Jun 25, 2020

मोदी जी के गीत की धुन




मोदी जी के गीत की धुन 


फटी हुई जींस, छज्जा पीछे की तरफ रखते हुए उलटी करके लगाई गई टोपी, धूप का चश्मा, 'क्रुद्ध हनुमाना' छपी टी- शर्ट, बिना मोजों के पहने रंग-बिरंगे जूते |आते ही सीढियों की बजाय सामने से  उछलकर बरामदे पर चढ़ा और कमर मटकाकर जोर-जोर से गाने लगा-  ईलू-ईलू क्या है ?


पहले तो हम ध्यान से देखते रहे कि यह प्राणी तोताराम ही है या कोई और ? जब कन्फर्म हो गया तो उसके प्रश्न का विस्तृत उत्तर दिया- हे बुढ़ापे में युवावस्था की बीमारी से ग्रसित प्राणी, यह 'ईलू-ईलू'  एक ऐसी बीमारी है जो प्रायः युवावस्था में होती है | वैसे यह १९९१ में बनी, सुभाष घई द्वारा निर्देशित  'सौदागर' नाम की एक फिल्म का गीत है जिसे आनंद बक्षी ने लिखा और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीतनिर्देशन में कविता कृष्णामूर्ति, पंकज उदास नहीं उधास, और सुखविंदर सिंह ने गाया है | भारत में आर्थिक सुधार और उदारीकरण से प्रारंभिक समय में आया यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ | इसमें जो मुख्य ध्वनि  'ईलू' है वह 'आई लव यू' का संक्षिप्त रूप है जैसे आजकल बच्चे पूरा शब्द लिखने की बजाय 'आर are' माने 'हैं' को केवल 'R' या 'बॉय फ्रेंड' को केवल 'BF' लिखकर काम चला लेते हैं |समय और शक्ति की बचत |



चश्मा ऊँचा करके माथे पर चढाते हुए बोला- याह, जैसे 'प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना' को रोमन में लिखते हुए 'PRADHAN MANTRI JAN AROGY YOJANA'  के सभी प्रथमाक्षरों को ले कर एक संक्षिप्त शब्द 'PM-JAY' बना  |


हमने भी टी वी सीरियल 'भाभी जी घर पर हैं' की भोलीभाली नायिका की तरह कहा- सही पकड़े हैं |


बोला- पहले तो यह समझ ले कि मैंने तुझसे इसका मतलब नहीं पूछा है |दूसरे ऐसे  प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं होता |ये शब्द एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने के लिए होते हैं |ये शब्द किसी आत्ममुग्ध व्यक्ति के प्रलाप की तरह होते हैं | मेरा इस समस्या से कोई संबंध नहीं है |मैं तो बस, एक नए गीत की धुन बना रहा था और तूने उसका आनंद लेने की बजाय, फिल्मों के विश्वकोष जयप्रकाश जी चौकसे जी की तरह पूरा इतिहास ही सुना दिया |आजकल आम खाने के बारे में इंटरव्यू में आम का इतिहास, उसकी फसल उगाने और विक्रय-व्यवस्था के बारे में पूछने-बताने का समय नहीं होता |


हमने पीछा छुड़ाने के अंदाज़ में कहा- लेकिन आज तेरी कमर को क्या हो गया जो भारत की विदेश नीति की तरह लचक-मचक हो रही है ?कहीं योग-दिवस के उपलक्ष्य में कोई नया 'कमरतोड़ आसन' तो नहीं ईजाद किया है |


बोला- मुझे दुनिया-जहान से क्या लेना ? दुनिया जहान से संवाद करने और नए शब्द और नारे गढ़ने के लिए तो मोदी जी अकेले ही पर्याप्त हैं |


मैं तो मोदी जी के एक गाने की धुन बनाने की प्रक्रिया में खोया हुआ था |


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment