रंग बरसे उर्फ़ संवेदनशील सरकार
पता नहीं, लोगों को किस नई आशा और विश्वास के चलते रोमांच हो रहा है ? जैसे कि इस पाँचवें लॉक डाउन के बाद ८ जून को हो रहे इस पहले अनलॉक में कौन-सा अवतारी वीर बालक प्रकट होगा जो कष्टों से घिरी इस पृथ्वी का उद्धार करेगा ? कौन पिछले ७० सालों से रसातल में ले जाई जा रही इस पुण्यभूमि को बचाने के लिए वराह अवतार लेगा ? कौन देश रूपी प्रह्लाद को कोरोना के हिरण्यकश्पप से बचाने के लिए अचानक खम्भे को फाड़कर नृसिंह भगवान की तरह प्रकटेगा | हम तो जानते हैं और हमारे यहाँ तो कहावत भी है कि बिटौरे में से कंडे के अलावा और क्या निकलेगा ? कल जो लोकतंत्र या राष्ट्रवाद के नाम से सड़कों पर थूक उछालता फिर रहा था और फिर कोरोना के चलते २२ मार्च को मजबूरी में बनारसी गमछे या मास्क में घुस गया, अब लॉक डाउन-५ के बाद अनलॉक- १ में से वही लफंगा तो निकलेगा |
तोताराम को भी शायद कुछ ऐसे ही किसी चमत्कार का मुगालता रहा होगा |तभी ठुमकता हुआ आया |गुनगुना रहा था- रंग बरसे....|
हमने कहा- अब और कौनसा रंग बरसना शेष रह गया है ? काले रंग ने गोरे रंग के घुटने के नीचे नौ मिनट दबकर दम तोड़ दिया |
बफैलो नियाग्रा में इस अन्याय के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले एक ७५ वर्षीय श्वेत बुज़ुर्ग को सड़क पर गिराकर उसका सिर फोड़ दिया गया |अमरीका के शहरों की सड़कों पर लाल रंग के छीटें छिटके हुए हैं |यहाँ भी एक ख़ास रंग से बसों, इमारतों को रंगकर देशप्रेम पैदा किया जा रहा है |वनस्पति अपने हरे और आकाश अपने नीले रंग के कारण संदेहास्पद लगने लगा है | लेकिन याद रखो बन्धु, सृष्टि है | रंग-बिरंगी और विविधरूपा |
एक रंग में रंग न सकोगे
दुनिया रंग-बिरंगी भगतो !
बोला- मास्टर, बिना बात ज्यादा दार्शनिक होने की ज़रूरत नहीं है |हर काम में रंग देखो, रंगीनी देखो |पानी का कोई रंग नहीं होता लेकिन क्या कोई बेरंग पानी देखा है | दारू में मिलकर नारंगी होकर नशा देता है, दूध में मिलकर पचास रुपए लीटर बिक जाता है |किसी पार्टी में मिलकर नीला, किसी में भगवा, किसी में हरा, किसी में सफ़ेद हो जाता है |रामविलास जी की पार्टी के निशान और झंडे का क्या रंग है ? पता है ? नहीं |जिसमें मिला दो लगे उस जैसा |
मस्त रहो तुम मस्ती में,
चाहे कोरोना फैला हो बस्ती में |
हमने पूछा- फिर भी तेरे इस 'रंग बरसे' का क्या सन्दर्भ है ?
बोला- निसर्ग चक्रवात की वजह से मध्य प्रदेश के अनेक जिलों में हुई जोरदार बारिश ने शिवराज सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है। सरकार द्वारा खरीदा गया 300 करोड़ से ज्यादा का गेहूं पानी में भीग गया है।
हमने कहा- तो यह क्या कोई ठुमकने का विषय है ?यह तो दुःख और शर्म की बात है |
बोला- रंग तो इसमें भी है |पहले इस भीगे गेहूँ की फिंकवाई का बजट बनेगा |फिर इसी गेहूँ को थोड़ा साफ़-सूफ करके आटा बनवाकर प्रवासी मजदूरों को किसी योजना के तहत खिला दिया जाएगा |कल्याण का कल्याण और कमाई की कमाई |जब देश आज़ाद हुआ था तब अमरीका से जाने कैसा-कैसा गेहूँ आया करता था और लोग कैसे-कैसे उसे भी खा जाया करते थे |
हमने कहा- यदि उसे खाकर कुछ लोग मर गए तो ?
बोला- तो क्या तेरे हिसाब से अब कोरोना के अलावा और बीमारियों से लोग मरना बंद हो गए हैं ?यदि ख़राब गेहूँ से कुछ लोग मर गए तो विपक्ष पर भी एक मुद्दे रूपी रंग के कुछ छींटे पड़ जाएंगे |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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