Jun 13, 2020

'कफ़न' का पुनर्पाठ



'कफ़न' का पुनर्पाठ 


तोताराम ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है जिनका ज़वाब संविधान विशेषज्ञों तक के पास भी नहीं होता तो हम क्या ज़वाब दे सकते हैं |हाँ, पोलिटिकल साइंस एक ऐसा साइंस ज़रूर है जिसमें कोई भी बचकाना या कूढ़ मगज 'माननीय' अर्थात विधायक या सांसद जो कह दे उसे आइन्स्टाइन के बाप को भी मानना पड़ता है |

आज तोताराम ने पूछा- मास्टर, राज्यपाल किसलिए होता है ?

क्या बताएं ? अगर अम्बेडकर से पूछा जाता कि 'सी. ए. ए. का क्या औचित्य है' तो वे भी मुँह फाड़कर देखते रह जाते | यदि हर प्रश्न का परनिंदापरक,  तथाकथित देशभक्तिपूर्ण उत्तर ही देना होता तो हम भी भाजपा के प्रतिभाशाली भाषाविद, साहिब सिंह जी के सुपुत्र प्रवेश वर्मा की तरह, ध्वनिसाम्य के आधार पर कोरोना का कारण केजरीवाल को बता सकते थे |हालाँकि 'क' से केजरीवाल ही नहीं 'केशव-कुञ्ज' भी बनता है |'अ' से 'अरविंद केजरीवाल' ही नहीं, 'अमित शाह' भी बनता है |  

उत्तर तो देना ही था, सो अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार दे दिया- यदि राज्यपाल न हो तो किसी राज्य के राजभवन में कौन रहेगा ? उस राज्य के विश्वविद्यालयों का मानद कुलपति कौन होगा ? केंद्र में काबिज़ पार्टी से इतर पार्टी के मुख्यमंत्री की टांग कौन खींचेगा ? हाँ, यदि इस पद से पहले 'उप' उपसर्ग लग जाए तो यह प्यादे से फर्ज़ी हुए की तरह, 'उप' उपसर्ग लगी 'उपपत्नी' की तरह, नीम पर चढ़े करेले की तरह और शातिर हो जाता है |

बोला- यह तो कोई बात नहीं हुई |यदि किसी राज्य में संविधान का उल्लंघन हो रहा हो तो राज्यपाल का फ़र्ज़ बनता है कि वह संविधान की रक्षा करे |

हमने कहा-  जैसे कि केजरीवाल ने दिल्ली में कोरोना की गंभीर स्थिति को देखते हुए  बाहर वालों से दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव न बनाने के लिए कह दिया तो उपराज्यपाल ने संविधान की रक्षा के लिए उसके आदेश को ही पलट दिया | क्या जुर्म कर दिया, केजरीवाल ने ? लोग अपने-अपने राज्यों में अपना इलाज़ करवाएं | क्या राज्यों के अपने-अपने एम्स नहीं हैं ? केजरीवाल ने ही तो सारे देश के इलाज का ठेका नहीं ले रखा |सब अपनी-अपनी नाक खुद पोंछें |

बोला- लेकिन दिल्ली तो देश की राजधानी है |हर देशवासी का अधिकार है वहाँ इलाज़ करवाने का |

हमने कहा- संविधान के हिसाब से तो हर पड़ोसी देश के प्रताड़ित नागरिक का भारत में शरण लेने का अधिकार बनता है |वहाँ मुसलमानों को जात बाहर क्यों कर दिया ?

बोला- बात मत बदल |वैसे इस मामले में चुप रहेगा तो सुख पाएगा ?नहीं तो इस कोरोना- काल में कोई भी पुलिसिया अर्बन नक्सल बताकर जेल में डाल देगा |और बरसों जमानत भी नहीं होगी |मेरा तो मानना है कि यदि काबिलियत हो तो आदमी एक छोटी सी दिल्ली ही क्या, सारे देश की ज़िम्मेदारी ले सकता है और चेहरों पर मुस्कान ला सकता है |

हमने पूछा- जैसे ?

अपना स्मार्ट फोन निकालकर दिखाते हुए बोला- देख, 'अब पीएम जय' |

हमने कहा- इसमें दिखाने की क्या ज़रूरत है ? सारा संसार जानता है कि पीएम की तो अब क्या, जब चाहें तब 'जय' ही है |जो चाहे करें या कुछ भी न करें | एक ही दिन में 'सारे घर के बदल सकते'  हैं |जय तो उनकी  हर हालत में पक्की है जैसे हड़बड़ी में लॉक डाउन कर दिया तो उनकी जय क्योंकि उन्होंने देश को महाविनाश से बचा लिया | और अब हड़बड़ी में अनलॉक कर दिया तो गड़बड़ी के लिए मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार |वे खुद तो हर हाल में विजेता हैं |

बोला- मैं तो तुझे वह मैसेज दिखाना चाहता था जो मोदी जी ने मुझे भेजा है लेकिन तू है कि अपनी ही गाए जा रहा है | देख, AB PM JAY मतलब 'आयुष्मान भारत प्रधान मंत्री जन आरोग्य  योजना' | लिखा है 'एक करोड़ आयुष्मान : करोड़ों मुस्कान' |

हमने कहा- बन्धु, जब नोट बंदी हुई या जी एस टी आया तो उसे मोदी जी और जेतली जी के अलावा कोई नहीं समझ पाया |शेष तो देखा-देखी मुंडी हिलाने लगे |वैसे ही यह आयुष्मान भारत,   लॉक डाउन, अब यह अनलॉक और यह 'बीस लाख करोड़ का आत्मनिर्भर भारत' वैसे ही है जैसे-अच्छी लिखावट और श्रेष्ठ कविता वह होती है जो पढ़ने वाले ही नहीं, लिखने वाले को भी समझ न आए |

बोला- तो तू कैसे मानेगा कि मोदी जी ने कोरोना के सन्दर्भ में देश के आयुष्य के लिए कुछ किया है ? 

हमने कहा- मान ले, किसी का जन्म भारत में हुआ है, उसके पास कोई कार्ड-बीमा कुछ नहीं है, न वर्क है, न होम है, तो क्या उसके लिए भारत के किसी भी अस्पताल में  बिना पैसे के कोरोना की जाँच, इलाज़ और उस दौरान खाना खाने की कोई व्यवस्था है ?

बोला- इस बारे में तो मैं क्या, मोदी जी और यहाँ तक कि उनके मन्त्रों के मुखर भाष्यकार जावडेकर जी भी कुछ नहीं कह सकते |

हमने कहा- कुछ दिनों पहले एक समाचार पढ़ा था कि अहमदाबाद में एक ए एस आई को कोरोना के कारण नगर निगम के अस्पताल में भर्ती करवाया गया |वहाँ उसकी मौत हो गई |इलाज के दौरान घर वाले तीन लाख रुपए दे चुके थे | इसके बाद शव देने के लिए अस्पताल वालों ने एक लाख पैंतीस हजार रुपए और मांगे |पुलिस ने हस्तक्षेप किया |आगे क्या हुआ, खबर में नहीं बताया गया |

अब पता नहीं, यह मामला  'एक करोड़ आयुष्मान : करोड़ों मुस्कान' के शामिल है या नहीं ?

बोला- लेकिन गरीबी की रेखा से नीचे वाले और किसी भी कल्याणकारी स्कीम में नहीं आने वाले के अंतिम-संस्कार के लिए स्थानीय निकाय द्वारा २००० रुपए की सहायता का प्रावधान तो अवश्य है |और आज ही उत्तरप्रदेश सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर ५००० रुपए कर दिया है |


अंतिम संस्कार से पहले लाश ने खोल दी ...


हमने कहा- प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' का भी तो एक वाक्य है- 'कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढाँकने को चीथड़ा न मिले, उसे मरने पर नया कफन चाहिए' |















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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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