Jun 9, 2011

हुसैन का नग्नता-विभूषण

मियाँ मकबूल,
आपका पूरा नाम है मकबूल फ़िदा हुसैन । मकबूल का अर्थ है लोकप्रिय, फ़िदा का अर्थ है न्यौछावर और हुसैन एक बलिदानी महापुरुष हुए हैं जिनकी याद में ताजिये निकले जाते है और सारा मुस्लिम जगत उनके लिए शोक मनाता है । इस प्रकार यदि आपके नाम का समस्त-पद-विग्रह किया जाए तो अर्थ होगा- ऐसा लोकप्रिय व्यक्ति जो हुसैन साहब के सिद्धांतों या व्यक्तित्व पर फ़िदा हो ।

पिछले पैंतीस-चालीस सालों से विभिन्न कारणों से चर्चित रहे हैं, लोकप्रियता का पता नहीं । इस दौरान हम आपके चित्रों को देखते रहे हैं और आपके बारे में पढ़ते रहे हैं । पर आप लेश मात्र भी हुसैन साहब पर फ़िदा नज़र नहीं आए । आपकी यह उम्र अल्लाह के पास पहुँच जाने की होती है । बहुत कम लोग इतनी आयु पाते हैं । महान आत्माएँ तो बहुत थोड़े समय के लिए इस दुनिया में आती हैं और अपना काम कर जाती हैं । शंकराचार्य, विवेकानंद, भगत सिंह आदि तो चालीस साल से पहले ही करिश्मा कर गए । ठीक है, आप नब्बे पार कर गए हैं, हो सकता है सेंचुरी भी बना दें । पर आपने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे संसार का भला हो ।

सच है कि आपने बहुत पैसा कमाया है पर पैसा तो रंडी, रिश्वतखोर और घोटालिए भी बहुत कबाड़ लेते हैं । आपको भारत सरकार ने पद्म विभूषण से अलंकृत किया पर आज सब जानते हैं कि पुरस्कार और अलंकरण बिकते हैं या राजनीतिक कारणों से दिए जाते हैं । यदि पुरस्कार प्रामाणिक होते तो महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार अवश्य मिलता पर नोबेल के बिना भी गाँधी जी विश्ववंद्य हैं । आपको पद्मविभूषण इसलिए मिला कि आपने इंदिरा गाँधी को दुर्गा के रूप में चित्रित किया । वहाँ आपने कलाकारी नहीं दिखाई, अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाज़ायज उपयोग नहीं किया वरना पद्म विभूषण तो दूर आपका किसी और तरह ही अभिनन्दन कर दिया गया होता ।

मियाँ, यह हिंदू समाज ही है जो आपकी नग्नता विभूषणता को झेल रहा है । पहले आपने सरस्वती को नंगा चित्रित किया अब भारत माता को नंगा चित्रित कर दिया । आपके जैसे सपूत को पाकर बेचारी पहले ही शर्मसार थी, उसे नंगा करके और लज्जित क्यों किया ? यदि यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस्लाम के प्रति दिखाते तो अब तक चालीसा हो गया होता । नहीं तो, मोहम्मद साहब का कार्टून छापने वाले और उसका पक्ष लेने वाले देशों की हालत देख ही रहे हैं । वे भी आपकी ही तरह हैं । दुर्गा को व्हिस्की की बोतल पर, गणेश को गोमांस पर, काली को कमोड पर, जूतों पर गाँधी और शिव को स्थापित कर रहे हैं । ऐसी कलात्मकता और सौंदर्यबोध वे ईसा मसीह और मरियम पर नहीं दिखाते । जैसे शराबी भले आदमी को गाली निकालता है पर थानेदार को नशे में भी सेल्यूट मारता है । यह नशा बड़ा समझदार होता है । वैसे ही आपकी और यूरोपीय देशों की अभिव्यक्ति भी बड़ी सयानी है ।

यदि आपको भारतीय संस्कृति से ज्यादा प्रेम है और उसी को अपनी कला का विषय बनाते है तो ज़रा किसी सिख गुरु को अपनी कला का विषय बना कर दिखाइए । आप जानते हैं कि कृपाण क्या होती है ? यदि कोई कुत्ता शिवलिंग पर पेशाब कर दे तो वह क्षम्य है पर आप कुत्ते नहीं हैं अतः क्षम्य भी नहीं हैं । भले ही आपके कर्म कुत्ते से भी गए गुजरे हों । आपकी एक-एक पेंटिंग करोड़-करोड़ रुपए में बिकती है तो मोनिका की 'वह' ड्रेस भी तो करोड़ों में बिकी थी । सो, रुपयों का ज्यादा महत्त्व नहीं है । आपकी पेंटिंग खरीदने वाले भी वैसे ही लोग हैं जैसे कि मोनिका की 'वह' ड्रेस खरीदने वाले ।

पर आपकी एक विशेषता को हम मानते हैं कि आप निरंतर काम करते रहे हैं । पर कैसा काम ? यह तो समय ही तय करेगा । यदि इसी लगन और निरंतरता से आप कोई अच्छा काम करते तो यह देश आपको सर-आँखों पर बैठाता । अभी भी समय है कुछ अच्छा काम करने का । कला-गुरु अवनीन्द्रनाथ को आपने देखा होगा । क्या उनका काम आपसे घटिया था ? पर वे ऋषि थे, तपस्वी थे । ऋषियों को कोई भाग्यशाली ही समझ सकता है । लंपटों के बारे में तो गली के भड़वे भी जानते हैं । एलिजाबेथ टेलर, मर्लिन मुनरो, ब्रिटनी के कुख्यात होने का मतलब यह नहीं है कि वे अलबर्ट श्वाइत्जर से बेहतर हैं । दूध पन्द्रह रुपए लीटर और प्रसिद्ध शराब की एक बोतल हजारों रुपए में बिकने का मतलब यह नहीं है कि शराब दूध से ज्यादा ज़रूरी है । गली-गली में कजरारे-कजरारे गूँजने से 'जय जगदीश हरे' का महत्व कम नहीं हो जाता । वैसे यदि आपको नग्नता अच्छी लगती है तो सरस्वती और भारत माता तो दूर की बात है, क्या आप अपनी माताजी को इस रूप में देखना या दिखाया जाना पसंद करेंगे ? कभी नहीं । यह तो हम झोंक में लिख गए वैसे हम तो आपकी ही क्या, किसी की भी माताजी का पूरा सम्मान करते हैं । माता तो माता ही होती है ।

मीडिया और विज्ञापन मूर्ख लोगों को विष्ठा खाने तक लिए भी तैयार कर सकता है तो लंपटों में आपके चित्रों को चर्चित करवा देना कौन सा मुश्किल काम है ।

१५-२-२००६

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

3 comments:

  1. क्या पता उसने अपनी माँ की भी तस्वीर बनायी हो, और जम के धुनायी हुई हो।

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  2. आज तो कहना ही पड़ेगा ओल्ड इज आलवेज गोल्ड...

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  3. इसकी तुलना कुत्तों के मत करो, आखिर कुत्तों की भी तो कुछ इज्जत है।

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