Jun 6, 2011

ये तो होना ही था बाबा

(४ जून २०११ की 'ब्रेक'इंग न्यूज़ - आधी रात को पुलिस ने अचानक तोड़-फोड़ करके बाबा रामदेव के आन्दोलन स्थल को उजाड़ दिया )


बाबा रामदेव जी,
नमस्ते । पता नहीं आप इस समय कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं ? वैसे हमारा मित्र तोताराम जो आपके समर्थन में उपवास करने दिल्ली गया था, आज शाम को घर लौट आया है । सकुशल है बस, भगदड़ में उसकी बत्तीसी थोड़ी क्रेक हो गई है और मोबाइल खो गया है ।

हम आपसे उम्र में लगभग २५ साल बड़े हैं और जब आप पैदा भी नहीं हुए तब से हमने लोकसभा और विधान सभा के चुनावों के पोलिंग अफसर की ड्यूटी देनी शुरु कर दी थी इसलिए हम इस लोकतान्त्रिक और कायदे-कानून की पक्की सरकार को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । हमने आपको ३ जून को ही लिखा था कि 'अपना रस्ता लो बाबा' पर आपने अपना रस्ता लेने की बजाय दिल्ली का रस्ता पकड़ लिया और वही हुआ जिसकी हमको आशंका थी । कपिल सिब्बल जी ने भी संकेत दे दिया था कि हम अकोमोडेटिव हैं मगर फर्म भी हो सकते हैं और अब ४ मई को ही रात को फर्मनेस दिखा दी ।

आपको पता होना चाहिए कि हमारी सरकार नियम और कानून कायदे की बहुत पक्की है । उसे ज़रा सी भी अनियमितता बर्दाश्त नहीं है । वह सारे काम विधि-विधान और कानून सम्मत तरीके से ही करती है, जैसे कि नियमानुसार राजधानी से चले १०० पैसों में पाँच पैसे लाभार्थी तक पहुँचाती ही है । जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक अफज़ल और कसाब तक को फाँसी नहीं देती, भले ही वे इस इंतज़ार में अपनी स्वाभाविक ज़िंदगी ही पूरी कर लें और उनकी सुरक्षा में करोड़ों रुपए की क्यों न खर्च हो जाएँ । बंगलादेश से तय हुए दो करोड़ से एक भी ज्यादा आदमी को भारत में नहीं आने दिया । आपने पाँच हजार की परमीशन लेकर पाँच हज़ार एक आदमियों को इकठ्ठा कर लिया । अब इतना बड़ा अपराध सरकार कैसे बर्दाश्त कर सकती थी ? कश्मीर में गिलानी ने सरकार से जितने पत्थर फिंकवाने की परमीशन ली थी उससे ज्यादा एक भी पत्थर नहीं फिंकवाया और तय हुए दो सौ रुपए भी पत्थर फेंकने वालों को श्रम कानूनों के तहत ईमानदारी से दिए । पर आपने तो आन्दोलन में आने वालों को कोई मजदूरी भी नहीं दी । पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों ने जितने लोगों को मारने की परमीशन ली उससे ज्यादा को नहीं मारा । इसलिए जो करो परमीशन लेकर करो और उसका उल्लंघन न करो । राजा ने १ लाख ७६ हजार करोड़ का घपला करने की परमीशन ली थी मगर उससे एक रुपया ज्यादा का घपला कर दिया तो फिर जेल में तो जाना ही था । कलमाड़ी ने भी स्वीकृत सीमा से ७५ पैसे अधिक का घोटाला कर दिया तो फिर सजा तो मिलेगी ही ना । नियम कानून की बहुत पक्की है सरकार ।

सरकार संविधान का भी अक्षरशः पालन करती है । संविधान में लिखा है कि सरकार धर्म, जाति, संप्रदाय से निरपेक्ष रहेगी । तो देख लीजिए कोई भी धार्मिक, जातीय और सांप्रदायिक आन्दोलन हो सरकार कोई बाधा नहीं डालती और पूरी तरह से निरपेक्ष बनी रहती है । भले ही कुछ आलोचक यह कहें कि सरकार वोट बैंक खिसकने से डरती है । अब आपका आन्दोलन धर्म-जाति और संप्रदाय का आन्दोलन तो था नहीं, फिर सरकार कैसे निरपेक्ष रह सकती थी । सो उसे तो सापेक्ष रह कर एक्शन लेना ही था सो ले लिये एक्शन और उखाड़ दिया आपका तम्बू । अब पता नहीं डंडों से डरे लोग दुबारा जुटें या नहीं ?


आपकी एक प्रमुख माँग थी कि विदेशी बैंकों में रखे धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए तो सुना है उस पर कपिल सिब्बल मान गए थे । तो आपको यह समझ जाना चाहिए था कि जब कुछ भी 'राष्ट्रीय' घोषित हो जाता है तो उस पर सरकार अर्थात कुर्सी पर बैठे लोगों, माफिया और अलगाववादियों का अधिकार हो जाता है जैसे कि राष्ट्रीय धन का दुरुपयोग का अधिकार नेताओं को है, राष्ट्रीय पशु-पक्षी को मारने का अधिकार पोचरों को है, राष्ट्रीय ध्वज जलाने का अधिकार अलगाववादियों को है । ‘गाँधी’ का भट्टा बैठाने का अधिकार कांग्रेस का है फिर चाहे वह इंदिरा का हो या मोहनदास का । राम की दुर्दशा करने का अधिकार सबसे पहले रजिस्टर्ड राम भक्तों का बनता है । अब जब स्विस बैंकों में रखा काला धन 'राष्ट्रीय घोषित' ही हो गया तो फिर उसमें आपकी टाँग कैसे बर्दाश्त की जा सकती थी । यदि वह धन वापिस आ भी गया तो उसका तीया-पाँचा करने का अधिकार सरकार का ही बनता है । रही बात पाँच सौ और हजार के नोटों को समाप्त करने की तो जब ज़रूरत होगी वह भी कर दिया जाएगा । आप तो तब शायद चड्डी भी नहीं पहनते होंगे, जब इंदिरा जी ने हजार रुपए के नोट बंद किए थे । पाँच सौ का नोट उस समय नहीं चलता था । बाद में ज़रूरत पड़ी तो फिर हजार का नोट चलाना पड़ा । अभी तो राष्ट्रहित में बड़े नोटों को समाप्त करने की ज़रूरत नज़र नहीं आ रही है । अब तो रुपए के गिरते मूल्य, बढ़ते घपलों के कारण एक-एक करोड़ के नोट चलाने की ज़रूरत महसूस हो रही है ।

और जहाँ तक पुलिस की सज्जनता की बात है तो वह अंग्रेजों के समय से ही सर्वविदित है । उसने कभी किसी को नहीं सताया । कभी किसी पर हिंसक कार्यवाही नहीं की । गाँधी, लाला लाजपतराय, नेहरू, पटेल आदि बड़े खूँख्वार सत्याग्रही लोग थे । बात-बात में ए.के.४७ निकाल लेते थे तो फिर पुलिस को भी अपनी रक्षा में एक्शन लेना ही पड़ता था । जालियाँवाला बाग में भी जितने लोग सत्याग्रह के नाम पर इकठ्ठा हुए थे, सब घातक हथियारों से लैस थे । तभी बेचारे डायर को अपनी जान बचाने के लिए एक्शन लेना पड़ा । अब आपके आन्दोलन में भी पुलिस ने कुछ नहीं किया । वह तो आन्दोलन स्थल पर सो रहे लोगों की चोरी-चकारी करने वाले असामाजिक तत्त्वों से रक्षा करने के लिए गई थी । और आपके आंदोलनकारियों की चालाकी देखिए कि वहाँ पहुँचते ही बेकसूर पुलिस पर पत्थरबाजी शुरु कर दी । फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया । इसके बाद आन्दोलनकारियों ने पुलिस को बदनाम करने के लिए पत्थरों से अपने ही सिर फोड़ लिए और पैर तोड़ लिए । इस देश की बेचारी पुलिस के साथ हमेशा ऐसी ही ज्यादती होती है । और फिर मान लो पत्थर ही मारने थे तो उन पत्थरों पर अलगाववादी नेता गिलानी का नाम तो लिखवा लेते जिससे सरकार को चोट कम लगती । नाम का बड़ा प्रभाव होता है । नाम के प्रताप से तो पत्थर तैर जाते हैं ।

यदि आप चुप रहते या कपिल सिब्बल की बात मान लेते तो बात भी बनी रह जाती और दो-एक साल में जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी पुरस्कार और भारत-रत्न भी मिल सकता था । अब राँची में चल रहे प्रोजक्ट से भी सरकार हाथ खींच लेगी, खातों और दवाइयों की भी जाँच चलेगी सो अलग । और कहीं ऐसा न हो कि पुलिस आपकी भगवा चद्दर में से आर.डी.एक्स. बरामद करवा दे ।

५-६-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. वाह गुरु जी, बिल्कुल सही जगह हिट किया है...
    वाह..

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  2. वाह...वाह...गद्दा लपेट के दे दनादन मारना इसे कहते हैं...चमड़ी भी उधेड़ ली और कपडे भी नहीं फाड़े...अद्भुत लेखन...बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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