Jun 19, 2021

सिद्धि तो संकल्प से ही होगी


सिद्धि तो संकल्प से ही होगी 


आज तोताराम ने आते ही कहा- चाय की औपचारिकता करने की ज़रूरत नहीं है. मैं ठीक आठ बजे पहुँच जाऊँगा. तू  हैवी नाश्ता करके तैयार रहना. टीके का दूसरा शॉट लगवाने के लिए चलेंगे.

हमने कहा- हम शनिवार को गए थे तो बताया गया कि अभी टाइम नहीं हुआ है. आज समाचार है कि अमिताभ बच्चन ने कल दूसरा शॉट लगवाया. पहला शॉट उसने भी हमारी तरह अप्रैल के शुरू में ही लगवाया था. 

बोला- ठीक है अमित जी तुमसे उम्र में छोटे हैं लेकिन वे महानायक है और तुझे आजतक एक्स्ट्रा का भी कोई रोल नहीं मिला. उनके टीका लगवाने से हैड लाइन बनती है, लोगों को प्रेरणा मिलती है कि टीका लगवाएं और मोदी जी के 'टीका-उत्सव' कार्यक्रम को सफल बनाएं. 

हमने कहा- लेकिन जब टीका पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध ही नहीं है तो कैसा तो टीका-उत्सव और कैसी सफलता.  ऊपर से फोन पर टीका लगवाने के लिए डायलर टोन आती है सो अलग.

बोला- कुछ भी हो लेकिन चलेंगे ज़रूर. और रोज चलेंगे. जब तक टीका नहीं लग जाता तब तक रोज चलेंगे. भले ही वहाँ जा जाकर संक्रमण ही क्यों न हो जाए. 

हमने कहा- लोग टीका लगवाकर भी तो मर ही रहे हैं. हम क्यों बिना बात टीके के चक्कर में मरने के काम करें. बचना होगा तो ऐसे भी बच जायेंगे. 

बोला- यही तो कमी है. मोदी जी ने जो कहा है- 'संकल्प से सिद्धि',  वह ऐसे ही नहीं है. इसका मूल भाव समझ. सिद्धि कैसी भी हो, देवों, दानवों, दैत्यों, राक्षसों, देवों, सुरों, सज्जनों और दुष्टों  किसी को भी प्राप्त हुई हो लेकिन  आज तक बिना दृढ संकल्प के प्राप्त नहीं हुई है. संकल्प, अटूट विश्वास और मरणान्तक धैर्यजनित प्रतीक्षा के कारण ही अहल्या और शबरी तक राम खुद पहुंचे थे. 

तुझे वह बोध कथा तो पता ही है. दो व्यक्ति थे. एक नियम से शिव मंदिर में दीया जलाने जाता था और दूसरा बुझाने. एक दिन मौसम भयंकर खराब. दीया जलाने वाला आलस्य कर गया लेकिन बुझाने वाला लगन का पक्का, दृढ  संकल्पी. पहुँच गया. शिव तो आशुतोष. उसके संकल्प से प्रसन्न होकर सिद्धि प्रदान कर दी. 

हमने कहा-  और ऐसे वरदान भी शिव ही देते हैं. सिर्फ संकल्प देखते हैं नीयत नहीं देखते. ये सब बातें बोध कथाओं में ही होती हैं.

बोला- ऐसा नहीं है. तू चाहे तो भारत के विगत एक शताब्दी के इतिहास से इसे भली भाँति समझ सकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम लीग ने भारत के किसी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग नहीं लिया फिर चाहे वह गाँधी का आन्दोलन हो, भगत सिंह का या फिर सुभाष का. गाँधी की हत्या के बाद प्रतिबन्ध लगा. १९५२ में जनसंघ बनाकर चुनाव लड़ा. कोई ख़ास सफलता नहीं मिली. फिर दूसरों से साथ मिलकर घुसपैठ की. जनता पार्टी बनी, सत्ता का स्वाद चखा और जिनके सहयोग से आगे बढे थे उन्हें ही धता बता दिया. फिर भारतीय जनता पार्टी बनी. १९८४ में संख्या २ पर पहुँच गई लेकिन अपने संकल्प पर दृढ रहे.  फिर राम मंदिर की राजनीति से २ से १८२ पर पहुँच गए. और अब ३०३.  आज भी आत्मा शांत नहीं है. हर छोटे-बड़े चुनाव में मोदी जी सब काम छोड़कर जीवन-मरण के प्रश्न की तरह पिल पड़ते हैं. भले ही बंगाल को रैलियों के दुष्परिणाम कोरोना के प्रकोप के रूप में भोगने पड़ें. 

हमने कहा- वैसे देश के विकास में कांग्रेस का भी बड़ा योगदान है.

बोला- इससे कौन मना कर सकता है लेकिन हर पीढी को अपने देशकाल के अनुरूप प्रयत्न करने पड़ते हैं. कांग्रेस के पुण्यों का फल नेहरू युग तक लगभग निबट गया. आगे पुण्य और तपस्या का क्रम चला नहीं तो पुण्य का खाता खाली हो गया. ओवर ड्राफ्ट कब तक और कितना मिलेगा. पुण्य क्षीण होने के बाद तो सबको ग्राउंड जीरो पर आना ही पड़ता है. अब आगे जैसे कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा. फिलहाल तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अपने पुण्य, संकल्प और तपस्या का फल भोगने का समय है. 

हमने कहा- लेकिन सत्ता में तो भाजपा है. 

बोला- राहु-केतु दोनों एक ही व्यक्ति के सिर और धड़ हैं.  भाजपा से सभी शीर्षस्थ नेताओं का प्रादुर्भाव संघ में ही हुआ है. सत्ता हथियाने के लिए जिन अन्य दलों और व्यक्तियों को पकड़ा गया है उन्हें न तो कभी विश्वसनीय माना गया और न उन्हें कभी दीवानेखास में प्रवेश मिला.

हमने कहा- तो क्या अब किसी और का भविष्य है या नहीं ? 

बोला- इस समय तो मुस्लिम लीग का ही भविष्य दिखाई देता है. 

हमने कहा- सच है, घृणा से घृणा, कट्टरता से कट्टरता और ध्रुवीकरण से ध्रुवीकरण को ही बढ़ावा मिलता है.   शायद इसी रुझान को देखते हुए फहमीदा रियाज़ ने लिखा था-

तुम भी हम जैसे ही निकले 

अब तक कहाँ छुपे थे भाई. 

 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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