May 31, 2020

इस मैं कुछ भी ना सै



इस मैं कुछ भी ना सै


वैसे तो 'चाय पर चर्चा' होती ही राजनीति की है लेकिन आज २० लाख करोड़ के पॅकेज के उत्साह में तोताराम से एक मौद्रिक प्रश्न कर लिया-  तोताराम, यह रेपो रेट क्या होता है ?

बोला- यही बात आज से साठ पहले जानने की कोशिश करता तो आज एक लाख रुपया पेंशन ले रहा होता |

हमने कहा- यह तो कोई उत्तर नहीं हुआ |यह तो वैसा ही जैसे कोई कहे कि भारत में श्रमिकों के पलायन के लिए नेहरू जी ज़िम्मेदार हैं | 

बोला- इसके शक भी क्या है ?

हम तो स्तब्ध, कहा- तोताराम, हम तो मज़ाक कर रहे थे और तुमने उसका भी यह उत्तर देकर तो हमें चकित ही नहीं, भयभीत ही कर दिया है | क्या ऐसा भी कहा, सोचा और प्रचारित किया जा सकता है ? 

बोला- यदि नेहरू जी संयुक्त राष्ट्र संघ में कम्यूनिस्ट चीन के प्रवेश और सुरक्षा परिषद् में उसकी स्थायी सदस्यता का समर्थन नहीं करते तो आज चीन का यह हौसला नहीं होता और न ही यह हैसियत होती कि वायरस बनाकर दुनिया में फैला दे |उसने वायरस बनाया और हमारे देश में भेज दिया |अब मोदी जी क्या-क्या सँभालें ? इधर कोरोना, उधर डोकलाम |ऊपर से ट्रंप साहब का चीन के खिलाफ दबाव |कभी झूला झूलते हैं तो कभी कर्रे पड़ते हैं |न उगले बने, न निगले |

हमने कहा- ठीक है, लेकिन बात तो रेपो रेट की हो रही थी |

बोला- जब देश का बड़ा बैंक जैसे रिज़र्व बैंक देश के निजी और सरकारी बैंकों की अपनी मूर्खताओं और बदमाशियों के कारण होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए या स्थिति सुधारने के बहाने से उन्हें कम ब्याज पर अल्पकालीन ऋण देता है तो उसे रेपो रेट कहते हैं |

इसी तरह देश में मुद्रा का प्रवाह कम करने के लिए जब बड़ा बैंक छोटे बैंकों से बिना ज़रूरत ऋण लेने का नाटक करता है तो उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं |यह दोनों स्थितियों में बैंकों में बचत खाता रखने वाले समान्य ग्राहक के लिए वैसे ही हानिकारक है जैसे गधा सामने से किसी की छाती पर पाँव रख दे या दुलत्ती मार दे |


1000, 350 और 5 रुपये के नए नोट की फोटो ...

दोनों हालत में मरण तो मनुष्य का ही होता है |गधे की लात से गधा तो मरता नहीं |बैंकों से हर हालत में फायदा नेताओं, उनके चमचों और बड़े सेठों को होता है जो बैंको से ऋण लेते हैं और बैंक उनके क़र्ज़ हो एन पी ए अर्थात नॉन परफोर्मिंग एसेट में डाल देती है |मतलब डूबत खाते |लेकिन अब तू अस्सी साल का होने को आया है तो इस रेपो रेट से क्या लेना ?

हमने कहा- अब लेना किससे क्या है ? अब तो देना ही देना है चाहे कोरोना के नाम से हो या रेपो रेट में अपने बैंक ब्याज में कटौती के नाम से | यह तो वही बात हो गई, किसी मेले में एक पुलिस वाले ने चूड़ी बेचने वाले की गठरी को डंडे से ठोका मारते हुए पूछा- इसमें के सै ? चूड़ी वाला बोला- इसी तरह दो बार और पूछ ले फिर कुछ भी ना सै इसमें |


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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