Oct 11, 2021

हम किस पर भड़कें


हम किस पर भड़कें 


आज हमारा मूड खराब है लेकिन कमजोर का मूड खराब हो तो भी वह अपना जी जलाने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकता है ? और जी का भी यह हाल है कि उसमें जलने लायक बहुत कम सामान शेष रह गया है. सूखी हड्डियां बिना चिकनाई के अब क्या जलें. सरसों का तेल ही दो सौ रुपए हो गया है तो शुद्ध देशी घी की चिकनाई के बारे में तो सोचना ही व्यर्थ है. यदि किसी सेवक, वित्तमंत्री या फ्री टीके लगवाने वाली सरकार का मूड खराब हो तो वह रसोई गैस, डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ा सकती है. किसी देशभक्त सत्ताधारी नेता का मूड खराब हो तो आन्दोलनकारी किसानों पर जीप चढ़ा सकता है. हम किस पर गुस्सा निकालें. बस, बरामदे में बैठे-बैठे भुनभुना रहे थे कि तोताराम प्रकट हुआ. 

हम उसी पर झपटे- तोताराम, हम किस पर भड़कें ?

बोला- क्यों क्या भड़कना ज़रूरी है ? देख वर्ष ऋतु समाप्त हो गई है. निर्मल चाँदनी छिटकने लगी है. अब वर्षा के काले बादल कहीं नज़र नहीं आते. नीले आकाश में कहीं-कहीं मोदी जी की दाढ़ी के समान श्वेत बादल तैरते हुए दिखाई दे जाते हैं. नवरात्रा शुरू हो गए है. रसिक युवा युवतियां तरह-तरह सुन्दर वस्त्रों में सजधजकर गरबा के बहाने एक पंथ कई काज करने के लिए निकलने लगे हैं. अखबारों में व्रतियों के लिए नए-नए व्यंजनों के नुस्खे आ रहे हैं. दुर्गा की भक्ति कर, फलाहार कर. पंडित खरीददारी के शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो खरीददारी कर. कुछ दिन बाद शरद पूर्णिमा आएगी. सोच, किन किन मिक्स मेवों की खीर बनाएगा. सुविधा हो तो सुमित्रानन्दन पन्त  जी की तरह ' चांदनी रात में नौका विहार' कर. 

हमने कहा- धनवानों के लिए तो हर मौसम आनंद के लिए होता है लेकिन गरीब के लिए तो सर्दी, गरमी और वर्षा सभी मौसम परेशान करने वाले होते हैं. हमारा दुःख बहुत बड़ा नहीं है. हम अमरीका की एक पत्रिका 'विश्वा' का संपादन करते हैं. उस संस्था का २० वाँ द्विवार्षिक अधिवेशन अमरीका के क्लीवलैंड में ९-१० अक्तूबर को हो रहा है, निमंत्रण भी है लेकिन 'वीजा' एक्सपायर हो गया. अमरीकन एम्बेसी के रुटीन काम बंद हैं. क्या करें ? यह गुस्सा किस पर निकालें ? किस पर भड़कें ? 

बोला- बीते दिनों कंगना रानावत का पासपोर्ट भी रिन्यू नहीं हो पाया तो खबर पढ़ी थी कि कंगना महाराष्ट्र सरकार पर भड़की. सो अगर भड़काना ज़रूरी हो तो महाराष्ट्र सरकार पर भड़क ले.  

हमने कहा- लेकिन हमारा काम कोई महाराष्ट्र सरकार के कारण थोड़े ही रुका हुआ है. 

बोला- बात भड़कने की ही तो है. अमरीका वाले तो मोदी जी की ही नहीं सुनते. उलटे लोकतंत्र और गाँधी के उपदेश पिलाने लगते हैं. सो तेरे वीसा के नवीनीकरण पर क्या ध्यान देंगे. वैसे भारत में भी सभी सरकारों पर भड़कना संभव नहीं. कहीं का मुख्यमंत्री भड़कने वालों पर लट्ठ चलवा देगा, तो कहीं कोई मंत्री-पुत्र जीप चढ़ा देगा,  तो कहीं का डी. एम. सिर फोड़ने का आदेश दे देगा.महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल आदि की सरकार पर भड़क ले, कोई खतरा नहीं.  जैसे कंगना को महाराष्ट्र सरकार पर भड़कने पर बिना मांगे सुरक्षा उपलब्ध करवा दी गई वैसे ही तुझे भी कोई छोटा-मोटा पुरस्कार-सम्मान देकर  उपकृत कर दिया जाएगा.

और किसी पर भी भड़कने की हिम्मत नहीं है तो गाँधी नेहरू पर भड़क ले. हो सकता है इसी बहाने प्रज्ञा ठाकुर की तरह लोक सभा का टिकट ही मिल जाए.  


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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