May 24, 2024

2024-05-24 यूँ होता तो क्या होता


2024-05-24 


यूँ होता तो क्या होता


आजकल हम तोताराम पर हावी रहते हैं जैसे मोदी जी सभी विपक्षियों पर । एक बात का जवाब देने से पहले वे और उनके दाएं-बाएं रहने वाले एक से बढ़कर एक 50 अनर्गल बातें उछाल देते हैं कि विपक्ष अपनी बात भूल जाता है और जवाब देते देते ही पस्त हो जाता है जैसे आलू और पत्ता गोभी की सुहाग रात में आलू घूँघट ही उठाता रहा और रात बीत गई अर्थात मतदान का 7 वां चरण पूरा हो गया । 


लेकिन आज तोताराम आते ही हमारे कोई जुमला उछालने से पहले ही बैठते-बैठते बोला- अर्ज किया है । 


हमने कहा- अभी तो आए हो । मुशायरा शुरू होने में वक़्त है। तनिक बैठ तो सही । अर्ज भी कर देना । हम इरशाद और मुकर्रर भी कह देंगे । 

लेकिन तोताराम ने हमारी एक न सुनी, जैसे मोदी जी किसीकी नहीं सुन रहे हैं ।  और अर्ज कर ही दिया- 

हुई मुद्दत कि गालिब मर गया पर याद आता है 

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता । 

 

हमने कहा- बस, इसी आदत के कारण तो गालिब पीछे रह गया । बात बिना बात ज़िंदगी भर फच्चर फँसाता रहा- यूँ होता तो क्या होता । अरे, जो हो रहा है उसे देख सुन और बोल ‘अति उत्तम’ और मौज कर। लेकिन माने तब ना । तभी तो ज़िंदगी भर खाता रहा धक्के । 


बोला- यह शे’र गालिब का नहीं मोदी जी का है । 


हमने कहा- दुनिया जानती है यह शे’र गालिब का है । 


बोला- क्रोनोलॉजी समझ । जब गालिब मर ही गया तो फिर क्या शे’र लिखने वापिस आया और फिर शे’र लिखा और फिर मर गया  ? 


हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो पक्के राष्ट्रवादी हैं । वे हिजाब की जगह घूँघट बोलते हैं, रिवाज की जगह परंपरा बोलते हैं, मुबारक की जगह बधाई बोलते हैं ।

 

बोला- ऐसी बात नहीं है । ‘मोदी है तो मुमकिन है’ भी तो उन्हीं का दिया हुआ नारा है । वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता है और छंद, अनुप्रास के अनुसार उर्दू ही क्या, अंग्रेजी या किसी भी भाषा का उपयोग कर लेते हैं । 


हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो किसी भी बात में इफ्स ऐंड बट्स नहीं लगाते । वे पक्की पक्की गारंटी देते हैं । सब कुछ निश्चयात्मक रूप से कहते हैं जैसे भाइयो, मुझे 50 दिन का समय दीजिए उसके बाद चाहें जिस चौराहे पर —----। 


बोला- नहीं ऐसी बात नहीं है कल ही उन्होंने पटियाला में कहा- 1971 की जंग में 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक हमारे कब्जे में थे । मैं विश्वास से कहता हूँ, अगर उस समय मोदी होता तो उनसे करतारपुर साहिब लेकर राहत इसके बाद ही फौजियों को छोड़ता । तत्कालीन सरकार ऐसा नहीं करवा पाई और 70 साल तक करतारपुर साहिब के दर्शन दूरबीन से करने पड़ते थे । 


हमने कहा- तो मोदी जी को किसने रोका था, चले जाते शिमला और समझौते के समय इंदिरा जी को नेक सलाह देते कि वे पाक सैनिकों को तब तक न छोड़ें जब तक पाकिस्तान करतारपुर साहिब ही नहीं पाक अधिकृत कश्मीर वापिस न कर दे ।

 

बोला- कैसे चले जाते ? बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन में भाग लेने के कारण इंदिरा सरकार ने उन्हें जेल में जो डाल रखा था । 


हमने कहा- इंदिरा जी ने तो खुद जोखिम उठाकर मुक्तिवाहिनी की मदद की और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में साहस पूर्वक हस्तक्षेप करके उसे आजाद करवाया ।वे क्यों मोदी जी को बांग्लादेश मुक्ति का समर्थन करने के लिए जेल में डालेंगी ? और मोदी जी तो शायद उस समय चाय बेचने से बोर होकर अपने 35 वर्षीय भिक्षाटन पर निकले हुए थे । हमें सब पता है, हम उस समय 1971 से 1975 तक पोरबंदर में थे । 


बोला- इंदिरा जी नहीं चाहती थीं कि बांग्लादेश  की मुक्ति का श्रेय मोदी जी ले जाएँ । अगर मोदी जी उस समय जेल से बाहर होते तो हो सकता है अकेले ही बांग्लादेश को मुक्त करवा देते । 


हमने कहा- हो सकता है, यदि मोदी जी सन 1025 में होते तो महमूद गजनवी को सोमनाथ पर हमला करने के समय ही ठिकाने लगा देते । मोहम्मद गौरी को भी दिल्ली में घुसने नहीं देते ।और अगर अमित शाह जी होते तो उसी समय सी ए ए लगा देते और कोई भी मुसलमान और ईसाई भारत में घुस ही नहीं पाता । 

 

बोला- क्या किया जाए । यह इस देश का दुर्भाग्य है कि मोदी जी उस समय नहीं थे । अगर राम के समय में होते तो राम को कहीं जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती । ये ही लंका में जाते और रावण का टेंटुआ पकड़कर उसे राम के चरणों में ला पटकते ।1857 में होते तो तभी देश को आजाद करवा लेते, और अगर 1947 में होते तो विभाजन नहीं होने देते और पहले प्रधानमंत्री होते तो  नेहरू जी को देश का सत्यानाश करने का मौका ही नहीं मिलता । अब देखा नहीं, 500 साल से भगवान होने के बावजूद राम लला टेंट में टाइम काट रहे थे और अब ये आते ही राम लला को अंगुली पकड़कर ले आए और कर दिया मंदिर में स्थापित ।  सम्बित पात्रा ने जगन्नाथ को मोदी जी का भक्त ऐसे ही थोड़े कहा है ? 

 हमने कहा- तोताराम, तो फिर एक काम कर मोदी जी को लेकर लद्दाख वाले वांगचुक के पास चला जा । वह मोदी को उन इलाकों में ले जाएगा जहां चीन ने कब्जा कर रखा है । फिर तू और मोदी जी दोनों लाल आँख दिखाकर चीन के कब्जे वाले भारतीय इलाके को मुक्त करवा लेना और फिर आजकल राजनाथ सिंह जी भी तो घर में घुसकर मारने लगे हैं । जिससे फिर 2047 में फिर यह नहीं कहना पड़े-

मैं होता तो यूँ होता 

और मैं होता तो त्यूँ होता । 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 19, 2024

2024-05-14 शाहजादे के राजसी ठाठ और मोदी जी का अंतिम मास्टर स्ट्रोक

शाहजादे के राजसी ठाठ और मोदी जी का अंतिम मास्टर स्ट्रोक 


आज तोताराम बहुत कुढ़ा, चिढ़ा आया और सड़ा हुआ मुँह बनाते हुए बोला- देखे, शाहज़ादे के ठाठ । 

हमने पूछा- शाहज़ादा कौन ? जय शाह ?

बोला- मास्टर, तेरा भी दिमाग पता नहीं कहाँ-कहाँ आलतू-फालतू घूमता रहता है । जय शाह तो बेचारा अपनी पसीने की कमाई से काम चला रहा है । 

उसके कैसे और कहाँ के राजसी ठाठ ? उसके पिता का सरनेम ‘शाह’ है इसलिए तू उसे ‘शाहजादा’ कह सकता है । वैसे उसका किसी शाहजहाँ, अहमदशाह, मोहम्मद शाह, शहाबुद्दीन, बुल्ले शाह, शाहआलम, वाज़िद अली शाह आदि से कोई संबंध नहीं है ।  ‘शाह’ शब्द से किसी मुसलमान से भी कोई संबंध जोड़ना ठीक नहीं है । वह तो बेचारा सीधा-सादा, सात्विक, वैश्य बालक है । गुजरात में शाह प्रायः वैष्णव विचारधारा को मानने वाले होते हैं । बहुत से शाहों के आराध्य नाथद्वारा के साँवलिया सेठ हैं । कहते हैं ये वही साँवरिया सेठ हैं जिन्होंने गरीब नरसी मेहता की बहिन नानी बाई का भाई बनकर मायरा (भात) भरा था ।और ये नरसी मेहता वही हैं जिनका लिखा ‘वैष्णव जन’ गांधी जी का प्रिय भजन है । वह भजन एक सच्चे वैष्णव व्यक्ति और उसके सभी गुणों की गणना कुछ ऐसे करता है कि फिर कुछ शेष नहीं रहता । एकदम सम्पूर्ण धर्म ।

जो दूसरों के दुख को समझता हो, वाणी, वासना और मन को अडिग रखता हो,  किसी की निंदा नहीं करता हो, सेवा करके भी जिसके मन में अभिमान नहीं हो, दूसरों के धन पर कुदृष्टि नहीं रखता हो, सबको समान समझता हो ऐसे जन हो वैष्णव होते हैं और इनकी संगति से खुद का ही नहीं अपने पूर्वजों का भी उद्धार हो जाता है । 


हमने कहा- ऐसे लोग आज के जमाने में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं ? आजकल तो बड़े बड़े लोग सत्ता और स्वार्थ सिद्धि के लिए तरह तरह के षड्यन्त्र करते हैं, गाली गलौज करते रहते हैं किसी को एक खास परिवार और खानदान के नाम से, तो किसी को एक खास धर्म के नाम से । 


बोला- मैंने तो सैद्धांतिक बात की है ।वास्तव में कौन कैसा है यह आजकल कहाँ पता चलता है ? लोग अपने कुकर्म सत्ताबल, धनबल, पदबल, बाहुबल की आड़ में छुपा लेते हैं । यहाँ तक कि कानून,मीडिया, पुलिस सबको खरीदकर संत बने फिरते हैं ।

 

हमने पूछा- तो फिर किस ‘शाहज़ादे’ की बात कर रहा है ? 


बोला- एक ही तो शाहज़ादा है इस देश में ।  जिसके परिवार में तीन तीन प्रधानमंत्री हुए, सबका जीवन ऐशो आराम में बीता और अब भी क्या ठाठ हैं !

 

हमने कहा- हाँ, बड़े ठाठ हैं, एक ने अपना महल और सब संपत्ति पार्टी के लिए दान में दे दिया, एक ने नौ-दस साल जेल में काटे,  किसी ने अपने गहने डिफेंस फंड में दे दिए, घर में दो दो शहीद हो गए, पैंतीस साल से उस परिवार में कोई मंत्री, प्रधानमंत्री नहीं बना, और एक यह है, जुनूनी जो सारे देश को जोड़ने के लिए दक्षिण से उत्तर और पूर्व से पश्चिम धूल धप्पड़ में पैदल घूम रहा है ।उसे तू शाहज़ादा कह रहा है । उसके कौनसे ठाठ तुझे अखर रहे हैं ? 


तोताराम ने अपनी जेब से अपना स्मार्ट फ़ोटो निकालकर हमारी आँखों में घुसेड़ते हुए कहा- देख, ये हैं ठाठ । 


कभी बनवाई है ऐसे सैलून में कटिंग ? 

हमने कहा- हाँ, कल ही बनवाकर आए हैं केला गोदाम के पास वाले सैलून में ।  लेकिन हम उसके चक्कर में नहीं पड़े । सबसे सस्ती वाली 50 रुपए वाली बनवाकर आए। उसने हमें ललचाने की कोशिश की, कहा- बाबा, सिर की मसाज कर दूँ ? हमने साफ कह दिया- जो चाहे कर दे लेकिन रुपए 50 ही देंगे ।

कोरोना की आपदा में अवसर खोजकर हमने एक ट्रिमर मँगवा लिया और पिछले चार साल से संडे की संडे दाढ़ी खुरच लेते हैं और दो महीने में वही ट्रिमर सिर पर घुमा देते हैं । मोदी जी की कृपा और ट्रिक से, न सही खातों में 15 लाख, कटिंग और दाढ़ी के हजारों रुपए तो बचा ही लिए । लेकिन क्या करें,  पाँच सात दिन में पोती अपनी ससुराल से आ रही है और बहू ने कहा- अब तो कटिंग सैलून में ही बनवा आइए ।   


बचपन की बात और थी । उन दिनों तो बाजार में कटिंग की कोई दुकान होती ही नहीं थी । घरेलू नाई होता था जो जब तब बरामदे में बैठकर  हमारा सिर अपने घुटनों में दबाकर मूँड देता था । हमारा मुंडना भेड़ का मुंडना होता था । जाते होंगे धार्मिक कनेक्शन वाले मुस्टंडे स्वर्ग, हम तो आज 82 साल बाद भी इस ‘बरामदा कुंभीपाक’ में पड़े हैं ।आगे चलकर जब नाइयों ने घर आना बंद कर दिया तो किसी पेड़ के नीचे सड़क किनारे सस्ते में कटिंग बनवा आया करते थे । 


बोला- मोदी जी, शाह जी और उनके शाहज़ादे को तूने कभी सैलून में ऐसे ठाठ से कटिंग बनवाते और दाढ़ी सेट करवाते देखा है ?मोदी जी तो इतने मितव्ययी हैं कि जवानी में जब लोग ऐश करते हैं उन्होंने देश के संसाधनों और ऊर्जा की बचत करने के लिए अपने कुर्ते की बाहें ही आधी कर दीं । आजतक दाढ़ी नहीं बनवाई और सिर बाल भी बड़े ही रखते हैं । हमें तो लगता है पिछले 70 साल से नाई को एक पैसा भी नहीं दिए हैं । और ये गांधी नेहरू परिवार के शाहज़ादे ! 35 साल से घर में कोई मंत्री और प्रधानमंत्री नहीं है फिर भी ये ठाठ ! लगता है जरूर कोई अंबानी-अदानी टेम्पो में भरकर नोट पहुंचा रहा है । हो जाने दे अबकी बार 400 पार फिर सब पर्दाफाश कर देंगे । 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो सुना है दुनिया के सबसे अधिक ठाठ से रहने वाले शासनाध्यक्ष हैं । घड़ी, चश्मा, पेन, जूते कपड़े सब लाखों-लाखों के । कपड़े तो दिन में चार बार बदलते हैं और कोई ड्रेस दोबारा नहीं पहनते हैं । 


बोला- 35 साल भीख मांगकर खाया, दस-पाँच साल दौड़ दौड़ कर चलती ट्रेन में चढ़ उतरकर चाय बेची, देश की सेवा के लिए घर-गृहस्थी का सुख त्यागा । अब भी जब तब उपवास करते रहते हैं, भगवा वेश में सन्यासी की तरह नदियों, गुफाओं और यहाँ तक कि समुद्र के नीचे तपस्या करते रहते हैं ।दिन में 36 घंटे काम करते हैं । अब एक आदमी से और कितना त्याग चाहते हो । क्या किसी की जान ही लोगे ?     

और जहां तक इन ठाठ और शान शौकत की बात है तो यह सब वे अपने लिए नहीं बल्कि देश की इज्जत के लिए है । अब गांधी जी की तरह दुनिया में अधनंगे घूम-घूमकर सोने की चिड़िया और विकसित भारत की बेइज्जती करवाना क्या तुझे अच्छा लगेगा ? 

 

हमने कहा- लेकिन इन सबमें खर्च तो होता है । 


बोला-  सब जीव सब कुछ यहीं छोड़कर जाते हैं तो क्या मोदी जी ये सब अपने साथ ले जाएंगे ?देखना, 2025 में मोदी जी 75 के हो रहे हैं और तभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शताब्दी पूर्ण हो रही है । उस पुण्य अवसर पर मोदी जी नागपुर मुख्यालय में शस्त्र पूजा करके, शाह जी को सेंगोल सौंपकर केदारनाथ की गुफा में चले जाएंगे । सुना है उसकी साज सज्जा का काम बड़ी तेजी से चल रहा है । 


यह भारतीय ही नहीँ, विश्व राजनीति में मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक होगा । 

 




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 13, 2024

मितव्ययिता का ‘मोदी सिद्धांत’


मितव्ययिता का ‘मोदी सिद्धांत’ 


आज तोताराम ने चाय का गिलास थामते हुए कहा- मास्टर, लगता है चाय ठंडी हो गई है । दोबारा गरम करवाकर ले आ । 

हमने कहा- विश्व में ऊर्जा के दुरुपयोग से कार्बन उत्सर्जन बहुत हो रहा है । और फिर चाय को बार बार गरम करने से वह एक प्रकार से विषाक्त हो जाती है । इसीलिए बस अड्डे और रेलवे स्टेशन की चाय कभी नहीं पीनी चाहिए । वहाँ के चाय वाले बड़े चालाक होते हैं । चाय को गरम और फ्रेश बताकर चिपका देते है फटाफट पैसे लेकर उतर जाते हैं और ग्राहक झींकता रह जाता है । एक चाय के लिए ट्रेन से कूद तो नहीं सकता । जैसे नेता लोग झूठे और भावनात्मक वादे करके वोट ले लेते हैं फिर पाँच साल शक्ल तक नहीं दिखाते हैं । इस भारतीय लोकतंत्र में वापिस बुलाने का कोई प्रावधान भी नहीं है ।  उस भारतीय सन्नारी की तरह ज़िंदगी भर झींकते रहो जिसका निखट्टू पति न तो मरता है और न ही किसी काम का । सिंदूर और बिंदी का व्यर्थ का खर्च । 

 

बोला- हद हो गई । 50 मिलीलीटर चाय को गरम करने में कौन सी इस भूलोक की प्राणवायु समाप्त हो जाएगी । 

हमने कहा- मितव्ययिता किसी भी व्यक्ति,परिवार और समाज के लिए ही नहीं इस दुनिया के अस्तित्व के लिए भी बहुत जरूरी है । गांधी जी कहा करते थे कि यह धरती सबकी जरूरतों को पूरा कर सकती है लेकिन विलासिता और अपव्यय को नहीं । पहले लोग पानी, ईंधन आदि का मितव्ययिता से उपयोग करते थे तो किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। सबका पेट किसी न किसी तरह भर ही जाता था और आज इतने तथाकथित विकास के बावजूद अमरीका जैसे धनवान देश में भी करोड़ों लोग गरीबी, भुखमरी और अभावों से जूझ रहे हैं । अगर लोग भोजन जूठा छोड़ना बंद कर दें तो ही आधी समस्या हल हो जाए । 

बोला- मुंडन करने से मुर्दा हल्का नहीं हो जाता । 

हमने कहा- ऐसा नहीं है । बूंद बूंद से कब घड़ा खाली हो जाता है पता ही नहीं चलता । 

बूंद बूंद से घट भरे टपकत रीतो होय । 

गांधी जी ने चरखा चलाकर लोगों का नंगापन ढँक दिया था, लोगों को काम मिलने लगा था और ब्रिटेन के मैनचेस्टर की मिलें बंद होने लगी थीं । उन्होंने खुद भी कुर्ता धोती और साफा छोड़कर केवल आधी धोती में ज़िंदगी गुजार दी । ब्रिटेन के राजा से इसी अधनंगे वेश में मिले । दुनिया देखती रह गई । चर्चिल ने उसे ‘अधनंगा फकीर’ कहकर मज़ाक उड़ाया । 

बोला- ऐसे ही 1979 में बनी फिल्म गोलमाल में नायक अमोल पालेकर ने भी कम लंबाई का कुर्ता पहनकर अपने एम्पलोयर भवानी शंकर को प्रभावित किया है । वास्तव में यह मितव्ययिता का संदेश देने का ऋषिकेश मुखर्जी का बढ़िया आइडिया था । 

हमने कहा- यह आइडिया ऋषिकेश मुखर्जी का नहीं, मोदी जी का था । 1972 में ही मोदी जी पूर्णकालिक प्रचारक बन गए थे । उस समय उन्हें संघ की शक्ति को बढ़ाने के लिए बहुत समय और ऊर्जा की जरूरत थी । तभी उन्होंने प्रेस करने का समय और धोने की ऊर्जा बचाने के लिए अपने कुर्ते की बाहें आधी कर दी । और इस प्रकार ‘मोदी कुर्ते’ का आविष्कार हुआ । जबकि जैकेट वाले नेहरू जी इतने विलासी थे कि पूरी बाँह का कुर्ता पहनते थे ।  

बोला- कुछ भी हो गुजरात के लोग होते तो मितव्ययी हैं । एक चाय में तीन तीन लोग काम चला लेते हैं । तभी चाय वाला पहले से ही एक कप के साथ नीचे दो प्लेटें रखकर लाता है । 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने जो मितव्ययिता बाँहों  की लंबाई कम करके की उसे कुर्ते की लंबाई बढ़ाकर बराबर कर दिया । यह तो वैसे ही हुआ जैसे कोई दिन में उपवास करे और शाम को दोनों वख्त का खाना पेल जाए । 

बोला- यह बात तो है मास्टर, लेकिन ऐसा क्यों होता है ? गांधी जी ने तो एक बार आधी धोती अपनाई तो फिर ज़िंदगी भर निभाई । 

हमने कहा- जब हम कोई चीज मजबूरी में त्यागते या आडंबर के तहत अपनाते हैं तो वह हमारे जीवन का हिस्सा नहीं बन पाती । जैसे गांधी ने अधनंगापन स्वेच्छा से अपनाया था । बुद्ध और महावीर ने राज अपनी मर्जी से त्यागा था इसलिए जब दुनिया उनकी दीवानी हो गई तो उन्होंने आजकल के बाबाओं की तरह पाँच सितारा आश्रम नहीं बनाए और न ही वहाँ लंपट लीलाएं रचाईं । 

बोला- तो फिर सी एस आई आर की इस योजना का क्या निहितार्थ है कि सभी कर्मचारी सोमवार को बिना प्रेस किए कपड़े पहनकर ड्यूटी पर आएंगे । 

हमने कहा- यह भी न्यूज बनाने और मितव्ययिता का  ‘आधी बाँह काट’ तरीका है । वरना हमारे जमाने में लोग न तो प्रेस किए कपड़े पहना करते थे और न ही रोज रोज ड्रेस बदलते थे । ड्यूटी से आकर कमीज या कुर्ता खूंटी पर टांग देते थे और अगले दिन फिर उसीको पहनकर ड्यूटी चले जाते थे । दाढ़ी भी संडे की संडे बनाते थे । 

हमारे प्रिंसिपल थे, कहा करते थे कि वे अपनी पेंट और कमीज तह करके तकिये के नीचे रख देते हैं तो सवेरे ऐसी मिलती हैं जैसे प्रेस की हुई हों । और मितव्ययिता का यह हाल तब था जब वे अविवाहित थे ।रिटायर होते ही अपना दो कमरे का मकान बनवाकर अपने घर आगरा चले गए । फंड के रुपयों के ब्याज से काम चलाते थे और उसमें से भी बचाकर अनाथ बच्चों के एक आश्रम को दे देते थे । 

और आजकल तो किसी के जनाज़े में जाने से पहले ब्यूटी पार्लर में होकर आते हैं ।दिन में दस ड्रेसें बदलते हैं और ऐसी झकाझक और कड़क जैसे कि चलते चलते भी चार लोग साथ में प्रेस लिए चलते हों और जहां भी कोई सलवट देखी वहीं प्रेस घुमा दी । प्रश्न ऊर्जा का नहीं इमेज का है । सजी धजी इमेज का । चारों तरफ 55 कैमरे लगे रहते हैं । हर जगह फ़ोटो जो खिंचनी है ।

प्रधान सेवक परिधान सेवक हो गए हैं । 

 




पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 10, 2024

चाबियों का गुच्छा और सोने का सलीका


चाबियों का गुच्छा और सोने का सलीका   


आज तोताराम ने आते ही सूचित किया कि आज हम कोई इकतरफा चर्चा नहीं करेंगे बल्कि न्यायालय के एक तैयार हो रहे फैसले पर परिचर्चा करेंगे । 

हमने कहा- लेकिन यह गोदी मीडिया जैसी चर्चा नहीं होगी कि एंकर पहले से एजेंडा और अपनी पक्षधरता तय करके रखे । एक को सब कुछ बोलने की छूट दे और दूसरे पक्ष को हड़काता रहे ।  

चर्चा का विषय था- केजरीवाल को जमानत मिलेगी या नहीं और मिलेगी तो क्या उसके पास कोई अधिकार भी होंगे या नहीं । 

हमने कहा- हम भूमिका स्वरूप तुम्हारा ध्यान तनिक भारतीय परिवेश की ओर आकर्षित करना चाहेंगे । 

शुरुआत हमने ही की । कहा- तूने बांग्ला फिल्में तो देखी ही होंगी । उनमें घर की बड़ी बहू या सास अपनी साड़ी के एक कोने से चाबियों का एक गुच्छा बड़े करीने और ठसके से बांधे रहती है । वह गुच्छा ही उसके पद और पावर का प्रमाण होता है । भले ही उससे संबंधित हो या नहीं लेकिन उसकी अपेक्षा रहती है कि हर काम उसकी निगहबानी और इच्छा के अनुसार हो जैसे मोदी जी भले ही रेल मंत्री न हों लेकिन ‘वंदे भारत ट्रेन’को हरी झंडी वे ही दिखाते हैं (वैसे अब तक तो नेहरुकालीन मुसलमानी हरी झंडी का रंग भगवा कर दिया जाना चाहिए था ) , परीक्षा के समय विद्यार्थियों को गुरुमंत्र मोदी जी ही देते हैं, कोई शिक्षा मंत्री या उपकुलपति आदि नहीं देते हालांकि वे भी शिक्षा और परीक्षा के बारे में उतना ही जानते हैं जितना मोदी जी ।सास जब बहू को चाबियों का गुच्छा संभला देती है तो वह एक प्रकार से खुद वानप्रस्थ की तैयारी कर रही होती है और बहू को गृहस्थ के मौज मजे नहीं बल्कि वास्तविक जिम्मेदारी से अवगत कराने की शुरुआत कर रही होती है । वरना ‘हू आफ्टर - --’ वाली समस्या बनी ही रहती है । 


कभी कभी सासें भी बहुत चतुराई करती हैं । वे अंत तक अपना पद नहीं छोड़ना चाहतीं जैसे कि कुछ अतिमहत्वाकांक्षी नेता अपने मंत्रीमण्डल का यह हाल कर देते हैं कि जनता को पता ही नहीं चलता कि उनके मंत्रीमण्डल में अमुक विभाग का मंत्री कौन है लेकिन हमें नेहरू जी के समय में लगभग सभी  विभागों के मंत्रियों के नहीं तो कम से कम रक्षामंत्री, विदेशमंत्री, शिक्षामंत्री, कानून मंत्री, रेलमंत्री, खाद्यमंत्री आदि के नाम तो सब को पता होते ही थे । वे बहू को चाबियाँ इस निर्देश के साथ देती हैं कि ज्यादा खोलाखाली मत करना । 


बोला- चल, चाबियों को लेकर एक किस्सा सुन । एक बार किसी की बड़ी दुकान के एक विश्वसनीय नौकर ने अपने मालिक से शिकायत की कि मैं अब आपके यहाँ काम नहीं करना चाहता क्योंकि आप मेरा विश्वास नहीं करते । दुकानदार ने पूछा- तुम्हें ऐसा कैसे लगा ? नौकर बोला इसलिए कि आपने तिजोरी की जो चाबियाँ मुझे दे रही हैं उनसे तिजोरी खुलती ही नहीं ? 

इससे उस नौकर की विश्वसनीयता और ईमानदारी का अनुमान तो हो गया होगा । 

हमने कहा- लेकिन केजरीवाल की हालत इन दोनों से भी खराब है । जमानत मिलेगी तो मुख्यमंत्री का कोई काम नहीं कर सकेंगे । अरे, जब शादीशुदा होते हुए भी देश भर में 35 साल तक भीख माँगते ही फिरना है, घर लौटना ही नहीं है तो ऐसे सुहाग का क्या चाटना । शादी करके गौने के लिए 10 साल तक लटकाकर छोरे की जवानी खराब करने का क्या मतलब ? 

एक और किस्सा सुन ।बात उन दिनों की है जब लोगों के पास  बहुत कम सामान हुआ करता था ।  आपस में मांगकर काम चलाया जाता था ।  एक बार किसी के यहाँ मेहमान आए तो वह अपने पड़ोसी से चारपाई मांगने गया । पड़ोसी ने कहा- क्या बताएं भाई, घर में दो ही चारपाइयाँ ही हैं। एक पर मैं और मेरा बाप सोते हैं और दूसरी पर मेरी माँ और मेरी लुगाई सोती हैं । 

चारपाई मांगने आए सज्जन ने कहा- सालो, चारपाई दो या मत दो लेकिन ढंग से सोना तो सीख लो । 


यह सब वैसे ही है जैसे बारिश के दिनों में बछड़े के मुंह पर ‘छींकी’ बांधकर उसे खेत में छोड़ देना । 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 7, 2024

2024-05-07 बरामदे की रखवाली और हिमालय की चोरी


2024-05-07 

बरामदे की रखवाली और हिमालय की चोरी 


हमारे घर का बरामदा सामान्य और परंपरावादी बरामदा है । आजकल के  बरामदों की तरह किसी ग्रिल, शीशे और गेट से सज्जित बरामदा नहीं है ।  


बस, गेट के पास और कमरे के दरवाजे से लगता हुआ कोई साढ़े चार-पाँच फुट चौड़ा और नौ-दस फुट लंबा रास्ते की तरफ खुलता हुआ स्थान है जिसमें यदि धूप और बरसात न हो तो हम और तोताराम बैठते हैं, चाय पर चर्चा करते हैं । और कभी-कभी कोई रास्ते जाता भी बिना किसी कुंठा और कानूनी परमीशन के हमारी चर्चा में शामिल हो जाता है ।कभी कोई राहगीर भी यहाँ बैठकर सुस्ता लेता है तो कभी कोई शराबी भी बैठ जाता है ।  फिर खुद ही उठकर चल जाता है । पता लगने पर भी हम उससे उलझते नहीं क्योंकि वह अंधभक्त नहीं होता इसलिए खतरनाक भी नहीं होता ।  


‘बरामदा’ शायद अंग्रेजी के शब्द ‘वरांडा’ से बना है लेकिन हमारे अनुसार यह अरबी-फारसी के ‘बरामद’ शब्द से बना है । घर के निर्देशक मण्डल में बैठे आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरह हमें कभी भी यहाँ बरामद किया जा सकता है क्योंकि हमारे पास हजारों करोड़ का कोई प्लेन या कारों का काफिला नहीं है कि जब चाहे, जहाँ चाहे फुर्र से उड़ जाएँ । हमें तो वोट डालने के लिए भी घर वाले किसी ऑटो में पटककर ले जाते हैं ।  


मोदी जी प्रेस वार्ता तो करते नहीं लेकिन कभी-कभी आम खाने के तरीके जैसी अति अंतरंग बातें राष्ट्रहित में किसी कलाकार के माध्यम से जनता तक पहुंचा देते हैं । ठीक से याद नहीं लेकिन मोदी जी ने कभी किसी को किसी इंटरव्यू में बताया था- भगवान ने मेरे दिमाग में कोई ऐसी बड़ी चिप लगाई है कि मैं छोटा सोच ही नहीं सकता । इसलिए वे पहले के बने काशी, उज्जैन और अयोध्या में छोटे परिक्रमा-पथों की जगह बड़े बड़े कॉरीडोर बनाते हैं । इसीलिए नेहरू को छोटा दिखाने की कुंठा में पटेल की दुनिया की  सबसे ऊंची मूर्ति लगवाई, भले ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ के बावजूद उसे चीन से बनवाना पड़ा । 


एक बार तोताराम ने हमें सुझाव दिया कि क्यों न हम अपने ‘बरामदा-संसद’ का नाम मोदी जी के ड्रीम पोरजेक्ट की तर्ज पर ‘बरामदा विष्टा’ रख लें । लेकिन हमने उसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि जैसे भारत सरकार में कोई भी निर्णय लेने के सर्वाधिकार मोदी जी के पास हैं वैसे ही बरामदा संसद में वीटो पॉवर हमारे पास है । इस ‘बरामदा विष्टा’ नाम को स्वीकार न करने के पीछे एक कारण यह भी था कि हमें ‘विष्टा’ में ‘विष्ठा’ जैसी गंध अनुभव होती है । 


जब से मोदी जी ने चौकीदार होने के कारण हर स्तर पर देश की सुरक्षा की फिक्र करते हुए हर समय जागते रहने या बमुश्किल मात्र एक दो घंटे सोने का कठिन व्रत लिया है तब से हम निश्चिंत हैं । लेकिन अब चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले इस ‘इंडिया’ गठबंधन और मोदी जी के अनुसार ‘घमंडिया’ गठबंधन का हिन्दू संपत्ति लूटकर मुसलमानों को दे देने का एजेंडा लीक हुआ है मोदी जी ने सोना, खाना सब छोड़ दिया है और हमें भी ढंग से नींद नहीं आती है ।  हालांकि हमारे पास न लाखों का चश्मा, न लाखों का पेन, न लाखों की घड़ी, न करोड़ों के हवाई जहाज, न कोई पुंगनूर गाय, न ही भैंसें। न साइकल, बेटे बहू के साथ रहते हैं सो न कोई मकान। 


पहले कहा जाता था- 

सुख सोवै कुम्हार की, चोर न मटिया लेय  


अर्थात कुम्हार की पत्नी निश्चिंत सोती है क्योंकि कौन चोर मिट्टी उठाया ले जाएगा । लेकिन अब तो वह बात नहीं रही । अब तो रेत माफिया होते हैं जो हर साल हजारों करोड़ की रेत जहाँ तहाँ से खोदकर ले जाते है और कभी नकदी तो कभी बॉन्ड के रूप में दलालों को भुगतान करते रहते हैं । मान लो अगर किसी भक्त ने बरामदे के नीचे त्रिशूल देख लिया तो आधा बरामदा मंदिर के लिए चला जाएगा । अगर किसी घमंडिया ने आधा बरामद किसी मुसलमान को दे दिया तो हमारा और तोताराम का वर्षाकालीन संसद सत्र साढ़े चार गुना साढ़े चार फुट के बरामदे में कैसे संभव हो पाएगा ? इसी चिंता में ढंग से नींद नहीं आती । जब भी पेशाब करने उठते हैं या कुत्ता जोर से भूँकता है तो उठाकर देखते हैं कि राहुल गांधी किसी मुसलमान या ज्यादा बच्चों वाले को कब्जा दिलाने तो नहीं आ गए । 


कोई चार बजे कुत्ता बहुत जोर से भूँका तो हमें लगा अब तो जरूर कोई न कोई घमंडिया आ ही गया दीखे । बरामदे में जाकर देखा तो कोई नहीं । सुना है, नींद कम लेने से आदमी का दिमाग खराब हो जाता है । कई मानसिक बीमारियाँ हो जाती हैं । पता नहीं, अहर्निश जागने वाले,  140 करोड़ के प्रधान सेवक और प्रधान चौकीदार मोदी जी का क्या हाल हो रहा होगा ? लेकिन उनके पास इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है । राष्ट्र का अमृत काल जो चल रहा है । सो मोदी जी को चौबीसों घंटे जाग-जाग कर हिंदुओं की भैंसों की रक्षा का काम कम से कम 2047 तक तो करना ही पड़ेगा ।  उसके बाद वे शायद झोला उठाकर, फोटोग्राफरों को लेकर केदारनाथ की गुफा में ध्यान करने चले जाएँ लेकिन तब तक को यह कठिन व्रत निभाना ही पड़ेगा ।वैसे सन्यास आश्रम की आयु तो 2025 में हो जाएगी ।


सोचा, अब क्या सोएंगे । सो बरामदे में खड़े थे कि तोताराम भी आ गया । आश्चर्य ! इतनी सुबह ! 


बोला- क्या नींद नहीं आ रही ? कोई बुरा सपना देखा क्या ? 


हमने कहा- तोताराम, तुझे कैसे पता चला ? 


बोला- लगता है हम दोनों का हाल एक जैसा ही है । मुझे भी बड़ा अजीब सा सपना आया । हालांकि उसमें दिखाई दे रही समस्या का निदान तो हो गया लेकिन समस्या इतनी विचित्र और खौफनाक है कि अब भी वह सोने नहीं देती और तरह तरह की दुश्चिंताओं से डराती है । वैसे तूने क्या सपना देखा ?


हमने कहा- पहले तू बता ? 


बोला- नहीं, पहले तू बता । 


हमने कहा- कहीं तू हँसेगा तो नहीं । बड़ा ही विचित्र सपना है । लगभग असंभव ।मजाक न उड़ाने का आश्वासन मिलने के बाद हमने बताया- तोताराम, हमने देखा कि राहुल गांधी आधा हिमालय अपने कंधे पर उठाकर दक्षिण दिशा की तरफ भागे जा रहे हैं ।हो सकता है केरल के मुसलमानों को देने जा रहे हों ।


 सोच अगर राहुल गांधी इस में सफल हो गए तो ? फिर तो उत्तर दिशा में कोई रुकावट ही नहीं रहेगी । पूरा उत्तर भारत भयंकर ठंड से जम जाएगा। चीन सीधा दिल्ली पहुँच जाएगा । तब गंगा जमुना में पानी नहीं रहेगा, भोले बाबा को गंगा जल, राम लला को सरयू जल और जमना तट पर मथुरा में कृष्ण को तो पीने को पानी तक नहीं मिलेगा ।   


तोताराम ने हमारा कंधा थपथपाया, ढाँढ़स बँधाया और बोला- मास्टर, तूने आधा सपना देखा । आगे का आधा मुझे दिखाई दिया । चूंकि सपना बड़ा  विचित्र था इसलिए मुझे भी नींद नहीं आई तो तेरी तरफ चला आया ।


अब तो हमारी उत्सुकता अपने चरम पर । कहा- तोताराम, जल्दी बता । क्या राहुल गांधी हिमालय को केरल ले जाने में सफल हुआ ?


बोला- कैसे हो सकता था ? 56 इंच का सीना फिर किस दिन के लिए है ?मैंने देखा कि मोदी जी राहुल के पीछे दौड़ रहे हैं और उन्होनें झपटकर राहुल से हिमालय छीन लिया और तीव्र गति से दौड़ते हुए गंगोत्री-यमुनोत्री पहुंचे और हिमालय को यथास्थान स्थापित कर दिया । 

 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, यह कोई छोटी बात नहीं है । यह तो मोदी जी सतर्क और सशक्त थे जो छुड़ा लिया हिमालय । आखिर मोदी जी कब तक हिंदुओं की भैंसों, गायों, बकरियों और यहाँ तक कि हिमालय की रक्षा करते रहेंगे ? ठीक है। मोदी जी विष्णु के अवतार हैं, लेकिन अवतार भी तो अनंत काल तक नहीं रहते । राम-कृष्ण को भी तो अपनी लीला को समेटकर गोलोक और साकेत जाना ही पड़ा । 


अब जनता को हमेशा के लिए मोदी के भरोसे नहीं रहना चाहिए ।  

आज तो यह हिमालय है कल को कोई संविधान को उठाकर भाग जाएगा । तब क्या करेंगे ? 

 देश नेताओं नहीं, जनता की निगहबानी से चलता है । 


देखा नहीं, अमरीका में इज़राइल के अत्याचारों के विरुद्ध गाजा के प्रति मानवीय संवेदना की रक्षा कौन कर रहा है ? सरकार नहीं, विद्यार्थी । स्वतंत्र सोच के विद्यार्थी । गलगोटिया विश्वविद्यालयों के नहीं, कोलम्बिया कॉलेज के छात्र । वही कोलम्बिया कॉलेज जिसकी एक 23 वर्षीय छात्रा रशैल कोरी 21 साल पहले फिलस्तीनी अधिकारों का साथ देने के लिए एक फिलस्तीनी घर को बचाने के लिए एक इजराइली बुलडोजर के सामने खड़ी हो गई थी और उसे कुचल दिया गया था । 





पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 4, 2024

यह मोदी जी के बस का काम नहीं है

यह मोदी जी के बस का काम नहीं है 


आज जैसे ही हम बरामदे में गए तो देखा तोताराम पहले से ही बैठ हुआ है और वह भी चुपचाप । हमें बड़ा अजीब लगा । कहा- कब से बैठ हुआ ? आवाज क्यों नहीं लगाई ? 

तोताराम अनमना सा बैठा रहा और बोला- कुछ नहीं,बस वैसे ही । 

तोताराम और ऐसी मरियल आवाज ! ठीक है, तोताराम कोई इतना बड़ा महाबली नहीं कि जिसके चेहरे पर यौनशोषण के मामले में केस दर्ज होने पर भी शिकन न आए ।और पत्रकारों से ही पूछ ले कि कौन काटेगा मेरा टिकट ? अपने अहंकार में इतना भी मगरूर नहीं कि मणिपुर जैसे मामले में भी जुबान न खोले । अभी तक  तोताराम के पीछे कोई ई डी या सी बी आई नहीं पड़ी है इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह अपने आदर्शों के प्रति वास्तव में कितना प्रतिबद्ध है । फिर भी कुल मिलाकर हमें उसका इस प्रकार चुप रहना और मरियल आवाज में जवाब देना अच्छा नहीं लगा । 

पूछा- क्या बात है ? 

बोला- बात क्या है ? अब तो सब उम्मीदें समाप्त । एक मोदी जी का ही आसरा था लेकिन अब लगता है कि यह काम अब मोदी जी के बस का नहीं रहा ।  

हमने कहा- तोताराम, हम किसी भी बड़े से बड़े झूठ पर विश्वास कर सकते हैं । 15 लाख वाले जुमले को सच मान सकते हैं, दो  करोड़ नौकरियों के वादे पर भी विश्वास कर सकते हैं, यह भी मान सकते हैं कि चीन भारत की सीमा में नहीं घुसा लेकिन यह नहीं मान सकते कि दुनिया में कोई काम ऐसा भी है जिसे मोदी जी नहीं कर सकते । मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है । जो आदमी यहाँ बैठे बैठे रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकवा सकता है, चीन को लाल आँख दिखा कर हड़का सकता है, हर दिन एक एम्स, एक आई आई टी, हर दिन लाखों शौचालय, लाखों मकान बना सकता है, वह क्या नहीं कर सकता ? 

बोला- वह भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बना सकता  ?

हमने कहा- कैसी बात करता है । जो आतंकवादियों को उनके कपड़ों से पहचान सकता है, तीन तलाक समाप्त कर सकता है, जज को फुसलाकर राम मंदिर बनवा सकता है, हर मस्जिद के नीचे शिव लिंग ढूंढ सकता है, जो राम लला को अंगुली पकड़कर ला सकता है, जो हर अब्दुल की चूड़ी टाइट कर सकता है, जो हर बात में मुसलमानों को लपेट सकता है, जो अमरीका की सड़कों पर बुलडोज़र का जुलूस निकलवा सकता है, वही हिन्दू राष्ट्र बना सकता है । और कौन है जो इस दुष्कर और देश तोडू, घर फोडू  काम को कर सकता है ? 

बोला- मुझे तो लगता है कि यह काम अब राहुल बाबा ही करेंगे । 

हमने कहा- तोताराम तेरा दिमाग तो ठीक है या फिर कोविशील्ड का टीका लगवाकर खराब हो गया ? राहुल तो इस धार्मिक नफरत को मिटाना चाहते हैं । वे और उनका परिवार और उनके साथी और उनकी पार्टी और उनका गठबंधन कोई भी धार्मिक कट्टरता को नहीं मानते । 

बोला- मेरा तो दिमाग ठीक है लेकिन तेरा दिमाग जरूर कोरोना के वाइरस ने खा लिया है। ये राजनीति की बहुत गूढ बातें हैं । मोदी जी ने जो आशंका व्यक्त की कि राहुल गांधी हिन्दू महिलाओं के मंगल सूत्र छीन कर मुसलमानों में बाँट देंगे; बस इसी में छुपा हुआ है हिन्दू राष्ट्र का एजेंडा ?

हमें लगा कि तोताराम बात को घुमाने में मोदी जी से भी चार हाथ आगे है । फिर भी स्पष्ट करने के लिए पूछा- वह कैसे ?

हमने कहा- जब राहुल हिन्दू महिलाओं के मंगल सूत्र छीनकर मुसलमान महिलाओं में बाँट देंगे तो वे उसका क्या करेंगी ? पहनेंगी ही ना ! फिर करवा चौथ का व्रत करेंगी। ऐसे ही वे हिन्दू बन जाएंगी और उनके पीछे पीछे उनके पति और संतानें सब हिन्दू बन जाएंगे । और इसी कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए ब्राह्मणों के जनेऊ मुसलमानों को पहना देंगे । इसी तरह से फिर राजपूतों के ताव दी हुई मूँछें मुसलमानों को लगा देंगे । और हिन्दू का मतलब क्या होता है ? यह दिखावटी फरक ही तो है हिन्दू मुसलमान आदि में वरना तो सभी की समस्याएं तो वे ही रोटी, पानी, नौकरी, मकान, हारी-बीमारी, बच्चे, ब्याह शादी आदि ।

बोला- लेकिन उसमें भी तो एक नहीं, हजार पेंच हैं । हजारों जातियाँ, लाखों गोत्र, करोड़ों देवता,  तरह तरह के खानपान, पहनावे । इनमें कैसे समन्वय बैठायेंगे ?

हमने कहा- राजनीति का उद्देश्य समन्वय नहीं, सत्ता होता है । जब हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा तो फिर उसमें चुनाव जीतने के लिए ब्राह्मण, बनिया, भंगी, चमार, जाट, राजपूत किया जाएगा ।इस खाज का कोई इलाज नहीं है । न रोगी मारे, न ठीक हो और डाक्टर पलते रहें । 

बोला- तो फिर इसी तरह रहने में क्या बुराई है ?

हमने कहा- कोई बुराई नहीं । हो सके तो अर्थव्यवस्था के बारे में सोचो । उसी से रास्ता निकलेगा । भूख का इलाज मंदिर-मस्जिद और हिन्दू-मुसलमान में नहीं है । ये सब तो मूर्खों को बहकाने के बहाने हैं ।

बोला- मोदी जी के अनुसार तो पाकिस्तान भी चाहता है कि राहुल जीतें  । 

हमने कहा- और क्या ? धर्म के आधार देश बनने से दोनों देशों के कट्टर पंथियों का फायदा है । फिर बिना कुछ किए ही चुनाव जीतना आसान हो जाता है ।  नशे में आदमी को भूख प्यास कहाँ व्यापती है ।  







पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

May 3, 2024

2024-05-03 ये पकड़ दो रुपए और चुप बैठ


2024-05-03 


ये पकड़ दो रुपए और चुप बैठ 


आज तोताराम को चाय का गिलास पकड़ाते हुए हमारा हाथ थोड़ा काँप सा गया ।

 

बोला- क्या बात है, जैसे कम मतदान से सरकार का गला सूख रहा है वैसे ही तेरा हाथ किस भय से काँप रहा है ।

 

हमने कहा- हमने क्या किसी कंपनी से घटिया दवा बेचने की छूट के बदले बॉन्ड थोड़े ही लिए हैं जो डरेंगे । लगता है कोरोना के टाइम पर कोवीशील्ड के जो दो डोज़ लगवाए थे उन्हीं का कोई साइड इफेक्ट हो गया है । सुना है कुछ लोग तो हार्ट अटेक से मर भी गए ।  कुछ के हाथ-पैर कांपने लगे, कुछ को दिखाई कम देने लगा । 


बोला- ये सब योरप के देशों के अपने को कुछ ज्यादा ही लोकतान्त्रिक दिखाने के फालतू के चोंचले हैं । ये सब भारत की विश्व गुरु की छवि और उन्नति से जलते हैं इसलिए जब तब तरह तरह के सर्वेक्षण करवाते रहते और भारत की रेंकिंग नीचे दिखा कर अपनी खीझ निकालते रहते हैं । ये तो मोदी जी थे जो अपने प्रभाव से इतने टीके ले आए और लोगों को फ्री में लगवाकर कोरोना के कहर से बचा  लिया ।  


हमने कहा- लेकिन तोताराम हमें किसी ने मोदी जी का एक वीडियो भेजा है जिसमें वे एक महिला पत्रकार को इंटरव्यू दे रहे हैं । 


बोला- वह तो लोकतंत्र में मीडिया से मुखातिब होना भी जरूरी होता है वरना उन्हें कहाँ इतना समय है ? एक तो वैसे ही 20-20 घंटे प्रतिदिन काम करके हालत खराब रहती है । ऊपर से बार बार कहीं न कहीं चुनाव और इस बार 400 से पार का लक्ष्य ! 

वैसे उस इंटरव्यू में क्या खास हुआ था । 


हमने कहा- प्रश्न और उत्तर तो खैर हमेशा की तरह पहले से ही तय थे लेकिन यदि तुमने गौर किया हो तो उनके हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुलियाँ काँप रही थीं । हो सकता है उन पर भी टीके का कोई दुष्प्रभाव आ गया हो । 


बोला- क्या तूने उनका टीका लगवाते हुए फ़ोटो देखा है ? 


हमने कहा- कण कण में छुपा भगवान एक बार न दिखाई दे लेकिन मोदी जी का फ़ोटो दिखाई न दे यह नहीं हो सकता । बहुत पहले एक बार कोरोना के टाइम पर पोस्ट ऑफिस गए तो पोस्टमास्टर के पीछे मोदी जी दिखाई दिए । मोदी जी और सीकर के पोस्ट ऑफिस में । फिर ध्यान से देखा और दो समझदार लोगों से पता किया तो ज्ञात हुआ कि मोदी जी ने जनता को टीका लगवाने की प्रेरणा देने के लिए टीका लगवाते हुए अपने लाखों फ़ोटो देश के विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए हैं । उसी कार्यक्रम के तहत यह फ़ोटो यहाँ लगा है । 


तोताराम ने अगला प्रश्न किया- तो बता, मोदी जी कौनसी बांह में टीका लगवा रहे थे ?


हमने कहा- बाईं बांह में । 


बोला- और अंगुलियाँ कौनसे हाथ की काँप रही थीं ?


हमने कहा- दाहिने की । 


बोला- इसका मतलब यह हुआ कि टीके का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ । यदि टीके का दुष्प्रभाव हुआ होता तो बाएं हाथ की अंगुलियां  काँपतीं । यह तो 2024 में चुनाव में 400 पार की अग्रिम शुभसूचना के फलस्वरूप उनका दायाँ अंग फड़क रहा था ।पुरुष का दायाँ अंग फड़कना शुभ माना जाता है ।  


हमने कहा- लेकिन तोताराम, बीमारी और वह भी कोरोना जैसी,  क्या किसी सामान्य जन और प्रधानमंत्री में भेद करती है ? 


बोला- ऐसी बात नहीं है। जन्म, मरण, बीमारी, सुख-दुख छोटे बड़े, धनी-गरीब, हिन्दू-मुसलमान सभी को व्यापते हैं । इस काल में दुनिया में कोरोना अनेक देशों में अनेक नेता, व्यापारी, खिलाड़ी, कलाकार, सामान्य और विशिष्ट सभी तरह के लोग मरे भी हैं । चूंकि मोदी जी बाल ब्रह्मचारी हैं, सात्विक जीवन जीने वाले, संतोषी, अत्यंत विनम्र, सेवा भावी, सबका भला सोचने वाले, कुंठा, घृणा, राग द्वेष से मुक्त संत पुरुष हैं इसलिए भी उन पर टीके का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा । 


हमने कहा-  लेकिन हम तो सामान्य जीव हैं। अगर हमें कुछ हो गया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी । आजकल हाथ ही नहीं काँपते हैं बल्कि दृष्टि भी कमजोर हो गई है । तभी जब विश्व में भारत का डंका बज रहा है तो  हमें कुछ सुनाई नहीं दे रहा, चहुँमुखी विकास हो रहा है तब हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा । नअच्छे दिन, न पुराने डी ए का 18 महिने का एरियर, और न फोन में मार्च और अप्रैल की पेंशन की पीडीएफ़ तक नहीं दिखाई दे रही है । 


तभी अचानक तोताराम तैश में आ गया, बोला- भलाई का ज़माना ही नहीं रहा । एक तो फ्री में टीका लगवाया, मरने से बचाया और ऊपर से बिना बात पायजामे से बाहर हुआ जा रहा है । सीरम वाले से 175 करोड़ टीके खरीदे थे जिस पर 50 करोड़ के बॉन्ड मिले । मतलब एक टीके पर 26 पैसे । तूने दो टीके लगवाए तो कायदे से तेरे टीकों पर सरकार ने 52 पैसे कमाए होंगे । 


ये पकड़ दो रुपए और चुप बैठ ।  कमाई से चौगुने । और बंद रख अपनी जुबान । खबरदार जो लोक कल्याणकारी सरकार और सेवभावी नेताओं की बिना बात निंदा की तो । 


और तोताराम गुस्से में बिना चाय पिए ही चला गया । 


-रमेश जोशी


 

 



पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach