Sep 13, 2024

बरामदे को ठीक-ठाक कर ले


2024-09-12 


बरामदे को ठीक-ठाक कर ले 


आज तोताराम ने आते ही बरामदे का मुआयना किया और नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा- मास्टर, अमृतकाल भी आगया, मोदी जी 3.0 चल रहा है।नई संसद बन गई,  2047 का एजेंडा तय हो गया । इकोनोमी 10-15 ट्रिलियन की हुई जा रही है लेकिन तेरे इस दीवाने आम की शोभा वही की वही बनी हुई है । वही नाली की बदबू, वही नाली के किनारे उगी गाजर घास, वही सड़क पर बनी गोबर की रंगोली और बरामदे का उखड़ा फर्श । कोई भला आदमी आए भी तो कैसे ?


हमने कहा- तेरे होते कोई भला आदमी क्या खाकर यहाँ आएगा ? एक अकेला तोताराम सब पर भारी ।


बोला- मान ले, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की गणेश पूजा में शामिल होने की तरह मोदी जी अपने यहाँ के लोकदेवता रामदेव के दर्शन करने या फिर खाटू श्याम जी के दरबार में हाजरी लगाने या फिर सालासर के हनुमान के मेले में ‘कनक दंडवत’ करते हुए यहाँ भी टपक पड़े तो ? फिर कहाँ बैठाएगा ?


हमने कहा- तुम्हारी इस बात में तो दम है । मोदी जी आज भले ही दिन में दस बार नई नई ड्रेसें बदलते हों, हजारों करोड़ के हवाई जहाज में उड़ते हों, सात एकड़ में फैले सर्व सुविधा सम्पन्न आवास में रहते हों लेकिन वे मन से मूलतः हैं फकीर । अगर किसी को उर्दू से परहेज हो तो कहें  सन्यासी हैं । सामान्य आदमी की बात और है कि वह धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ से होता हुआ ‘सन्यास आश्रम’ में पहुंचता है लेकिन फकीर या सन्यासी ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधा सन्यास आश्रम में प्रवेश करता है या धर्म से सीधा मोक्ष में छलांग लगाता है । सो मोदी जी पर कोई भी नियम लागू नहीं हो सकता । 


उन्होंने 35 साल भीख मांगी है तो वे किसी के भी घर में किसी भी पूजा-उत्सव में शामिल हो कर प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं । 


बोल- और क्या ?  





हमने कहा- तो फिर ठीक है । छोड़ सब चिंता-फिक्र । एक फकीर को बैठने के लिए क्या चाहिए ? यह धरती सबका भार उठाती है । बैठ जाएंगे यहीं हम दोनों भाइयों के साथ और पी लेंगे एक चाय । न सही उन्हें चाय पिलाते समय सोने के तारों से अपना नाम कढ़ा 15-20 लाख का सूट । फिर भी तू कहेगा तो नए कप-प्लेट निकाल देंगे, कल ही पोती लाई थी चार का एक सेट । 


बोला- बात कप-प्लेट की नहीं, इस बरामदे के डोल की है । जगह जगह से उखड़ा हुआ पलस्तर, और छत से लटकते जाले ।

 

हमने कहा- तोताराम, हमारा मुँह मत खुलवा । तेरे 10-20 हजार करोड़ के राम मंदिर और सेंट्रल विष्ठा से तो बेहतर है हमारा यह बरामदा । कम से कम पानी तो नहीं टपकता । वैसे भी यहाँ क्या लेने आएंगे ? न तो यहाँ चुनाव होने वाले हैं और न ही यहाँ कोई राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत । फिर हम कौनसे न्यायाधीश हैं जिनसे उनका कोई काम अटका है ?


बोला- मास्टर, इतना छोटा नहीं सोचना चाहिए । अरे, घर में धार्मिक कार्यक्रम है तो अड़ोस-पड़ोस की तरह मोदी जी को भी न्यौता दे दिया तो क्या हो गया ? मोदी जी ठहरे भक्त, सरल, भले, भोले और भाले आदमी । चले आए । कोई राहुल गांधी की तरह अकड़ू थोड़े ही हैं जो अंबानी जी न्यौता देने आए और साहब चले गए पूर्व दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज-मिस्त्रियों के बीच । मोदी जी ने संस्कारवश आरती की थाली घुमा दी, बप्पा का आशीर्वाद ले लिया तो क्या हुआ। मोदी जी तो फकीर हैं। उन्हें क्या चाहिए ? किसके लिए चाहिए ? देश-दुनिया के लिए अमन-चैन की कामना ही तो की होगी ।

 

वैसे तूने ध्यान दिया हो तो मोदी कितना अच्छी तरह से पूजा की थाली घुमा रहे थे ! और सिर पर गांधी टोपी । बिल्कुल मुंबई के सामान्य डिब्बे वाले लग रहे थे । कोई धूमधाम-तामझाम नहीं । इस सहज, सरल, विग्रह में तो एक बार अमित शाह भी उन्हें न पहचान पाएं ।  


हमने कहा- ये सब भजन-पूजन, आरती-जागरण एक साल बाद जब 75 के होकर निर्देशक मण्डल में बैठ जाएँ तब कर लें या फिर निकल पड़ें शंकराचार्य की तरह धर्म की ध्वजा फहराने के लिए । धर्म व्यक्तिगत कल्याण का मार्ग है । देश-दुनिया में अमन-चैन आरती घुमाने से नहीं होगा । उसके लिए अपने अंधभक्तों को नफरती बयानबाजी से रोकना चाहिए । सब मामलों में संवेदनशीलता और सम भाव दिखाना चाहिए । इससे अच्छा तो सवा साल बाद ही सही, मणिपुर ही चले जाते । सत्ता और न्यायपालिका की यह निकटता संदेह पैदा करती है ।


बोला-  इस देश और दुनिया ने मोदी को समझा ही नहीं । वे छिति, जल पावक, गगन, समीरा की तरह सब बंधनों और औपचारिकताओं से परे हैं ।  


 हमने कहा- कहीं ऐसा तो नहीं कि जब चादर लगी फटने, तो खैरात लगी बँटने  । 


-रमेश जोशी 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

Sep 11, 2024

सीमा हैदर का हालचाल



2024-09-11 


सीमा हैदर का हालचाल 



मोदी जी की शादी 17 वर्ष की आयु में हो गई थी । मोदी जी दूरदर्शी हैं, समझदार हैं, किसी विशिष्ट काम के लिए ईश्वर द्वारा भेजे गए हैं  इसलिए ईश्वरीय प्रेरणा से वे सिद्धार्थ की तुलना में अधिक साहस और समझदारी दिखाते हुए इस बंधन से निकल लिए । आज उसका लाभ भारत के 140 करोड़ लोगों और समस्त विश्व को मिल रहा है । शादी तो हमारी भी 17 साल से तीन महिने कमकी आयु में ही हो गई थी लेकिन कुछ तो हमारे पिताजी का कठोर नियंत्रण और कुछ हमारी कायरता ! छोड़-छाड़कर मुक्त हो जाना तो दूर की बात, हम तो कुछ बोल भी नहीं सके ।


और देखिए, आज सीधे सीधे आठ पोते-पोतियों के बाबा, तीन बहुओं के ससुर, तीन बेटों के पिता और एक पत्नी के पति हैं । कुल 16 जन । सगे भाइयों के परिवारों को जोड़ लें तो गिनती 60-70  से ऊपर निकल जाएगी ।  


कभी कभी हम सोचते हैं कि अगर थोड़ा साहस दिखा दिया होता तो क्या पता, न सही प्रधानमंत्री, विधायक भी बन जाते तो आज जयपुर में विधायकपुरी में बँगला होता, कई कई पेंशन आती होतीं, मुफ़्त इलाज की सुविधा होती और इस 4 गुणा 9 फुट के सड़क पर खुलने वाले बरामदे में बैठकर आडवाणी जी की तरह कुढ़ते हुए कांच के गिलास में चाय सुड़कने से तो मुक्ति मिलती । बाहर लॉन में मूढ़ों पर बैठकर ट्रे में किसी भृत्य द्वारा लाई हुई चाय पी रहे होते । किसी भी स्थानीय कार्यक्रम में जाते तो अगले दिन किसी ‘विश्वसनीय अखबार’ के शेखावाटी संस्करण में समाचार तो छपता कि कार्यक्रम में पूर्व विधायक रमेश जोशी आदि लोग शामिल हुए । कभी कभी ‘मन की बात’ सुनते हुए का फ़ोटो भी लग जाता । 


लेकिन अब पछताने से क्या होता है । 



वैसे यह भी तो हो सकता था कि उस बंधन को तोड़ तो देते लेकिन ‘पन्ना प्रमुख’ तक न बन पाते । 30-40-50 साल की आयु में शादी करना भी चाहते कोई जुगाड़ ही न बैठता । हम कौन दिलीप कुमार, कबीर बेदी, मिलिन्द सोमण, सैफ अली, संजय दत्त  या आमिर खान हैं जो अपने से बहुत कम उम्र की और कई कई सुंदरियाँ पटा सकें ।   


 


 मोदी जी और राहुल दोनों ही अब तक देश की सेवा के लिए कुँवारे / सिंगल जैसे कुछ तो बने हुए हैं । कानून या कॉमन सिविल कोड इस बारे में क्या कहता है, इस स्थिति को क्या नाम देता है, हमें पता नहीं । कुछ भी हो, दोनों को कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है । जब, जहां चाहें, जाएं । चाहे विश्व-भ्रमण करें या भारत जोड़ो यात्रा । हम तो अगर वैसे ही घर का दरवाजा खोलें तो कोई न कोई पूछ ही लेता है- कहाँ जा रहे हो ?  


सोचते हैं ये दोनों रात को कभी 1-2 बजे आँख खुल जाने पर यदि राजनीति के अतिरिक्त कुछ और सुख-दुख हुआ तो किससे बतियाते होंगे ? कोई भृत्य और रैली में ‘मोदी-मोदी’ या ‘राहुल-राहुल’ करने वाला किराये का भक्त तो यह भूमिका निभा नहीं सकता । हम तो रात को पेशाब करने भी उठते हैं तो कोई न कोई बतिया ही लेता है । 



मोदी जी भी हमसे आठ साल छोटे हैं लेकिन उनका रुतबा ही ऐसा है कि हमसे उन्हें कुछ कहते सुनते ही नहीं बनता और जहां तक उनके मुखर होने की बात है तो वे बहुत गंभीर रहते हैं सिवाय नेहरू और कांग्रेस का मजाक उड़ाने के । 

 

एक बार राहुल इसी छोटे होने के अधिकार से मोदी जी के गले लग गए तो भक्तों ने संसद में हंगामा मचा दिया जैसे कि पता नहीं, क्या अघट घट गया । क्या भिन्न पार्टियों के सांसद-नेता खुले दिल से हँस, मिल और बतिया भी नहीं सकते ?  हम 1947 से देखते आ रहे हैं लेकिन आजकल जैसी घृणा और एक दूसरे से ऐसी चिढ़ और ऐसे घटिया रिमार्क कभी नहीं देखे । 


तोताराम उम्र में हमसे छह-आठ महिने छोटा है और इसी अधिकार से वह हमारे सामने अपने बुढ़ापे को निःसंकोच धता बताकर चुहलबाजी कर लिया करता है । आज तोताराम ने चुहल करते हुए एक प्रश्न उछाला- मास्टर, आजकल अपनी सीमा हैदर का क्या हालचाल है ? कई दिन से कोई समाचार नहीं छप रहा । कहीं योगी जी ने पाकिस्तान डिपोर्ट तो नहीं करवा दिया ? कहीं उसका अरब कंट्री में रहने वाला पति केस जीत कर अपने साथ तो नहीं ले घसीट ले गया ?  


हम पहले ही सरकार द्वारा 18 महिने का डी ए हजम कर लिए जाए से दुखी थे ।  ऐसे प्रश्न के लिए तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे ।कहा- ऐसी फालतू बातें छोड़ और अपनी नाक पोंछ । कहीं मुँह में न चली जाए ।


बोला- मास्टर, मजाक में भी व्यक्ति को शालीनता का त्याग नहीं करना चाहिए । सुबह सुबह नाक से निसृत तरल पदार्थ का मुँह में जाने का बिम्ब बनाकर तूने बड़ी वितृष्णा पैदा कर दी। क्या किसी सेलेब्रिटी के बारे में चर्चा करना कोई अशालीनता या अश्लीलता है जो तू इतना चिढ़ रहा है ? 




 




हमने कहा- क्या सेलेब्रिटी है ? चार बच्चे लेकर पाकिस्तान से फरार हो गई । यहाँ अपनी सुनियोजित, चटखारेदार प्रेम कहानी बेच रही है । लोग प्रकारांतर से इसमें एक प्रकार का सुख अनुभव करते हैं और उसके चेनल से जुड़ जाते हैं । लाखों की कमाई हो रही है । सचिन और सीमा तथा परिवार वालों की बैठे बिठाए मौज हो गई । 


बोला- ऐसा नहीं है मास्टर, किसी के प्रेम का मजाक नहीं उड़ाते । देखा नहीं, कितनी श्रद्धा भक्ति से राधे-राधे बोलती है, करवाचौथ मनाती है, किस शान से हिन्दू सुहागिनों वाले सोलह शृंगार करती है, सुना है राम मंदिर भी हो आई है । काँवड़ भी ले आई हो तो पता नहीं और एक तू  कैसा ब्राह्मण हिन्दू है जो सीकर के स्थानीय गणेश मंदिर तक में छप्पन भोग का प्रसाद लेने नहीं गया । 


हमने कहा- यह नाटक है । तुझे पता होना चाहिए कि जैसे साहित्य में विरोधाभासों में नायक नायिका का व्यक्तित्व और सौन्दर्य निखरता है वैसे ही इस नाटक के चलते ही किसी भी मुसलमान के घर पर बुलडोजर चलवा  देने वाले योगी जी ने या गोली मरवा देने वाले अनुराग ठाकुर ने  घुसपैठिनी होने पर भी इसे पाकिस्तान जाने के लिए नहीं कहा ।  


बोला- यह नाटक नहीं है । हमारी संस्कृति में नारियों की पूजा होती है, उन्हें सब धर्मों से अधिक इस धर्म में सम्मान मिलता है । सीमा हैदर को भी हिन्दू धर्म में सुख-सम्मान मिला है इसीलिए वह किसी भी सूरत में पाकिस्तान नहीं जाना चाहती ।

 

हमने कहा- हिन्दू धर्म में नारी के सम्मान के उदाहरण तो आजकल महाराष्ट्र से बंगाल तक घमासान मचाए हुए हैं । वास्तव में सब धर्मों में नारी को एक वस्तु समझा जाता है, मुर्गी की तरह । अगर  पुरुष किसी और धर्म की स्त्री को ले आए तो कोई बात नहीं । उसे धर्म का फायदा माना जाता है लेकिन अपने धर्म की कोई लड़की किसी अन्य धर्म वाले से शादी कर ले तो घाटा अनुभव होता है । इसीलिए किसी भी तथाकथित राष्ट्रभक्त हिन्दू ने आज तक यह माँग नहीं की कि विभाजन के समय बहुत से हिंदुओं ने जिन मुसलमान स्त्रियों को अपने घर में रख बसा लिया था उन्हें और उनकी संतानों को पाकिस्तान भेजा जाए । मुर्गी-बकरी का कोई धर्म नहीं होता, वे खाद्य पदार्थ समझी जाती हैं । 


तोताराम, हमें तो लगता है कि सीमा हैदर का जो जलवा है उसे देखते हुए कहीं वह उत्तराखंड या आसाम की मुख्यमंत्री न बन गई हो । 


बोला- मास्टर, क्या बकवास करता है । जिस तरह रमेश विधूड़ी ने संसद में दानिश अली को कटुआ, मुल्ला, भड़ुआ कहा और भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया उसको देखते हुए ऐसा कैसे संभव हो सकता है ? 


हमने कहा-सब कुछ हो सकता है । अब जब हरियाणा में फँस गए तो दिया नहीं क्या दो मुसलमानों को भाजपा ने टिकट !  मोदी जी ने शिवाजी की मूर्ति के गिरने पर माफी मांगी नहीं क्या ? 


बोला- सहानुभूति वोट पाने के लिए खुद को मिली गालियां गिनाना, खुद को गरीब और पिछड़ा बताना पड़ता है । क्या माफी मांगते समय मोदी जी के चेहरेऔर शब्दों से ऐसा कुछ लगा ? लग रहा था वे किसी को चेलेंज दे रहे हैं ।यह नमकहराम फिल्म में अमिताभ बच्चन की माफी जैसा ही था । 

लेकिन कुछ भी हो तेरी यह सीमा हैदर के उत्तराखंड या आसाम की मुख्यमंत्री बनने वाली बात बहुत दूर की कौड़ी है । ऐसी गप्प तो पुराणों में भी नहीं चलती ।


हमने कहा- तोताराम, यह कहने का एक स्टाइल है । श्रेष्ठ साहित्य में इसी तरह से बात कही जाती है । यह व्यंजना का मामला है । लालू, अटल और मोदी चालीसा लिखने वाले तुक्कड़ चारणों को यह व्यंजना समझ नहीं आ सकती  है । 


बोला- तू समझा तो सही । 


हमने कहा- जो व्यक्ति मूल रूप से जो होता है उसे उस रूप को अनावश्यकरूप प्रदर्शित करने की जरूरत महसूस नहीं होती । बस की छत पर चढ़कर यात्रा करने वाले को जब हवाई यात्रा करने का मौका मिल जाता है तो वह ज़िंदगी भर अपने बैग से एयर इंडिया या किंग फिशर या इंडिगो का टैग लटकाए घूमता है ।अगर किसी  ऐसे व्यक्ति को अमरीका या योरप जाने का संयोग मिल जाए तो फिर अपनी हर बात  ‘व्हेन आई वाज इन यू के ..’  से शुरू करता है । जिसे अपनी हाइट की कमी की कुंठा होती है वह कुछ ज्यादा ही आसमान देखता हुआ चलता है । नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है । नकली ब्राह्मण बार बार पेशाब जाता है और देर तक जनेऊ कान पर टाँगे फिरता है । जितना बड़ा धूर्त, उतना लंबा तिलक । जिसको कभी भरपेट रोटी न मिली हो वह दो पैसे आ जाएं तो अंबानी की तरह धन का भोंडा प्रदर्शन करता है । सड़कों पर जब तब फुल वॉल्यूम में डी जे कौन बजाते हैं यह बताने की जरूरत नहीं । 


हिमन्त बिस्वा मुसलमानों को किसी भी आर एस एस वाले से अधिक गाली देता है क्योंकि वह मूलतः संघी नहीं है । वह खुद को सच्चा और श्रेष्ठ संघी दिखाने के लिए ऐसा कर रहा है । ऐसे ही उत्तराखंड वाला धामी पार्टी में प्रमोशन पाने के लिए हिन्दुत्व के अनावश्यक नाटक कर रहा है । सीमा हैदर और धामी-हिमन्ता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । एक तरह की कुंठा के दो चेहरे हैं । 


अब सीमा हैदर पर कंगना या अक्षय कुमार की किसी फिल्म की घोषणा होने वाली है । नाम होगा- हिन्दुत्व की दीवानी । 


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Sep 4, 2024

कौन सी पेंशन ?


कौन सी पेंशन ?   


कई दिनों से बेतरतीब बारिश हो रही थी । बरामदे में बैठने का कोई सिस्टम ही नहीं जम रहा था । आज मौसम खुला हुआ था तो हमने बरामदे की सफाई कर दी । न सही कहीं का काशी या किसी महाकाल का कॉरीडोर लेकिन साफ होने से एक दिव्यता सी झलकने लगी । बैठने के लिए रखी रहने वाली दोनों स्टूलें हटाकर दो पुराने तौलिए धोकर बिछा दिए । और एक ए फोर के सफेद कागज पर सूचना लिखकर दीवार टाँग दी ।    


अभी हम बरामदे में ही थे कि तोताराम प्रकट हुआ । कुछ देर नीचे खड़ा हुआ ही देखता रहा और फिर बोला- ‘बरामदा विष्ठा’ की इस सजावट का कारण ? क्या मोदी जी आने वाले हैं या राहुल गांधी ? 


हमने कहा- राहुल गांधी का कोई ठिकाना नहीं । कब, कहाँ टपक पड़े । घर पर अंबानी शादी का न्यौता देने घर पर आए हुए थे और बंदा पहुँच गया पूर्वी दिल्ली के गुरु तेगबहादुर नगर के राज मिस्त्रियों-मजदूरों के बीच । जाना था सुल्तानपुर और बीच में ही रामचेत की गुमटी पर बैठ गया । उसका कोई ठिकाना नहीं इसलिए उसके लिए किसी तैयारी का भी कोई अर्थ नहीं । 


‘तो फिर मोदी जी आ रहे हैं’ - तोताराम ने उत्सुकता से पूछा । 


हमने कहा-  अवसर ही ऐसा है, आ तो सकते थे लेकिन आज वे राजनाथ सिंह, नड्डा आदि के साथ पार्टी कार्यालय में सदस्यता फॉर्म भर रहे हैं । हम उसी अभियान को यहाँ मनाएंगे । देख नहीं रहा दीवार पर लगा पोस्टर ।

 

‘संगठन पर्व सदस्यता अभियान 2024’    


बोला- लेकिन इसकी क्या जरूरत आ पड़ी ? इन सब का तो संघ से गर्भनाल से जुड़ा रिश्ता है जो अटूट है ।हो सकता है बाद में भाजपा में आए लोग इधर-उधर हो जाएँ लेकिन संघ के स्वयंसेवक तो कभी अलग हो ही नहीं सकते जैसे अंगुलियों से नाखून । प्रधानमंत्री बनने के बाद भी भले ही खुद को 140 करोड़ का प्रधानमन्त्री बताएं लेकिन रहते हैं वे संघ के स्वयंसेवक ही । फिर चाहे वे अटल जी हों या आडवाणी जी या फिर मोदी जी । और तोताराम ने प्रमाणस्वरूप अपने स्मार्ट फोन में मोदी जी का गणवेश धारण किए हुए एक फ़ोटो दिखा दिया । 


    




तोताराम ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- लेकिन इस सदस्यता अभियान की यहाँ क्या जरूरत है ? यह कोई पार्टी कार्यालय थोड़े है ? और फिर हम तो सरकारी कर्मचारी हैं । हम किसी पार्टी के सदस्य नहीं बन सकते । हमारी प्रतिबद्धता संविधान के प्रति होती है । पार्टियां आती-जाती रहती हैं लेकिन संविधान इस देश का सनातन धर्म है जो नागरिक होने के साथ ही हम पर आयद हो जाता है ।


हमने कहा- तोताराम, वे सब पुरानी और रूढ़ नैतिकता की बातें हैं । सुना नहीं, आजकल तो सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में जाने के लिए छूट ही नहीं दे दी है बल्कि उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है । विश्वविद्यालयों में संघ की शाखाएं लगाई जा रही हैं । 


बोला- लेकिन गैस, डीजल, पेट्रोल, दूध सभी को एक ही भाव मिल रहा है फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू, कांग्रेसी हो या भाजपाई । अटल जी द्वारा आविष्कृत और अब मोदी जी द्वारा संशोधित लेकिन घाटे वाली पेंशन सभी पर लागू हो रही है या नहीं ? लेकिन हम तो 2004 से पहले ही रिटायर हो गए तो चलो बचे हुए हैं इस ओ पी एस, एन  पी एस, यू पी एस के झंझट से । 


हमने कहा- फिर भी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ने के फायदे तो हैं  ही । लेटरल एंट्री के नाम से संघ के लोगों को बड़े बड़े पदों पर बैठाया जा रहा है । जजों तक को  राज्यसभा की सदस्यता का लालच देकर मनमाने फैसले लिखवाए जा रहे हैं ।कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधाराओं के लोगों को विश्वविद्यालयों का कुलपति बनाया जा रहा है । इसी दृष्टि से पाठ्यक्रम बदला जा रहा है । ऐसे ही लोगों को संचालन के लिए सैनिक स्कूल दिए जा रहे हैं । अब तो बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों की तरह कार सेवकों को 20-20 हजार रुपया पेंशन दी जा रही है । 


हमने कहा- सरकार चाहे तो नई नई पेंशन देना ही क्या चाहे तो किसी की नौकरी 25-30 साल बाद मिलने वाली पेंशन बंद भी कर सकती है ।अभी तो विकल्प दे रही है लेकिन कुछ दिनों बाद अपनी मर्जी से किसी को भी, किसी भी प्रकार की पेंशन में डाल सकती है ।


बोला-  ऐसे कैसे हो सकता है ?


हमने कहा- वैसे ही जैसे कोरोना के टीके के नाम पर 18 महिने का डी ए खा गए । किसी ने क्या कर लिया ? और तुझे पता है इस बार की पेंशन में 3% डी ए भी नहीं जुड़ा है । लगता है वह भी खा गए हैं ।


बोला- लेकिन अब कौनसी प्राकृतिक आपदा चल रही है ?


हमने कहा- तुझे पता नहीं ? राम मंदिर और नई संसद टपक रहे हैं, राम पथ और अटल सेतु धँसक रहे हैं, बिहार में रोज पुल गिर रहे हैं । और अब तो महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति भी गिर पड़ी । इन सब की मरम्मत, भरपाई कहाँ से करेंगे मोदी जी ? हमारा डी ए खा जाने के अलावा और चारा ही क्या है ?

 

खैर चल। हम तेरे सामने तीन अंगुलियां करते हैं । तू इनमें से एक अंगुली पकड़ । उसके आधार पर तय करेंगे कि कौन सी पेंशन आप्ट करें ? ओ पी एस, एन पी एस या यू पी एस । 


बोला- मैं तो एम पी एस आप्ट करूंगा । 


हमने पूछा- यह एम पी एस क्या है ? ऐसी तो कोई स्कीम है ही नहीं । कहीं मोदी जी ने अपने नाम से कोई ‘मोदी पेंशन स्कीम’  तो शुरू नहीं कर दी ? 


बोला- नहीं, यह ‘माधवीपुरी पेंशन स्कीम’ है । सेबी प्रमुख माधवी पुरी जिसे अंतिम वेतन से दोगुना  पेंशन मिलती है ।



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