Jan 11, 2020

मफलर मैन



मफलर मैन


राजधानी तो राजधानी होती है |उसका इतिहास होता है, उसी का भूगोल भी होता है |उसी का सुख होता है और दुःख भी उसी का होता है |जब राजधानी को दस्त होते हैं तो देश को ईसबगोल लेना होता है |जब राजधानी को कब्ज़ होता है तो सारे देश को जुलाब दिया जाता है भले ही उसे चार दिन से खाना न मिला हो |बिना जाने-समझे जोर-जोर से उन नारों को लगाना होता है भले ही उनका अर्थ-अनर्थ, भाव-स्वभाव, सद्भाव-दुर्भाव नारे ईजाद करने वालों को भी न मालूम हो |

हमें रात को रजाई में भी ठण्ड लगी इसका कोई रोना-गाना नहीं है लेकिन यह पढ़ना पड़ता है कि आज राजधानी में ठण्ड ने पिछले १०० साल का रिकार्ड तोड़ दिया |राजधानी ने तो बलात्कारों के रिकार्ड भी तोड़ दिए, शिक्षण संस्थाओं में अनुशासन स्थापित करने की तीव्र गति और अपनाए गए नए-नए तरीकों के भी रिकार्ड तोड़ दिए |हम इस मामले में अधिक नाक नहीं घुसेड़ना चाहते क्योंकि कहीं रिकार्ड के साथ-साथ कोई हमारा सिर भी न तोड़ दे |

यह भी समाचार बन जाता है कि राजधानी ने आज किस रंग की जैकेट पहनी या किस रंग का कुरता पहना | वैसे हम देखते हैं राजधानी में सेवा करने वाले किसी सेवक को ठिठुरन नहीं हो रही है बल्कि जोश, गर्व और उत्साह में उबल रहे हैं और हमारा यह हाल है कि ‘राम-राम’ बोलते हैं तो लोगों कंपकंपी के मारे घर वालों को ’हाय-हाय’ सुनता है |अब दिसंबर के अंतिम और जनवरी के प्रारंभिक दिनों में रात का तापमान माइनस चार और दो डिग्री के बीच झूलता रहा लेकिन किसी सेवक ने हमारे लिए कोई गरमाहट भरा जुमला तक नहीं फेंका | 

कल दिन भर ठंडी हवा चलती रही |लगा ही नहीं कि दिन निकल आया |सूरज की नेता जैसी हालत हो रही थी जो अपने चुनाव क्षेत्र की बजाय राजधानी में अधिक दिखता है |हालाँकि अपने क्षेत्र में रह कर भी वह कितना उपयोगी होता है यह देश के हर भाग की जनता जानती है |

आज सुबह भी ठण्ड थी |साथ में ठिठुरन और हवा |खिड़कियों के अखबार लगा दिए हैं फिर भी ठंडी हवा घुसपैठियों की तरह खिड़कियों के साथ सेटिंग करके घुस ही आती है |रजाई के ऊपर कम्बल जोड़कर उसी तरह से दुबके बैठे थे जैसे नकाबपोशों या पुलिस के आने की खबर से विद्यार्थी लाइब्रेरी या अपने कमरों में जा छुपते हैं |अब यह बात और है कि वहाँ भी वे सुरक्षित नहीं रहते |

तभी गेट पर ठकठक की आवाज़ हुई |गेट लोहे का है इसलिए आवाज़ ज़रा ज्यादा होती है |लोहे के गेट की विशेषता यह है कि उस पर होने वाली चोट से उस पदार्थ का भी अनुमान हो जाता जिससे गेट ठोकने वाली वस्तु का निर्माण हुआ है |हमें लगा कि अच्छी किस्म की लकड़ी से बनी किसी चीज से गेट ठोका जा रहा है |आश्वस्त होने के लिए पत्नी से भी अनुमान लगाने के लिए कहा | वह बोली- मुझे तो लगता है जैसे कोई लोहे के पाइप या मोटे सरिये से ठोंक रहा है | 

हमने एन.आर. सी., सी. ए. ए., जे. एन. यू., सी. ए. बी. आदि किसी विषय पर अपना मुंह नहीं खोला था  | वैसे यह विषय ऐसा है जिसके बारे में इसकी घोषणा करने वाले भी नहीं समझ पाए इसलिए अब व्यक्तिगत रूप से और पुस्तिकाएँ बाँट-बाँटकर लोगों को समझा रहे हैं |ऐसे में हम कैसे इन विषयों पर बात कर सकते थे |किसी भी मुद्दे पर बात करने के लिए उससे नितांत अनभिज्ञ होना बहुत ज़रूरी होता |जानने के बाद तो व्यक्ति मौन हो जाता है जैसे कि ईश्वर, प्रेम और देश को जानने वाला |न जानने वाला ही अधिक चिल्लाता है |तभी कहा जाता है- नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है |यह कहावत तब की है जब प्याज आजकल जितना महत्त्वपूर्ण नहीं हुआ था कि जनता ही नहीं, सरकारों को भी रुला दे | फिर भी ज़माना खराब है |पता नहीं, कब किसे कोई भ्रम हो जाए या देशभक्ति का दौरा पड़ जाए और वह गर्वित और उत्साही हमारी कपाल क्रिया कर दे | 

हालाँकि हम डरे हुए थे लेकिन पत्नी के सामने यह कैसे स्वीकार कर लेते जैसे कि कोई सरकार कैसे मान ले कि आगामी चुनाव में वह सत्तर में से पाँच सीटें ही प्राप्त कर पाएगी |सो हमने पत्नी से कहा- हमें आज ठंड कुछ अधिक ही लग रही है इसलिए तुम ही जाकर देखो कि गेट पर कौन है ?

पत्नी गेट पर गई और साइड के सींखचों से झाँककर देखा और बोली- साफ़ दिखाई नहीं दे रहा है |कोई मफलर से मुँह ढंके दरवाजे पर खड़ा है |हाथ में लकड़ी का एक डंडा भी है |

हमें निश्चय हो गया कि कोई नकाबपोश ही है |जिन नकाबपोशों को सरे शाम राजधानी की पुलिस भी, न तो सहज भाव से घुसते समय देख और रोक सकी और न ही अपने कर्त्तव्य पूर्ण करके शांत भाव से टहलते हुए बाहर जाने के समय रोक सकी तो हमारे सीकर की पुलिस ही ऐसी कौन सी स्कोटलैंड की पुलिस है जो नकाबपोशों को ऐसी ठण्ड में सुबह-सुबह देख और रोक सकेगी |

हमने पत्नी से कहा- वैसे तो अपने पास हनुमान चालीसा है और थोड़ा-बहुत याद भी है लेकिन ये लोकतांत्रिक ‘भूत बाधा’ हैं | हनुमान चालीसा से नहीं वश में आएँगे |यदि तुझे याद हो तो ‘वन्दे मातरम..’, ‘जन गण मन….’,  ‘रामचन्द्र कृपालु भज मन…’ जैसा कुछ शुरू कर |हम भी पीछे-पीछे गा लेंगे |शायद कुछ लिहाज कर लें |यदि कोई कुछ पूछे तो कह देना- हम छपाक फिल्म भी नहीं देखेंगे |हम राजधानी की हर ‘ए बी सी डी’ का समर्थन करते हैं |  वैसे भी यदि गेट नहीं खोला तो क्या पता गेट ही तोड़ डालें |

पत्नी ने हिम्मत करके गेट खोला |गेट खुलते ही एक काँपती सी गुस्साई वाणी सुनाई दी- मास्टर,आठ बज गए और तू अभी तक सो रहा है |राष्ट्र खतरे में हैं, लोग उसके टुकड़े-टुकड़े करने पर तुले हुए हैं, राजधानी परेशान है और तू नेपोलियन की तरह तोप के साए में सो रहा है |

देश के बारे में तो हमें कुछ बोलने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि कोई भी हमारी देशभक्ति को चेलेंज कर देगा लेकिन नेपोलियन को मार गोली |यह बता कि आज तूने यह नकाब क्यों लगा रखा है ? और क्या आवाज़ नहीं लगा सकता था ? किसी होस्टल के कमरे के दरवाजे की तरह डंडे से गेट क्यों ठोंक रहा था ? जब से नकाबपोशों के बारे में सुना है हमारी तो साँस रुकी हुई है  |

बोला- मास्टर, हम तो वह पहलवान हैं जो बुढ़ापे में भी उतना ही शक्तिशाली है जितना जवानी में था |

हमने पूछा- मतलब ? इसमें पहलवानी कहाँ से आगई ?

बोला- मतलब कि मारपीट का यह पत्थर न जवानी में हमसे उठा और न ही बुढ़ापे में उठ रहा है |हम अब भी पहले जितने साहसी हैं | नकाब के अन्दर और नकाब के भीतर समान रूप से दब्बू हैं |अरे, जब जवानी में ही कोई तीर नहीं मारा तो अब इस संन्यास आश्रम में क्या नकाबपोशों की तरह लाठी, डंडा, सरिया चलाएंगे ?

हमने कहा- तो फिर इस मफलर, डंडे का क्या मतलब है ? हम तो डर ही गए थे |

बोला- बाहर निकलेगा तो पता चलेगा | ठंडी हवा चल रही है |अखबार में देख, पारा फिर शून्य से नीचे चला गया |बिना मफलर के मरना है क्या ? और जयपुर रोड़ पर एक कुत्ता पगला गया |पता नहीं कब पिंडली पकड़ ले ? इसलिए डंडा रखना भी ज़रूरी है |वैसे मैं जानता हूँ कि जब किसी पागल ने ठान ही लिया तो कोई डंडा- सरिया काम नहीं आएगा |पागलों से तो गाँधी तक नहीं बच पाए, मेरी तो औकात ही क्या ? 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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