Nov 3, 2024

आ अब डूब मरें


 

 

आ अब डूब मरें 


83 वें साल में चल रहे हैंमोदी जी से भी आठ साल पहले अमृतकाल में प्रवेश कर चुके थे और रिटायर तो मोदी जी के 2001 में गुजरात का नेतृत्व संभालने के एक साल बाद ही हो चुके थे लेकिन छातीतब 56 की थी औरही आजवे दिन में 20-25 घंटे और बिना कभी कोई छुट्टी लिए काम कर सकते हैंहो सकता है वे, अगर कभी सोते हैं तो, सोते हुए भी ड्यूटी पर रहते हैंबड़ी कठिन ड्यूटी हैकेदारनाथ में ध्यान करें या विवेकानंद स्मारक में मौन व्रत धारें, ड्यूटी पर ही माने जाते हैंविष्णु को भी देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक सोने के लिए छुट्टी अलाउड है लेकिन मोदी जी को नहीं 

 

दोपहर आते आते हमारी तो बैटरी डाउन हो जाती हैलेटना ही पड़ता है भले ही नींदआएहाँ, कुछ देर के लिए अफीम की सी पिनक जरूर आती हैइसी मधुमती भूमिका में लेटे थे कि तोताराम का असमय वैसे ही प्रवेश हुआ जैसे कि मोदी जी अमेरिका से लौटकर अकस्मात सेंट्रल विष्टा की निर्माणाधीन साइट पर पहुँच गए 

 

हमने कहा- तोताराम, सुबह पाँच बजे से एक बजे तक आठ घंटे की ड्यूटी करके थोड़ा लेटे हैंहम मोदी जी नहीं हैं जो थकते नहींअब हम किसी विमर्श, बौद्धिक, विश्लेषण या मंथन के मूड में नहीं हैं 

 

बोला- अब जब नाक कट ही गई तो कैसा विश्लेषण और कैसा विमर्शअब तो बस, यह तय करना है कि शर्म के मारे डूब मरें या पंखे से लटककर आत्महत्या करें या फिर आमरण अनशन ?  

 

हमने पूछा-ं अभी महाराष्ट्र के चुनाव हुए ही नहीं तो फिर नाक कैसे कट गई ?  

 

बोला- तू उसकी फिकर मत करहरियाणा की तरहपहलवानों के अपमान और किसान आंदोलन में 700 किसानों की मौत के बावजूद, चुनाव जीतना आता है हमें ।  

 

हमने कहा- तो फिर नाक कैसे कट गई ? 

 

बोला- न्यूजीलैंड ने हमें अपने ही घर में 3-0 से सीरीज हरा दी ।  

 

हमने कहा- लेकिन इसमें शर्म की क्या बात है ? खेल में हार जीत होती ही हैजो अच्छा खेलता है वह जीत जाता हैवैसे भी खेल तो आनंद के लिए खेला जाता हैयुद्ध में भी दो लड़ते हैं तो एक जीतता और एक हारता है ।  कौन हारने के बाद आत्महत्या करता है ? नर होनिराश करो मन कोऔर फिर अगर शर्म से डूब कर मरना ही है तो क्रिकेट बोर्ड वाले, क्रिकेट से लाखों-करोड़ों कमाने वाले मरें ।  

 

बोला- वैसे मास्टर, हमतो कुछ कर सकते औरही हमारी जिम्मेदारी बनती है फिर भी तेरे अनुसार क्या कारण हो सकता है 

 

हमने कहा- जैसे अहमदाबाद में जिस पनौती के कारण आस्ट्रेलिया से जीतते जीतते हार गए थे कहीं वैसी ही कोई पनौती तो मुंबई स्टेडियम में नहीं पहुँच गई ? 

 

बोला- ये सब अंधविश्वास हैंअहमदाबाद वाला मामला किसी पनौती का नहीं बल्कि क्रिकेट के सट्टे का था ।  

 

हमने कहा- तो फिर 'कटेंगे तो बँटेंगे' वाले मंत्र पर काम करना चाहिए थासरफराज और मोहम्मद को खिलाने की क्या जरूरत थी ? और यह वाशिंगटन सुंदर कौन है ? क्या इसकी जगह कोई श्री विजयनगरम या प्रयागराज को टीम में नहीं लिया जा सकता थाराष्ट्रवादियों के लिए कोई ईसाई और मुसलमान कैसे शुभ हो सकता है ? और उनकी टीम में पटेल ? इसका भी कोई गुजराती एंगल देखना चाहिएलेकिन एजाज नाम से तो कोई देशद्रोही लगता है ।  

 

बोला- लेकिन हम इतने सांप्रदायिक और कट्टर नहीं हैं ।  

 

हमने कहा- तो फिर पिच के वास्तु, मैच के मुहूर्त और खिलाड़ियों की जन्म पत्रियाँ दिखवानी चाहियें थीं ।  

 

बोला- अगर इनमें भी कुछ नहीं निकले तो ? 

 

हमने कहा- तो फिर पिच गोबर से लीपनी चाहिए और खिलाड़ियों को गौ मूत्र से स्नान करके मैदान पर जाना चाहिए और हर बॉल पर जय श्रीराम का जयघोष करें । 

 

 

  

 

 







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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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