Jun 10, 2011
कुछ भी रखा न याद, बाबा
कुछ भी रखा न याद,बाबा ।
कर बैठे कुचमाद, बाबा ।
अब तो समझ आ गया होगा
कूटनीति का स्वाद, बाबा ।
राजनीति में सच तो केवल
होता है अपवाद, बाबा ।
दिन में होटल, एरोड्रम पर
करते ये संवाद, बाबा ।
और स्वयं ही करवाते ये
आधी रात फसाद, बाबा ।
जान-बूझ सोए शासन से
क्या करना फ़रियाद, बाबा ।
जन-आकांक्षा का कर्मों में
किए बिना अनुवाद, बाबा ।
योगासन से ठीक न होगा
काले धन का दाद, बाबा ।
८-६-२०११
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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साधुवाद.. अब साधु लिखने पर भी कोई संघ का न बता दे ये डर है.
ReplyDeleteऔर स्वयं ही करवाते हैं
ReplyDeleteआधी रात फसाद, बाबा ।
मुझे नहीं लगता कि यह फसाद बाबा ने स्वयं करवाया हो ...
"दिन में होटल, एरोड्रम पर
ReplyDeleteकरते ये संवाद, बाबा ।
और स्वयं ही करवाते हैं
आधी रात फसाद, बाबा ।"
दोनों को साथ पढें तो सही अर्थ निकलेगा :)
लगता नहीं यह फसाद बाबा ने स्वयं करवाया हो|
ReplyDelete"और स्वयं ही करवाते हैं"
ReplyDeleteअब इसको बदल कर इस प्रकार कर दिया
"और स्वयं ही करवाते ये"
जिससे समझाने में गलतफहमी ना हो |
फसाद तो 'ये' करवाते हैं, जो पहले तो संवाद करते हैं |
nice post
ReplyDeleteअनशन है फोड़ा और मवाद ,बाबा !
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