May 3, 2020

दिल दा मामला है......



दिल दा मामला है....

लॉक डाउन में फँसे एक सुपर सीनियर सिटिजन को भोजन पहुँचाने के 'अर्द्ध सत्यीय  बहाने'  से तोताराम के पास इस जनता कर्फ्यू में भी जब चाहे, जहाँ चाहे जाने की सुविधा है |रोज सुबह तो आता ही है लेकिन आज तो शाम को भी आ धमका | 

हमने पूछा- क्या बात है, एक चाय से काम नहीं चलता क्या ? सरकार कोरोना के बहाने डीए फ्रीज़ करके ज़बरदस्ती पुण्य करवा रही है, ऊपर से तेरी चाय डबल हो गई |

बोला- इस समय चाय जैसी भौतिक बात नहीं है | आज तो 'दिल दा मुआमला है...'|

हमने कहा- क्या दिल शरीर से अलग होता है ?

'Dil Se Dil Tak' program with Sri Sri Ravi Shankar tomorrow at 5 pm, to discuss humanitarian with Karan Johar











बोला- हाँ | यह ठीक है कि दिल भी शरीर का एक भाग होता है और शरीर के बिना दिल के लिए कोई जगह भी नहीं होती |शरीर के बिना तो वह 'आत्मा'  हो जाता है |आत्मा होने के बाद तो उसकी शांति के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है क्योंकि आत्मा को भी शरीर के बिना कहीं टिकने के लिए जगह नहीं मिलती |जैसे हारे हुए या जिसके सपने अधूरे रह जाते हैं उस नेता ही की तरह जिसे जन-सेवा के लिए किसी न किसी पार्टी में घुसना ही पड़ता है उसी तरह आत्मा को भी शांति के लिए किसी काम के शरीर में घुसना ही पड़ता है जिससे वह फिर अपनी अशांति के काम करे और फिर लोग उसकी शांति के लिए कामना कर सकें |


हमने कहा- आत्मा के चक्कर में हमारा दिमाग मत चाट और जो कुछ बताना है वह स्पष्ट और शीघ्र बता |क्या दिल के इस मामले में कहीं तेरे दिल के इलाके में लगे स्टेंट में तो कोई समस्या नहीं आ गई ? या फिर गुरुदास वाला 'दिल दा मुआमला है....?'

'भाभी जी घर पर हैं' की तरह बोला- सही पकड़े हैं....|

हमने कहा- ये फ़िल्मी और टीवी सीरियल वाले सन्दर्भ छोड़ और साफ़-साफ़ बात कर |

कहने लगा- तेरी पहली बात ठीक है |यह गुरु और दिल दोनों से संबंधित है लेकिन गुरुदास मान जैसे किसी सामान्य नहीं बल्कि महान आध्यात्मिक गुरु, ट्रंप की तरह कहीं भी समझौता करवाने के लिए घुस जाने वाले डबल श्री जी की बात कर रहा हूँ |

हमने कहा-यमुना के किनारे हजारों कलाकारों का तमाशा जुटाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना ही लिया |उनके एक भक्त ने ५००० हजार व्यंजनों का तमाशा भी कर लिया और अब तो अयोध्या वाला मामला भी निबट गया |अब कौनसा मज़मा लगा रहे हैं ?

बोला- यह भारत है |यहाँ समस्याओं और मुद्दों की क्या कमी है ? लाखों धनवान, करोड़ों गरीब और अरबों देवताओं वाले देश में कहीं भी, कुछ भी करणीय मिल ही जाता है |

हमने पूछा- तो क्या अब देश के गरीबों के लिए, दिल की बीमारियों के लिए कोई नुस्खा लाए हैं ?

बोला- गरीबों को दिल के बारे में सोचने, विचार करने और चिंता करने का समय ही कहाँ है ? गरीबों के तो पेट वाला खड्डा भरने में ही दिन-रात और ज़िन्दगी निकल जाते हैं |गरीब की तो बेचारे की 'दिल की दिल में ही' रह जाती है |

हमने पूछा- तो फिर किसके दिल की बात कर रहे हैं ?

बोला- वैसे ही जैसे मोदी जी अपने 'मन की बात' करते हैं या जग्गी वासुदेव जी 'शिव के साथ :  एक रात'  कार्यक्रम करते हैं | डबल श्री जी यह  'दिल से दिल तक' का कार्यक्रम लेकर आए हैं | डबल श्री जी का 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' और फिल्म बिरादरी से जुड़े रचनात्मक कलाकारों के संगठन 'सोशियल इंटरफेस चेंज विदिन'  के साथ एक अनूठी इंटरएक्टिव सीरीज की  शुरूआत कर रहा है |आज शाम ५ बजे वे करण जौहर से बातचीत के साथ जन-हित के इस कार्यक्रम का पहला एपीसोड करेंगे |गुरु जी के अनुसार  दुनिया में कोई दस करोड़ लोग इससे लाभान्वित होंगे |

हमने पूछा- यह ठीक है कि करण जौहर आज के फिल्म जगत के बहुत प्रतिबद्ध बुद्धिजीवी और विचारशील व्यक्ति हैं |हमने मुकेश अम्बानी के यहाँ एक शादी में पीला कुरता और धूप का चश्मा लगाए शाहरुख से साथ नृत्य करते हुए उन्हें देखा था |तभी हमें अनुमान हो गया था कि यह आध्यात्मिक टाइप का बन्दा लगता है; बहुत दूर अक जाएगा | लेकिन डबल श्री जी ने बताया कि इस कार्यक्रम से दुनिया के कोई दस करोड़ लोग लाभान्वित होंगे जब कि अकेले भारत में ही १३५ करोड़ लोग हैं | ऐसे में भारत और दुनिया के शेष लोगों का क्या होगा ? उनके हित और कल्याण के बारे में कौन सोचेगा ?

क्या इस कार्यक्रम में कोरोना के चक्कर में किराए के घरों से बेघर हो चुके, नौकरी से हाथ धो चुके और राहत शिविरों में दयनीय परिस्थतियों में फँसे मजदूरों के लिए घर जा सकने या मेहनत-मजदूरी या रोटी-पानी की कुछ व्यवस्था का विधान है ? 

बोला- देखो, दुनिया में दो प्रकार के प्राणी होते हैं |एक दिल वाले जिन्हें रोटी-पानी, नौकरी-धंधे की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं होती |ये कोरोना में भी मज़े से अन्त्याक्षरी खेलते हैं, ताली-थाली बजाते हैं और दीये जलाते हैं | दूसरे ज़िन्दगी भर पेट तक ही सीमित रह जाने वाले नश्वर देहधारी प्राणी होते हैं जो रोटी-पानी के अतिरिक्त कुछ सोच सकने का अवसर ही जीवन भर नहीं पाते हैं |यह कार्यक्रम उन्हीं 'दिल वाले' संपन्न लोगों के लिए है |

हमने कहा- तो फिर हमें यह सूचना देने से क्या फायदा ? हम तो देह और पेट से ऊपर नहीं उठ सके हैं |

बोला- यह तेरी मर्ज़ी, कमअक्ली और दुर्भाग्य है |जब हर महिने दो रोटी खा सकने लायक पेंशन आ जाती है तो फिर जीता क्यों नहीं भावों की दुनिया में |

हमने कहा- हम तो भावों में ही जीते हैं |रोज सब्जी, अनाज के भाव सुनते हैं और सिर धुनते हैं |शेयर बाज़ार और सोने के भाव पढ़ते हैं और अपना नाम देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में न लिखे जाने की चिंता के कारण रात भर सोना हराम हो जाता है |

बोला- मैं इन संसारी दुनिया के भावों की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं सकारात्मक मनोभावों और भाववाचक संज्ञाओं की बात कर रहा हूँ जिन पर सिने जगत की हस्तियाँ डबल श्री जी से बात करेंगी और फिर डबल श्री जी के उत्तर सुनने के बाद सब 'आनंदम-आनंदम' हो जाएगा |वे भाववाचक संज्ञाएँ और उनसे जुड़े विषय हैं- जीवन, संबंध, समग्रता, परिवार, प्यार, सफलता, स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण, तनाव, नुकसान, आध्यात्मिकता, आशा और उत्साह।

हमने कहा- आज हमें दिल की नहीं इस नश्वर देह की चिंता है | पेंशनरों की डीए बंदी, बेकार हो चुके मजदूरों की कामबंदी, उद्योग-धंधों की नसबंदी और देश की घरबंदी से परेशान देश के पेट की चिंता है |हमें भरे पेट वालों की अन्त्याक्षरी की नहीं, खाली पेट वालों की अंतड़ियों की चिंता है |यदि तेरे इन डबल श्री जैसे संतों और करण जौहर जैसे बुद्धिजीवियों के पास इन भाववाचक संज्ञाओं के नाटकों से परे कोई जातिवाचक संज्ञा- 'रोटी' की बात हो तो वह बता |और रोटी की बात ही नहीं, उसकी संख्या, वज़न, विशेषताओं और खामियों की पक्की बात कर |भाववाचक संज्ञाओं में ज़िम्मेदारी से मुकरने और बच सकने की बहुत गुंजाइश रहती है जैसे कोई संत या सरकार कहे कि वह इस संकट के समय में देश के नागरिकों में सहयोग, विश्वास और उत्साह की भावना जाग्रत करने की प्रेरणा देने वाले कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने के प्रयत्न करने का प्रयास करेगी और उसके लिए दस हजार करोड़ रुपए का प्रावधान करेगी |तो तू कैसे तो इसकी सफलता-असफलता और फायदे नुकसान को मापेगा और कैसे कुछ समझेगा ?

बोला- लेकिन संतों का काम रोटी-रोजी वाला काम थोड़े ही है |वे तो लोगों की आत्मा का कल्याण करते हैं और परलोक सुधारने का काम करते हैं |

हमने कहा- हमें ऐसी सरकारों और ऐसे संतों से कोई मतलब नहीं |फिर इनकी ज़रूरत ही क्या है ? क्या बुद्ध, नानक और विवेकानन्द संत नहीं थे ? क्या वे इनसे कमतर थे ? बुद्ध ने जब देखा कि उनके प्रवचन सुनने के लिए आए लोगों में से एक का ध्यान प्रवचन में नहीं लग रहा है तो उन्होंने सबसे पहले उसे भोजन करवाने की व्यवस्था की |उसी से कहावत बनी है- भूखे भजन न होय गोपाला |नानक ने व्यापार के पैसों से भूखे लोगों को भोजन करवाकर 'सच्चा सौदा' किया था | विवेकानंद ने बंगाल में प्लेग के समय आश्रम बनवाने के लिए रखे धन से लोगों की सेवा करना उचित समझा |उनका कहना था कि कोई आश्रम मनुष्य से बड़ा नहीं हो सकता |आश्रम इंतज़ार कर सकता है मौत, बीमारी और भूख नहीं | 

हमें इन हवा-हवाई, सात सितारा संतों से कोई मतलब नहीं |

बोला- ठीक है |मैं तो तेरा उद्धार करने के लिए आया था |न माने तो तेरी मर्ज़ी |अब चाय भी घर पर  करण जौहर और डबल श्री जी के साथ आभासी सत्संग करते हुए पी लूंगा |

और तोताराम बिना चाय पिए ही चला गया | 


  



 


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