Sep 19, 2016

लोगन राम खिलौना जाना

 2016-09-15 लोगन राम खिलौना जाना 

कोई भी रचनाकार अपनी रचना का सन्देश या कविता का मंतव्य लिख कर नहीं जाता |यह भी ठीक है कि उस पर अपने काल और परिवेश की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का प्रभाव भी रहता है लेकिन वह अपनी कल्पना और बिम्ब विधान से जिस मानव-मन की असीमित और नित नूतन किन्तु साथ ही पुरातन दुनिया में भी पाठक को ले जाता है |इसलिए हर पाठक उसमें अपने अनुसार कल्पना की गुंजाइश पा जाता है और अपने अनुसार उसके अर्थ से साक्षात्कार करता है और आनंदित होता है | इसी अर्थ में हर श्रेष्ठ रचना किसी काल विशेष की होते हुए ही  कालजयी और कालातीत भी होती है |

हो सकता है कि हम अपने प्राचीन ग्रंथों के काल निर्धारण में कुछ भूल कर जाएँ या उससे संबंधित विवाद में उलझ जाएँ लेकिन यह भी सच है कि बहुत समय तक उन्होंने हमारे मन को गढ़ा है, रचा है और आज भी किसी न किसी रूप में हमारे अवचेतन को साहित्य और सृजन के वे रूप प्रभावित करते हैं |हम यहाँ उस सृजन और उसके पठन की उस वर्ग की दृष्टि से बात कर रहे हैं जो निरपेक्ष और निःस्वार्थ है, किसी भी पूर्वाग्रह को लेकर नहीं चलता है |पढ़ते और उसका आनंद लेते समय उसके मन में कहीं भी, किसी भी प्रकार का ओछापन नहीं होता |वह विशाल हृदय और विराट चिंतन के साथ सृजन के इस अतल जल में उतरता है |

आज इस दृष्टि से न तो लोग उस प्राचीन सृजन को पढ़ रहे हैं और न ही उसका आनंद ले रहे हैं | आज तो अधिकतर तथाकथित पाठक पहले से कोई न कोई बहुत ओछी अवधारणा लेकर उन्हें पढ़ना शुरू करते हैं और आनंद और मानव-मन के विचित्र लोक में उतरने की बजाय कोई न कोई पूर्व नियोजित अर्थ या निष्कर्ष लेकर आते हैं | जब धर्म और राजनीति का गठजोड़ हो जाता है जो कि प्रायः हो ही जाता है, तो फिर उसकी ज़द में सभी धर्म ही नहीं, धर्म, नीति, मानव-जीवन और  चिंतन का सभी पुराना सृजन भी जाता है |

आजकल ऐसे लोगों द्वारा कोई नया सृजन कर सकने की कमी को पुराने सृजन के साथ छेड़छाड़ करके पूरा किया जाता है |अभी किसी अक्षत वर्मा की महाभारत के पात्रों को प्राचीन वेशभूषा में दिखाते हुए द्रौपदी के बँटवारे के द्वंद्व को बड़े फूहड़ और मजाकिया ढंग से दिखाया गया है जो किसी भी रूप में हमें उस समस्या की गहराई तक नहीं ले जा सकता | वह युधिष्ठिर को मात्र एक घटिया जुआरी तक दिखाने में ही विश्वास करता है |खैरियत है कि इसमें कृष्ण नहीं है अन्यथा उसकी भी दुर्गति कर दी जाती | बहुत कुछ ऐसा है जो पढ़ने और कल्पना का ही विषय हो सकता है और कुछ मात्र दिखाने का ही | इन दोनों विधाओं का अपना महत्त्व है और अपनी-अपनी सीमाएँ भी |लगता है, आजकल दोनों विधाएँ अपनी-अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करने की बजाय एक दूसरे का अतिक्रमण करने में अपना विकास और वर्चस्व खोज रही हैं |

अभी एक और चुनावी विज्ञापन आया है- भाजपा अध्यक्ष ने वामन जयंती पर लोगों को बधाई देते हुए एक पोस्टर प्रकाशित किया है जिसमें वामन को बलि के सिर पर पैर रखे हुए दिखाया गया है और साथ में खुद का फोटो भी है इन दोनों से बड़ा |मतलब यह इन दोनों के बहाने खुद को किसी न किसी रूप में स्थापित करने का प्रयत्न है |यह किसी भी तरह केरल के लोगों की खुशी में शामिल होने का उपक्रम तो कतई नहीं है |आजतक न तो विद्यालयों में वामन जयंती मनाई गई, न ही कभी वामन जयंती की छुट्टी हुई |फिर यह वामन जयंती कहाँ से ले आए ? क्या इस अवसर पर ओणम की बधाई नहीं दी जा सकती थी ? और चित्र भी क्या पारंपरिक वेशभूषा में सजी धजी,फूलों की रंगोली बनती महिलाओं का नहीं हो सकता था ?  यह कहीं भी केरल के लोगों की ख़ुशी में शामिल होने के इरादे से किया विज्ञापन नहीं है  | इसके बहाने केरल के समरस जीवन में वैमनस्य और व्यर्थ का कोई विवाद फ़ैलाने का षडयंत्र अधिक नज़र आता है |

यह ठीक है कि कथा में बलि का पाताल में चले जाने का वर्णन कथा में आता है लेकिन कथा में आना और इस प्रकार उसके सिर पर वामन का पैर रखे चित्र, हो सकता है उन्हें अपने राजा, जिसकी वे पूरे वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं और उसकी प्रसन्नता के लिए अपनी खुशियों और वैभव का प्रदर्शन करते हैं कि उनका राजा उन्हें देखकर प्रसन्न हो तो ऐसे में उन्हें बधाई देने का यह तरीका उचित नहीं कहा जा सकता |इससे पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के अध्यक्ष और तथाकथित मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को कृष्ण के रूप में चीर बढ़ाते हुए दिखाया गया और अन्य पार्टियों के नेताओं को जनता रूपी द्रौपदी का चीरहरण करते हुए दिखाया गया था |

अपने छोटे और घटिया स्वार्थों के लिए प्राचीन प्रतीकों और आस्था बिन्दुओं का दुरुपयोग करने पर  चुनाव आयोग और अदालत की ओर से प्रतिबंध होना चाहिए | इसी तरह से प्राचीन पुस्तकों और व्यक्तियों पर भी बात हो तो वह कानूनी और अकादमिक स्तर पर होनी चाहिए |किसी भी ऐरे-गैरे को इनका अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए मनमाना दुरुपयोग करने की छूट नहीं होनी चाहिए |वे हमारे अध्ययन और चिंतन मनन के विषय होने चाहिएँ न कि घटिया मनोरंजन और स्वार्थ-सिद्धि के |ऐसे ही बहुत से विज्ञापन और तमाशे समय-समय पर होते रहते हैं जैसे धोनी को विष्णु के रूप में दिखाना, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सी.ई.ओ. को विष्णु के रूप में दिखाना या अभी एक ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी 'मिन्त्रा' ने जन्माष्टमी पर अपने विज्ञापन में कृष्ण का उपयोग किया था |जब हमारे राजनीतिक और व्यापारी अपने फायदे के लिए इनका तमाशा बनाएँगे  तो किसी और को भी यह तमाशा बनाने से हम नहीं रोक सकते  |

ऐसे कृत्य व्यर्थ में शांत पानी में पत्थर फेंकना है |

ऐसे लोगों के लिए ही कबीर जी ने कहा था-
लोगन  राम खिलौना जाना |


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