आदरणीय बाल ठाकरे जी,
जय महाराष्ट्र, जय 'मराठी मानूस' । सबसे पहले तो हम इस बात के लिए क्षमा माँगते है कि हम आपको हिन्दी में पत्र लिख रहे हैं । मराठी की लिपि देवनागरी है इसलिए पढ़ तो सकते हैं, यदि हम महाराष्ट्र में रहते होते तो शीघ्र ही बोलना भी सीख जाते । तब यदि विधान सभा में शपथ लेने की नौबत आती तो हम मराठी में ही शपथ लेते और कभी भी आज़मी की तरह हिन्दी में शपथ लेने जैसा जघन्य अपराध नहीं करते । दूसरे, हम सचिन की तरफ़ से भी क्षमा माँगते हैं । आपके सलाह देने के बाद से इतना डर गया कि अहमदाबाद में मात्र चार रन पर ही आउट हो गया । अमितजी और मधुर भंडारकर समझदार है जो तत्काल ही क्षमा माँग ली ।
आजकल मास्टरों और देश को रास्ता दिखने वालों तक को दिशाओं का ज्ञान नहीं है तो दसवीं-बारहवीं पास सचिन को इतिहास-भूगोल का इतना ज्ञान कहाँ से होता । उसे आप और आपके महान आदर्शों तथा इतिहास-भूगोल का ज्ञान होता तो ऐसा नहीं बोलता । जब १९६० में बंबई का महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन हुआ और उससे भी पहले जब सौ से भी अधिक लोगों ने मराठी सम्मान और महाराष्ट्र के निर्माण के लिए बलिदान दिया था तब तो वह पैदा भी नहीं हुआ था । वह तो आप और हम जैसे लोगों को मालूम है । सचिन तो सोलह साल का होते ही क्या, उससे भी पहले से ही क्रिकेट खेलने लग गया था । कहाँ से यह सब समझ पाता । हमें ही आज तक कुवैत और सिंगापुर की राजधानियों का पता नहीं है ।
दुनिया में करीब दो सौ देश हैं । सभी मात्र राष्ट्र ही हैं । महाराष्ट्र कोई भी नहीं । राष्ट्र से बड़ा महाराष्ट्र होता है । भारत से बड़ा महाभारत होता है । ब्राह्मण से बड़ा महाब्राह्मण होता है जो मृतक-कर्म का दान लेता है । तो सचिन ने कहा- मुम्बई सारे भारत की है । यह भी नहीं सोचा कि यदि मुम्बई सारे भारत की हो गई तो आपके और राज के पास क्या रहेगा । जैसे कश्मीर हिंदू पंडितों का नहीं हो सकता वैसे ही मुम्बई किसी भारतीय की कैसे हो सकती है ?
महाराष्ट्र के निर्माण के लिए सौ से भी अधिक लोगों ने बलिदान दिया । किसी को तो बलिदान देना ही पड़ता है । यदि सभी समझदार लोग अपना बलिदान दे देते तो आज महाराष्ट्र और 'मराठी मानूस' की अस्मिता की रक्षा कौन करता ? राज्य बनवाना सरल है पर आप और राज की तरह दिन रात भूखे रहकर काम करना अधिक कठिन है । आप नहीं होते तो महाराष्ट्र का क्या होता । हम आपके स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना करते हैं ।
कुछ लोग आपको 'बूढ़ा बाघ' कहते हैं । उन्हें पता नहीं कि शेर-बाघ कभी बूढ़े नहीं होते । बूढ़े हो भी जाएँ तो भी कोई उनके पास जाने की हिम्मत नहीं कर सकता । हमें तो प्रभु, सच कहें, मरे बाघ की खाल छूने से भी डर लगता है । पता नहीं कैसे पुराने राजा मरे बाघ पर पैर रखकर, हाथ में बंदूक थामे फ़ोटो खिंचवा लेते थे । बाघ बूढ़ा हो जाता है तो भी भूख तो लगती ही है । पंचतंत्र में एक बूढ़ा बाघ सोने का कड़ा दिखाकर लोगों को ललचाता था और पास आने पर अपना भोजन बना लेता था । अब जब आपके सोने के कड़े राज लेकर भाग गया तो पेट पालने के लिए कुछ तो करना ही पड़ता ना ।
आपकी जाति का हमें पता नहीं । वैसे भी कहा गया है- "जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान" । ज्ञान, भगवा वेष और गले में माला के कारण आप ब्राह्मण लगते हैं और रजोगुण के कारण क्षत्रिय । कुछ भी हो दोनों ही दशाओं में आप बड़े हैं । "क्षमा बड़न को चाहिए" । हमारे एक साथी थे जिनको उनके एक मातहत ने जाति सूचक शब्दों के आरोप के चक्कर में उलझा दिया । उसके बाद से उन्होंने अपने आफिस में आंबेडकर की तस्वीर लगा ली और हर मामले में 'अम्बेडकर-अम्बेडकर' की रट लगाते थे । सो अब भविष्य में कुछ भी प्रश्न पूछने पर सचिन भी 'जय महाराष्ट्र,जय मराठी मानूस' के अलावा कुछ भी नहीं बोलेगा । हमारे गाँव में एक ठाकुर साहब थे । जब उन्हें कोई पूछता कि धरती का बीच कहाँ है तो वे ज़मीन पर लाठी गड़ा कर कहते कि यह क्या है ? लोगों को मानना पड़ता कि धरती का बीच वहीं है जहाँ ठाकुर साहब कह रहे हैं । सो अब सचिन को भी धरती के बीच का पता लग गया है । आप उसे क्षमा दान दें जिससे वह अगले मैचों में ठीक से खेल सके ।
लोग बहुत गर्व कर रहे हैं कि सचिन ने सत्रह हज़ार रन बना लिए हैं । इसमें क्या बड़ी बात है । आप अब तक क्रिकेट खेलते रहते तो पचास हज़ार रन बना लेते और वह भी नोट-आउट । आप को आउट करने की हिम्मत किस बालर में हो सकती है । यदि स्टंप गिर भी जाते तो एम्पायेर नो-बाल दे देता । जान तो सभी को प्यारी होती है । हमारे एक और ठाकुर साहब थे । क्रिकेट खेलते थे और बालर और फील्डर उनके मुसाहिब होते थे । एक बार गेंद शाट लग कर जाने कहाँ चली गई । गेंद नहीं मिली सो नहीं मिली और ठाकुर साहब आजीवन रन बनाते रहे । उनके शतकों का रिकार्ड आज तक नहीं टूटा है । सचिन को राजनीति की पिच पर रन नहीं लेना चाहिए था । जब भगवान की दया से क्रिकेट से पैसा मिल रहा है तो राजनीति की कीचड़ वाली पिच पर क्यों उतरा जाए ? राजनीति वैसे भी भले लोगों के बस का काम नहीं है । जब दारू की एक दुकान के पास दूसरी दुकान खुलती है तो बिक्री पर असर तो पड़ता ही है ।
हम आपकी दो बातों से विशेष प्रभावित हैं और मन ही मन ईर्ष्या भी करते हैं । एक तो आपके पास अपना पत्र है जिसमें आप जो चाहे, जितना चाहे लिख सकते हैं । हम तो पचास रचनाएँ भेजते हैं तो कहीं जाकर एक छपती है । यदि हमारे पास अपना पत्र होता तो सच कहते हैं हम भी कोई न कोई रिकार्ड बना कर ही मानते । दूसरी यह कि आपके सिर पर अभी तक काले, घने, चमकदार बाल हैं जब कि हम तो अड़सठ साल में ही गंजे होने लग गए हैं । कहने को तो तिलक भी 'बाल' गंगाधर थे । पर पता नहीं उनके सिर पर कितने बाल, थे भी या नहीं क्योंकि वे पगड़ी बाँधते थे । नेहरू जी के सिर पर भी बाल बहुत ही कम थे तभी टोपी नहीं उतारते थे । हमें तो आज तक यह समझ नहीं आया कि क्यों उनके जन्म दिन को 'बाल-दिवस ' के रूप में मनाते हैं जब कि बालों को देखते हुए तो यह गौरव आपको मिलना चाहिए था । बड़ी नाइंसाफ़ी है ।
खैर, जय महाराष्ट्र, जय 'मराठी मानूस' । भूल चूक के लिए एडवांस में माफ़ी ।
१७-११-२००९
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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