Jun 5, 2011

तोताराम का उपवास


आजकल हमारे सीकर में पारा ४९ डिग्री को छू रहा है मगर इसकी कल्पना कोई ए.सी. में रहने वाला या शिमला, कुल्लू-मनाली या बैंगलोर का निवासी तो कर नहीं सकता और जो हमारे जैसे हालात में रहते हैं, उन्हें कल्पना करने की ज़रूरत नहीं और उससे कोई फर्क भी तो नहीं पड़ने वाला क्योंकि उनके हाथ में कुछ है नहीं । आजकल आठ नौ बजे तो लू ही चलने लग जाती है सो तोताराम का आगमन भी हमारे यहाँ सुबह सात बजे तक ही निबट जाता है । चाय पीने की हिम्मत न हमारी होती है और न तोताराम की । बस, रात में बाहर रखे मटके के ठंडे पानी से ही काम चल जाता है ।

आज तोताराम के कंधे पर विनोबा जी वाला थैला था और दाढ़ी भी बना कर आया था । लगता था कि कहीं जाने की तैयारी में है । पानी पीने से भी इंकार कर दिया । कहने लगा- चलना है तो जल्दी से तैयार हो जा, दिल्ली चलना है ।

हमने कहा- दिल्ली में मौसम कौन सा सुहावना है । वहाँ ४९ नहीं तो, ४५ डिग्री गरमी होगी । हो सकता है अन्ना हजारे और रामदेव के कारण गरमी ५० से ऊपर पहुँच गई हो । यदि गरमी और लू से ही मरना है तो अपना घर ही ठीक है । दिल्ली तो इतनी बेरहम है कि कोई श्मशान ले जाने वाला भी नहीं मिलेगा । यहाँ कम से कम चार भाई लोग तो कंधा देने के लिए जुट जाएँगे ।

तोताराम ने कहा- मैं न तो दिल्ली घूमने के लिए जा रहा हूँ और न ही मरने । मैं तो इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में देश को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए संघर्ष करने वालों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने जा रहा हूँ । मैं भी बाबा रामदेव के साथ उपवास करूँगा । और इस शुभ कार्य में यदि जान भी चली गई तो कोई चिंता नहीं ।

हमें लगा, आज हम एक नए तोताराम के दर्शन कर रहे हैं । हमने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा और पूछा- तो क्या अब तक तू पूरा और संतुलित भोजन ही करता आ रहा था ? अरे, उपवास कोई दो- चार दिन में भूखे रहकर मर जाने का नाम ही नहीं है । उपवास कई प्रकार के होते हैं । हम अब तक जैसा और जितना भोजन करते रहे हैं वह भी उपवास की श्रेणी में ही आता है । और मरने में अब दिन ही कितने बचे हैं । यह शुभ काम यहीं हो जाने दे ।

कहने लगा- मरना तो सभी को एक दिन हैं मगर यदि मरने का कोई बड़ा उद्देश्य हो तो मरने का आनंद ही कुछ और है ।

हमने कहा- तोताराम, सर्दी में उपवास से आदमी यदि दस दिन में मरता है तो गरमी में यह काम तीन दिन में ही हो जाता है ।

बोला- अरे, वहाँ गरमी कहाँ है ? कूलर, पंखे लगे हैं । डाक्टरों और बिस्तरों की व्यवस्था है । आँधी और वर्षा से बचने का भी पूरा इंतजाम है । यहाँ तो जब तब आँधी आकर सारा घर और सिर धूल से भर जाती है ।



हमने बात को थोड़ा बदलने की कोशिश की, बोले- तोताराम, आज का अखबार देखा ? बाबा के उपवास स्थल पर बड़े-बड़े कड़ाहों में खाना बन रहा है । जब उपवास ही करना है तो फिर खाने का इंतज़ाम करने की क्या ज़रूरत थी ? हमें तो अखबार से ही देहरादून के बासमती चावल और हरियाणा के शुद्ध घी की खुशबू आ रही है । हमें तो पकते खाने की फोटो देखकर ही लार टपकने लगी है । वास्तव में जो वहाँ बैठ कर उपवास करेंगे उनके लिए तो अपनी रसना पर काबू रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा । यदि शांति पूर्वक उपवास करना है तो कहीं जंगल में जाना चाहिए जहाँ दूर-दूर तक रोटी-पानी का कोई नामो-निशान न हो । इससे मन को कंट्रोल करने में सुविधा रहती है ।

तोताराम कहने लगा- अरे, जब खाने को कुछ हो ही नहीं तो उपवास करने का क्या अर्थ है ? जब कोई उर्वशी या मेनका तप भंग करने के लिए चारों तरफ नृत्य नहीं करे तब तक तपस्या का महत्त्व ही क्या ? मज़बूरी में तो सभी ब्रह्मचारी होते ही हैं । धन के बीच ही त्याग की, भोग-विलास के बीच ही संयम की और रसोई में पकते तरह-तरह के पकवानों की क्षुधावर्धक सुगंध के बीच ही उपवास की सच्ची परीक्षा होती है ।

हमने फिर टाँग खींची- तो फिर इतने बड़े पैमाने पर खाना बनवाने की क्या ज़रूरत थी ? बाबा और तेरे सामने एक-एक प्लेट बढ़िया खाने की रख देते ।

तोताराम ने कहा- भैया, उपवास तो हम और बाबा ही करेंगे, बाकी तो तमाशा देखने वाले हैं, भीड़ है । वे भूखे कितनी देर तक रहेंगे । उन्हें तो दिन में चार बार खाना, नाश्ता और ठंडा चाहिए और यदि मिल जाए तो ठंडी बीयर भी चाहिए ।

हमने फिर प्रतिवाद किया- तो फिर पैसा खर्च करके, केवल तमाशा देखने वालों की ऐसी भीड़ जुटाने से क्या फायदा ?

तोताराम ने हमारी समस्या का समाधान किया- मास्टर, यह केवल उपवास ही नहीं है । उपवास तो आधी दुनिया अपने-अपने घरों में जाने कब से कर रही है । यह तो परिवर्तन के लिए दबाव बनाने के लिए है और आजकल दबाव कार्य की महत्ता से नहीं बल्कि मीडिया और भीड़ से बनता है । खैर, अब बातों में मेरा समय खराब मत कर । यदि चलना है तो चल, नहीं तो समर्थकों को लेकर दिल्ली जाने वाली चार्टर बस निकल जाएगी ।

और तोताराम चला गया । और हम दरी पर बैठे, बढ़ी दाढ़ी और फूलमाला पहने तोताराम का फोटो अखबार में देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

३-६-२०११

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. जोशी जी, बदले हुये हालातों में आपके एक त्वरित लेख की आवश्यकता है..

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  2. कुछ सरकार पर लिखिए .......... व्यंग लिखिए या सही लिखिए पर लिखिए.

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