Jun 15, 2021

नाम ही काफी है


 नाम ही काफी है 


आज अक्षय तृतीया है, ईद भी, परशुराम जयंती भी और जैनियों का भी कोई त्यौहार. हमारे यहाँ राजस्थान में तुष्टीकरण, पुष्टीकरण या दुष्टीकरण जैसा कुछ नहीं चल रहा है. वैसे यहाँ फिलहल ऐसी कोई समस्या भी नहीं है. यदि किसी के मन में थोड़ी बहुत खुराफात हो तो भी अब कोरोना ने सब की हवा बंद कर रखी है, सिर्फ नाक के दो सिलेंडरों से अबाध ऑक्सीजन खींचने वाले रामदेव के भक्तों के अतिरिक्त. वैसे सुना है उनके सिपहसालार योगी जी इलाज के लिए एम्स में भर्ती हुए थे. अब उनके आश्रम में ४० लोग संक्रमित पाए गए हैं. पता नहीं, किसी अस्पताल में हैं या वहीं कपाल ठोंकते हुए कपालभाति कर रहे हैं.

हमने पहला टीका १ अप्रैल को लगवाया था. पता नहीं, यह दिन हमें क्यों सूझा ? लगता है 'मूर्ख-दिवस' को वास्तव में मूर्ख बन गए. उस समय कहा था- चार हफ्ते बाद दूसरा टीका लगेगा. फिर टीका सप्लाई की कमी हुई तो इसे आठ हफ्ते का कर दिया गया.

हमारे यहाँ जो देश का एकमात्र विश्वसनीय अखबार आता है उसमें 'नमो नमो मोर्चा, भारत' और 'जय जय राजे राजस्थान' के गली मोहल्ला अध्यक्ष के मनोनयन का तो समचार आ जाता है लेकिन यह सूचना कहीं नहीं होती कि आज किस आयु वर्ग वालों को, कौन सा टीका, कहाँ और कितने बजे से कितने बजे तक लगेगा ? हमारे एक परिचित अखबार में हैं. हमने उनसे शिकायत की. उनके प्रयासों से आज टीके के बारे इस आशय का समाचार ढंग से छपा. बहू ने कहा- पिताजी, मौका है, टीका लगवा ही लें. 

सो हम टीकाकरण के लिए आधार-कार्ड की फोटो प्रति, मोबाइल जिसमें हमारे पिछले टीके का नाम और  प्रमाण क़ैद था, पानी की बोतल, पूरी बाँहों की कमीज़, डबल मास्क, सिर पर टोपी लगाकर उसी तरह निकले जैसे कि राजपूत अंतिम युद्ध लड़ने के लिए केसरिया अफीम और केसरिया कपड़े पहनकर निकलते हैं. उसी तरह मरणान्तक आस्था लेकर कि उस भीड़ में कोरोना का आक्रमण हो भी जाए तो कोई बात नहीं, आज तो दुर्योधन की तरह दूसरा टीका लगवाकर शरीर को वज्र का करवा ही लेंगे.

वहाँ पहुँच कर कई देर धूप में खड़े रहने के बाद  पता चला कि सरकार ने अपनी ३०३ सीटों के बल पर संविधान के मार्ग दर्शक सिद्धांतों की तरह कोरोना टीकाकरण के नियम भी बदल दिए हैं. बताया गया कि अब टीका चार-छह हफ़्तों की बजाय आठ-बारह हफ़्तों के बाद लगेगा. वहाँ से लौटते समय पसीने में पानी पी लिया और नाक में पानी हो गया. सो आज सुबह-सुबह  बहती हुई नाक को पोंछते हुए बरामदे में बैठे थे कि तोताराम ने हाँक लगाई- मुबारक हो ! 

हमने कहा- क्या इस बहती हुई नाक के लिए है या फिर 'द डेली गार्डियन' में मोदी जी की प्रशंसा के लिए या फिर 'लांसेट' में मोदी जी की निंदा के लिए ? 

बोला- ये कोई चर्चा के विषय नहीं होते. आजकल पुरस्कार और निंदा-स्तुति सब मेनेज किये जाते हैं. 

हमने पूछा- तो बधाई किस बात की ?

बोला- अक्षय तृतीया की. 

हमने कहा- आज ईद भी तो है. 

बोला- मैं ममता की तरह मुसलमानों का तुष्टीकरण नहीं करने वाला. आज तो हिन्दू, जैन और तेरे लिए है यह बधाई.

आज तेरी शादी को बासठ साल हो गए ना. वैसे तेरी नाक को क्या हुआ है ? कैसे मोदी जी के साथ केजरीवाल की वर्चुअल मीटिंग की तरह लीक हो रही है ?

हमने कहा- कल टीके की दूसरी डोज़ लगवाने गए थे. डोज़ तो लगी नहीं. हाँ, पसीने में पानी पीने से नाक में पानी ज़रूर हो गया. 

बोला- अब जिस तरह बेड, ऑक्सीजन, वेक्सीन, एम्बुलेंस आदि की कमी के कारण नाक बचाने के लिए जैसे मध्य प्रदेश की एक मंत्री उषा ठाकुर यज्ञ में आहुति डलवा रही हैं, रामदेव नाक वाले दो सिलेंडरों के ऑक्सीजन खिंचवा रहे हैं. कंगना पीपल के पेड़ के नीचे सोने की सलाह दे रही है वैसे ही सरकार ने तय कर लिया है कि जब तक वेक्सीन की आपूर्ति ठीक नहीं होती तब तक सरकार दूसरी डोज़ के लिए चार से छह, छह से आठ, आठ से बारह, बारह से बावन हफ्ते की गाइड लाइन निकाल देगी. 

हमने कहा- तो फिर क्या करें ?

तोताराम ने अपनी जेब से एक शीशी निकालकर हमारे हाथ पर रख दी. हमने पढ़ा और पूछा- यह कहीं रामदेव वाली तो नहीं है. लिखा है -रामदासवीर.

बोला- ओ अंग्रेज की पूँछ. रामदास वीर नहीं, रेमडेसीवीयर है.  

हमने कहा- कहीं यह गुजरात में बनी नकली रेम डेसीवीयर तो नहीं जो गुजरात से महाराष्ट्र वाया मध्य प्रदेश तेरे पास तो नहीं आ गई. इसमें नमक और ग्लूकोज के अलावा कुछ नहीं होता. गुजरात के बने और पी एम केयर फंड से खरीदे गए वेंटिलेटर भी खराब निकल रहे हैं. 

बोला- जैसे मोदी जी की 'मन की बात'  आजमाने के लिए नहीं बल्कि  एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने के लिए होती है वैसे ही इसे लगवाना थोड़े है. केवल जेब में रख और दिन में एक माला  'यहाँ-वहाँ मोदी जी सदा सहाय छे' की फेरना.

बस, नाम ही काफी है. 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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