47 डिग्री चला गया है । अपने यहाँ सीकर में भी 46-47 ही चल रहा है । बाड़मेर में तो 50 पहुँच गया । इसी तरह छत्तीसगढ़, झारखंड में खनिजों के लिए धरती को खोदे डाल रहे देश के ‘विकास-मित्र’  पेड़ काटते रहे तो मोदी जी का अमृत काल पूरा होते न होते और 80 करोड़ लोगों को पाँच-पाँच किलो अनाज देने के बावजूद देश की जनसंख्या हिन्दू-मुसलमान का भेद किये बिना एक सिरे से आधी रह जाएगी । 


बोला- मास्टर, तेरा भी जवाब नहीं । मैं ग्लोबल वार्मिंग की बात नहीं कर रहा हूँ । 


हमने कहा- ग्लोबल वार्मिंग कहाँ है ? ग्रेटा थनबर्ग के गुस्से पर महामनीषी ट्रम्प ने क्या कहा था- कहाँ है ग्लोबल वार्मिंग ? हमारे यहाँ तो सर्दी पड़ रही है ।

बोला- फिर वही जान बूझकर बात को घुमाना । अरे, मैं उस जलने की  बात नहीं कर रहा हूँ । मैं ईर्ष्या से जलने की बात कर रहा हूँ । दुनिया हमारी प्रगति को देखकर ईर्ष्या से जल रही है । 


हमने कहा- यह तो सच है । 10 साल के इतने छोटे से अर्से में हमने जो प्रगति की है वह दुनिया को जलाने के लिए पर्याप्त है । अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, जापान, इंग्लैंड सबकी सम्मिलित आबादी जितने लोगों को हम फ्री में पाँच-पाँच किलो अनाज दे रहे हैं । दुनिया के प्रथम 100 विश्वविद्यालयों की रेंकिंग में हम कहीं नहीं हैं, हंगर इंडेक्स  और प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में हम बड़ी तेजी से नीचे जा रहे हैं, हम लिंचिंग और बुलडोजर से त्वरित न्याय कर देते हैं , हम कपड़ों से आतंकवादी को पहचान लेते हैं, हर खाते में 15-15 लाख रुपए डाल रहे हैं, हर साल दो करोड़ नौकरियां दे रहे हैं । 

बोला- इन बातों को छोड़ । इन्हें नापने और मापने का कोई पैमाना नहीं है। ये सब ऐसे ही सर्वे हैं। मैं तो एक सामान्य सी बात बताना चाहता था जिसे  तूने संयुक्त राष्ट्र संघ का अधिवेशन और ‘सेंट्रल विष्ठा’ का उद्घाटन सत्र बना दिया । 


हमने कहा- तो फिर बता क्या बात है ?


बोला- समाचार है कि डेनमार्क दुनिया में सद्भावना राजधानी के रूप में उभरा है । डेनमार्क के 74% लोग मानते हैं कि अधिकांश लोगों पर भरोसा किया जा सकता है । यह दुनिया के किसी भी देश की अपेक्षा सबसे अधिक है । 

भारत जैसे प्रेम, सद्भावना और विश्वास से भरे देश और समाज को विश्वास और सद्भावना की रेंकिंग में कहीं न रखना क्या दुनिया के भारत और उसकी प्रगति से जलने का ठोस प्रमाण नहीं है ?


हमने कहा- हाँ, यह बात तो है । हम कहीं भी हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-भंगी नहीं करते, धनी-निर्धन नहीं करते । कितना प्रेम से मिलजुलकर रहते हैं ।  मोहर्रम, काँवड़ यात्रा, होली, राम नवमी के जुलूस आदि पर पुलिस की तैनाती इसी प्रेम भाव को ध्यान में रखकर ही तो होती है । 


बोला- मैं सब समझता हूँ तू कहाँ बोल रहा है ? लेकिन इतना तो तुझे मानना ही पड़ेगा कि पिछले दस वर्षों से जनता का सरकार में कितना विश्वास बढ़ा  है तभी तो सभी नेता शांत भाव से रैली और भाषण कर रहे हैं, कहीं कोई उलटा-सीधा, घृणा और द्वेष वाला वक्तव्य नहीं दे रहे हैं और तभी तो सब बड़े आत्मविश्वास से कह रहे हैं- अबकी बार 400 पार । 


हमने कहा- सरकार और विपक्षी दलों के बीच ही नहीं, देश के अन्य सभी वर्गों के बीच भी कितना प्रेम और विश्वास है । तभी तो हम सरलता से किसी काढ़े को कोरोना की दवा मान लेते हैं, परीक्षण में फेल किसी दवा कंपनी की दवा की सरकारी खरीद कर लेते हैं, किसी भी लंपट बाबा के चक्कर में आ जाते हैं, रुपए-गहने दुगुने करने वाले तांत्रिक का विश्वास कर लेते हैं, विदेश भेजने या नौकरी या परीक्षा में पास करवा देने के नाम पर किसी भी उचक्के को दो-पाँच लाख रुपए थमा देते  हैं । 


बोला- लेकिन हमारे यहाँ गीत में कृष्ण कहते है- विश्वासः फलदायकं । 

हमने कहा- तभी तो जगह जगह लिखा रहता है- किसी अनजान व्यक्ति से खाने की कोई वस्तु स्वीकार न करें उसमें नशा या बेहोश करने वाला पदार्थ मिल हो सकता है । 


बोला- ऐसे तो क्या पता तू ही मुझे चाय में कुछ उलटा-सीधा पिला सकता है । 


हमने कहा- यह अमृत काल चल रहा है कुछ भी मुमकिन हो सकता है । जब चरण छूने के बहाने मानव बम विस्फोट हो सकता है और माला पहनाने के बहाने यमुना तीरे कृष्ण कन्हैया को झाँपड रसीद किया जा सकता है या लोकतंत्र की अम्मा के देखते देखते उम्मीदवारों को डरा धमकाकर नामांकन वापिस या खारिज करवाया जा सकता है या छिद्दू चमार लतियाया जा सकता है या श्याम रंगीला को हड़काया जा सकता है तो विश्वासघात के लिए सब जगह प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं । 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment