चाबियों का गुच्छा और सोने का सलीका
आज तोताराम ने आते ही सूचित किया कि आज हम कोई इकतरफा चर्चा नहीं करेंगे बल्कि न्यायालय के एक तैयार हो रहे फैसले पर परिचर्चा करेंगे ।
हमने कहा- लेकिन यह गोदी मीडिया जैसी चर्चा नहीं होगी कि एंकर पहले से एजेंडा और अपनी पक्षधरता तय करके रखे । एक को सब कुछ बोलने की छूट दे और दूसरे पक्ष को हड़काता रहे ।
चर्चा का विषय था- केजरीवाल को जमानत मिलेगी या नहीं और मिलेगी तो क्या उसके पास कोई अधिकार भी होंगे या नहीं ।
हमने कहा- हम भूमिका स्वरूप तुम्हारा ध्यान तनिक भारतीय परिवेश की ओर आकर्षित करना चाहेंगे ।
शुरुआत हमने ही की । कहा- तूने बांग्ला फिल्में तो देखी ही होंगी । उनमें घर की बड़ी बहू या सास अपनी साड़ी के एक कोने से चाबियों का एक गुच्छा बड़े करीने और ठसके से बांधे रहती है । वह गुच्छा ही उसके पद और पावर का प्रमाण होता है । भले ही उससे संबंधित हो या नहीं लेकिन उसकी अपेक्षा रहती है कि हर काम उसकी निगहबानी और इच्छा के अनुसार हो जैसे मोदी जी भले ही रेल मंत्री न हों लेकिन ‘वंदे भारत ट्रेन’को हरी झंडी वे ही दिखाते हैं (वैसे अब तक तो नेहरुकालीन मुसलमानी हरी झंडी का रंग भगवा कर दिया जाना चाहिए था ) , परीक्षा के समय विद्यार्थियों को गुरुमंत्र मोदी जी ही देते हैं, कोई शिक्षा मंत्री या उपकुलपति आदि नहीं देते हालांकि वे भी शिक्षा और परीक्षा के बारे में उतना ही जानते हैं जितना मोदी जी ।सास जब बहू को चाबियों का गुच्छा संभला देती है तो वह एक प्रकार से खुद वानप्रस्थ की तैयारी कर रही होती है और बहू को गृहस्थ के मौज मजे नहीं बल्कि वास्तविक जिम्मेदारी से अवगत कराने की शुरुआत कर रही होती है । वरना ‘हू आफ्टर - --’ वाली समस्या बनी ही रहती है ।
कभी कभी सासें भी बहुत चतुराई करती हैं । वे अंत तक अपना पद नहीं छोड़ना चाहतीं जैसे कि कुछ अतिमहत्वाकांक्षी नेता अपने मंत्रीमण्डल का यह हाल कर देते हैं कि जनता को पता ही नहीं चलता कि उनके मंत्रीमण्डल में अमुक विभाग का मंत्री कौन है लेकिन हमें नेहरू जी के समय में लगभग सभी विभागों के मंत्रियों के नहीं तो कम से कम रक्षामंत्री, विदेशमंत्री, शिक्षामंत्री, कानून मंत्री, रेलमंत्री, खाद्यमंत्री आदि के नाम तो सब को पता होते ही थे । वे बहू को चाबियाँ इस निर्देश के साथ देती हैं कि ज्यादा खोलाखाली मत करना ।
बोला- चल, चाबियों को लेकर एक किस्सा सुन । एक बार किसी की बड़ी दुकान के एक विश्वसनीय नौकर ने अपने मालिक से शिकायत की कि मैं अब आपके यहाँ काम नहीं करना चाहता क्योंकि आप मेरा विश्वास नहीं करते । दुकानदार ने पूछा- तुम्हें ऐसा कैसे लगा ? नौकर बोला इसलिए कि आपने तिजोरी की जो चाबियाँ मुझे दे रही हैं उनसे तिजोरी खुलती ही नहीं ?
इससे उस नौकर की विश्वसनीयता और ईमानदारी का अनुमान तो हो गया होगा ।
हमने कहा- लेकिन केजरीवाल की हालत इन दोनों से भी खराब है । जमानत मिलेगी तो मुख्यमंत्री का कोई काम नहीं कर सकेंगे । अरे, जब शादीशुदा होते हुए भी देश भर में 35 साल तक भीख माँगते ही फिरना है, घर लौटना ही नहीं है तो ऐसे सुहाग का क्या चाटना । शादी करके गौने के लिए 10 साल तक लटकाकर छोरे की जवानी खराब करने का क्या मतलब ?
एक और किस्सा सुन ।बात उन दिनों की है जब लोगों के पास बहुत कम सामान हुआ करता था । आपस में मांगकर काम चलाया जाता था । एक बार किसी के यहाँ मेहमान आए तो वह अपने पड़ोसी से चारपाई मांगने गया । पड़ोसी ने कहा- क्या बताएं भाई, घर में दो ही चारपाइयाँ ही हैं। एक पर मैं और मेरा बाप सोते हैं और दूसरी पर मेरी माँ और मेरी लुगाई सोती हैं ।
चारपाई मांगने आए सज्जन ने कहा- सालो, चारपाई दो या मत दो लेकिन ढंग से सोना तो सीख लो ।
यह सब वैसे ही है जैसे बारिश के दिनों में बछड़े के मुंह पर ‘छींकी’ बांधकर उसे खेत में छोड़ देना ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment