ओबामा जी,
नमस्ते । बधाई तो हमने पहले ही दे दी थी आपको ओसामा को निबटाने की । हमारा कौन सा वोट बैंक है जो खिसक जाएगा । जिनको वोट बैंक खिसकने का डर है वे चुप्पी लगाए हुए हैं । आज जब पढ़ा कि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बुश साहब ने आज से कोई दस साल पहले ही यह 'डील' कर ली थी कि यदि ओसामा पाकिस्तान में हुआ तो अमरीका उसे पकड़ने या मारने की सीधी कार्यवाही कर सकेगा । इसे कहते हैं दूरदर्शिता । वैसे बुश साहब को पहले से ही यह विश्वास था कि ओसामा के खिलाफ़ कार्यवाही तो करनी पड़ेगी, आज नहीं तो कल और ओसामा जब भी मिलेगा, पाकिस्तान में ही मिलेगा । मतलब कि 'डील' करने से पहले सामने वाले का 'डौल' देख लेना चाहिए । आज 'डील-डौल' शब्द के इस नए अर्थ से हम खुद चमत्कृत हैं । पर क्या बताएँ, हमारा नेतृत्त्व इतना समझदार नहीं है कि सामने वाले का 'डौल' देख-समझ सके । तभी चीन और पाकिस्तान से बार-बार वार्ता करता है और धोखा खाता रहता है । आपकी इस दूरदर्शिता के लिए राजस्थानी में एक कहावत है- 'वड़ों से पहले तेल पीना' । जिसे लगता है कि क्या पता, वड़े मिलें या नहीं तो वह वड़े बनने का इंतज़ार नहीं करता बल्कि पहले ही तेल पी जाता है ।
हमें तो लगता है कि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने, जब ओसामा को रूस के खिलाफ़ खड़ा किया था, तभी यह 'डील' कर ली होगी क्योंकि भस्मासुर को वरदान देने से पहले उसकी काट तय कर लेनी चाहिए । हमारे शिवजी इतने समझदार नहीं थे तभी उनकी रक्षा के लिए विष्णु भगवान को आना पड़ा । हमारे पुराणों में भी बहुत से किस्से आते हैं कि जब भी ब्रह्माजी किसी राक्षस को वरदान देते थे तो उसकी काट पहले से सोच लेते थे । जब हिरण्यकश्यप को वरदान दिया कि न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न आदमी से मरेगा न जानवर से, तभी सोच लिया था कि इसे मारने के लिए नृसिंह भगवान अवतार लेंगे और वे उसे संध्या के समय उसके महल की देहली पर मारेंगे । हमारे नेता तो जो कुछ सीखते हैं वह पश्चिम की अनुपयुक्त हो चुकी टेक्नोलोजी और फेल हो चुके सिद्धांतों से सीखते हैं । हमारे पुराणों का तो सही फायदा अमरीकी नेतृत्त्व ने ही उठाया है कि ओसामा के जन्म के साथ ही उसकी वध की योजना भी बना ली । लगता है कि अमरीकी नेतृत्त्व ने भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कारखाना लगाते समय ही भारत सरकार से एंडरसन को ‘सेफ़ पैसेज’ देने का समझौता कर लिया था वरना यह कैसे हो सकता है कि वह इस आपराधिक कर्म के बाद भी मध्यप्रदेश के सरकारी तंत्र द्वारा विशेष विमान से दिल्ली पहुँचाया जाए और वह वहाँ राष्ट्रपति से मिलकर सकुशल अमरीका पहुँच जाए ?
वैसे यह भी सच है कि यदि अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने ओसामा को लेकर पकिस्तान से यह समझौता नहीं किया होता तो भी आप उसे पाकिस्तान में जाकर पकड़ सकते थे । पहले भी तो एक वांछित अपराधी को आपके जासूसों ने पाकिस्तान के एक होटल से गिरफ्तार किया था । इसी को कहते है- 'ठाडे का तो डोका भी डाँग होता है' मतलब कि शक्तिशाली का तो तिनका भी लट्ठ का काम करता है । प्रथम विश्वयुद्ध में हार के बाद जर्मनी पर बहुत सी अपमानजनक शर्तें लादी गई थीं मगर बेचारा कुछ नहीं बोल सका । फिर जब हिटलर शक्तिशाली हुआ तो उसने सारी संधियों को तोड़ डाला । और एक हमारा हाल है कि हम सबूत पर सबूत दिए जा रहे हैं मगर पकिस्तान मान ही नहीं रहा है । दाऊद इब्राहीम पाकिस्तान के एक क्रिकेटर के बेटे से अपनी लड़की की शादी करता है । दुनिया के बहुत से मेहमान, क्रिकेटर और यहाँ तक कि भारत के टी.वी. की रिपोर्टर भी उस शादी में जाती है मगर पाकिस्तान की सरकार को पता ही नहीं लगता कि दाऊद पाकिस्तान में है या नहीं । जैसे कि साधू यादव पर गिरफ्तारी का वारंट था तब भी वह संसद में आया, हाजरी लगाई और चला गया मगर पुलिस को पता ही नहीं चला । इसी तरह पाकिस्तान को क्या पता नहीं था कि ओसामा उसी के यहाँ रह रहा है मगर वह झूठ बोलता रहा ? मगर हम यह नहीं मान सकते कि बुश साहब को भी पता नहीं था कि ओसामा पाकिस्तान में नहीं है ।
हमें लगता है कि उन्हें पता था कि ओसामा पाकिस्तान में ही है पर उन्होंने उसे पकड़ने में कोई जल्दी नहीं दिखाई क्योंकि राजनीति में ऐसे मुद्दे बड़ी मुश्किल से हाथ आते हैं जो दीर्घकालिक हों और शर्तिया चुनाव जिताने वाले हों । पाकिस्तान का कोई भी राष्ट्रपति कश्मीर का मुद्दा हल नहीं करना चाहता । इसी तरह से आतंकवाद का मुद्दा भी पाकिस्तान की सेना और नेतृत्त्व के लिए दुधारू गाय है जिसे जितने समय तक हो सके, दुहते रहना चाहिए । हमारे यहाँ आरक्षण भी इसी तरह का मुद्दा है । वरना जिस दवा से पिछडों और दलितों का पूर्ण रूप से इलाज़ नहीं हुआ क्या उस दवा को बदल नहीं देना चाहिए ? पर जब तक डाक्टर को मरीज से और अधिक मुनाफ़ा कमाने वाली दवा न मिल जाए तब तक उसे पुरानी दवा ही चालू रखनी चाहिए । सो यह बेअसर दवा चालू है, मरीज की हालत बिगड़ रही है मगर डाक्टर की प्रेक्टिस चालू है । सो जब तक तेल भंडारों पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए आतंकवाद से बेहतर और कोई तरीका नहीं मिल जाता तब तक इसे ही पकड़े रखना चाहिए भले ही पाकिस्तान को हर साल दस-बीस अरब डालर देते रहना पड़े । धंधे के लिए बहुत से ओवरहैड खर्चे करने ही पड़ते हैं । इतने खर्चे के बाद भी तो कुछ तो बचेगा ही ।
अब हमारे नेतृत्त्व को ओसामा के पकड़े जाने पर लग रहा है कि आप जिस तरह से अपने लिए पाकिस्तान को गरिया रहे हैं वैसे ही इसके लिए भी उसे डाँटेंगे और सही रास्ते पर लाएँगे मगर वह यह भूल जाता है कि आप धंधा करने निकले हैं कोई जनकल्याण करने नहीं । हाँ, यदि भारत डरकर हथियार खरीदना चाहे तो आपको कोई ऐतराज़ नहीं है । ख़रीदे, शौक से खरीदे, भले ही कृषि, शिक्षा, चिकित्सा आदि के कल्याणकारी खर्चे कम करके ही ख़रीदे ।
वैसे हम अमरीका की इस बात के लिए भी प्रशंसा करते हैं कि उसने कुछ भी अनुचित नहीं किया । जो कुछ किया समझौते के तहत किया । 'डील' तो डील ही होती है और हमें तो अमरीका से अधिक 'फेयर डील' करने वाला कोई दूसरा दुनिया में लगा नहीं ?
११-५-२०११
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
बहुत फेयर डील है..वाकई..
ReplyDeleteल्यो साहब, हम भी बिना कमेंट किये नहीं खिसकने वाले।
ReplyDeleteआनन्द आ गया जोशी साहब, दो राजस्थानी कहावतें और सीख लीं। आभार स्वीकार करें।