चूड़ी टाइट करनी पड़ेगी
आज तोताराम बहुत उद्विग्न था । बरामदे में बैठा तो भी ऐसे ध्यानमग्न और बुदबुदाता हुआ जैसे मोदी जी विवेकानंद स्मृति शिला पर बैठे, मौन व्रत का ध्यान रखते हुए मन ही मन मंत्र बुदबुदा रहे हों । हमने उसके मुँह के पास कान ले जाकर सुनने का प्रयत्न किया तो भी सफलता नहीं मिली, तो पूछ ही लिया; क्या बात है ? किस पर नाराज है ? मन की बात साफ साफ कह ही दे जो शांति मिले ।
बोला- क्या कह दूँ, किससे कह दूँ ? अब कहने लायक रह ही क्या गया है ?
हमने कहा- ऐसा क्या हो गया ? अब भी अपनी देशभक्त, राष्ट्रीय, विकासवादी और संस्कारी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी ही हुई है । और जिनको गालियां दीं, ताने मारे अब उन्हीं को झुककर, मनाकर सरकार भी बन ही रही है । मतलब सरकार बनने से है, कैसे भी बने ।
बोला- यह सरकार बनना भी कोई सरकार बनना है, लल्लू ?
हमने कहा- क्यों ? मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन तो रहे हैं ?
बोला- कानूनी रूप से तो ठीक है लेकिन यह वही नाई वाला कंबल है ?
हमने कहा- 46 डिग्री में इस कंबल की क्या जरूरत आ पड़ी ?
बोला- बस, तेरा साहित्य यहीं तक है ? अरे, यह तो मोदी जी की स्थिति को बयान करती एक कहानी है ?
एक ठाकुर साहब थे । कभी हालत अच्छी रही होगी तब रही होगी लेकिन अब तो हालत यह कि सर्दी में ओढ़ने के लिए कंबल भी नहीं । ससुराल में शादी, बिना कंबल के जाएँ तो लोग क्या सोचेंगे । संयोग से उनके घरेलू नाई के पास एक पुराना कंबल था । जब ठाकुर साहब ने उससे कंबल मांगा तो उसने शर्त रख दी कि वह भी उनके साथ उनके ससुराल जाएगा । मजबूरन ठाकुर साहब को शर्त मनानी पड़ी ।
ठाकुर साहब ने पुरानी तलवार निकाली, मूँछें रँगीं और मरियल घोड़ी पर बैठकर ससुराल चले । घोड़ी में इतना दम नहीं कि दोनों चढ़ लें । सो ठाकुर साहब घोड़ी पर और नाई पैदल । प्रोटोकॉल के हिसाब से जब कोई भी पूछे तो जवाब नाई दे । और जवाब कुछ इस तरह- ये अमुक गाँव के ठाकुर साहब हैं। अपने ससुराल अमुक गाँव जा रहे हैं । यह घोड़ी भी इनकी है, तलवार भी इनकी है, और मूँछें भी इनकी ही हैं लेकिन यह जो कंबल इन्होंने कंधे पर डाल रखा वह हमारा है । इस प्रकार सारी महानता के बाद अंतिम वाक्य में सारे रुतबे और नेहरू जी से समतुल्यता का सत्यानाश ।
हमने कहा- ठीक है, कहानी का प्रसंग, संदर्भ और व्यंजना हमारी समझ में आ गई लेकिन तू चूड़ी किसकी टाइट कर रहा है ? दस साल में मॉब लिन्चिंग, बुलडोज़र, झटका हलाल, मंदिर मस्जिद, श्मशान कब्रिस्तान, तरह तरह के जिहादों के आरोप लगाकर भी अब्दुल की चूड़ी टाइट करके तुम्हारा मन नहीं भरा ? क्या अब भी कुछ बाकी है ?
बोला- क्या बताया जाए मास्टर, अबकी बार तो इन दुष्ट हिंदुओं ने ही धोखा दे दिया । अयोध्या में दुनिया का सबसे महंगा और भव्य राम मंदिर बनवाया , रामलला को टेंट से गर्भगृह में लाए, शंकाराचार्यों के अतिरिक्त देश के सभी श्रेष्ठ, राष्ट्रवादी, उच्च हिन्दू नायकों की उपस्थिति में स्वयं राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा की, अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनवाया, सड़कें चौड़ी करवाईं, बड़े बड़े होटल और मॉल बन रहे हैं, सेलेब्रिटी आ रहे हैं, रोज अनंत अंबानी की प्री वेडिंग जैसा माहौल हो रहा है । मंदिर में हर महीने सैंकड़ों हजारों करोड़ का चढ़ावा आ रहा है । फिर भी इन दुष्टों ने अयोध्या में ही राम को हरा दिया ।
हमने कहा- तो क्या इस बार अयोध्या से रामलला भी चुनाव लड़ रहे थे ? रामलला तो अभी नाबालिग हैं, तभी तो मोदी जी की अंगुली पकड़कर मंदिर की तरफ जाते हुए उनका फ़ोटो वाइरल हुआ था । वैसे ‘मोदी है तो मुमकिन है’ फिर भी हमारा मानना है कि मोदी जी रामलला को गर्भगृह में स्थापित करने की बजाय किसी अच्छे स्कूल में भेजें क्योंकि अगर पढ़ाई ढंग से नहीं हुई तो वे भी बड़े होकर जब राजा बनेंगे तो अनपढ़ राजा की तरह अयोध्या का सत्यानाश कर डालेंगे ।
बोला- अयोध्या से चुनाव तो पहले जीते हुए भाजपा के सांसद लल्लू ही लड़ रहे थे । प्रॉपर अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में तो मात्र पंद्रह सौ मुसलमान बचे हैं । यह पाप तो इन हिंदुओं ने ही किया है ।
हमने कहा- हो सकता है सपा के ‘अवधेश’ नाम से लोगों ने समझ लिया हो कि खुद अवध नरेश ही तो मैदान में नहीं है ? सो दे दिया वोट ।
बोला- ऐसा नहीं है । राम और हनुमान से जुड़ी नौ अन्य जगहों में तो ‘अवधेश’ या ‘हनुमान’ चुनाव नहीं लड़ रहे थे ।
हमने कहा- तोताराम, अकेले अयोध्या में ही हजारों घर, दुकानें, मकान विकास के नाम पर तोड़े गए हैं, सहज सामान्य रूप को बदलकर उसे किसी बड़े मॉल या पाँच सितारा होटल का रूप दिया जा रहा है । यह संस्कृति ही कुछ और है । इसीकी चपेट में वाराणसी है और इसी की चपेट में बापू का साबरमती आश्रम आ गया है । यह राम और उसकी मर्यादा का विकास और विस्तार नहीं है यह तो संस्कृति और धर्म का कॉर्पोरेटीकरण है । यही मोदी जी के विकास का मॉडेल है ।
हो सकता है मोदी जी के विकास के इसी मॉडेल से घबराकर राम और हनुमान से जुड़े अन्य नौ स्थानों में भी लोगों ने अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भाजपा को हरा दिया हो ।
बोला- तभी तो अयोध्या के तपस्वी छावनी के जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने आशीर्वाद दिया है कि अवधेश 1-2 महिने में मर जाएंगे । हमने कहा- तोताराम, माया मोह में फंसे ऐसे परमहंसों के न तो श्राप फलते है और न ही आशीर्वाद । गीदड़ों की हाय से ऊंट नहीं मरते ।
लोगों को पहले रोटी, रोजी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा और सम्मान चाहिए । काम के बाद राम आते हैं । धार्मिक स्थानों से पंडे -पुजारियों, मुल्ला-मौलवियो, पादरियों और ग्रंथियों के ठाठ चलते हैं । किसान मजदूर को हाड़ तोड़े बिना रोटी नहीं मिलती और न ही कोई देश-समाज धार्मिक स्थानों के बल पर विकसित होता है ।
भूखे भजन नहीं होता ।
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