सर्वोच्च न्यायालय की ज़रूरत
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर का दर्द भरा वक्तव्य पढ़ा तो बड़ा दुःख हुआ |सबसे बड़े न्यायाधीश, जिनका फैसला भगवान के फरमान की तरह होता है |नाम जगत का ईश |पहले हम खेहर नहीं केहर अर्थात सिंह समझ रहे थे लेकिन ये खेहर निकले |लेकिन कोई बात नहीं, दो सिंह नहीं, एक ही सही |वैसे तो खालसा एक ही सवा लाख के बराबर होता है |
बोले- कोई वकील गलती करे तो भी सारी जमात उसके साथ खड़े होकर जजों को धमकाने लगती है |
खेहर साहब से तो मिलना संभव नहीं सो तोताराम से ही कहा- देख, तोताराम क्या ज़माना आगया है ? वकील जज को धमका रहे हैं |
बोला- ऐसा ही होता है |चल आज तेरा ही एक शे'र सुना देता हूँ-
जुटे झूठ से साथ पचासों
सच के सँग ना पाँच भगत जी |
सच्चा आदमी किसी को क्या दे सकता है ? बल्कि वह तो अपनी सच्चाई और ईमानदारी के नशे में रहता है जब कि झूठा, अपराधी सबसे मिलकर चलता है |थानेदार को खुश करने के लिए चोर ही तो कुछ खर्च कर सकता है |नौकरी वाला ईमानदार अपनी तनख्वाह में से घर चलाए या नेता जी और थानेदार जी को खुश करे |और फिर आजकल अधिकतर वकील नेता भी हैं जो पता नहीं कब मिनिस्टर बन जाएँ और न्यायाधीश जी को ही नसीहत पिलाने लगें, उनके ट्रांसफर और पदोन्नति में टाँग अड़ाने लग जाएँ | और यदि सर्वेसर्वा हो जाएँ तो पता नहीं कब शाह बनो वाले केस की तरह सारी न्यायपालिका की ही मिटटी कूट दें |
हमने कहा- बेचारे दुःखी होकर बोले- ऐसे में बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट को ही बंद कर दें |
बोला- कोई बुराई नहीं है |अब न्यायालयों की कोई खास ज़रूरत रह भी नहीं गई है | कौन सी फिल्म कहाँ शूट होगी, होगी या नहीं, कौन क्या खाएगा, कौन किस पशु को कहाँ ले जा सकता है, कौन क्या पहनेगा, कौन किसके साथ शादी या प्रेम करेगा, कौन अपने धार्मिक स्थान पर लाउडस्पीकर लगाएगा, कौन कितने जोर से प्रार्थना करेगा, किसकी बरात घोड़ी और बैंड बाजे से निकलेगी, कौन कितना देशभक्त है जैसे छोटे-छोटे काम तक चलते-फिरते न्यायालय तय करने लगे तो फिर न्यायालयों को बंद कर देने से भी क्या फर्क पड़ेगा |हाँ, ये लाखों लोग जो न्याय के नाम पर जनता को धता बता रहे हैं वे ज़रूर बेकार हो जाएँगे लेकिन कुछ दिन बाद ये भी अपना कोई न कोई धंधा देख ही लेंगे |
हमने कहा- लेकिन तोताराम, फिर न्याय के नाम पर किसी मामले को बीस-तीस बरस लटकने और किसी को रात को तीन बजे कोर्ट खुलावाकर जमानत देने जैसे महान काम न्यायालय के बिना कौन करेगा ?
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर का दर्द भरा वक्तव्य पढ़ा तो बड़ा दुःख हुआ |सबसे बड़े न्यायाधीश, जिनका फैसला भगवान के फरमान की तरह होता है |नाम जगत का ईश |पहले हम खेहर नहीं केहर अर्थात सिंह समझ रहे थे लेकिन ये खेहर निकले |लेकिन कोई बात नहीं, दो सिंह नहीं, एक ही सही |वैसे तो खालसा एक ही सवा लाख के बराबर होता है |
बोले- कोई वकील गलती करे तो भी सारी जमात उसके साथ खड़े होकर जजों को धमकाने लगती है |
खेहर साहब से तो मिलना संभव नहीं सो तोताराम से ही कहा- देख, तोताराम क्या ज़माना आगया है ? वकील जज को धमका रहे हैं |
बोला- ऐसा ही होता है |चल आज तेरा ही एक शे'र सुना देता हूँ-
जुटे झूठ से साथ पचासों
सच के सँग ना पाँच भगत जी |
सच्चा आदमी किसी को क्या दे सकता है ? बल्कि वह तो अपनी सच्चाई और ईमानदारी के नशे में रहता है जब कि झूठा, अपराधी सबसे मिलकर चलता है |थानेदार को खुश करने के लिए चोर ही तो कुछ खर्च कर सकता है |नौकरी वाला ईमानदार अपनी तनख्वाह में से घर चलाए या नेता जी और थानेदार जी को खुश करे |और फिर आजकल अधिकतर वकील नेता भी हैं जो पता नहीं कब मिनिस्टर बन जाएँ और न्यायाधीश जी को ही नसीहत पिलाने लगें, उनके ट्रांसफर और पदोन्नति में टाँग अड़ाने लग जाएँ | और यदि सर्वेसर्वा हो जाएँ तो पता नहीं कब शाह बनो वाले केस की तरह सारी न्यायपालिका की ही मिटटी कूट दें |
हमने कहा- बेचारे दुःखी होकर बोले- ऐसे में बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट को ही बंद कर दें |
बोला- कोई बुराई नहीं है |अब न्यायालयों की कोई खास ज़रूरत रह भी नहीं गई है | कौन सी फिल्म कहाँ शूट होगी, होगी या नहीं, कौन क्या खाएगा, कौन किस पशु को कहाँ ले जा सकता है, कौन क्या पहनेगा, कौन किसके साथ शादी या प्रेम करेगा, कौन अपने धार्मिक स्थान पर लाउडस्पीकर लगाएगा, कौन कितने जोर से प्रार्थना करेगा, किसकी बरात घोड़ी और बैंड बाजे से निकलेगी, कौन कितना देशभक्त है जैसे छोटे-छोटे काम तक चलते-फिरते न्यायालय तय करने लगे तो फिर न्यायालयों को बंद कर देने से भी क्या फर्क पड़ेगा |हाँ, ये लाखों लोग जो न्याय के नाम पर जनता को धता बता रहे हैं वे ज़रूर बेकार हो जाएँगे लेकिन कुछ दिन बाद ये भी अपना कोई न कोई धंधा देख ही लेंगे |
हमने कहा- लेकिन तोताराम, फिर न्याय के नाम पर किसी मामले को बीस-तीस बरस लटकने और किसी को रात को तीन बजे कोर्ट खुलावाकर जमानत देने जैसे महान काम न्यायालय के बिना कौन करेगा ?
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