Dec 23, 2009

सिंह इज़ किंग


किसी गाँव में एक सज्जन रहते थे । देखने में मोटे-ताज़े थे, ताक़त के बारे में राम जाने । उन्हें अपने पहलवान होने का भ्रम था । वे जहाँ भी उठते-बैठते, अपनी पहलवानी की डींगें हाँका करते थे, यह बात और है कि मोहल्लेवाले उनकी असलियत जानते थे । वे अपने गले में एक मोटी चेन पहना करते थे । लोग कहते- भाईसाहब, ज़माना ख़राब है । इतनी कीमती चीज़ पहनना आफत बुलाना है । पता नहीं, कब क्या हो जाए । वे सीना फुला कर कहते- किसकी हिम्मत है जो हमारी गर्दन पर हाथ डाल सके । एक दिन लोगों ने देखा कि उनके गले में चेन नहीं है, बोले- हम कहते थे ना, अब डाल दिया न किसी ने गर्दन पर हाथ ! वे पहले की तरह अकड़ कर बोले- किस साले की हिम्मत है जो हाथ डाल सके । चेन तो हमने ख़ुद ही अपने हाथों से उतार कर दे दी ।

सो अपने मन मोहन सिंह जी से कौन माई का लाल बाध्यकारी समझौता करवा सकता था । उन्होंने देश को दिया वचन बहादुरी से निभाया । किसी की लादी हुई बाध्यता को उन्होंने नहीं माना । २० प्रतिशत उत्सर्जन कम करने की बात तो उन्होंने अपनी मर्जी से घोषित की है । साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी । लाठी सलामत है । आगे किसी और साँप को मारने के काम आयेगी ।



ओबामा हमारे बच्चों की उम्र के हैं । वे अभी पचास के हुए नहीं और हम अपनी शादी की पचासवीं-सालगिरह मना चुके । 'वी कैन' का नारा देकर जीत गए लोगों ने सोचा दुनिया में अमरीकी लोकतंत्र की छवि बनाए रखने के लिए एक गैर-गोरे को ही जिता देते हैं । अमरीका एक महान देश है । वहाँ कोई भी गोरा-काला, बूढ़ा-जवान, डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन राष्ट्रपति बन जाए पर नीतियाँ वे ही रहेंगी । हमें लगता है कि अमरीका को कोई राष्ट्रपति नहीं, उद्योगपतियों की कोई लाबी चलाती है जिसका उद्देश्य है येन-केन प्रकारेण पैसा कमाना है, चाहे दुनिया का कुछ भी हो ।

हम तो सोच रहे थे कि ओबामा बच्चा है । बुश की छात्र-छाया में 9-11 हुआ, अमरीका अफगानिस्तान और ईराक में फँसा और जाते-जाते मेल्ट-डाउन अर्थात 'पिघल-पड़-प्रकरण' । वे तो बंदर की बला तबेले के सिर डाल कर चले गए । ओबामा का सारा कार्यकाल अपनी पेंट से अफगानिस्तान और ईराक का भरूंट निकालते-निकालते और अमरीका की पिघल कर गिर पड़ी आर्थिक आइसक्रीम को उठाते-उठाते ही बीत जाएगा । पर यह तो बड़ा उस्ताद निकला । नोबल शान्ति पुरस्कार भी ले गया और अफगानिस्तान में तीस हज़ार सैनिक भी भेज दिए !

वैसे हम बहुत माँगे-मुँह के हैं । हमसे सीधी बात भी नहीं कही जाती । और फिर ओबामा ने व्हाइट हाउस में दिवाली मनाई, गुरु-परब मनाया, भारत को महान राष्ट्र बताया, मनमोहन जी को एक अच्छा दोस्त बताया, आतंकवाद पर भारत के पक्ष में झूठे-सच्चे तेवर दिखाए, मनमोहन जी को व्हाइट हाउस में पहला सरकारी मेहमान बनाया सो हम पिघल गए । ओबामा के कहे बिना ही २० प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने की घोषणा कर दी । कोपेनहेगन में सारी दुनिया के लोगों का जमावड़ा हुआ और हमें वहाँ भाषण देने का अवसर मिला । भाषण के मामले में हम बहुत कच्चे हैं । यदि चोरों के अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन में हमें भाषण देने का अवसर मिले तो हम चोरी को भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक महत्व का काम सिद्ध कर सकते हैं और इस कला और व्यवसाय के विकास के लिए सरकारी संरक्षण और अनुदान की भी माँग कर सकते हैं ।फिर यह तो दुनिया की भलाई के लिए आयोजित हुआ जलवायु परिवर्तन सम्मलेन था । सो हमें तो कोई न कोई बलिदानी घोषणा करनी ही थी । अब कुछ टुच्चे लोग कहें कि हम दबाव में आ गए तो यह उनकी सोच । हमने तो अपनी महानता का परिचय दिया है ।

अब आप सोच रहे होंगें कि मन मोहन जी यह सब कैसे करेंगे । कहीं कार्बन उत्सर्जन कम करने के चक्कर में भारत का औद्योगिक विकास तो नहीं सिकुड़ जाएगा, सेंसेक्स तो नहीं गिर पड़ेगा ? ऐसा कुछ नहीं होगा । और जब ओबामा के सलाहकार एक्जेलराड इन्स्पेक्टर बन कर जाँच करने आयेंगे तो पायेंगे कि उत्सर्जन तो बीस प्रतिशत की जगह चालीस प्रतिशत कम हो गया । सब आश्चर्य चकित रह जायेंगे, मन मोहन सिंह जी भी । सोचेंगे कि कुछ किए बिना ही यह सब कैसे हो गया । पर ऐसा होगा । कैसे यह हमसे जानिए । बीस प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन तो महँगाई बढ़ने के कारण चूल्हे न जलने से कम हो जाएगा और बीस प्रतिशत डकार न लेने के कारण क्योंकि जब पूरा खाना ही नहीं मिलेगा तो डकार आयेगी ही कहाँ से ।

और फिर ओबामा ने जिस सौ बिलियन डालर के पैकेज की घोषणा की है उसमें से भी तो कुछ मिलेगा ही ।
रियली, मौजा ही मौजा ।
सिंग इज किंग ।
हर्र लगे न फिटकरी और रंग चोखा ही चोखा ।

२२-दिसंबर-२००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

  1. सटीक विश्लेषण , सही निशाना

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