Sep 28, 2024

ड्राइविंग सीट के डेंजर्स


ड्राइविंग सीट के डेंजर्स 



 

न तो डी ए के 18 महिने के बकाया एरियर के भुगतान की घोषणा हुई, न सामान्य डी  ए की और न ही कोई आवश्यक वस्तु सस्ती हुई फिर भी पता नहीं आज तोताराम क्यों ‘मोदी-मोदी’ शैली में बहुत खुश था । पूछने पर बोला- खुशी की बात तो है ही । कल अपने राजस्थान में डबल इंजन की सरकार की कृपा से तीसरा सैनिक स्कूल खुल गया । जयपुर में सीकर रोड़ पर भवानी निकेतन स्कूल में । 


हमने कहा- स्वतंत्रता प्राप्ति से बाद राष्ट्रीय सोच और चरित्र विकसित करने दृष्टि से सुरक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, शिक्षा, अर्थव्यवस्था,उद्योग आदि के क्षेत्र में अनेक आधारभूत संरचना और संस्थाएं स्थापित और विकसित की गईं ।  लेकिन अब देश में कुछ वर्षों से इन सभी संस्थाओं और व्यवस्थाओं में निजी हितों को ध्यान में रखते बहुत से चरित्रगत परिवर्तन किए गए हैं । यह वैसा ही सैनिक स्कूल है । 


बोला- मतलब ? 


हमने कहा- मतलब यह कि यह वैसा ही संचार मंत्रालय है जिसमें संचार का कोई साधन मंत्री के कब्जे में नहीं है । वैसा ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय है जहां सभी अड्डे और विमानन निजी हाथों में हैं । आजादी से पहले अंग्रेजों ने अपने हिसाब से कई मिलिटरी स्कूल खोल रखे थे । जैसे मौलाना आजाद ने आई आई टी की योजना बनाई थी वैसे ही वी के कृष्ण मेनन ने 1961 में सैनिक स्कूलों की योजना बनाई । 


अपने राजस्थान में केवल दो सैनिक स्कूल हैं पहला चित्तौड़गढ़ में 1961 में खुला और दूसरा 2012 में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के प्रयत्नों से झुंझुनू जिले में खुला क्योंकि पाटिल झुंझुनू जिले की बहू हैं । अब जयपुर में खुला स्कूल वैसा ही सैनिक स्कूल है जैसा सिंधिया वाला मंत्रालय । वैसा ही नकली जैसा कि योजना आयोग को नष्ट करके बनाया गया ‘नीति आयोग’ । न कोई नीति न कोई जिम्मेदारी । 


बोला- लेकिन अखबार में तो सैनिक स्कूल ही लिखा है । 






हमने कहा- लिखने से क्या होता है । तुझे पता होना चाहिए कि ये मात्र स्कूल नहीं थे ।इनके माध्यम से सेना को एक संतुलित राष्ट्रीय चरित्र प्रदान करना था । पहले राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और  महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार के ग्रामीण इलाकों से ही अधिक लोग सेना में जाते थे ।इसलिए इस क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए सभी राज्यों में लगभग निःशुल्क, अच्छी और आवासीय शिक्षा देकर पूर्व प्रशिक्षित अधिकारी उपलब्ध कराने के लिए सैनिक स्कूल खोले गए ।  सन 2021 तक इनकी संख्या केवल 33 थी ।  इन स्कूलों के माध्यम से सेना का सच्चा राष्ट्रीय चरित्र विकसित हो रहा था । लेकिन अचानक 100 स्कूलों की योजना आ गई । यह क्या कोई घासफूस है ? कोई कागजों पर शौचालय बनाने जैसा काम है ? 


बोला- यही तो डबल इंजन की सरकार का कमाल है । जो  70 साल में हैं नहीं हुआ उससे तिगुना 7 साल में । 


हमने कहा- वैसे ही जैसे 70 साल में विदेशी कर्ज 50 लाख करोड़ और दस साल में तिगुना 155 लाख करोड़ ।  



बोला- कर्ज विकास की निशानी होता है । जब भारत पर कोई कर्ज नहीं था तो वह पिछड़ा हुआ देश हुआ करता था और आज ! सुना नहीं, मोदी जी ने अमरीका में क्या कहा- आज भारत पीछे पीछे नहीं, आगे आगे चलता है । 


हमने वाक्य पूरा किया- और उगाही करने वाले पीछे-पीछे। 


बोला- मास्टर, तुझे परेशानी क्या है ? हर बात में खुचड़ । तुझे 2021 में एक ही झटके में  100 सैनिक स्कूल खुलने में क्या बुराई नजर आ रही है ? 


हमने कहा- क्या तूने उद्घाटन में पधारे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के एक वाक्य पर ध्यान दिया या नहीं ? उन्होंने कहा है- अर्थव्यवस्था की गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर प्राइवेट सेक्टर बैठा है । 


इसका क्या मतलब है ? यही की अनुदान सरकार का और धंधा लाला का ? क्यों भाई, पुराने वाले सरकारी सैनिक स्कूलों में क्या बुराई है ? कमी पैसों की नहीं है । खोट नीयत में है । निजी क्षेत्र वाले कैसी व्यवस्था करेंगे और कैसी शिक्षा देंगे यह समझना कोई मुश्किल नहीं है । जिन निजी स्कूलों को सैनिक स्कूलों का दर्जा दिया है और अनुदान दिया जाएगा उनकी सूची और वैचारिक प्रतिबद्धता का पता करेगा तो तुझे पता चलेगा कि वे किसी खास तरह की संकुचित विचारधारा से संबंध रखते हैं और हो सकता है कि सेना में भी वैसा ही वैचारिक विभाजन पैदा कर दें जैसा कि आज हमें समाज में दिखाई देता है । 


बोला- मास्टर, इतनी गूढ बातों से तो मेरा दिमाग चकराने लगा है । 


हमने कहा- दिमाग चकराने से कोई फायदा नहीं । एकदम सीधी बात है कूरियर वाला एक चिट्ठी  तमिलनाडु पहुंचाने के 100 रुपए माँगता है तो सरकारी पोस्टकार्ड 50 पैसे में पहुँच जाता है । सरकारी अस्पताल में 100-200 रु. में पीछा छूट जाता है तो प्राइवेट में मरीज के घरवालों की लंगोटी भी उतार ली जाती है । ये स्कूल भी अनुदान लेंगे सरकार से और नेताओं से मिलकर 50-50 । 


खैर, तू तो राजनाथ सिंह जी की ‘ड्राइविंग सीट’ पर एक किस्सा सुन-


आज से कोई 70-80 साल पहले एक ठाकुर साहब ने एक ड्राइवर रखा । 


बोला- इसमें क्या खास बात है । ठाकुर हैं ।रुतबा है । कोई काम अपने हाथ से थोड़े करेंगे । रथों के साथ सारथी होते थे तो बग्घी के साथ कोचवान । 


हमने कहा- ये ड्राइविंग सीट वाले ही पासा पलट देते हैं । अर्जुन को युद्ध जिताने में सारथी कृष्ण का बड़ा  योगदान था तो कर्ण  को हराने में नकुल सहदेव के मामा शल्य का । लेकिन हम तुझे ठाकुर साहब के जिस ड्राइवर का किस्सा सुना रहे हैं वह इनसे अलग है ।


हुआ यूं कि उन दिनों साइकल नई नई आई थी । आई तो कार भी नई नई ही थी लेकिन ठाकुर साहब की औकात कार खरीदने की थी नहीं । दारू पी पीकर रुतबे में मूँछें मात्र रह गई थीं । सो ठाकुर साहब ने किसी तरह से एक साइकल खरीदी । अब चूंकि ठाकुर साहब हैं तो ड्राइवर तो चाहिए ही । खुद कैसे चलाएं । 


तोताराम की उत्सुकता बढ़ी, बोला- फिर क्या हुआ ? 


हमने कहा- हुआ क्या ? ड्राइवर सीट पर और ठाकुर साहब पीछे कैरियर पर । ड्राइवर गाँव का ही कोई ‘अग्निवीर’ था । सो पहले ही दिन ‘अवसर में आपदा’ आ गई । अग्निवीर ने ठाकुर साहब को गिरा दिया और ठाकुर साहब के घुटने में जबरदस्त फ्रेक्चर हो गया । उम्र ज्यादा थी । हड्डी ठीक से जुड़ी नहीं, आज भी  लँगड़ाते हैं और अगर कोई साइकल की बात करे गालियाँ निकालने लगते हैं, मारने दौड़ते हैं; हालांकि दौड़ नहीं पाते । 



सो अब राजनाथ जी जाने और उनकी अर्थव्यवस्था की ड्राविंग सीट पर बैठे लाला जी । अपन ने तो चलने की बजाय ‘छलांग लगाने वाली अर्थव्यवस्था’  में पेंशन से गुजारा करना सीख लिया है । 


 



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Sep 27, 2024

मुझे तो मोदी जी ने फँसा दिया



मुझे तो मोदी जी ने फँसा दिया 



तोताराम का स्तर बहुत ऊँचा है । कभी भी आत्मा-परमात्मा, राष्ट्र, विकास, प्रेरणा, जागृति, चेतना  आदि बड़े बड़े शब्दों से नीचे ही नहीं उतरता जैसे कि मोदी जी प्रेस कॉन्फ्रेंस जैसे नेताओं के सामान्य से दैनंदिन कार्यक्रम के बारे में पूछने पर ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ की बात करने लग जाते हैं । दो  करोड़ रोजगार और 15 लाख रुपए की बात करने पर ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का महत्व समझाने लगते हैं । 


आज भी तोताराम जब से आया है बरामदे में मौन बैठा है जैसे मणिपुर की घटना और प्रसादम के प्रपंच पर पार्टी । हमने ही पूछा- क्या बात है ? अभी तक पेट में पहुँच गई चर्बी और गौमांस की दहशत से नहीं उबरा क्या ? क्या अब भी उबकाई आती है ? 


बोला- नहीं अब ऐसी कोई बात नहीं है । दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना । अब सब सामान्य हो गए हैं । बात भी चलती है तो बस मुस्कराकर रह जाते हैं । कब तक शर्मिंदा होंगे । सुना  है अब रामदेव ने कोई ‘अभक्ष्य भक्षण दुष्प्रभाव निवारण दिव्य वटी’ लांच की है । ज्यादा हुआ तो उसकी एक खुराक गटक लेंगे । 


हमने पूछा- तो फिर इस मौन का क्या कारण है ? अब तो मोदी जी ने फिर अमरीका में डंका बजा दिया, झण्डा लहरा दिया । देखा नहीं, वीडियो में कैसे लोग घूमर घाल थे, कैसे गरबीले गुजराती गरबा घालघालकर गदगद हुए जा रहे थे, कैसे दिल्ली में सेटल बिहार की एक प्रौढ़ा अमरीका जाकर मोदी जी को देख-छूकर जन्म सफल कर रही थी ? 



बोला- मुझे इनसे कोई मतलब नहीं है । ये सब प्रायोजित कार्यक्रम तो राजनीति में प्रचार-प्रसार और पैसे के बल पर चलते रहते हैं । मुझे तो मोदी के एक वक्तव्य ने फँसा दिया । 


हमने कहा- वहाँ तो मोदी जी ने सब अच्छी अच्छी बातें की हैं। कहीं किसी हिंडनबर्ग की चर्चा नहीं हुई, किसी ने इलेक्ट्रॉल बॉण्ड का प्रश्न नहीं उठाया,किसीने अल्पसंख्यकों से भेदभाव पर कुछ नहीं पूछा, किसी आहत भावना ने तिरुपति के चर्बी-गौमांस-भ्रष्ट प्रसादम’ की चर्चा नहीं की तो फिर he वत्स तोताराम, तुझे मोदी जी ने कैसे फँसा दिया ?    

 

बोला- हम तो भक्त हैं । हम इन छोटे-छोटे मुद्दों में नहीं फँसते । 


हमने फिर पूछा- तो क्या तूने सेंट्रल विष्ठा, राममंदिर, राम-पथ का ठेका लिया था, वंदे भारत का संचालन करता है या बिहार में पुल बनवाए थे या महाराष्ट्र वाली शिवाजी की मूर्ति बनवाई थी, या अयोध्या में 2 करोड़ में कोई जमीन खरीदकर पाँच मिनट बाद ही 18 करोड़ में बेच दी या तिरुपति मंदिर में घी सप्लाई किया था ?


बोला- नहीं । 


हमने कहा- तो फिर फँसने जैसी क्या बात हो गई ?


बोला- इस बार अमरीका में मोदी जी ने एक बहुत ही लंबी फेंक दी कि वे जब मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीँ थे तब भी वे अमरीका के 29 राज्यों में घूम गए थे ।वे तो फेंककर निकल जाते हैं लेकिन हम भक्तों के लिए समेटना मुश्किल हो जाता है । अब लोग हमसे पूछते हैं कि खुद को गरीब बताने वाले मोदी जी के पास अमरीका के 29 राज्यों में घूमने का पैसा कहाँ से आया ? क्या वे उन 29 राज्यों के नाम बता सकते हैं ? क्या उनके पासपोर्ट पर कई-कई बार अमरीका जाने की  इमिग्रेशन सील लगी हुई है ? और अगर उन्होंने पहले चाय बेची, फिर 35 साल भीख मांगी, फिर हिमालय में साधना की, फिर संघ का प्रचार किया और इसी बीच एनटायर पॉलिटिकाल साइंस में एम ए भी कर लिया और अमरीका भी घूम आए । यह मात्र 48 साल की आयु में कैसे संभव है ?


लोग मोदी जी से थोड़े पूछने जाएंगे । वे तो बड़े बड़े रिपोर्टरों तक को समय नहीं देते । फँस जाते हैं हम जैसे जमीनी कार्यकर्ता और भक्त । 


हमने कहा- तोताराम, तू मोदी जी की बहुत सी विशेषताओं को अब भी नहीं जानता । उन्होंने चाय बेची, भीख मांगी और ट्रेन में सीट न मिलने पर लोगों का हाथ देखकर भविष्य बताने के बहाने सीट कबाड़ लेते थे । 


दुनिया के किसी भी व्यक्ति में इतनी विशेषताएं नहीं मिलेंगी । जो व्यक्ति अच्छे-अच्छों को कैसी भी चाय पिला दे सकता है, जो इस स्वार्थी जमाने में किसी से भी भीख झटक सकता है और ज्योतिष जैसी नितांत अवैज्ञानिक विधा को साध सकता है वह कुछ भी कर सकता है । 


हो सकता है वे किसी अमरीकी पायलट को भविष्य बता-बताकर जब तब फ्री में अमरीका की यात्राएँ करते रहे हों और वहाँ भीख माँग-माँगकर वहाँ गुजारा करते रहे हों । सच्चा भिखारी, जेबकतरा, रिपोर्टर, लफंगा और प्रेमी कभी भी, कहीं भी पहुँच सकता है । और उसकी बातों में विश्वसनीयता खोजना तो महामूर्खता है । 


मस्त रह देश-दुनिया को इसकी आदत पड़ गई है । 


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Sep 26, 2024

भगवान को कोई खतरा नहीं है


भगवान को कोई खतरा नहीं है  


आज तोताराम बहुत व्याकुल और उद्विग्न अवस्था में बरामदे में दाखिल हुआ जैसे कि कोई अपने पीछे पड़े पागल कुत्ते से बच गया हो । वैसे बरामदे में दाखिल होना कोई संसद में दाखिल होने या सत्ताधारी पार्टी में शामिल होने जैसा उल्लेखनीय काम नहीं है । हमारा बरामदा सड़क पर खुलता है जिसमें तोताराम क्या, कोई भी रास्ते चलता बैठ-सुस्ता सकता है । 


बोला- मास्टर एक गिलास पानी ला ।

 

हमने अनुभव किया कि यह चाय से पहले पिया जाना वाला सामान्य पानी नहीं है । पानी लाकर दिया तो पहले तो तोताराम ने अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारे, थोड़ा पानी पिया । उसके बाद तोताराम ने पानी का गिलास एक तरफ रख दिया । तभी उसे एक जोरदार उबकाई आई और उसने बरामदे से बाहर झुकते हुए एक ही बार में जो पिया था वह सारा पानी उलट दिया ।


हमने पूछा - जब तबियत खराब थी तो एक चाय का लालच छोड़ता और शांति से घर बैठता । 


बोला- मास्टर, यह मजाक की बात नहीं है । जब से प्रसादम में चर्बी और गौ मांस होने की बात सुनी है तब से रह रहकर उबकाई आती है । एक घोर अपराधबोध मन मस्तिष्क पर हावी हो रहा है । 


हमने कहा- तोताराम, ये सब अंधभक्तों, धर्म-धन-सत्ता के ठेकेदारों की समस्याएं हैं । वे ही चन्दा देने वाले, वे ही प्रसादम तैयार करने करवाने वाले, वे ही बेचने वाले और वे खाने वाले । वे ही आरोप लगाने वाले, वे ही आस्था का हल्ला मचाने वाले सब ग्लानि, वे ही ठेकेदार, वे ही सरकार । घोड़ा खाए घोड़े के धणी को । तुझे क्या ? तू तो पश्चाताप छोड़ और शांति से बैठ । अभी एक बढ़िया सी चाय बनवाते हैं ।

  

और फिर तू कौनसा तिरुपति या अयोध्या के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में गया था । वहाँ तो या तो हिन्दुत्व के प्राण मोदी जी, भागवत जी, आनंदीबेन, सभी बड़े बड़े देवताओं में प्रसिद्ध भक्त अंबानी जी अदानी जी, महानायक अमित जी, कंगना, अक्षयकुमार आदि गए थे । उनमें से तो किसी की तबियत आजतक खराब नहीं हुई ।  



 


बोला - मास्टर, मैं तो कहीं नहीं गया लेकिन अपने यहाँ से सरकारी खर्चे पर संघ और भाजपा के कई प्रचारित भक्त अयोध्या गए थे । उनमें से एक सीताराम अग्रवाल मिला था । उसीने लड्डू का एक टुकड़ा मुझे दे दिया था। वहाँ भी तो वे तिरुपति वाले चर्बी के एक लाख लड्डू सप्लाई हुए थे । मुँह में रखते ही उसमें से बासी-बासी बदबू तो अनुभव हुई लेकिन प्रसाद मानकर किसी तरह गटक गया । तब तो कुछ नहीं हुआ लेकिन अब जब से यह ‘प्रसादम’ विवाद हुआ है तब से रह रहकर उबकाई सी आती है । 


हमने कहा- इस देश में इतना दूध ही नहीं होता कि 150 करोड़ लोगों की जरूरत का घी बनाया जा सके । फिर गली गले में, शादीब्याह में, जिस तिस कार्यक्रम में शुद्ध घी, पनीर, मावे की मिठाइयां बनती हैं, यह क्या है ? बहुत बड़ा झूठ और भ्रष्टाचार है । 


बोला- तो फिर ये बाबा बने व्यापारी संत-योगी ‘दिव्य’ लोग इतना घी कहाँ से बनाते-बेचते हैं । 


हमने कहा- वह तो योग-आस्था-धर्म और श्रद्धा का कमाल है । और फिर जिस देश में कुछ भी दे सकने वाली कामधेनु, नंदिनी, कल्पवृक्ष और पारस पत्थर होते हैं वहाँ घी जैसी वस्तु को लेकर क्या सोचना ? अगर सोचना ही है तो सरकारों को इन सब पाखंडी खाद्य और दवा उत्पादकों-व्यापारियों से जनता को बचाने के बारे में सोचना चाहिए जो हर चीज में मिलावट करते हैं और जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं ।  


बोला- वे सब तो सरकार को इलेक्शन बॉण्ड के माध्यम से चन्दा देते हैं ।  


हमने कहा- तो फिर चिंता मत कर । यह मीरा का देश में भी तो है । वह मीरा जो कृष्ण के नाम पर विष पीकर भी अमर हो गई । और फिर अगर तुझे ज्यादा की पश्चाताप हो रहा है तो अपने यहाँ प्रायश्चित का भी बड़ा सरल विधान है । दो छींटे नकली गंगाजल के मार और छुट्टी ! 


ज्यादा ही पछतावा है तो रुक अभी कुछ देर में गौमाताएं दूध देने के बाद नगर-भ्रमण के लिए निकलेंगी । ताज़ा ताज़ा गोबर उपलब्ध हो जाएगा । प्लेट भर गटक लेना और सब पवित्रम पवित्रम हो जाएगा । 


और रही बात भगवान की तो उन्हें भी कोई खतरा नहीं है क्योंकि वे तो कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं । 



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Sep 13, 2024

बरामदे को ठीक-ठाक कर ले


2024-09-12 


बरामदे को ठीक-ठाक कर ले 


आज तोताराम ने आते ही बरामदे का मुआयना किया और नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा- मास्टर, अमृतकाल भी आगया, मोदी जी 3.0 चल रहा है।नई संसद बन गई,  2047 का एजेंडा तय हो गया । इकोनोमी 10-15 ट्रिलियन की हुई जा रही है लेकिन तेरे इस दीवाने आम की शोभा वही की वही बनी हुई है । वही नाली की बदबू, वही नाली के किनारे उगी गाजर घास, वही सड़क पर बनी गोबर की रंगोली और बरामदे का उखड़ा फर्श । कोई भला आदमी आए भी तो कैसे ?


हमने कहा- तेरे होते कोई भला आदमी क्या खाकर यहाँ आएगा ? एक अकेला तोताराम सब पर भारी ।


बोला- मान ले, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की गणेश पूजा में शामिल होने की तरह मोदी जी अपने यहाँ के लोकदेवता रामदेव के दर्शन करने या फिर खाटू श्याम जी के दरबार में हाजरी लगाने या फिर सालासर के हनुमान के मेले में ‘कनक दंडवत’ करते हुए यहाँ भी टपक पड़े तो ? फिर कहाँ बैठाएगा ?


हमने कहा- तुम्हारी इस बात में तो दम है । मोदी जी आज भले ही दिन में दस बार नई नई ड्रेसें बदलते हों, हजारों करोड़ के हवाई जहाज में उड़ते हों, सात एकड़ में फैले सर्व सुविधा सम्पन्न आवास में रहते हों लेकिन वे मन से मूलतः हैं फकीर । अगर किसी को उर्दू से परहेज हो तो कहें  सन्यासी हैं । सामान्य आदमी की बात और है कि वह धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ से होता हुआ ‘सन्यास आश्रम’ में पहुंचता है लेकिन फकीर या सन्यासी ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधा सन्यास आश्रम में प्रवेश करता है या धर्म से सीधा मोक्ष में छलांग लगाता है । सो मोदी जी पर कोई भी नियम लागू नहीं हो सकता । 


उन्होंने 35 साल भीख मांगी है तो वे किसी के भी घर में किसी भी पूजा-उत्सव में शामिल हो कर प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं । 


बोल- और क्या ?  





हमने कहा- तो फिर ठीक है । छोड़ सब चिंता-फिक्र । एक फकीर को बैठने के लिए क्या चाहिए ? यह धरती सबका भार उठाती है । बैठ जाएंगे यहीं हम दोनों भाइयों के साथ और पी लेंगे एक चाय । न सही उन्हें चाय पिलाते समय सोने के तारों से अपना नाम कढ़ा 15-20 लाख का सूट । फिर भी तू कहेगा तो नए कप-प्लेट निकाल देंगे, कल ही पोती लाई थी चार का एक सेट । 


बोला- बात कप-प्लेट की नहीं, इस बरामदे के डोल की है । जगह जगह से उखड़ा हुआ पलस्तर, और छत से लटकते जाले ।

 

हमने कहा- तोताराम, हमारा मुँह मत खुलवा । तेरे 10-20 हजार करोड़ के राम मंदिर और सेंट्रल विष्ठा से तो बेहतर है हमारा यह बरामदा । कम से कम पानी तो नहीं टपकता । वैसे भी यहाँ क्या लेने आएंगे ? न तो यहाँ चुनाव होने वाले हैं और न ही यहाँ कोई राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत । फिर हम कौनसे न्यायाधीश हैं जिनसे उनका कोई काम अटका है ?


बोला- मास्टर, इतना छोटा नहीं सोचना चाहिए । अरे, घर में धार्मिक कार्यक्रम है तो अड़ोस-पड़ोस की तरह मोदी जी को भी न्यौता दे दिया तो क्या हो गया ? मोदी जी ठहरे भक्त, सरल, भले, भोले और भाले आदमी । चले आए । कोई राहुल गांधी की तरह अकड़ू थोड़े ही हैं जो अंबानी जी न्यौता देने आए और साहब चले गए पूर्व दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज-मिस्त्रियों के बीच । मोदी जी ने संस्कारवश आरती की थाली घुमा दी, बप्पा का आशीर्वाद ले लिया तो क्या हुआ। मोदी जी तो फकीर हैं। उन्हें क्या चाहिए ? किसके लिए चाहिए ? देश-दुनिया के लिए अमन-चैन की कामना ही तो की होगी ।

 

वैसे तूने ध्यान दिया हो तो मोदी कितना अच्छी तरह से पूजा की थाली घुमा रहे थे ! और सिर पर गांधी टोपी । बिल्कुल मुंबई के सामान्य डिब्बे वाले लग रहे थे । कोई धूमधाम-तामझाम नहीं । इस सहज, सरल, विग्रह में तो एक बार अमित शाह भी उन्हें न पहचान पाएं ।  


हमने कहा- ये सब भजन-पूजन, आरती-जागरण एक साल बाद जब 75 के होकर निर्देशक मण्डल में बैठ जाएँ तब कर लें या फिर निकल पड़ें शंकराचार्य की तरह धर्म की ध्वजा फहराने के लिए । धर्म व्यक्तिगत कल्याण का मार्ग है । देश-दुनिया में अमन-चैन आरती घुमाने से नहीं होगा । उसके लिए अपने अंधभक्तों को नफरती बयानबाजी से रोकना चाहिए । सब मामलों में संवेदनशीलता और सम भाव दिखाना चाहिए । इससे अच्छा तो सवा साल बाद ही सही, मणिपुर ही चले जाते । सत्ता और न्यायपालिका की यह निकटता संदेह पैदा करती है ।


बोला-  इस देश और दुनिया ने मोदी को समझा ही नहीं । वे छिति, जल पावक, गगन, समीरा की तरह सब बंधनों और औपचारिकताओं से परे हैं ।  


 हमने कहा- कहीं ऐसा तो नहीं कि जब चादर लगी फटने, तो खैरात लगी बँटने  । 


-रमेश जोशी 



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Sep 11, 2024

सीमा हैदर का हालचाल



2024-09-11 


सीमा हैदर का हालचाल 



मोदी जी की शादी 17 वर्ष की आयु में हो गई थी । मोदी जी दूरदर्शी हैं, समझदार हैं, किसी विशिष्ट काम के लिए ईश्वर द्वारा भेजे गए हैं  इसलिए ईश्वरीय प्रेरणा से वे सिद्धार्थ की तुलना में अधिक साहस और समझदारी दिखाते हुए इस बंधन से निकल लिए । आज उसका लाभ भारत के 140 करोड़ लोगों और समस्त विश्व को मिल रहा है । शादी तो हमारी भी 17 साल से तीन महिने कमकी आयु में ही हो गई थी लेकिन कुछ तो हमारे पिताजी का कठोर नियंत्रण और कुछ हमारी कायरता ! छोड़-छाड़कर मुक्त हो जाना तो दूर की बात, हम तो कुछ बोल भी नहीं सके ।


और देखिए, आज सीधे सीधे आठ पोते-पोतियों के बाबा, तीन बहुओं के ससुर, तीन बेटों के पिता और एक पत्नी के पति हैं । कुल 16 जन । सगे भाइयों के परिवारों को जोड़ लें तो गिनती 60-70  से ऊपर निकल जाएगी ।  


कभी कभी हम सोचते हैं कि अगर थोड़ा साहस दिखा दिया होता तो क्या पता, न सही प्रधानमंत्री, विधायक भी बन जाते तो आज जयपुर में विधायकपुरी में बँगला होता, कई कई पेंशन आती होतीं, मुफ़्त इलाज की सुविधा होती और इस 4 गुणा 9 फुट के सड़क पर खुलने वाले बरामदे में बैठकर आडवाणी जी की तरह कुढ़ते हुए कांच के गिलास में चाय सुड़कने से तो मुक्ति मिलती । बाहर लॉन में मूढ़ों पर बैठकर ट्रे में किसी भृत्य द्वारा लाई हुई चाय पी रहे होते । किसी भी स्थानीय कार्यक्रम में जाते तो अगले दिन किसी ‘विश्वसनीय अखबार’ के शेखावाटी संस्करण में समाचार तो छपता कि कार्यक्रम में पूर्व विधायक रमेश जोशी आदि लोग शामिल हुए । कभी कभी ‘मन की बात’ सुनते हुए का फ़ोटो भी लग जाता । 


लेकिन अब पछताने से क्या होता है । 



वैसे यह भी तो हो सकता था कि उस बंधन को तोड़ तो देते लेकिन ‘पन्ना प्रमुख’ तक न बन पाते । 30-40-50 साल की आयु में शादी करना भी चाहते कोई जुगाड़ ही न बैठता । हम कौन दिलीप कुमार, कबीर बेदी, मिलिन्द सोमण, सैफ अली, संजय दत्त  या आमिर खान हैं जो अपने से बहुत कम उम्र की और कई कई सुंदरियाँ पटा सकें ।   


 


 मोदी जी और राहुल दोनों ही अब तक देश की सेवा के लिए कुँवारे / सिंगल जैसे कुछ तो बने हुए हैं । कानून या कॉमन सिविल कोड इस बारे में क्या कहता है, इस स्थिति को क्या नाम देता है, हमें पता नहीं । कुछ भी हो, दोनों को कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है । जब, जहां चाहें, जाएं । चाहे विश्व-भ्रमण करें या भारत जोड़ो यात्रा । हम तो अगर वैसे ही घर का दरवाजा खोलें तो कोई न कोई पूछ ही लेता है- कहाँ जा रहे हो ?  


सोचते हैं ये दोनों रात को कभी 1-2 बजे आँख खुल जाने पर यदि राजनीति के अतिरिक्त कुछ और सुख-दुख हुआ तो किससे बतियाते होंगे ? कोई भृत्य और रैली में ‘मोदी-मोदी’ या ‘राहुल-राहुल’ करने वाला किराये का भक्त तो यह भूमिका निभा नहीं सकता । हम तो रात को पेशाब करने भी उठते हैं तो कोई न कोई बतिया ही लेता है । 



मोदी जी भी हमसे आठ साल छोटे हैं लेकिन उनका रुतबा ही ऐसा है कि हमसे उन्हें कुछ कहते सुनते ही नहीं बनता और जहां तक उनके मुखर होने की बात है तो वे बहुत गंभीर रहते हैं सिवाय नेहरू और कांग्रेस का मजाक उड़ाने के । 

 

एक बार राहुल इसी छोटे होने के अधिकार से मोदी जी के गले लग गए तो भक्तों ने संसद में हंगामा मचा दिया जैसे कि पता नहीं, क्या अघट घट गया । क्या भिन्न पार्टियों के सांसद-नेता खुले दिल से हँस, मिल और बतिया भी नहीं सकते ?  हम 1947 से देखते आ रहे हैं लेकिन आजकल जैसी घृणा और एक दूसरे से ऐसी चिढ़ और ऐसे घटिया रिमार्क कभी नहीं देखे । 


तोताराम उम्र में हमसे छह-आठ महिने छोटा है और इसी अधिकार से वह हमारे सामने अपने बुढ़ापे को निःसंकोच धता बताकर चुहलबाजी कर लिया करता है । आज तोताराम ने चुहल करते हुए एक प्रश्न उछाला- मास्टर, आजकल अपनी सीमा हैदर का क्या हालचाल है ? कई दिन से कोई समाचार नहीं छप रहा । कहीं योगी जी ने पाकिस्तान डिपोर्ट तो नहीं करवा दिया ? कहीं उसका अरब कंट्री में रहने वाला पति केस जीत कर अपने साथ तो नहीं ले घसीट ले गया ?  


हम पहले ही सरकार द्वारा 18 महिने का डी ए हजम कर लिए जाए से दुखी थे ।  ऐसे प्रश्न के लिए तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे ।कहा- ऐसी फालतू बातें छोड़ और अपनी नाक पोंछ । कहीं मुँह में न चली जाए ।


बोला- मास्टर, मजाक में भी व्यक्ति को शालीनता का त्याग नहीं करना चाहिए । सुबह सुबह नाक से निसृत तरल पदार्थ का मुँह में जाने का बिम्ब बनाकर तूने बड़ी वितृष्णा पैदा कर दी। क्या किसी सेलेब्रिटी के बारे में चर्चा करना कोई अशालीनता या अश्लीलता है जो तू इतना चिढ़ रहा है ? 




 




हमने कहा- क्या सेलेब्रिटी है ? चार बच्चे लेकर पाकिस्तान से फरार हो गई । यहाँ अपनी सुनियोजित, चटखारेदार प्रेम कहानी बेच रही है । लोग प्रकारांतर से इसमें एक प्रकार का सुख अनुभव करते हैं और उसके चेनल से जुड़ जाते हैं । लाखों की कमाई हो रही है । सचिन और सीमा तथा परिवार वालों की बैठे बिठाए मौज हो गई । 


बोला- ऐसा नहीं है मास्टर, किसी के प्रेम का मजाक नहीं उड़ाते । देखा नहीं, कितनी श्रद्धा भक्ति से राधे-राधे बोलती है, करवाचौथ मनाती है, किस शान से हिन्दू सुहागिनों वाले सोलह शृंगार करती है, सुना है राम मंदिर भी हो आई है । काँवड़ भी ले आई हो तो पता नहीं और एक तू  कैसा ब्राह्मण हिन्दू है जो सीकर के स्थानीय गणेश मंदिर तक में छप्पन भोग का प्रसाद लेने नहीं गया । 


हमने कहा- यह नाटक है । तुझे पता होना चाहिए कि जैसे साहित्य में विरोधाभासों में नायक नायिका का व्यक्तित्व और सौन्दर्य निखरता है वैसे ही इस नाटक के चलते ही किसी भी मुसलमान के घर पर बुलडोजर चलवा  देने वाले योगी जी ने या गोली मरवा देने वाले अनुराग ठाकुर ने  घुसपैठिनी होने पर भी इसे पाकिस्तान जाने के लिए नहीं कहा ।  


बोला- यह नाटक नहीं है । हमारी संस्कृति में नारियों की पूजा होती है, उन्हें सब धर्मों से अधिक इस धर्म में सम्मान मिलता है । सीमा हैदर को भी हिन्दू धर्म में सुख-सम्मान मिला है इसीलिए वह किसी भी सूरत में पाकिस्तान नहीं जाना चाहती ।

 

हमने कहा- हिन्दू धर्म में नारी के सम्मान के उदाहरण तो आजकल महाराष्ट्र से बंगाल तक घमासान मचाए हुए हैं । वास्तव में सब धर्मों में नारी को एक वस्तु समझा जाता है, मुर्गी की तरह । अगर  पुरुष किसी और धर्म की स्त्री को ले आए तो कोई बात नहीं । उसे धर्म का फायदा माना जाता है लेकिन अपने धर्म की कोई लड़की किसी अन्य धर्म वाले से शादी कर ले तो घाटा अनुभव होता है । इसीलिए किसी भी तथाकथित राष्ट्रभक्त हिन्दू ने आज तक यह माँग नहीं की कि विभाजन के समय बहुत से हिंदुओं ने जिन मुसलमान स्त्रियों को अपने घर में रख बसा लिया था उन्हें और उनकी संतानों को पाकिस्तान भेजा जाए । मुर्गी-बकरी का कोई धर्म नहीं होता, वे खाद्य पदार्थ समझी जाती हैं । 


तोताराम, हमें तो लगता है कि सीमा हैदर का जो जलवा है उसे देखते हुए कहीं वह उत्तराखंड या आसाम की मुख्यमंत्री न बन गई हो । 


बोला- मास्टर, क्या बकवास करता है । जिस तरह रमेश विधूड़ी ने संसद में दानिश अली को कटुआ, मुल्ला, भड़ुआ कहा और भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया उसको देखते हुए ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? 


हमने कहा-सब कुछ हो सकता है । अब जब हरियाणा में फँस गए तो दिया नहीं क्या दो मुसलमानों को भाजपा ने टिकट !  मोदी जी ने शिवाजी की मूर्ति के गिरने पर माफी मांगी नहीं क्या ? 


बोला- सहानुभूति वोट पाने के लिए खुद को मिली गालियां गिनाना, खुद को गरीब और पिछड़ा बताना पड़ता है । क्या माफी मांगते समय मोदी जी के चेहरेऔर शब्दों से ऐसा कुछ लगा ? लग रहा था वे किसी को चेलेंज दे रहे हैं ।यह नमकहराम फिल्म में अमिताभ बच्चन की माफी जैसा ही था । 

लेकिन कुछ भी हो तेरी यह सीमा हैदर के उत्तराखंड या आसाम की मुख्यमंत्री बनने वाली बात बहुत दूर की कौड़ी है । ऐसी गप्प तो पुराणों में भी नहीं चलती ।


हमने कहा- तोताराम, यह कहने का एक स्टाइल है । श्रेष्ठ साहित्य में इसी तरह से बात कही जाती है । यह व्यंजना का मामला है । लालू, अटल और मोदी चालीसा लिखने वाले तुक्कड़ चारणों को यह व्यंजना समझ नहीं आ सकती  है । 


बोला- तू समझा तो सही । 


हमने कहा- जो व्यक्ति मूल रूप से जो होता है उसे उस रूप को अनावश्यकरूप प्रदर्शित करने की जरूरत महसूस नहीं होती । बस की छत पर चढ़कर यात्रा करने वाले को जब हवाई यात्रा करने का मौका मिल जाता है तो वह ज़िंदगी भर अपने बैग से एयर इंडिया या किंग फिशर या इंडिगो का टैग लटकाए घूमता है ।अगर किसी  ऐसे व्यक्ति को अमरीका या योरप जाने का संयोग मिल जाए तो फिर अपनी हर बात  ‘व्हेन आई वाज इन यू के ..’  से शुरू करता है । जिसे अपनी हाइट की कमी की कुंठा होती है वह कुछ ज्यादा ही आसमान देखता हुआ चलता है । नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है । नकली ब्राह्मण बार बार पेशाब जाता है और देर तक जनेऊ कान पर टाँगे फिरता है । जितना बड़ा धूर्त, उतना लंबा तिलक । जिसको कभी भरपेट रोटी न मिली हो वह दो पैसे आ जाएं तो अंबानी की तरह धन का भोंडा प्रदर्शन करता है । सड़कों पर जब तब फुल वॉल्यूम में डी जे कौन बजाते हैं यह बताने की जरूरत नहीं । 


हिमन्त बिस्वा मुसलमानों को किसी भी आर एस एस वाले से अधिक गाली देता है क्योंकि वह मूलतः संघी नहीं है । वह खुद को सच्चा और श्रेष्ठ संघी दिखाने के लिए ऐसा कर रहा है । ऐसे ही उत्तराखंड वाला धामी पार्टी में प्रमोशन पाने के लिए हिन्दुत्व के अनावश्यक नाटक कर रहा है । सीमा हैदर और धामी-हिमन्ता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । एक तरह की कुंठा के दो चेहरे हैं । 


अब सीमा हैदर पर कंगना या अक्षय कुमार की किसी फिल्म की घोषणा होने वाली है । नाम होगा- हिन्दुत्व की दीवानी । 


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Sep 4, 2024

कौन सी पेंशन ?


कौन सी पेंशन ?   


कई दिनों से बेतरतीब बारिश हो रही थी । बरामदे में बैठने का कोई सिस्टम ही नहीं जम रहा था । आज मौसम खुला हुआ था तो हमने बरामदे की सफाई कर दी । न सही कहीं का काशी या किसी महाकाल का कॉरीडोर लेकिन साफ होने से एक दिव्यता सी झलकने लगी । बैठने के लिए रखी रहने वाली दोनों स्टूलें हटाकर दो पुराने तौलिए धोकर बिछा दिए । और एक ए फोर के सफेद कागज पर सूचना लिखकर दीवार टाँग दी ।    


अभी हम बरामदे में ही थे कि तोताराम प्रकट हुआ । कुछ देर नीचे खड़ा हुआ ही देखता रहा और फिर बोला- ‘बरामदा विष्ठा’ की इस सजावट का कारण ? क्या मोदी जी आने वाले हैं या राहुल गांधी ? 


हमने कहा- राहुल गांधी का कोई ठिकाना नहीं । कब, कहाँ टपक पड़े । घर पर अंबानी शादी का न्यौता देने घर पर आए हुए थे और बंदा पहुँच गया पूर्वी दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज मिस्त्रियों-मजदूरों के बीच । जाना था सुल्तानपुर और बीच में ही रामचेत की गुमटी पर बैठ गया । उसका कोई ठिकाना नहीं इसलिए उसके लिए किसी तैयारी का भी कोई अर्थ नहीं । 


‘तो फिर मोदी जी आ रहे हैं’ - तोताराम ने उत्सुकता से पूछा । 


हमने कहा-  अवसर ही ऐसा है, आ तो सकते थे लेकिन आज वे राजनाथ सिंह, नड्डा आदि के साथ पार्टी कार्यालय में सदस्यता फॉर्म भर रहे हैं । हम उसी अभियान को यहाँ मनाएंगे । देख नहीं रहा दीवार पर लगा पोस्टर ।

 

‘संगठन पर्व सदस्यता अभियान 2024’    


बोला- लेकिन इसकी क्या जरूरत आ पड़ी ? इन सब का तो संघ से गर्भनाल से जुड़ा रिश्ता है जो अटूट है ।हो सकता है बाद में भाजपा में आए लोग इधर-उधर हो जाएँ लेकिन संघ के स्वयंसेवक तो कभी अलग हो ही नहीं सकते जैसे अंगुलियों से नाखून । प्रधानमंत्री बनने के बाद भी भले ही खुद को 140 करोड़ का प्रधानमन्त्री बताएं लेकिन रहते हैं वे संघ के स्वयंसेवक ही । फिर चाहे वे अटल जी हों या आडवाणी जी या फिर मोदी जी । और तोताराम ने प्रमाणस्वरूप अपने स्मार्ट फोन में मोदी जी का गणवेश धारण किए हुए एक फ़ोटो दिखा दिया । 


    




तोताराम ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- लेकिन इस सदस्यता अभियान की यहाँ क्या जरूरत है ? यह कोई पार्टी कार्यालय थोड़े है ? और फिर हम तो सरकारी कर्मचारी हैं । हम किसी पार्टी के सदस्य नहीं बन सकते । हमारी प्रतिबद्धता संविधान के प्रति होती है । पार्टियां आती-जाती रहती हैं लेकिन संविधान इस देश का सनातन धर्म है जो नागरिक होने के साथ ही हम पर आयद हो जाता है ।


हमने कहा- तोताराम, वे सब पुरानी और रूढ़ नैतिकता की बातें हैं । सुना नहीं, आजकल तो सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में जाने के लिए छूट ही नहीं दे दी है बल्कि उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है । विश्वविद्यालयों में संघ की शाखाएं लगाई जा रही हैं । 


बोला- लेकिन गैस, डीजल, पेट्रोल, दूध सभी को एक ही भाव मिल रहा है फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, कांग्रेसी हो या भाजपाई । अटल जी द्वारा आविष्कृत और अब मोदी जी द्वारा संशोधित लेकिन घाटे वाली पेंशन सभी पर लागू हो रही है या नहीं ? लेकिन हम तो 2004 से पहले ही रिटायर हो गए तो चलो बचे हुए हैं इस ओ पी एस, एन  पी एस, यू पी एस के झंझट से । 


हमने कहा- फिर भी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ने के फायदे तो हैं  ही । लेटरल एंट्री के नाम से संघ के लोगों को बड़े बड़े पदों पर बैठाया जा रहा है । जजों तक को  राज्यसभा की सदस्यता का लालच देकर मनमाने फैसले लिखवाए जा रहे हैं ।कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधाराओं के लोगों को विश्वविद्यालयों का कुलपति बनाया जा रहा है । इसी दृष्टि से पाठ्यक्रम बदला जा रहा है । ऐसे ही लोगों को संचालन के लिए सैनिक स्कूल दिए जा रहे हैं । अब तो बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों की तरह कार सेवकों को 20-20 हजार रुपया पेंशन दी जा रही है । 


हमने कहा- सरकार चाहे तो नई नई पेंशन देना ही क्या चाहे तो किसी की नौकरी 25-30 साल बाद मिलने वाली पेंशन बंद भी कर सकती है ।अभी तो विकल्प दे रही है लेकिन कुछ दिनों बाद अपनी मर्जी से किसी को भी, किसी भी प्रकार की पेंशन में डाल सकती है ।


बोला-  ऐसे कैसे हो सकता है ?


हमने कहा- वैसे ही जैसे कोरोना के टीके के नाम पर 18 महिने का डी ए खा गए । किसी ने क्या कर लिया ? और तुझे पता है इस बार की पेंशन में 3% डी ए भी नहीं जुड़ा है । लगता है वह भी खा गए हैं ।


बोला- लेकिन अब कौनसी प्राकृतिक आपदा चल रही है ?


हमने कहा- तुझे पता नहीं ? राम मंदिर और नई संसद टपक रहे हैं, राम पथ और अटल सेतु धँसक रहे हैं, बिहार में रोज पुल गिर रहे हैं । और अब तो महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति भी गिर पड़ी । इन सब की मरम्मत, भरपाई कहाँ से करेंगे मोदी जी ? हमारा डी ए खा जाने के अलावा और चारा ही क्या है ?

 

खैर चल। हम तेरे सामने तीन अंगुलियां करते हैं । तू इनमें से एक अंगुली पकड़ । उसके आधार पर तय करेंगे कि कौन सी पेंशन आप्ट करें ? ओ पी एस, एन पी एस या यू पी एस । 


बोला- मैं तो एम पी एस आप्ट करूंगा । 


हमने पूछा- यह एम पी एस क्या है ? ऐसी तो कोई स्कीम है ही नहीं । कहीं मोदी जी ने अपने नाम से कोई ‘मोदी पेंशन स्कीम’  तो शुरू नहीं कर दी ? 


बोला- नहीं, यह ‘माधवीपुरी पेंशन स्कीम’ है । सेबी प्रमुख माधवी पुरी जिसे अंतिम वेतन से दोगुना  पेंशन मिलती है ।



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