May 10, 2009

असली गरीब


अंधेर नगरी के आजीवन अध्यक्ष महाराजा चौपटादित्य ने शुक्रवार की शाम को सत्य का गला घोंटकर, गले में पत्थर बाँधकर संसद के कुँए में पटक दिया । शनिवार की रात को अंधेर नगरी के सभी संभ्रांत नागरिक और कानून व्यवस्था वीक एंड मनाने में व्यस्त थे, तब महाराजा ने सत्य को ठिकाने लगाने का निश्चय किया । जैसे ही लाश को कंधे पर उठाये जनपथ पर पहुँचे तो लाश में अवस्थित बेताल ने कहा- राजन! तुम क्यों परेशान हो रहे हो ? जब तक सत्ता है मौज करो । इस अंधेर नगरी में कोई चूँ तक करनेवाला नहीं है । पर पता नहीं तुम को क्या जिद है की हर वीक एंड पर लाश को ठिकाने लगाने निकल पड़ते हो । खैर तुम मानोगे तो नहीं । सो श्रम भुलाने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ । यदि तुमने जानबूझ कर मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे ।

"एक सबसे बड़े और संवेदनशील लोकतंत्र में एक बहुत दयालु राजा राज करता था । वह ग़रीबों के दुःख से दुःखी हो जाया करता था । एक बार उसे बताया गया कि राज्य के गरीब और बेरोज़गार लोग बहुत दुःखी हैं । तो राजा ने तत्काल देश के उन लोगों को आरक्षण प्रदान कर दिया जिनको आजतक आरक्षण प्रदान नहीं किया गया था ।
आरक्षण प्रदान करने के बाद राजा ने सोचा कि पता तो करें कि ग़रीबों की स्थिति में कितना सुधर हुआ है ? पाया गया कि गरीब लोगों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है । और उस आरक्षण का लाभ उठा कर धनवान लोग और धनवान हो गए हैं ।"

हे राजन! बताओ कि आरक्षण के बाद भी ग़रीबों की हालत में सुधार क्यों नहीं हुआ ?

महाराज चौपटादित्य ने उत्तर दिया- हे बेताल! इसमें कहीं कोई गड़बड़ी और गलती नहीं है । जिसको धन की जितनी ज़्यादा चाह है वह उतना ही गरीब है । शास्त्रों में कहा गया है कि- 'जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान' ।
जो लोग रूखी सूखी खाकर राम का नाम लेकर सो जाते हैं और फिर अगले दिन रोटी-रोजी के जुगाड़ में निकल जाते हैं उनके पास संतोष का धन है । कहा भी है कि 'जिनको कछू न चाहिए सो ही सहंसाह' । अतः तुम जिनको गरीब
समझ रहे हो वे ही सच्चे धनी और सहंसाह हैं । हर समय हाय-धन, हाय-धन चिल्लानेवाले सेठ, नेता, अधिकारी, दलाल ही वास्तव में गरीब हैं । अतः आरक्षण का लाभ वास्तव में गरीब लोगों तक ही पहुँचा है । जो इस व्यवस्था में कमी देखते हैं वे अज्ञानी है ।

चौपटादित्य के उत्तर को सुनकर बेताल की खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गए ।

४ मार्च २००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

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