May 6, 2020

कोरोना वारियर्स को सलाम





 कोरोना वारियर्स को सलाम 

तोताराम आज सुबह नहीं आया |कोई बात नहीं |जब मोदी जी ही विदेश यात्रा के बिना काम चला रहे हैं तो हम भी तोताराम से फोन पर बात करके काम चला लेंगे |वैसे हमें काम भी क्या है ? यही देश-दुनिया की तू-तू मैं-मैं | विचार-मंथन तो बड़े लोगों का होता है जिसके बाद वे तय करते हैं कि किसे, कैसे लतियाया जाए |हम तो थूक बिलोते और उछालते हैं तो वह भी अब उछलते समय मास्क के कारण  खुद के मुख-विवर में घुसने लगता है |

तोताराम को फोन करने की सोच ही रहे थे कि बंदा हाज़िर |

हमने पूछा- आज शाम को कैसे ?

बोला- यह पता करने कि तूने कोरोना वीरों को सलाम किया या नहीं ?

तोताराम के प्रश्न को सुनते ही हम तत्काल ही अपने 'समर अटायर' में ही सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए |

आगे बढ़ने से पहले हम पाठकों को अपने 'समर अटायर' के बारे में बता दें |यह अंग्रेजी का एक शब्द है ATTIRE. इसका अर्थ है औपचारिक परिधान |जैसे नेता शपथ-ग्रहण समारोह में पहनते हैं या जैसे कोई किसी राष्ट्राध्यक्ष से मिलने जाता है तो पहनता है |इस काम में सहजता को एक दुर्गुण माना जाता है जैसे गाँधी जी ने अपनी स्वाभाविक ड्रेस में जार्ज पंचम से मिलने की ज़िद करना या केजरीवाल का सेंडिल पहनाकर फ़्रांस के राष्ट्रपति के लिए आयोजित समारोह में भारत के राष्ट्रपति भवन में चले जाना |

जैसे भारत के वायसराय गरमी में दिल्ली से शिमला चले जाते थे या कश्मीर का सारा अमला सर्दी में जम्मू शिफ्ट हो जाता है वैसे ही सर्दी के मौसम में अर्थात दिवाली से होली तक हमारा 'विंटर अटायर' होता है एक पुराणी रंग उड़ी पेंट, एक पूरी आस्तीन का 'इनर', उस पर पुराने वाले ऊँट के बालों से बनी जैकेट, टोपा और गले में मफलर |होली के बाद अक्षय-तृतीया से हम कुरते और पायजामे में होते हैं | इसके बाद बारिश का मौसम शुरू होने तक हम अपने 'समर अटायर' में होते हैं |'समर अटायर' मतलब लुंगी का या पट्टे वाला अंडरवीयर और कंधे पर गमछा | इसके बारे में चालीस के कम उम्र के युवा नहीं जानते क्योंकि इस प्रकार का कपड़ा और उससे सिला अंडरवीयर पहननेवाले प्राणी आजकल कम पाए जाते हैं |संयोग से हम अभी दर्शनार्थ उपलब्ध हैं |जहाँ तक गमछे की बात है तो कोरोना के मास्क के सन्दर्भ में उसे मोदी जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ बनारस की संस्कृति को एक वैश्विक दर्ज़ा प्रदान कर दिया है |हालाँकि मोदी जी ने 'गमछा- महात्म्य' बताते समय जो पहना था वह 'गमछा नहीं बल्कि 'अंगवस्त्रम' था |

जैसे ही हम खड़े हुए तोताराम ने हमें टोक दिया, बोला- इस 'समर अटायर' में खड़े होने की जल्दी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे शालीनता के खिसककने का खतरा रहता है |वैसे एक बार सोचकर देख, यदि तेरा पट्टेदार अंडरवीयर और गमछे में कोरोना वारियर्स को सेल्यूट देते हुए फोटो वाइरल कर दिया जाए तो कैसा लगेगा ? क्यों  सारे जगद्गुरुत्त्व का कचरा करने पर तुला है ?

हमने कहा- अब हम सलामी देने के लिए सुभाष या मोदी जी जैसी ड्रेस कहाँ से लाएँ ? और सच बताएं तोताराम, पता नहीं ये नेता कैसे रोज नई-नई ड्रेसें पहन लेते हैं ? हमें तो कोई भी नया या रेशमी कपड़ा पहनने पर बड़ा अजीब लगता है |लगता है जैसे कपड़ा काट रहा है |वैसे ही जैसे नया जूता | पुराने का मज़ा ही कुछ और है चाहे पुरानी बीवी हो, जूता या दोस्त हो, या फिर कपड़ा |कहते हैं पुरानी शराब भी बहुत मजेदार होती है |

बोला- तो फिर अपनी केश्टो मुखर्जी टाइप ड्रेस में तो सलामी न देना ही ठीक है | 

हमने कहा- लेकिन जहां तक कृतज्ञता अनुभव करने की बात है तो उसमें तो हम कोई कमी नहीं पाते |सच कहें तो हमारे दिल से तो किसी पेड़ की छाँव में बैठते हुए भी उसे लगाने वाले के लिए आशीष निकलती है | रोटी खाते हुए भी हम तो किसान के प्रति शुक्रिया अदा करते हैं | 

बोला- तो फिर चल, किसी विश्वसनीय अखबार के शेखावटी परिशिष्ट में कोरोना वीरों को सलाम करते हुए किसी सामूहिक विज्ञापन में शामिल हो जाते हैं |

  
और तोताराम ने हमारे सामने दो अखबारों के दो दिनों के संस्करण रख दिए और बोला- एक है ५ अप्रैल २०२० का जिसमें समाज के कुछ शुभचिंतकों ने रात को नौ बजे, नौ मिनट के लिए, नौ दीये या मोमबत्तियां जलाकर कोरोना संकट के अन्धकार को मिटाने की अपील की थी |


और तोताराम ने हमारे सामने दो अखबारों के दो दिनों के संस्करण रख दिए और बोला- एक है ५ अप्रैल २०२० का जिसमें समाज के कुछ शुभचिंतकों ने रात को नौ बजे, नौ मिनट के लिए, नौ दीये या मोमबत्तियां जलाकर कोरोना संकट के अन्धकार को मिटाने की अपील की थी |

हमने कहा- इसमें तो भिड़ते ही संस्कृत का एक श्लोकांश गलत लिखा है- 'तमसो माँ'  नहीं; 'तमसो मा' होना चाहिए |संस्कृत में 'मा' अर्थ होता है=नहीं |मुझे अन्धकार की ओर नहीं; ज्योतिर्गमय= ज्योति की ओर ले चलो |

बोला- तो यह दूसरा देख ले |यह तो किसी'विश्वसनीय अखबार' का है |  २ मई का है |

हमने कहा- यह कौनसा सही है |इसमें दो सुझाव दिए गए हैं |पहला 'सीखते हुए वक्त गुजारने' और 'कोरोना कर्मवीरों को सलाम करने का' | 
जब बहुत से लोगों को कोई सुझाव दिया जाता है तो 'गुजारे' और 'करे' नहीं होता बल्कि 'गुज़ारें' और 'करें' होता है |वक़्त और गुज़ारें में जो नुक्ते की गलती है वह बोनस में |

बोला- मास्टर, न तो अखबार का और न ही इन देशभक्तों का काम हिंदी पढ़ाना है | ये तो देश के कोरोना वीरों को सलाम कर रहे हैं |
हमने कहा- इनका जो काम है, हम जानते हैं |लेकिन इन विज्ञापनों से हिंदी की और देश सेवा की जो हिंदी हो रही है वह तो इन सब से परे फ्री में हो रही है  |

बोला- मास्टर, तूने तो मुझे उलझा दिया |ज़रा स्पष्ट कर |


हमने कहा- इन सबके अपने-अपने धंधे हैं | इस सामूहिक विज्ञापन में शामिल होने से सस्ते में प्रचार हो गया और देशभक्ति का प्रमाण ऊपर से | जिनका कोई घोषित धंधा नहीं है वे राजनीति के धंधे में हैं |जहाँ तक अखबार की बात है तो उसे न कोरोना से मतलब है और न ही दर-ब-दर भटकते मजदूरों और मर रहे लोगों से |उन्हें तो विज्ञापन चाहियें फिर चाहे वह चौथे-उठाले का हो, शादी का हो या किसी लिंग वर्द्धक यंत्र का या तांत्रिक का या मेरिट मेरिट का हो या डाक्टर-इंजीनीयर बनाने के कारखाने का |


बोला- मास्टर, तू तो किसी भी तरह वश में नहीं आता |क्या कुछ न किया जाए ? क्या सब हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएँ |क्या डाक्टरों को ऐसे ही बीमारी से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दें या कोरोना के भय को भगाने के लिए कुछ भी ना करें ?


हमने कहा- करों क्यों नहीं ? इस फालतू के खर्च की जगह शांत भाव से एक दूसरे की मदद करो, आत्मविज्ञापन के इस पैसे को अपना धंधा खो चुके लोगों के लिए खर्च करो, बिना प्रचार के किसी घरबंदी में फँसे |इस महामारी से बचने के नियमों को ईमानदारी से मानो | दोगुने-चौगुने दामों में गुटका खा-खाकर थूकने की बजाय घर में मन लगाओ, कुछ ढंग का पढ़ो, कुछ सीखो |



यह क्या कि ज़रा-सा लोच डाउन खुला नहीं कि दौड़ पड़े दारू की दूकान की ओर |



बोला- लेकिन इससे इकोनोमी को तो बूस्ट मिलता ही है ना !


हमने कहा- छोड़ ये सब फालतू बातें | कृतज्ञता सम्मान और एहसान का भाव है जो दिल से दिल का मामला होता है |उसके लिए कोई प्रमाण-पत्र लेने-देने की बात नहीं होती |यह तो मोदी जी ने युवाओं को व्यस्त रखने के लिए तरह-तरह के तमाशे शुरू कर दिए हैं कि बेटी के साथ सेल्फी भेजो, वोट डालने के बाद अपनी स्याही ग्रस्त अंगुली के साथ मोदी जी को फोटो  भेजो |जैसे कि मोदी जी को आपकी सेल्फी देखने के अलावा कोई काम ही नहीं है | | वोट तो हमने भी डाले हैं और जब मोदी जी प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे तब से चुनावों में ड्यूटी देनी भी शुरू कर दी थी |

बोला- फिर भी भावों का प्रदर्शन करने का भी तो महत्त्व होता ही है |भगवान तो सब पर निरपेक्ष और अहैतुक भाव से कृपा करता है फिर भी हम ढोल-नगाड़े बजाकर उसका आभार मानते हैं कि नहीं ? तो फिर अपनी जान को जोखिम में डालकर देश-दुनिया में  कोरोना पीड़ितों की सेवा करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति कृतज्ञता भाव व्यक्त करने में किस बात की कंजूसी ? 

हमने कहा- तोताराम, सच पूछे तो जब हम सुबह-सुबह दो-चार नाम लेते हैं तो इन्हीं स्वास्थ्यकर्मियों की कुशलता की कामना करते हैं |इसके लिए ताली-थाली बजाने की क्या ज़रूरत है ? गुप्त दान और मौन प्रार्थना अधिक फलदायी होते हैं |भगवान उन्हें प्राथमिकता से सुनते हैं |

बोला- तो क्या आज सुबह देश ने इन वीरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए वायुयान उड़ाए, फूल बरसाए क्या वह अनुचित था ?

कोरोना योद्धा की हौसला अफजाई को वायुसेना के हेलीकॉप्टर ने दून अस्‍पताल और एम्‍स ऋषिकेश के ऊपर बरसाए फूल








हमने कहा- तोताराम, हम राजनीतिज्ञ नहीं हैं |हमें बातों में मत उलझा |अपने शब्द हमारे मुँह में डालने की कोशिश मत कर | हमारा तो यह मानना है कि आपको जिन लोगों की इतनी फ़िक्र है, क्या कभी उनके काम करने के स्थानों पर जाकर यह देखा है कि उनके पास पी पी ई किट हैं या नहीं ? ढंग के मास्क उपलब्ध हैं या नहीं ? उनको टुच्चे नेताओं और लफंगे कार्यकर्त्ताओं के द्वारा परेशान तो नहीं किया जाता ? इस संकट में उनके घर-परिवार के लोग कैसे हैं ? अपनी सुरक्षा के लिए जनता के धन का करोड़ों रुपए फूंक देने वाले नेता इन वीरों की खबर लेते हैं ? अपने लिए कमांडो और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षा किट भी नहीं !

युद्ध में जाने वालों को हथियार चाहियें |वहाँ बातों से काम नहीं चलता |भारत ही नहीं, दुनिया के सभी छोटे-बड़े देशों से स्वास्थ्य कर्मियों के लिए संसाधनों की कमी के समाचार मिल रहे हैं |जर्मनी की एक डाक्टर ने तो संक्रमण से बचाने वाले संसाधनों की कमी की और ध्यान दिलाने के लिए अपनी नग्न फोटो पोस्ट की है |



जब भक्तों का प्रसाद या मिठाई खाने का मन होता है तो किसी को भी देवता बना देते हैं | जिस दिन देवता मिठाई खाना शुरू कर देंगे उस दिन भोग का नाटक बंद |
























पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment