हम अपने को भाग्यशाली मानते हैं कि हमें उस भारत भूमि में जन्म लेने का सौभाग्य मिला जहाँ जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं । हालाँकि तोताराम हमारी इस बात से सहमत नहीं होता । बार-बार ऐसे उदहारण देकर सिद्ध करता रहता है कि भारत की बजाय योरप, अमरीका या आस्ट्रेलिया में जन्म लेना अधिक महत्त्वपूर्ण है । कहता है कि यदि इंग्लैण्ड में जन्म लिया होता तो गाँधीजी गोरे होते और उन्हें दक्षिणी अफ्रीका में ट्रेन से नीचे नहीं फेंका जाता, और न ही जार्ज फर्नांडिस, आडवाणी और अब्दुल कलाम की अमरीका में घुसने से पहले तलाशी होती । ब्रिटेन में जन्म लेने के कारण ही महारानी एलिज़ाबेथ को भारत आने के लिए न तो वीसा लेना पड़ता है और न ही उनकी कोई तलाशी ले सकता है । किसी भी पोप को राष्ट्राध्यक्ष का सम्मान मिलता है, तलाशी होना तो बहुत दूर की बात है जब कि शंकराचार्य अपने झंडे-डंडे लेकर किसी विदेशी धरती पर नहीं जा सकते ।
२२ अगस्त २०१३ को जब हमने ब्रिटेन के हाई कमिश्नर जेम्स बेवन का जामिया मिलिया में दिया यह वक्तव्य पढ़ा- ‘इसकी विकास की सम्भावनाओं और क्षमताओं के कारण इक्कीसवीं सदी में भारत में जन्म लेना लाटरी खुलने के बराबर है । और इस देश में आशावादी और खुश रहने के बहुत से कारण हैं’ । तो हमने तोताराम के सामने अखबार पटकते हुए कहा- ‘अब तो आया विश्वास कि जन्म लेने के लिए भारत दुनिया का एक सर्वश्रेष्ठ देश है’ ।
तोताराम ने अखबार एक तरफ पटका और पालथी मारकर खटिया पर बैठते हुए कहा- ज्यादा फूलने की ज़रूरत नहीं है । हालाँकि जेम्स बेवन ने इक्कीसवीं सदी में जन्म लेने की बात कही है लेकिन इतिहास देख और बता कि पिछले एक हजार वर्षों में भारत पर आक्रमण करके इसकी छाती पर सवार होने वाले तुर्क, मुग़ल, फ्रेंच, अंग्रेज, पुर्तगाली सब क्या भारत में जन्मे थे ? अरे, सब के सब विदेशी या विदेशियों की संतान थे । भारत में जन्म लेकर तो लोगों ने हजार साल तक इनकी गुलामी की है । और अब भी क्या भारत में जन्म लेने वाले स्वतंत्र हैं ? मेरे ख्याल से तो हम आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योरप में जन्मे गोरी-चमड़ी वालों के सामने ही बिछे चले जा रहे हैं । यह कोई अमरीका और इटली तो है नहीं कि वहाँ चुनाव लड़ने के लिए वहाँ का जन्मा हुआ ही होना चाहिए । इसीलिए हमारे यहाँ कहावत चली आ रही है – ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध’ ।
हमने कहा- तोताराम, हमारा तो अब भी यही मानना है कि भारत में जन्म लेने के फायदे तो हैं ही । ईसाई और मुसलमानों को किसी और देश में जन्म लेने पर न तो नौकरियों में आरक्षण मिलता है, न पढ़ने के लिए बिना कोई विशिष्टता हुए भी छात्रवृत्ति मिलती है और न ही हज के लिए सब्सीडी ।
तोताराम ने बात समाप्त करते हुए कहा- महंगाई भत्ते की इन सूखी हड्डियों के चक्कर में इस बार नहीं फँसना है क्योंकि ज़रूरी नहीं कि ब्राह्मण होने के बावजूद नौकरी मिल ही जाए और मनमोहन जी के चेले तब तक पेंशन का प्रावधान बचा रहने ही दें । अब तो भगवान से यह प्रार्थना कर कि मोक्ष हो जाए, फ़ाइल दाखिल-दफ्तर और हमेशा-हमेशा के लिए झंझट ख़त्म । न तो हम अल्पसंख्यक हैं, न दलित, न पिछड़े, न किसी धनबली-भुजबली और कुर्सीबली के कुलदीपक - कि जन्म के आधार पर ही मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल जाए । दुनिया में कब, कहाँ जन्म लेकर, किसकी-कैसे सेवा करनी है यह हिसाब इन जेम्स बेवनों, प्रिंस चार्ल्सों, बुशों, क्लिंटनों, राहुल गाँधियों, उमर अब्दुल्लाओं, अखिलेश यादवों, मिलिंद देवड़ाओं, सचिन पायलटों, सुखबीर सिंह बादलों, अभय चौटालाओं को लगाने दे ।
२३ अगस्त २०१३
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