Jan 31, 2013

तोताराम का विषपान

तोताराम का विषपान

आज तोताराम जैसे ही आया, चबूतरे पर बैठने की बजाय हमें घसीटते हुए अंदर कमरे में ले गया और जेब से एक छोटी सी शीशी निकालते हुए कहने लगा- बंधु, जीवन भर का कहा-सुना माफ़ करना, और बस अंतिम बार गले मिल ले । थोड़ी देर की बात है, कुछ देर मेरे मुँह से झाग निकलेंगे लेकिन तू घबराना मत । और न ही किसी डाक्टर को बुलाना । मैं यह पत्र छोड़ जाता हूँ । कोई झंझट पड़े तो दिखा देना । और उसने हमारे हाथ पर एक कागज का टुकड़ा रख दिया । हमने ध्यान से पढ़ा- लिखा था- मैं अपनी मर्जी से देश के लिए विषपान कर रहा हूँ । इसमें किसी की कोई गलती नहीं है ।

हमने उसके हाथ से वह छोटी सी शीशी छीन ली और उसे डाँटते हुए कहा- मूर्ख मत बन । अभी तीन साल ही की तो बात है । नया पे कमीशन आएगा । चल, बैठकर उसका हिसाब लगाते हैं । और फिर उस शीशी को ध्यान से पढ़ा । उस पर लिखा था-चूहे मारने का अचूक ज़हर जिसकी डेट भी एक्सपायर हो चुकी थी । हमने कहा- पहले तो यह बता तू लाया कहाँ से ? हालाँकि तू इस देश में चूहे से ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन ध्यान रख जैसे कपास के कीड़े कीटनाशक से नहीं मरे थे वैसे ही तुझे भी कुछ नहीं होगा । बिना बात दस्त-उलटी होंगे और परेशान होगा । और फिर देश के लिए जहर पीने की ज़िम्मेदारी नेताओं की है जो सत्ता सुख भोगते हैं । हमारे लिए तो यह जीवन ही क्या कम ज़हर है ?मदर इण्डिया का गाना याद नहीं-

दुनिया में जो आए हैं जीना ही पड़ेगा ।
जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा ।।

वह बोला- क्या देश के लिए ज़हर पीने की ज़िम्मेदारी केवल नेताओं की ही है? हमें भी तो उनका साथ देना चाहिए । वे सब अपने परिवार के साथ पी रहे थे । मैं नज़र बचा कर एक उठा लाया । और फिर किसने जहर नही पिया- शिव, सुकरात, मीरा । और अमर हो गए । सो मर गए तो ठीक, नहीं तो अमर हो जाएँगे ।

हमने बात बदलते हुए कहा- क्या तेरे परिवार में किसी ने सत्ता का सुख लिया है ? इस देश में सत्ता का ज़हर वही पीएगा जिसके लिए कुर्सी तैयार है । सब के अपने-अपने बेटे-बेटियाँ और पत्नियाँ हैं । जिनके आगे-पीछे कोई नहीं हैं वे खुद ही सारा ज़हर पी रहे हैं जैसे ममता, जयललिता और माया । उनसे बचेगा ज़हर तो तेरा नंबर आएगा । शिव, मीरा और सुकरात की बात मत कर । उन्होंने सत्ता को त्यागने का ज़हर पिया था । आजकल सत्ता प्राप्त करने के लिए ज़हर पिया जाता है । चाहे कैसे भी मर, तुझे या तेरे बेटों को सत्ता तो मिलने से रही । बिना बात क्यों हम सबको फँसाता है । बिना बात पेंशन आधी हो जाएगी । जीने की सोच, अपने लिए तो अपनी पेंशन ही सत्ता है जो जीने पर ही मिलेगी । सो सत्ता का नहीं पेंशन का ज़हर पी ।

हमने शीशी को नाली में फेंक दिया । तब तक पत्नी चाय ले आई ।

३०-०१-२०१३


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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