अडवानी जी जैसी मनःस्थिति में चबूतरे पर बैठे थे कि तोताराम आ गया । जब से दाल, चीनी, आलू, प्याज़ और टमाटर में आग लगी है और सरकार ने इस समस्या को ग्लोबल फिनोमिना मान लिया है तब से तोताराम ने शिकायत और आलोचना करना बंद कर दिया है । उसकी यह चुप्पी तृप्ति या संतोष का संकेत नहीं वरन एक घोर निराशा का संकेत है । वह चबूतरे पर बैठ कर यूँ ही अखबार पढ़ने का नाटक करने लग गया तभी बहुत ऊँचाई पर एक हवाई जहाज के गुजरने की आवाज़ आई ।

जब प्रश्न सीधा किया जाए तो आदमी बोलने के लिए विवश हो जाता है सो तोताराम बोल पड़ा- वे इधर से नहीं जापान के ऊपर से होते हुए जाएँगे । भले ही मिशेल ओबामा को इतने विस्तार से ओबामा का कार्यक्रम मालूम न हो पर पता नहीं तोताराम को कैसे पता चल गया ।
हमने कहा- तोताराम, हमारे हिसाब से ओबामा को जाना तो था ही, दिल्ली के ऊपर से चला जाता । घंटे भर रुककर मनमोहन जी को डिनर करवाकर चला जाता तो बिना बात मनमोहन जी को इस सादगी के फैशन और बुढ़ापे के समय में किसी साधारण सी एयर लाइन की 'केटल-क्लास' में पड़ कर तो नहीं जाना पड़ता ।
तोताराम बोला- लाख सादगी का समय चल रहा है पर घर की गरीबी बाहर थोड़े ही दिखाई जाती है । हम विश्व की उभरती अर्थव्यवस्था हैं । और जब ओबामा ने अपने कार्यकाल में विश्व के सबसे पहले राजकीय अतिथि होने का सम्मान हमें दिया है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि उसके अनुरूप तरीके से ही जायें । तुझे पता है, इस डिनर का मीनू श्रीमती ओबामा ने तैयार किया है और खाना बना रहे है अफ्रीका के कोई तथाकथित प्रसिद्ध शेफ । अमरीका के पाँच सौ बड़े-बड़े लोग शिरकत करेंगे इस डिनर में । सो, जाएँगे तो निजी प्लेन से ही ।
हमने कहा - तोताराम, यह तो भारत पर बिना बात ही आभार लादा जा रहा है । बेचारे मनमोहन जी खायेंगे तो दो रोटी और दाल और आभार झेलेंगे करोड़ों रुपयों का । हमें तो लगता है फायदे में तो चीन रहा । ओबामा ख़ुद उड़कर गए और प्लेट में रखकर तिब्बत चीन को सौंप आए, ऊपर से भारत-पाकिस्तान की सरपंची और ।
तोताराम ने कहा- भैया, व्यापार-संतुलन चीन के पक्ष में है । इसलिए ओबामा की पूँछ दबी हुई है । भारत का क्या, साल भर यहाँ के सोफ़्टवेयर इंजीनीयर अमरीका के 'डाट काम' में खून-पसीना भरेंगे और अमरीका थोड़ा सा यूरेनियम और कुछ लड़ाकू हवाई जहाज देकर हिसाब-किताब बराबर कर देगा । चीन की बात अलग है । वह अमरीका के लिए इतनी चीजें बनाता है जिन्हें देखकर लगता है कि किसी दिन 'लिबर्टी' की स्टेच्यू पर भी 'मेड इन चाइना' लिख देगा । और फिर भारत के ऊपर से जाने पर चीन दलाई लामा को लिफ्ट देने का आरोप भी तो लगा सकता था ।
तोताराम ने बात समाप्त करते हुए कहा- देख मास्टर, चीन और ओबामा की तो हम ज़्यादा नहीं कहते पर अपने मनमोहन जी बड़े समझदार आदमी हैं । वे केवल खाना खाने ही थोड़े जा रहे हैं, आते समय क्या पता अमरीका से प्लेन में दाल,चीनी, आलू, प्याज़ और टमाटर भी भर कर ले आयें । वहाँ पेट्रोल भी सस्ता है सो प्लेन की टंकी भी फुल करवाकर ले आयेंगे । कुछ लोगों को वाशिंगटन से दिल्ली तक लिफ्ट देकर भी कुछ घाटा पूरा कर लेंगे । और फिर पेंशनर को नवम्बर के महीने में लाइफ सर्टिफिकेट भी तो देना पड़ता है सो विश्व बैंक में वह भी दे आयेंगे । अलग से जाने का खर्चा बचेगा । और सबसे बड़ी बात यह है कि २६/११ की बरसी और संसद में विपक्ष के - दिखावटी ही सही - विरोध को झेलने के चक्कर से भी बचेंगे । ब्रिटेन के डाक्टरों का कहना है कि शराब पीने से हृदयाघात का डर कम हो जाता है सो अच्छी व्हिस्की की कुछ बोतलें भी ले आयेंगे क्योंकि अब तक विजय माल्या द्वारा दिवाली पर 'माल्यार्पण' में दी गई 'ब्लेक डाग व्हिस्की' की बोतल भी ख़त्म हो गई होगी ।
हमें लगा ऐसे सकारात्मक चिन्तक तोताराम को तो प्रणव-दा की जगह वित्त-मंत्री भी बनाया जा सकता है । खैर, जो भी हो, तोताराम के मौन की बर्फ तो पिघली । हमारे लिए तो यही बहुत है ।
१८-११-२००९
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
बढ़िया आलेख..बधाई!!!
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