Dec 31, 2009

पोस्टकार्ड टू प्रणव दा : नए वर्ष की बधाई


आदरणीय प्रणव दा,
नमोश्कार । हमारा नववर्ष का शुभकामना-सन्देश-पत्र आपको इस बार कुछ देर से मिले तो अन्यथा नहीं लीजियेगा । कारण कुछ ख़ास नहीं है । बस, हम आज के बाज़ार के 'कंडीशंस अप्लाई ' नामक फंडे से घबराये हुए हैं । आज ही हमने अखबार में पढ़ा कि फ़ोन कम्पनी वाले बड़े बदमाश होते हैं । चुपके से त्यौहार के दिन जब लोग एस.एम.एस. का ज्यादा उपयोग करते हैं उन दिनों ये एस.एम.एस. का ब्लेक डे घोषित कर देते हैं- मतलब कि उस दिन एस.एम.एस. के रेट ज्यादा लगेंगे, साधारण दिनों से । लोग सस्ता समझ कर एस.एम.एस. से धड़ाधड़ बधाई सन्देश भेज देते हैं और जब पैसे कटते हैं तो रोते हैं । आप तो वित्त-मंत्री भी हैं, दिल्ली में भी बैठते हैं और दिल्लीदरबार में ख़ास भी हैं । कम से कम लोगों को इस धोखे से तो बचायें ।

वैसे तो कई बदमाश लोग एस.एम.एस. से धोखेबाजी का धंधा भी करते हैं । अखबार में विज्ञापन देंगें कि एक सरल प्रश्न का उत्तर दीजिये और इनाम में एक कार जीतिए । प्रश्न हो सकते है- अभिषेक बच्चन की पत्नी का नाम बताइए या भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान का नाम बताइए या ज्यादा ही कठिन प्रश्न पूछना हो तो पूछ लेंगें कि गाय के कितने पैर होते हैं । लोग सोचेंगे कि एक एस.एम.एस. में क्या जाता है । क्या पता चांस लग ही जाये । कई लाख लोग एस.एम.एस. करते हैं । करोड़ों की आमदनी होती हैं । कार्यक्रम की योजना बनाने वाले और मोबाइल कंम्पनी आधा-आधा बाँट लेते हैं । करोड़ों कमा कर एक लाख की कार इनाम में देने में किसके बाप का क्या जाता है । अखबार वाले भी किसी ताज़ा और उत्तेजक घटना पर पाठकों से एस.एम.एस. द्वारा राय पूछते हैं । जितने भी उल्लू के पट्ठे फँस जाएँ उतने ही ठीक । अगले दिन दो गुना दो सेंटीमीटर स्थान में प्रथम पृष्ठ पर छाप देंगे-'यस' इतना, 'नो' इतना और 'डोंट नो' इतना । हो गई लाखों की कमाई । वरना जितने पेज अखबारवाले तीन रुपये में छाप कर देते हैं उतने खाली पेज, उतने पैसे में बाजार में नहीं मिलते । बड़ा ऊँचा चक्कर है, पर एस.एम.एस. के रसिया समझें तब ना ।



इस साल के शुरु में टाइम्स आफ इण्डिया के एक विशेषांक में पढ़ा था- 'दिल्ली दरबार के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति' । उनमें सबसे पहले श्री गणेश में आप का नाम था । उसमें आपके विवरण के साथ आपका कार्टून भी बनाया गया था जिसमें कलाकार ने आपको उल्लू जैसा दिखाने की कलाकारी दिखाई थी । उसी लेख में ममता दीदी को मुर्गी दिखाया था जो लाल झंडेवालों को मार-मार कर भगा रही है । औरों की छोड़िए पर हमें आपको उल्लू दिखाना नागवार गुज़रा पर जब हमारे मित्र तोताराम ने बताया कि प्रणव दा आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और अर्थ की देवी का वाहन उल्लू होता है और आप वित्त मंत्री हैं तो यह सम्मान आपके अलावा और किसको दिया जा सकता था ? इसी लेख में एक गुप्त सूचना दी गई थी कि प्रणव दा सुबह पाँच बजे उठते हैं, ट्रेडमिल पर एक्सरसाइज़ करते हैं, दो घंटे रोज़ पूजा करते हैं, धवन द्वारा इंदिरा गांधी को सौंपी गई मंत्रियों की सूची में जब आपका नाम नहीं देखा तो मेडम ने खुद अपने हाथ से आपका नाम जोड़ दिया था ।

इस लेख में आपके बारे में पढ़ कर हमें किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं हुई क्योंकि हमारे और आपके फील्ड अलग-अलग हैं । अगर आप प्रधान मंत्री भी बन जाएँ तो भी हमारा क्या ? हक अगर मारा भी जायेगा तो मन मोहन सिंह जी या राहुल बाबा का । उसमें एक बात पढ़कर हमें बहुत ही खुशी हुई कि आपको एस.एम.एस. करना नहीं आता । हमें भी एस.एम.एस. करना नहीं आता । अब हमें विश्वास हुआ कि इस कहावत में वास्तव में दम है कि 'सभी महान आत्माएँ एक ही तरह से सोचती हैं ' । हम तो कहते हैं कि सोचती ही क्या, उनका आई.क्यू. भी लगभग एक जैसा ही होता है । वरना एस.एम.एस. कोई बड़ी बात है क्या ? आजकल तो पहली क्लास के बच्चे एस.एम.एस. कर लेते हैं । हमें भी आपकी तरह एस.एम.एस. करना नहीं आता ।

एक दिन हमने अपने पोते को अपनी माँ के मोबाइल से एस.एम.एस. करते देखा तो सोचा कि क्यों ना यह कला हम भी सीख लें ? आप से एक कला आगे बढ़ जायेंगे । कभी अगर आपको एस.एम.एस. की कला की ज़रूरत पड़े तो हम आपको आभारी बना सकें । सो हमने पोते को टॉफी का लालच देकर उससे किसी तरह एस.एम.एस. की कला सीख ली । आप कहेंगे तो कभी आपको भी सिखा देंगे । हम तो यह भी सोच रहे हैं कि एस.एम.एस. करना सिखाने का एक कोचिंग संस्थान ही क्यों ना खोल लें । आज कल इस धंधे में बड़ी कमाई है । स्कूल से ज्यादा ट्यूशन में कमाई है , अस्पताल से ज्यादा प्राइवेट प्रेक्टिस में फ़ायदा है । मास्टर और डाक्टर स्कूल और अस्पताल में तो मुर्गियाँ पकड़ने जाते हैं । आपसे एक ही प्रार्थना है कि अपने विभाग वालों को हमसे ज़रा दूर ही रखें क्योंकि उनके चक्कर में चौटाला, लालू, राजा और मधु कौड़ा तो आते नहीं । अगर पकड़ा जाता भी है तो हमारे जैसा कोई मास्टर ।

खैर, तो प्रणव दा, हमने इस वर्ष के जाते-जाते एस.एम.एस. करना सीख ही लिया हालाँकि बी.बी.सी. के वर्षांत के कार्यक्रमों में भारत की इस दशक की उपलब्धियों में हमारे एस.एम.एस. सीखने का कहीं ज़िक्र नहीं था । हमारा क्या, भारत का नुकसान है जो 'स्लम डोग' और भारत के क्रिकेट रेटिंग में प्रथम होने जैसी ही एक और उपलब्धि से महरूम रह गया । तो एस.एम.एस. सीखने के बाद अतिउत्साह में हमने क्रिसमस के दिन ही बड़े दिन और नए वर्ष की शुभ कामनाओं का एस.एम.एस., जिसका भी नंबर हमारे पास था उसी को, कर दिया क्योंकि हमारे पास जो स्कीम है उसमें हर महीने तीन सौ एस.एम.एस. फ्री हैं । हमें जब एस.एम.एस. करना नहीं आता था तो हमें यही लगता रहता था कि हर महीने तीन सौ रुपये का घाटा हो रहा है उसी तरह जैसे कि एक्स्ट्रा पैसे देकर खरीदी दाल-फ्राई किसी से न खाई जाये तो जूठी छोड़ते हुए जान निकलती है । पिछले साढ़े चार महीने से यह घाटा उठा रहे थे सो सोचा कि कम से कम दिसंबर का घाटा तो बचाएँ । मगर यह क्या! दस-पंद्रह एस.एम.एस. करने के बाद ही हमारा बेलेंस ख़त्म । कम्पनी ने उस दिन अर्थात २५ दिसंबर को ब्लेक डे मान कर अनाप-शनाप रेट लगा दिए थे हालाँकि ईसा मसीह का जन्म दिन 'ब्लेक डे' नहीं होना चाहिए था पर धंधे में कोई ईसा मूसा नहीं होता । सबसे बड़ा रुपय्या ।

इसलिए हमारा आपसे कहना है कि अगर अब तक एस.एम.एस. करना नहीं सीखा हो तो सीखियेगा भी नहीं । पता नहीं कब, किस दिन को ब्लेक डे बना कर कम्पनी आपका बेलेंस बिगाड़ दे । आप कहेंगे कि आपको तो एस.एम.एस. ही क्या सब कुछ फ्री है । हवाई यात्रा से लेकर, बारह रुपये डाइट के हिसाब से खाना तक । पर हमारा तो मानना है कि आदमी को अपनी आदतें खराब नहीं करनी चाहियें । पता नहीं, कब मुफ़्त का माल मिलना बंद हो जाये ।

कवि ने भी कहा है-
बढ़त-बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाय ।
घटत-घटत पुनि ना घटे बरु समूल कुम्हलाय ॥

अर्थात जैसे जल बढ़ने पर कमल बढ़ जाता है पर जल घटने पर छोटा नहीं हो सकता उसी तरह धन बढ़ने से व्यक्ति की इच्छाएँ बढ़ जाती हैं पर धन घटने पर इच्छाएँ नहीं घटतीं इसलिए व्यक्ति को अपनी इच्छाएँ सीमित रखनी चाहियें आगे आपकी मर्जी

वैसे हम जानते है कि आप हमारे मिजाज़ के आदमी हैं कृष्णा और थरूर की तरह पराये माल पर दंड पेलने वाले नहीं हैं ।

हम आपको नए वर्ष की बधाई एस.एम.एस. से नहीं भजे रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि आज फिर कम्पनी वालों ने ब्लेक डे घोषित कर दिया होगा और ब्लेक डे में मैसेज पहुँचने की भी गारंटी नहीं होती । डबल धोखा । जिस दिन किसी को बधाई नहीं भेजनी होगी उस दिन व्हाईट डे कर देंगे । एक होटल में सर्दी से परेशान होकर एक ग्राहक ने मैनेज़र से कहा- तुमने तो लिख रखा है कि यहाँ ठंडे और गरम पानी की व्यवस्था है पर नल में तो ठंडा पानी आ रहा है । गरम पानी कब आएगा । मैनेजर ने कहा- साहब, गरमी में ।

हम आपको पोस्ट कार्ड से बधाई भेज रहे हैं इसलिए अगर देर से पहुँचे या बिलकुल ही न पहुँचे तो भी अन्यथा ना लीजियेगा क्योंकि सरकार किसी की भी हो पर देश तो अपना भारत ही है ना । और फिर ऊपर से मुक्त-बाज़ार जिसकी कंडीशंस के आगे भगवान भी लाचार है ।

दिल्ली में सर्दी पड़ने लग गई है, ध्यान रखियेगा ।

३१-१२-२००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

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