May 15, 2009

अपना-अपना डर


शास्त्रों में सभी जीवों में चार गुण सामान बताये गए हैं - आहार, निद्रा, भय और मैथुन । इनमें से तीन तो भाग्य और संयोग पर निर्भर करते हैं पर चौथा तो सबको ही सताता है । आकाश में बिजली चमकती है तो गधा धरती पर संवेदनशील हो जाता है । हर गठबंधन सरकार को सहयोगी दल के खिसकने का डर सताता रहता है । मंदी के इस दौर में निजी कंपनियों के कर्मचारी को हर समय डर सताता रहता है कि पता नहीं कब पिंक-स्लिप मिल जाए । पब में जानेवाली लड़कियों को हर समय प्रमोद मुतालिक का डर सताता रहता है । चुनाव में हर नेता को पहले टिकट न मिलने का डर सताता रहता और टिकट मिलने के बाद हार जाने का डर सताता रहता है । जीत भी गए तो मंत्री पद से ड्राप कर दिए जाने का डर सताता रहता है । बरसात में टूटे छप्पर वाली बुढिया को टपके का डर सताता रहता है । गरज ये है कि डर कभी कम न हुआ ।

हमें उक्त डरों में से कोई नहीं सताता । हमें तो सबसे ज्यादा डर भावनात्मक संबंधों से लगता है । सलमान खान को ऐश्वर्या से भावनात्मक सम्बन्ध नहीं था और न ही ऐश्वर्या को सलमान से कोई भावनात्मक सम्बन्ध था तो किसी को कोई समस्या नहीं हुई । ऐश्वर्या अभिषेक के साथ पिंक पेंथर हो रही और सलमान केटरीना साथ खुश है । केटरीना के साथ भी उसका सम्बन्ध भावनात्मक है या नहीं यह तो कुछ समय बाद पता चलेगा । पर विवेक ओबेराय का ऐश्वर्या से सम्बन्ध भावनात्मक था तो बेचारा अब तक सूनामी पीडितों के बीच चक्कर लगा रहा है । सुरैया को देवानंद से भावनात्मक सम्बन्ध था सो बेचारी जिंदगी भर कुँवारी बैठी रहकर संसार से चली गई और देवानंद अब तक नई-नई हीरोइनों को चांस दे रहे हैं । गायों को गौ सेवकों से भावनात्मक सम्बन्ध है सो चारे की आस में गौशाला में भूखी मर रही हैं और गौसेवक चंदे का ३१ मार्च तक हिसाब निबटाने में लगे हुए हैं । राहुल गाँधी को कांग्रेस से भावनात्मक लगाव है सो भागे फिर रहे हैं झोंपड़ी-झोंपड़ी भारत की खोज कराने की लिए और शेष युवा हैं जो कहते हैं कि कांग्रेस में तो आ जायें पर दारू पिए बिना नहीं रह सकते ।

अब जब विजय माल्या ने कहा कि उन्हें गाँधी जी से भावनात्मक लगाव है तो हमारा माथा ठनका । सोचा उन से मिलकर ही बात साफ़ की जाए । गए तो देखा कि वे अपनी भावनात्मक उपलब्धि को सेलेब्रेट कर रहे थे । दीवारों पर सेलिना जेटली, मलैका अरोडा, मल्लिका शेरावत के सर्वदर्शी केलेंडर लटक रहे थे । कुल मिलकर सारा परिवेश गाँधीवादी हो रहा था । हमने उन्हें बधाई दी और पूछा- माल्या जी आपने गाँधी जी की विरासत तो बचाली मगर नशाबंदी के बारे में क्या विचार हैं ? बोले- मास्टर जी, भावना और विरासत अपनी जगह हैं और धंधा अपनी जगह है । यह धंधा न होता तो गाँधी जी की विरासत बचाने के लिए पैसा कहाँ से आता । और जो गाँधी जी की वस्तुओं के लिए बयानबाजी कर रहे हैं वे ही कौन से सूफी हैं ? हम जो कुछ करते हैं छुपा कर तो नहीं करते । और जब सगन कसाई भक्त हो सकते है तो विजय माल्या क्यो नहीं ? और फिर बताइए कौन सा गाँधी भक्त सेठ आया नीलामी में भाग लेने ।

हमें लगा विजय माल्या की बातें नितांत तर्कहीन नहीं हैं ।

८ मार्च २००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

  1. माल्‍या को आपने करीब से देखा। व्‍यंग्‍य की दृष्टि से ही सही। :)
    कुछ और भी बताइएगा कि इस इंसान में और क्‍या दिखता है। पता नहीं क्‍यों मुझे ये आदमी ठीक लगता है। या तो भ्रष्‍टता में इतना गहरा पहुंच चुका है कि उसी का मगरमच्‍छ हो गया है या फिर उससे ऊपर उठ गया है। पता नहीं। कुछ दृष्टि डालिएगा।

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