परनिंदा और पदोन्नति उर्फ निंदक नियरे राखिए
आज तोताराम ने बड़े राहत भरे स्वर में कहा- चलो, अच्छा हुआ । सरकार ने एक और गलती सुधार दी ।
हमने कहा- दिया लिया में बहुत फरक होता है ।
बोला- क्या फरक होता है ?
हमने कहा- जब कोई किसी और की गलती को ठीक करता है तो ‘सुधार देना’ कहते हैं जैसे योगी जी ने इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रखकर नेहरू जी की गलती सुधार दी या मोदी जी ने संसद में ‘सेंगोल’ रखवाकर नेहरू जी की तानाशाही को लोकतंत्र में बदल दिया । अगर मोदी जी नोटबंदी के लिए खेद प्रकट कर दें या हमारा 18 महिने के डीए का एरियर दे दें तो कहेंगे उन्होंने अपनी गलती ‘सुधार ली’ । लेकिन तू किस गलती के सुधार की बात कर रहा है ?
बोला- राजस्थान सरकार ने ‘परनिंदा’ के नियम को बदल दिया है ।वैसे पता नहीं, यह नियम कांग्रेस की सरकार ने बनाया था या भाजपा की सरकार ने लेकिन नए आदेश कल से लागू हो गए । ‘परनिंदा’ के मामलों में जिनकी पदोन्नति रोक दी गई थी अब वह पदोन्नति बहाल कर दी जाएगी ।
हमने कहा- परनिंदा भी भला कोई अपराध होता है । यह तो हमारा राष्ट्रीय मनोरंजन है । सतयुग से आजतक हम परनिंदा देखते सुनते आ रहे हैं । नारद जी इसके आचार्य थे जो जाने किस किस से किस किस की निंदा करके लड़ाई झगड़े करवाते रहते थे । यहाँ तक कि लक्ष्मी और पार्वती तक को अपने पतियों तक के विरुद्ध भड़का दिया करते थे । मंथरा को कैकेयी अपने साथ परनिंदा के लिए ही तो लाई थी । मंथरा ने भी परनिंदा के मामले में अपनी स्वामिनी का पूरा खयाल रखा । बहुत से राजा कबीर की सिफारिश पर निंदा कर्म में प्रवीण मंत्रियों को अपने अति निकट रखते थे । यह बात और है कि कबीर को अपने ज्ञान का लाभ नहीं मिला । किसी राजा ने उसे अनुराग ठाकुर की तरह अपना सूचना प्रसारण मंत्री नहीं बनाया ।
बोला- लेकिन किसी की पीठ पीछे निंदा करना है तो बुरा काम । खरे आदमी को जो कहना होता है स्पष्ट और मुँह पर कहते हैं ।
हमने कहा- जिसे तू खरा आदमी कहता है वे बेवकूफ होते हैं । हर राज में उपेक्षित रहते हैं और निंदा करने वाले हर सरकार की केबिनेट में घुस जाते हैं । देखा नहीं, लोग नेहरू-गाँधी की निंदा कर करके दस साल से चुनाव जीत रहे हैं । अब तो तीसरी टर्म भी मिल गई और उनका विश्वास है कि वे निंदा के बल पर हमेशा सत्ता में बने रहेंगे ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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