Jun 18, 2020

वे नैना कछु और हैं.....




वे नैना कछु और हैं.....




जैसे कभी रामजेठमलानी रोज दस सवाल पूछ-पूछकर राजीव गाँधी को परेशान किया करते थे वैसे ही तोताराम आजकल हमें कुछ बोलने का मौका ही नहीं देता है |आज आते ही पूछने लगा- कोरोना के लिए कौन जिम्मेदार है ?

हमने कहा- बन्धु, इसके लिए कोई भी जिम्मेदार हो सकता है लेकिन हम तो इसके लिए बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं |पिछले एक साल से विदेश नहीं गए हैं और पिछले पांच महीने से घर में हैं | मोदी जी की तरह विशिष्ट  विदेशियों को आलिंगनबद्ध भी नहीं करते |जो काम के लोग हैं वे हमसे दूरी बनाकर रखते हैं और जो फालतू हैं उनसे हम दूरी बनाकर रखते हैं | हाँ, अखबारों में नेताओं के एक दूसरे पर थूक उछालने वाले पवित्र वचन अवश्य पढ़ लेते हैं |अगर उससे देश में कोरोना फैला हो तो तू हमें घुमा फिराकर जिम्मेदार  ठहरा सकता है जैसे कि कोई नेहरू जी को कोरोना के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए कहे कि वे १९५० में चीन गए थे और वहाँ से कोरोना ले आए | और अब सत्ता छिन जाने पर झुंझलाई हुई कांग्रेस ने मोदी जी को बदनाम करने के लिए वह वायरस देश में फैला दिया

बोला- मैं तुझ पर कोई आरोप थोड़े लगा रहा हूँ | मैं तो तेरा विचार जानना चाहता था |

हमने कहा- भारत में लोकतंत्र है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से अपने विचार व्यक्त न करना ही श्रेयष्कर है | वैसे  ट्रंप कहते हैं कि कोरोना की जड़ में चीन है | नेपाल के प्रधानमंत्री कहते हैं भारत के कारण नेपाल में कोरोना फैला है |हम भी पहले तबलीगियों के सिर इसका ठीकरा फोड़ रहे थे लेकिन जब संयुक्त अरब अमीरात ने हड़का दिया तो कहने लगे- 'हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं'  | एक आध बार किसी छुटभैये ने चीन की तरफ इशारा किया था |फिर शायद ऊपर से चुप रहने के निर्देश आगए  |

हाँ,  दो दिन पहले भाजपा का एक युवा, ओजस्वी, तेजस्वी और भाषाविद सांसद प्रवेश वर्मा ज़रूर एक नए शोध के साथ उदित हुआ है | उसका कहना है- 'क' से केजरीवाल और 'क' से कोरोना |इस आधार पर तू चाहे तो बेचारे केजरीवाल को जिम्मेदार मान ले |


बोला- कुछ भी कह लेकिन संयोग बड़ा विचित्र हुआ |उधर प्रवेश वर्मा ने यह भाजपा स्टाइल जुमला फेंका और इधर केजरीवाल को खाँसी आने लगी |

हमने कहा- चलो, अच्छा हुआ जो केजरीवाल को कोरोना नहीं निकला |लेकिन हम व्यक्तिगत रूप से ऐसे बचकाने वक्तव्यों के खिलाफ हैं |वैसे इस बालक का वक्तव्य ध्वनि और भाषा शिक्षण के हिसाब से भी ठीक नहीं है |जब बच्चे को किसी भाषा की ध्वनियाँ सिखाई जाती हैं तो उस भाषा की वर्णमाला के क्रमशः सभी अक्षरों से शुरू होने वाले सामान्य और सरल संज्ञा शब्द सचित्र दिखाए और बुलवाए जाते हैं जैसे 'अ' से अनार; 'आ' से आम |बच्चा पहले से ही इन संज्ञाओं से परिचित है और चित्र देखकर कहीं न कहीं 'आम' और अनार का मज़ा लेता हुआ सीख भी जाता है ||

बोला- लेकिन 'क' से केजरीवाल में क्या बुराई है ?

हमने कहा- है |पहले तो यह कि आप 'क' की ध्वनि सिखा रहे हैं न कि 'के' या 'को' की |दूसरे छोटा बच्चा 'क' से 'कबूतर' के द्वारा अच्छी तरह समझेगा या 'क' से 'कटाक्ष' या 'क' से 'कफ़न' से ज्यादा सरलता से समझेगा ?
जब आप 'ब' से 'बतख' बता रहे हैं तब आप बच्चे को जीव जगत से जोड़ रहे हैं लेकिन जब आप 'ब' से 'बंदूक' बता रहे हैं तब आप बच्चे को प्रकारांतर से एक हिंसक मनोजगत में ले जा रहे हैं |पाकिस्तान में तालिबानों के प्रशिक्षण काल में 'बे' से 'बंदूक' की पढाया जाता था |

इस प्रकार के अर्थानर्थ से व्यक्ति का खुद का ओछापन भी प्रकट होता है |




Arvind Kejriwal Meets Home Minister Amit Shah, Says Had A Fruitful ...











ध्वनिसाम्य के हिसाब के 'क' से कांग्रेस का 'कर' बना लो; 'क' से भाजपा का 'कमल' भी बना लो | 'अ' से  'आप' का  'अरविंद' बना लो और चाहो तो उसी 'अ' से भाजपा का 'अमित' बना लो |मज़े की बात यह भी है कि अरविंद का मतलब 'कमल' होता है जो भाजपा का ही नहीं, भारतीय वांग्मय का एक सशक्त प्रतीक है |  'न' से नेहरू और 'न' से नरेन्द्र दोनों बन सकते हैं |लेकिन जिसकी नीयत में खोट है और दृष्टि कमीनी है  वह 'ग' से गंगा, गाँधी और गुड़ बनाने की बजाय गू, गटर और गोडसे बनाएगा |'स' से साहिब, सिंह, सहज, सरल, समर्थ, समता शब्द बनाते हैं लेकिन कोई सूअर पर ही अटक जाए तो उसकी मर्ज़ी |
जा की रही भावना जैसी |

जोड़ने की भाषा कुछ और होती है और तोड़ने की कुछ और |

तभी बिहारी कहते हैं-

अनियारे दीरघ दृगन किती न तरुनि समान |
वे नैना कछु और हैं जिहिं बस होत सुजान |

अर्थात बहुत सी तरुणियाँ हैं जिनके नुकीले और बड़े-बड़े नेत्र हैं लेकिन रसिक जन जिन नयनों के वश में हो जाते हैं वे नैन कुछ और ही होते हैं |

इस  'कछु और' पर 'गौर'  करें |





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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