May 10, 2020

मज़बूत कोरोना, मजदूर कोरोना, मज़बूर कोरोना



मज़बूत कोरोना, मजदूर कोरोना, मज़बूर कोरोना  


 जिधर देखिए  कोरोना का ही रोना लगा हुआ है | इस समय जिसे देखो उसी का ज्ञान-विज्ञान जाग्रत हो रहा है |तरह-तरह की दवा बताई जा रही है |लेकिन क्या किया जाए, सो दवाओं का एकमात्र विकल्प दारू की दुकानें बंद हैं | अरे भई, जब अस्पताल, बिजली, पानी, बैंक सब चालू हैं तो दारू वाली अत्यावश्यक सेवा को बंद करने का क्या तुक है ? ऐसे संकट और किंकर्तव्यविमूढ़ समय में सर्व दुःख निवारिणी, भय विनाशिनी दारू की उपलब्धता एक बड़ा संकट है |जब मनुष्य की क्षमता बढ़ाने वाली दारू न हो तो सामने वाले की क्षमता अधिक दिखाई देने लगती है  वरना क्या तो कोरोना और लय कोरोना की औकात ? 



कोरोना वायरस, शराब की बिक्री 


एक पौव्वा गटको और फिर ऊपर से खैनी या गुटका दबा लो |बस, फिर तो बनारस की बोली में सब कुछ दिव्य |न कोई भय, न संक्रमण, पोजिटिव-निगेटिव कुछ नहीं | 

कोरोना के इस आतंक में हमारी तो कोई क्षमता शेष है नहीं; सो हम कोरोना की क्षमता के बारे में सोच रहे थे |हमने तो कोरोना के कई रंगों वाले फोटो देखे हैं |बड़े भव्य और शाही | यदि आपने प्याज का फूल देखा हो तो उससे तुलना कीजिए |एक दम उत्फुल्ल और शान से अकड़ा हुआ |कोरोना भी कुछ इसी तरह दुनिया और उसके तीस मारखाओं को उपेक्षा के भाव से देख रहा है |सर्दी-गरमी, किसी दवा-दारू का कोई असर नहीं |पुराने वैद्य कहते थे उपवास करो, सारे कीटाणु वायरस मर जाएँगे |पता नहीं इस कोरोना क्या जीवन क्षमताएँ हैं |क्या इसके सबल-निबल पक्ष हैं जिन्हें समझकर इससे लड़ा जा सके |

जब हमने कोरोना के विरुद्ध कोई रणनीति बनाने के लिए तोताराम से कुछ जानना चाह तो बोला- वैसे तो मास्टर, यह बड़ी पाजी बीमारी है |नेताओं की तरह इसका साले का कोई चरित्र नहीं है |एक दम अविश्वसनीय | अब तो सुना है, एक बिना लक्षणों वाला कोरोना भी आ रहा है |पता भी नहीं चलेगा कि किसी को कोरोना है या नहीं, बस, अन्दर ही अन्दर कोरोना अपना काम करता रहेगा और एक दिन मरीज़ चुपके से टें  जैसे कि कमलनाथ को पता ही नहीं चला और एक दिन २२ विधायक पाला बदल गए |

हमने पूछा- फिर भी इसके जीवन-मरण के बारे में कुछ तो पता चले जैसे गोपियाँ उद्धव के निर्गुण के बारे में नहीं जानती थीं तो बेचारी सहज भाव से पूछ बैठीं कि निर्गुण के माँ-बाप कौन हैं, उसका रंग कैसा है, उसके शौक क्या-क्या हैं ?

बोला- मास्टर, इसके बारे में मैं बहुत क्या, लगभग कुछ भी नहीं जानता |बस. मोदी जी की तरह मैं भी अंदाज़ से ताली-थाली-दीवाली जैसे तंत्र-मन्त्र करता रहता हूँ या ट्रंप की तरह डिटोल के इंजेक्शन की सलाह दे सकता हूँ |वैसे तो जीवन-मरण भगवान के हाथ है फिर भी कुछ सलाह देने से पहले मैं यह जानना चाहता हूँ कि तू किस कोरोना के बारे में जानना चाहता है ? 

हमने कहा- क्या कोरोना भी कई तरह के होते हैं ?

बोला- क्यों नहीं, जैसे संविधान में सभी नागरिक समान माने गए हैं फिर भी मंत्री को अपनी सुरक्षा के लिए कमांडो मिलते हैं और डाक्टरों-नर्सों को ढंग के किट और मास्क भी नहीं मिलते | एक विद्यार्थी को बैंकों से बिना ब्याज का शिक्षा ऋण नहीं मिलता और सत्ता के कुछ चहेते हजारों करोड़ रुपए का ऋण लेकर देश छोड़कर विदेश में बस जाते हैं |

हमने कहा- बन्धु, हमें इस कोरोना अलंकार के भेद नहीं मालूम |इसलिए तू ही जो उचित समझे बता दे |
बोला- कोरोना तीन प्रकार के होते हैं- एक मज़बूत कोरोना, दूसरा मजदूर कोरोना और तीसरा मज़बूर कोरोना |मजबूत कोरोना घरबंदी में अन्त्याक्षरी खेलता है,


NBT


actress Ranveer Singh turns photographer for Deepika Padukone as she plays piano amid self quarantine break


पियानो बजाना सीखता है, गाजर का हलवा खाता है |  मजदूर कोरोना को मकान मालिक घर से निकाल देता है और सेठ नौकरी से | 
लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से पैदल पलायन कर रहे दिहाड़ी मज़दूरों की कहानियां

सरकार कोई साधन उपलब्ध नहीं करवाती तो यह भूख से मरने की बजाय अपने घर जाकर, अपनों के बीच कोरोना से मरना पसंद करता है |मजबूर कोरोना न घर जा पाता और न ही राहत शिविरों में पूरा भोजन, चिकित्सा और सम्मान |

हमने कहा- तोताराम, तू हमें अपने मन की बात में मत उलझा |हमें तो सीधे-सीधे बता कि यह दुष्ट कोरोना वायरस क्या अमर है ? क्या इसकी कभी मौत होती ही नहीं ? 

बोला- जो थोड़ा बहुत अखबारों में पढ़ा है उसके अनुसार कोरोना वायरस प्रिंटिंग पेपर या टिस्यू पेपर पर तीन घंटे तक जीवित रहता है |

हमने शंका की- क्या उसी तरह से जैसे कि लोग अखबार में अपना विज्ञापन और यशगान छपवा कर सोचते हैं कि वे अमर हो गए जबकि लोग तीन घंटे में ही उस अखबार से बच्चे की नाक पोछकर फेंके देते हैं |

बोला- वैज्ञानिक बात में साहित्य मत घुसेड़ |और सुन, लकड़ी और कपड़ों पर बैठा वायरस अगले दिन मर जाता है |ग्लास और बैंक नोट पर तीन दिन तथा स्टील और प्लास्टिक पर बैठा वायरस सात दिन तक जिंदा रह सकता है |

हमने पूछा- और किसी सेवक की कुर्सी पर बैठा वायरस कितने दिन तक जीवित रह सकता है ? 

बोला- एक बार यदि कोई वायरस कुर्सी बैठ गया तो फिर वह ज़िन्दगी भर कोई काम नहीं करता |बस, करता है तो सेवा करता है और मेवा खाता है |एक पार्टी टिकट नहीं देती तो दूसरी पार्टी में चला जाता है |कोई पार्टी टिकट नहीं देती तो अपनी पार्टी बना लेता है |जब चाहे पार्टी बदल लेता है लेकिन आजीवन कुर्सी पर या उसके निकट या उसकी फिराक में रहता है अर्थात आजीवन कुर्सी से किसी न किसी तरह चिपका रहता है |

हमने कहा- यदि संयोग से कोरोना का यह बहुरंगी वायरस किसी के दिमाग में घुस गया तो ?

बोला- उसके बाद तो भगवान ही मालिक है |फिर तो वह अमरीका-चीन, हिन्दू-मुसलमान, शिया-सुन्नी वायरस बन जाता है और आने वाली पीढ़ियों तक समाज-देश और दुनिया के लिए खतरा बना रहता है |

हमने पूछा- तो हमारे यहाँ कौन-से प्रकार का कोरोना चल रहा है ? 

बोला- अपने यहाँ जो वायरस चल रहा है उसे देखकर तो असली वायरस भी चक्कर में पड़ जाएगा कि यह क्या बला है ? 










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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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