Jun 28, 2021

धक्के का विश्लेषण

धक्के का विश्लेषण 


आज दूध वाले की गाय उछल गई. कई दिन की ब्याही है सो उछल-कूद स्वाभाविक है. गाय की इस क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप पूरा दूध धराशायी हो गया. न तो दूध वाला और न ही हम क्षीर सागर में शयन करने वाले विष्णु हैं कि हाथ में लोटा लेकर लटकाया और भर लिया दूध या क्षीर (खीर) से. अब तो जब दुकान खुलेगी तब थैली लायेंगे तभी चाय बनेगी. जैसे वेक्सीन की शोर्ट सप्लाई में लोग मजबूरी में महामृत्युंजय या संकटमोचन या गायत्री मन्त्र का जाप कर रहे हैं वैसे ही हम भी कप में पानी डालकर 'प्रतीकात्मक चाय' पी रहे थे कि तोताराम ने टोका- अकेले- अकेले.


हमने कहा- पानी पी रहे हैं. तू भी पी ले, कप क्या लोटा भरकर. आज गाय उछल गई. दूध के लिए नुक्कड़ वाली दुकान खुलने का इंतजार करना पड़ेगा. 


बोला- मुझे भी जल्दी नहीं है. आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण विश्लेषण करना है. 


हमने कहा- अब जो हो चुका, वह हो चुका. अपने उन बयानों और बकवासों का विश्लेषण करो जिनके कारण 'अबकी बार, दो सौ पार' करते-करते दहाई में ही रह गए. 


बोला- विश्लेषण बंगाल के चुनाव परिणाम का थोड़े ही करना है. उसके लिए तो हमने अपने पास के ही झुंझुनू जिले के धनकड़ जी को बैठा रखा है जैसे केजरीवाल को अटकाने के लिए अनिल बैजल अड़ा रखा है. बंदा ग्राउंड तैयार कर रहा है. थोड़ा सा यह कोरोना वाला धक्का सेटल हो जाए फिर लगा देंगे राष्ट्रपति शासन. आज तो धक्के का विश्लेषण करना है. 


हमने कहा-  आजकल तो सड़कों पर कोई भीड़ भी नहीं फिर तुझे किसने धक्का मार दिया ?


बोला- मेरे मरने-जीने, धक्कों-मुक्कों की किसको फ़िक्र है. मैं कोई फैशन और फ़िल्म की हसीना थोड़े हूँ जिनके बैकलेस ब्लाउज, फटी जींस, टोंड टाँगे और बदन दिखाते फोटो छपेंगे. हम तो धरती पर आए ही धक्के खाने के लिए हैं. निस्पृह भाव से धक्के खाने के लिए. पहले स्कूलों के धक्के, फिर नौकरी के लिए धक्के, फिर नौकरी में ट्रांसफर के धक्के, फिर पेंशन और पे कमीशन के धक्के और अब कोरोना के दूसरे टीके के लिए धक्के. आदरणीय मैं अपनी नहीं, मोदी जी की बात कर रहा हूँ. 


हमने कहा- मोदी जी और धक्का. उन्होंने तो बड़ी चतुराई से अपने बुजुर्गों, समकालीनों और छोटों तक सबको धकियाकर ठिकाने लगा दिया फिर चाहे वे केशू भाई हों, वाघेला हों, अटल-आडवानी-मुरली मनोहर हों, महबूबा मुफ़्ती हों. अंतिम शिकार हुए रामविलास पासवान. अगला नंबर सुशासन बाबू नीतीश कुमार का है.  किसी कार्यक्रम में यदि कोई गैर इरादतन ही आगे आने लगे तो हटा देते हैं फिर वह बाबुल सुप्रियो या मार्क ज़करबर्ग कोई भी हो. कौन पैदा हो गया मोदी जी धक्का मारने वाला या धकियाने वाला ? 


बोला- सीधे-सीधे तो कौन धक्का दे सकता है, कमांडो से घिरे रहते हैं, कई कई स्तर की सुरक्षा है, वैसे भी वे किसी को ज्यादा नज़दीक नहीं आने देते. बंगाल के चुनाव में एक मुस्लिम को अपने कान में फुसफुसाने देना, कुम्भ के पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोना या बांगला देश में 'नाम शूद्र' मातुआ सम्प्रदाय के मंदिर में पंखा झलना वास्तविक नहीं, चुनावी था. हाँ, कोरोना प्रबंधन में वेक्सीनेशन, ऑक्सीजन, बेड, श्मशान और गंगा में बहती लाशों को लेकर पहले 'लांसेट' और अब 'द गार्डियन' में छपी खबरों ने उनकी छवि को धक्का पहुंचा है. 


हमने कहा- छवि का क्या है ? थोड़ा-सा खर्च करके बन ही जाएगी. अब भी तो गैस सिलेंडरों और कोविड के टीके में छपी उनकी फोटो लोगों को उनकी चरण-वंदना करने को विवश कर देती है. दुनिया मोदी जी की अंतर्राष्ट्रीय छवि से जलने लगी है. अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन, रूस, आस्ट्रेलिया आदि के राष्ट्रपतियों-प्रधानमंत्रियों को डर लगने लगा है कि कहीं मोदी जी उनकी कुर्सी न हथिया लें. 


बोला- वैसे कुछ सच्ची पत्रकारिता अब भी बची है. कुछ दिन पहले ही 'द डेली गार्डियन' ने लिखा है-  भारत में कोरोना संकट के इस समय में प्रधानमंत्री मोदी बहुत काम कर रहे हैं, इसलिए लोग विपक्ष के भ्रमजाल में ना फंसे. इस आर्टिकल को बीजेपी के लोगों और मोदी सरकार से जुड़े मंत्रियों ने जमकर शेयर किया.


हमने कहा- यह सब 'मेड बाय यू.एस.ए'. है. 


बोला- यह तो और भी बड़ी बात है. 


हमने कहा- तुझे पता नहीं इस रहस्य का. एक बार भारत में बहुत-सा नकली माल उक्त ब्रांड के नाम से आने लगा. संयोग से एक कम चतुर और कम रसूख वाला व्यक्ति पकड़ा गया. उसके माध्यम से कुछ और लोगों तक पहुंचा गया तो पता चला कि इस यू.एस.ए. का फुल फॉर्म था 'उल्हासनगर सिन्धी एसोसियेशन'.अब कर लो बात. 


इस ‘द डेली गार्डियन’ का प्रतिष्ठित ‘द गार्डियन’ अखबार से कोई लेना देना नहीं है. यह एक वेब साईट है. इस पर पीएम मोदी की तारीफ में छपा आलेख एक संपादकीय है जिसे बीजेपी के मीडिया रिलेशंस के कन्वेनर सुदेश वर्मा ने लिखा है जो टीवी डिबेट में पार्टी प्रवक्ता की भूमिका भी निभाते हैं. उन्होंने ‘नरेंद्र मोदी: द गेम चेंजर’ नाम की किताब भी लिखी है. ICANN (Internet Corporation for Assigned Names and Numbers) के मुताबिक ‘thedailyguardian.com’ डोमेन का रजिस्ट्रेशन उत्तर प्रदेश का है. ये डोमेन आईटीवी नेटवर्क के नाम से रजिस्टर्ड है और इसका मेलिंग अड्रेस भी यूपी दिया गया है.


बोला- 'द गार्डियन' रोज छपता है तो 'डेली' हुआ या नहीं. और यह सुदेश वर्मा वाला भी 'डेली' है तो क्या फर्क पड़ता है ? प्रशंसा तो प्रशंसा है, कोई भी करे. 


हमने कहा- कबीर जी ने तो कहा था- निंदक नियरे राखिये....लेकिन यह तो खरीदी गई प्रशंसा है.


बोला- अब कबीर का ज़माना नहीं है. अब पब्लिसिटी का ज़माना है. सेटिंग करो, खरीदो. और कुछ न कर सको तो खुद ही ऑटो रिक्शे पर कैसेट बजाते निकल पड़ो, अपनी प्रशंसा के कैसेट बजाते. कौन ध्यान देता. जो दिखता है सो बिकता है. मनमोहन इसी भलमनसाहत में मार खा गए. समझदार आदमी ऐसा रिस्क नहीं लेते. अब तो दिल्ली में उन से पुलिस द्वारा पूछताछ करवाई जा रही, पूछताछ क्या डराया जा है जो लोगों को अपने स्तर पर ऑक्सीजन, बेड या कोई और मदद कर रहे हैं.आखिर इससे भी कंगना के अनुसार देश के पिता अर्थात मोदी जी की छवि को धक्का लगता है. 


बोला- कल से तू अपने नाम से पहले 'डॉ.' लगाना शुरू कर दे. कोई विरोध करे तो मेरा नाम बदल देना. देश में आज भी 'लाइफ ब्वाय' की जगह 'लाइट बॉय', 'कोलगेट' की जगह 'गोलगेट' धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं. कांग्रेस के नाम का उपयोग करके जाने कितने ही नकली लोगों ने अलग पार्टियां बनाईं. नक़ल और बुराई में मार्जिन ज्यादा है. अब तो गुजरात से लाखों नकली रेमडेसीवेयर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में आ रही है कि नहीं ? लोगों को नोट के तो असली-नकली होने का पता लगता नहीं, नेता के चोर या चौकीदार होने के फर्क की पहचान तो हो नहीं सकती.ऐसे में क्या खाकर 'द गार्डियन' और 'द डेली गार्डियन' का फर्क समझेंगे. सभी बंगालियों की तरह नहीं होते जो दाढ़ी के अन्दर घुसकर टैगोर को ढूँढ़ लेते हैं. देख लेना एक दिन वे नकलचियों के प्रचार की आंधी में धोखा खा ही जायेंगे. बहुत से बच्चों को तो गाँधी के 'हे राम' और 'नाथू राम' में ही फर्क नहीं मालूम.  


हमने कहा- लेकिन धक्के का विश्लेषण कब करेंगे कि धक्का कब, कहाँ, किस दिशा से, किस तीव्रता का, किस इरादे से लगा. सम्प्रति धक्के, धक्के मारने, धक्के खाने वाले और इस धक्के से विचलित होने वालों और इस धक्के से खुश होने वालों का क्या भविष्य है.  


बोला- अब जब इस  'मेड इन यू पी'  'द डेली गार्डियन' का विश्लेषण ही तूने कर दिया तो बाकी रह क्या गया. चलता हूँ.


हमने कहा- इस विश्लेषण के दौरान दूध आ चुका है. अभी चाय बनी जाती है.


बोला- अब इस विश्लेषण के बाद किस मुंह से चाय पियूँ ? लेकिन क्या किया जाए हम लोग इतने असभ्य और असंस्कारी भी तो नहीं हो सकते. लेकिन तेरी इस चाय के प्रति उत्तर में मैं तुम्हारा नाम अपनी संस्था की ओर से साहित्य के 'नो बॉल' या 'जान पीठ' पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करवा सकता हूँ.


हमने पूछा- तेरी कौनसी संस्था है ?


बोला- बीजेपी अर्थात  'भारतीय जुगाडू पुरस्कार' . 'द डेली गार्डियन' के विश्लेषण के बाद अभी इस संस्था का जन्म हुआ है. जल्दी ही रजिस्ट्रेशन भी हो जाएगा. 


हमने पत्नी से कहा- तोताराम के लिए एक आम भी काट दे. भले ही झूठी हो लेकिन प्रशंसा से मन गदगद हो गया.


पत्नी ने उत्तर दिया- किसी को दोष देने से कोई फायदा नहीं. ज़रा सी प्रशंसा से तुम्हारी यह हालत हो गई तो  स्वार्थ के कारण ही सही, लेकिन जिसके नाम की करोड़ों लोग माला जपते हों, उसके पैर ज़मीन पर कैसे टिकेंगे.


हमने कहा- इसमें भक्तों का कोई दोष नहीं है. रहीम जी ने ठीक ही कहा है-


रहिमन आटा  के लगे बाजत है   दिन-रात  


घिउ शक्कर जे खात नित तिनके कौन बिसात 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment