सारी दुनिया उम्र घटाने के फार्मूले के चक्कर में बावली हो रही है । कोई बाल ट्रांसप्लांट करवा रहा है, तो कोई विग लगवा रहा है और बाल रँगना तो एक सामान्य दैनिक काम हो गया है । कोई च्यवनप्राश खा रहा है तो कोई वियाग्रा आज़मा रहा है । कोई यह कह कर ही धोखा दे रहा है कि उम्र नहीं मेरा दिल देखो जो बुढ़ापे में भी उतना ही लम्पट है जितना कि किसी जवान का होता है । कोई अपने चेहरे की खाल खिंचवाकर झुर्रियाँ निकलवा रहा है । कोई सत्तर पार करके भी चेलियों पर पराक्रम दिखा रहा है । कई लेखक और लेखिकाएँ रचना के साथ अपने ज़वानी के फोटो भेज कर भ्रम फैला रहे हैं । बहुत से तो जन्म की तिथि लिखते हैं, वर्ष नहीं ।
इसका एक और विचित्र पहलू भी है । जब आप किसी तरह भी अपनी उम्र को छुपा नहीं सकते तो अपनी उम्र इतनी अधिक बताते हैं कि लोग फिर भ्रम में पड़ जाएँ कि बुड्ढा नब्बे साल की उम्र में भी साठ जितना कड़क लगता है । तभी उम्र के बारे में कहा गया है-
साधू कहे बढ़ाय कर, रंडी कहे घटाय ।
आज आते ही तोताराम ने पूछा- तेरे पास लेडी गा-गा का पता है क्या ? आज ही एक समाचार पढ़ा है कि कोई गाने वाली है- नाम है लेडी गा-गा । उम्र है २७ वर्ष । कहती है- नशा करने के बाद मैं अपने आप को १७ वर्ष की अनुभव करती हूँ । मतलब कि एक ही डोज़ में बालिग से नाबालिग । अच्छा हुआ, एक और डोज़ नहीं ली अन्यथा ७ वर्ष की हो जाती हालाँकि बलात्कार से तो उस शिशु अवस्था में भी बच पाने की गारंटी नहीं होती । दस वर्ष का डिफरेंस । इतना तो रामदेव का भस्त्रिका प्राणायाम भी असर नहीं करता । फेयरनेस क्रीम भी गोरा बनाने में एक हफ़्ता लेती है ।
हमने कहा- तोताराम, हमें अब उम्र घटाने नहीं, ज़ल्दी से ज़ल्दी बढाने के बारे में सोचना चाहिए । अस्सी के होते ही पेंशन सवाई हो जाएगी । फिर भी यदि तू चाहे तो हम लेडी गा-गा से भी बढ़िया नुस्खा बता सकते हैं जो एक खुराक में ही ज़िंदगी भर काम करता है । यदि किसी को सेवन करने को मिल जाए तो एक क्षण में ही मरणासन्न बुड्ढा भी ईलू-ईलू करने लग जाता है । फिर चाहे यह नशा सरपंच, एम.एल.ए., एम.पी., मंत्री, महामहिम के पद का हो या आश्रमों के किसी गुरु-घंटाल का हो या किसी समाचारपत्र के मालिक का हो । किसी दवा-दारू का नशा इसके सामने क्या चीज़ है ? सामान्य नशा तो शाम को चढ़ा और सुबह होते ही 'वह पानी' मुलतान चला जाता है । पद का नशा तो भूतपूर्व होने पर भी कायम रहता है । देखा नहीं, एक महामहिम राजभवन से निकाले जाने के तीन वर्ष बाद भी एक पार्टी में एक रिपोर्टर से चिपकने लगे थे और कल ही एक भूतपूर्व एम.एल.ए. ने टिकट माँगने पर बस कंडक्टर की पिटाई कर दी ।
तोताराम ने आते ही प्रश्न किया- सोनिया गाँधी तुम्हारी क्या लगती है ?
हँसी के मारे लड़खड़ाते चाय के कप को बचाते-बचाते हमने कहा- यह बात आज पैंतालीस बरस बाद पूछता है ? यह तो उसी दिन तय हो गया था जब वे अपने राजीव भाई की दुल्हन बनकर भारत आई थी | हालांकि उन्होंने भारत की नागरिकता सन १९८३ में ली मगर इससे क्या फर्क पड़ता है | अपने छोटे भाई को ब्याही तो हो गई भारत की बहू | हम तो आज भी उसे घर की बड़ी बहू मानते हैं | तभी तो विश्वास करके चाबी सौंप दी और हो गए निश्चिन्त | अब यह उसकी समझदारी पर निर्भर है कि वह झूठे भक्तों से बचकर, भारत की सामान्य जनता के स्वभाव, आकांक्षा, अपेक्षा और सीमाओं को समझते हुए उनकी कितनी सेवा करती है |
तोताराम बोला- तो फिर यह सलमान खुर्शीद क्या राहुल की उम्र का है जो उन्हें माँ बता रहा है और अपनी ही नहीं सारे भारत की |
हमने कहा- तोताराम, इसे अभिधा में नहीं, लक्षणा में ले | महात्मा गाँधी और नेहरू क्या उम्र के हिसाब से बापू या चाचा थे | लोग तो उन्हें आदर और प्यार से इस नाम से पुकारते थे | सुभाष चन्द्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को गाँधी जी ने पसंद नहीं किया इसलिए सुभाष ने कांग्रेस छोड़ दी | लेकिन वे देश के लिए गाँधी जी का महत्त्व जानते थे और उनका सम्मान करते थे |उन्होंने गाँधी जी को सम्पूर्ण श्रद्धा से 'बापू' नाम से संबोधित किया और वह भी भारत से दूर | यही कारण था कि इसे सारे देश ने स्वीकार कर लिया | गाँधी जी सदैव के लिए देश के ही नहीं, सारी दुनिया के बापू हो गए | मगर तेरे खुर्शीद में न तो इतनी श्रद्धा है और न ही उस स्तर का व्यक्ति है कि देश इसे सुने | ऐसे लोग इंदिरा-कालीन देवकान्त बरुआ की श्रेणी में आते हैं जो अपने से ज्यादा मज़ाक अपने तथाकथित श्रद्धेय का उड़वाते हैं | ये मतलब के लिए गधे को बाप और बाप को गधा बनाने वाले लोग हैं | इनकी बातों से सस्ते मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं होना | ऐसे ही लोगों ने अटल, अडवाणी और वेंकैय्या नायडू को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा वसुंधरा राजे को दुर्गा का अवतार बताया था | ऐसे लोग अपने श्रद्धालुओं को ले डूबते हैं और खुद डूबती नाव छोड़कर और कोई किनारा देख लेते हैं |
बोर होते हुए तोताराम ने कहा- अच्छा, छोड़ इस पुराण को | घोड़ा खाए घोड़े के धणी को | तू तो यह बता यदि कोई अपने को सम्मानित और सम्बोधित करे तो किस तरह करेगा ?
हमने कहा- सत्तर से भी अधिक बरस ले लिए इस देवभूमि में रहते हुए और तुझे अब तक समझ नहीं आया कि भले और आम आदमी की हालत, यहीं क्या कहीं भी एक जैसी ही है | वह तो गरीब की जोरू है जिसे कोई भी छेड़ ले । बेचारी उम्र में कितनी भी बड़ी या छोटी हो मगर रहती है हर लफंगे की भाभी ही ।
आज तोताराम कागज़-कलम लेकर हाज़िर हुआ और आते ही जल्दी मचाने लगा कि हम झटपट गाँधी जी के नाम पत्र लिख दें । हमने समझाया- ऐसी क्या जल्दी है । अभी गाँधी जी कौनसा पाँच राज्यों के विधान-सभा के चुनावों में खड़े हो रहे हैं और कौनसा सर्वे में उनके जीतने की संभावना व्यक्त की गई है कि उन्हें मक्खन नहीं लगाया तो कोई बड़ा नुकसान हो जाएगा । अगर किसी और गाँधी को लिखने की बात होती तो समझ में आ सकती थी ।
तोताराम ने कहा- वह रिस्क मैं नहीं लेता । पता नहीं लगाने जाएँ मक्खन, और पड़ जाएँ लेने के देने । सुना नहीं, उत्तर प्रदेश में कुछ छुटभैये नेताओं को गाँधी परिवार की खुशामद में पोस्टर चिपकवाने के चक्कर में पार्टी से निलम्बित कर दिया गया । हमें तो उस बूढ़े की फ़िक्र है जिसके बारे में किसी को भी सोचने की फुर्सत नहीं है और यहाँ तक कि लोग जल्दी में उसके जन्मदिन को पुण्यतिथि तक लिख मारते हैं ।
हमने कागज-कलम थामा और पूछा - कहो, क्या लिखना है ?
बोला - कुछ खास नहीं, बस यह लिख दो कि भले ही अब वे फेवीकोल, शीला की जवानी, झंडू बाम या जलेबी बाई कुछ भी गाएँ लेकिन ‘ईश्वर-अल्ला तेरे नाम' नहीं गाएँ ।
हमने पूछा - इसमें क्या खराबी है ? ईश्वर, अल्लाह, गॉड, वाहे-गुरु सब उसी एक परवरदिगार, संसार के मालिक के नाम हैं । क्या फर्क पड़ता है ? बल्कि हम तो कहेंगे कि इससे भारत जैसे बहुधर्मी देश में राष्ट्रीय एकता और मज़बूत होगी ।
तोताराम ने कहा- छोड़ यह राष्ट्र की एकता की बात । इन्हीं बातों के चलते तो उस बुड्ढे को गोली मारी गई थी और अब नहीं समझाया तो वहाँ ऊपर भी 'ईश्वर अल्ला तेरे नाम' गाने पर कोई न कोई मलयेशियायी मुसलमान या इस्लाम का कोई और सच्चा अनुयायी उसकी खोपड़ी फोड़ देगा ।
हमने कहा- इसमें खोपड़ी फोड़ने की क्या बात है ? सभी धर्म यही मानते हैं कि ईश्वर एक है और सभी मनुष्य उसकी सन्तान हैं ।
तोताराम ने कहा- ये तर्क वहाँ चलते हैं जहाँ लोग आपस में बैठकर बातें करते हैं, समझते-समझाते हैं । धार्मिक आज्ञाएँ तो वैसे ही होती हैं जैसे कि किसी ने कहा- कौआ कान ले गया तो अपना कान संभालने की बजाय लोग कौए के पीछे दौड़ पड़ते हैं ।
हमने कहा- तोताराम, पहेलियाँ मत बुझा, साफ़-साफ़ बता कि यह ईश्वर-अल्लाह का चक्कर क्या है ?
हमने कहा- तोताराम, वह कौए के कान ले जाने वाली कहावत और किसी पर लागू हो न हो लेकिन तुझ पर ज़रूर लागू होती है । अरे, मलयेशिया में ईसाई लोग अपने गॉड के लिए 'अल्लाह' नाम का उपयोग करते हैं । इसके बारे में वहाँ के मुसलमान धार्मिक नेताओं का मानना है कि ईसाई पादरी 'अल्लाह' नाम से मुसलमानों को भ्रमित करके उन्हें ईसाई बनाना चाहते हैं । मुसलमान नेताओं की अपील को निचली कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया था । अब ऊपरी अदालत ने मुसलमान धार्मिक नेताओं की इस आशंका को सही मानते हुए यह फैसला दिया है कि ईसाई अपने धर्म प्रचार में 'गॉड' की जगह 'अल्लाह' नाम का उपयोग न करें । इससे अपने गाँधी जी को कोई खतरा नहीं है ।
तोताराम ने कहा- झारखंड में सरना नामक गैर-ईसाई समुदाय जैसी साड़ी, गहनों और नाक-नक्श में, एक चर्च में मदर मेरी और ईसा की लगाई गई । उस मूर्ति के बारे में सरना समुदाय ने विरोध किया कि मेरी और ईसा को उनकी देवी की शक्ल और परिधान में न दिखाया जाय, क्योकि इस तरह दिखाना उनके समुदाय को भ्रमित करके उन्हें ईसाई बनाने की एक चाल है । तब भारत के किसी कोर्ट या सरकार ने नोटिस क्यों नहीं लिया ?
हमने कहा- तोताराम, एक भारत ही तो सच्चा धर्म निरपेक्ष देश है ।
तोताराम ने यह कहते हुए हमारी बोलती बंद कर दी- मास्टर, हमारे इन तथाकथित धर्म-निरपेक्ष नेताओं से तो वे कट्टर या धर्म-सापेक्ष नेता और देश अच्छे हैं जो कम से कम झूठ तो नहीं बोलते । हमारे ये नेता तो वोटरों को ही नहीं, भगवान को भी धोखा देते हैं । ये न खुदा के हैं और न भगवान के और न ही गॉड के । ये दिल्ली की रामलीला में राम को तिलक करेंगे, अजमेर में चादर चढ़ाएँगे, इफ्तार की दावत देंगे, गुरुद्वारे में पगड़ी बँधवाएँगे लेकिन हर समय मन में अपने फायदे का गणित ही चलता रहेगा । यदि इनकी तलाशी ली जाए तो इनकी सबकी जेबों में सभी धार्मिक स्थानों से चुराए गए जूते-चप्पलें तक निकलेंगे ।
हम अपने को भाग्यशाली मानते हैं कि हमें उस भारत भूमि में जन्म लेने का सौभाग्य मिला जहाँ जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं । हालाँकि तोताराम हमारी इस बात से सहमत नहीं होता । बार-बार ऐसे उदहारण देकर सिद्ध करता रहता है कि भारत की बजाय योरप, अमरीका या आस्ट्रेलिया में जन्म लेना अधिक महत्त्वपूर्ण है । कहता है कि यदि इंग्लैण्ड में जन्म लिया होता तो गाँधीजी गोरे होते और उन्हें दक्षिणी अफ्रीका में ट्रेन से नीचे नहीं फेंका जाता, और न ही जार्ज फर्नांडिस, आडवाणी और अब्दुल कलाम की अमरीका में घुसने से पहले तलाशी होती । ब्रिटेन में जन्म लेने के कारण ही महारानी एलिज़ाबेथ को भारत आने के लिए न तो वीसा लेना पड़ता है और न ही उनकी कोई तलाशी ले सकता है । किसी भी पोप को राष्ट्राध्यक्ष का सम्मान मिलता है, तलाशी होना तो बहुत दूर की बात है जब कि शंकराचार्य अपने झंडे-डंडे लेकर किसी विदेशी धरती पर नहीं जा सकते ।
२२ अगस्त २०१३ को जब हमने ब्रिटेन के हाई कमिश्नर जेम्स बेवन का जामिया मिलिया में दिया यह वक्तव्य पढ़ा- ‘इसकी विकास की सम्भावनाओं और क्षमताओं के कारण इक्कीसवीं सदी में भारत में जन्म लेना लाटरी खुलने के बराबर है । और इस देश में आशावादी और खुश रहने के बहुत से कारण हैं’ । तो हमने तोताराम के सामने अखबार पटकते हुए कहा- ‘अब तो आया विश्वास कि जन्म लेने के लिए भारत दुनिया का एक सर्वश्रेष्ठ देश है’ ।
तोताराम ने अखबार एक तरफ पटका और पालथी मारकर खटिया पर बैठते हुए कहा- ज्यादा फूलने की ज़रूरत नहीं है । हालाँकि जेम्स बेवन ने इक्कीसवीं सदी में जन्म लेने की बात कही है लेकिन इतिहास देख और बता कि पिछले एक हजार वर्षों में भारत पर आक्रमण करके इसकी छाती पर सवार होने वाले तुर्क, मुग़ल, फ्रेंच, अंग्रेज, पुर्तगाली सब क्या भारत में जन्मे थे ? अरे, सब के सब विदेशी या विदेशियों की संतान थे । भारत में जन्म लेकर तो लोगों ने हजार साल तक इनकी गुलामी की है । और अब भी क्या भारत में जन्म लेने वाले स्वतंत्र हैं ? मेरे ख्याल से तो हम आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योरप में जन्मे गोरी-चमड़ी वालों के सामने ही बिछे चले जा रहे हैं । यह कोई अमरीका और इटली तो है नहीं कि वहाँ चुनाव लड़ने के लिए वहाँ का जन्मा हुआ ही होना चाहिए । इसीलिए हमारे यहाँ कहावत चली आ रही है – ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध’ ।
हमने कहा- तोताराम, हमारा तो अब भी यही मानना है कि भारत में जन्म लेने के फायदे तो हैं ही । ईसाई और मुसलमानों को किसी और देश में जन्म लेने पर न तो नौकरियों में आरक्षण मिलता है, न पढ़ने के लिए बिना कोई विशिष्टता हुए भी छात्रवृत्ति मिलती है और न ही हज के लिए सब्सीडी ।
तोताराम ने बात समाप्त करते हुए कहा- महंगाई भत्ते की इन सूखी हड्डियों के चक्कर में इस बार नहीं फँसना है क्योंकि ज़रूरी नहीं कि ब्राह्मण होने के बावजूद नौकरी मिल ही जाए और मनमोहन जी के चेले तब तक पेंशन का प्रावधान बचा रहने ही दें । अब तो भगवान से यह प्रार्थना कर कि मोक्ष हो जाए, फ़ाइल दाखिल-दफ्तर और हमेशा-हमेशा के लिए झंझट ख़त्म । न तो हम अल्पसंख्यक हैं, न दलित, न पिछड़े, न किसी धनबली-भुजबली और कुर्सीबली के कुलदीपक - कि जन्म के आधार पर ही मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल जाए । दुनिया में कब, कहाँ जन्म लेकर, किसकी-कैसे सेवा करनी है यह हिसाब इन जेम्स बेवनों, प्रिंस चार्ल्सों, बुशों, क्लिंटनों, राहुल गाँधियों, उमर अब्दुल्लाओं, अखिलेश यादवों, मिलिंद देवड़ाओं, सचिन पायलटों, सुखबीर सिंह बादलों, अभय चौटालाओं को लगाने दे ।