Mar 18, 2012

तोताराम का - उत्तिष्ठ जाग्रत....

आज सवेरे जब दरवाजे पर दस्तक हुई तो हमने समझा तोताराम होगा । हालाँकि दरवाजा बंद नहीं था फिर भी आगंतुक अंदर नहीं आया तो हमने पोती से कहा- जाओ बेटी, देखो कौन है ? यदि तोताराम दादाजी होते तो सीधे अंदर आ गए होते । बच्ची ने तत्काल आकर कहा- दादाजी कोई आदमी है ? हमने कहा- तो फिर अंदर ले आती । पोती फिर गई और एक प्राणी को अंदर ले आई । छोटी-छोटी दाढ़ी, पायजामा और लंबा कुर्ता, हाथ में मोबाइल, गले में सोने की मोटी चेन, खाया-पिया अघाया शरीर ।

हमने देखते ही पहचान लिया और पोती से कहा- ये आदमी कहाँ हैं ? ये तो सेवक जी हैं । तुमने अखबार में अक्सर इनकी तस्वीर नहीं देखी ? कभी गौपाष्टमी को गाय को पूड़ी और हलवा खिलाते हुए तस्वीर, कभी इस-उस नेता जी को जीत या जन्मदिन की बधाई देने वाली तस्वीर, कभी धरना देते तो कभी जुलूस की अगवाई करते तस्वीर । ये अपने इलाके के सेवक जी हैं । अगर आदमी होता तो अब तक चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई होतीं, कमर झुक गई होती या फिर कहीं मनरेगा में खट रहा होता या कहीं राशन की लाइन में लगा होता ।

पोती ने उन्हें नमस्कार किया और चाय लेने अंदर चली गई । हमने उनसे पूछा- कहिए, आज कैसे आना हुआ ? अभी तो कोई चुनाव भी नहीं है जो वोट का चक्कर होता । आपकी दया से हमें तो पेंशन मिलती है जिसे आप न घटवा सकते हैं और न बढ़वा सकते हैं । ट्रांसफर का भी हमारा कोई मामला नहीं बनता । इनकम टेक्स में मिलने वाली छूट कम हो या ज्यादा हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारी पेंशन कभी इतनी नहीं हो सकती कि टेक्स लगे । इसलिए हम सरकार के लिए व्यर्थ हैं । जवान होते तो लेपटॉप की लाइन में लगते । सरकार तो यह इंतज़ार कर रही है कि हम कब मरें और हम लोग हैं कि महँगाई के बावज़ूद जिंदा हैं और यदि कुछ अघटित नहीं हुआ तो क्या पता, सेंचुरी भी लगा दें सचिन की तरह; भले ही इस चक्कर में भारतीय टीम की तरह वित्त मंत्रालय चीं बोल जाए ।

आज शायद सेवक के लिए पहला दिन था जब उसे एक भी शब्द बोले बिना, एक साथ इतना लंबा भाषण सुनना पड़ा हो । वह हमें चुप करवाने के लिए बोला- सर जी, आप जो कहते हैं सब ठीक है । और फिर मेरे जैसे एक अदने से सेवक की क्या हस्ती कि आप जैसे विद्वान की कुछ सेवा कर सकूँ । वैसे आजकल गौशाला और मनरेगा से ही फुर्सत नहीं मिलती वरना ऐसी क्या बात कि आपके दर्शन करने नहीं आता ? मैं तो आपसे कल के बजट के बारे में कुछ जानने आया हूँ क्योंकि आप भाषा के बहुत बड़े विद्वान हैं । लिखे छपे शब्द के पीछे छुपे अर्थ को भली भाँति समझ सकते हैं ।

अब आप जानते हैं कि एक मास्टर इतना मक्खन लगने के बाद सीधा खड़ा रह सकता है क्या ? इतने में तो एक बागी उम्मीदवार की अपनी सत्ताधारी पार्टी में घर वापसी हो सकती है ।

हमने ताज़ा अखबार में छपे बजट के बारे में सारे समाचार और विश्लेषण उसके सामने फैलाते हुए कहा- कहो, कहाँ, क्या शंका है ?

बोला- जी, मुझे और सारे बजट से क्या लेना है । मुझे तो सेवा-कर पर लगने वाले टेक्स के बारे में पूछना है । अब देखिए, गाँधी जी के ज़माने से ही इस देश में 'सेवा कर', 'सेवा कर' की धुन गूँज रही है । तो खैर, गाँधी जी के बारे में ज्यादा नहीं जानता । मैं तो पैदा ही उनके मरने के कोई तीस बरस बाद हुआ हूँ फिर भी मैंने पढ़ा है कि गाँधी के ज़माने में बहुत से युवकों ने सेवा करने के लिए स्कूल-कालेज छोड़ दिए, जेल गए और देश को स्वतंत्र कराया । सो मैंने भी पढ़ने से ज्यादा सेवा को महत्त्व दिया । स्कूल से निकाला जाने वाला था सो मैंने खुद ही जाना बंद कर दिया और सेवा में लग गया और आपकी दया से आज एक छोटा-मोटा सेवक हूँ ।

हमने हँस कर कहा- हो सकता है कि तुम बड़े सेवक न हो मगर मोटे ज़रूर हो । इसी तरह चलते रहे तो बड़े सेवक भी बन जाओगे ।


वह थोड़ा शरमाया । हमें अच्छा लगा । किसी का ऐसी बात पर शरमाना आशा बँधाता है कि अभी सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है ।

हमने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- हाँ, तो बताओ तुम्हें क्या समझ में नहीं आया ?

बोला- पहले तो नेताओं ने सेवा करने के लिए उकसाया और जब किसी भी नौकरी के लिए 'ओवर एज' हो गया हूँ तो डराते हैं । अब प्रणव दा को ही देख लीजिए, कहा है कि अब सेवा पर भी दस की बजाय बारह परसेंट टेक्स लगेगा । लोग जब-तब राजीव जी के एक स्टेटमेंट को उछालते रहते हैं कि केन्द्र से चले सौ पैसे में से वास्तविक व्यक्ति तक केवल पन्द्रह पैसे ही पहुँचते हैं और पचासी पैसे बीच वाले खा जाते हैं । उन्हें क्या पता नहीं कि मनरेगा, मध्याह्न भोजन, उचित मूल्य सामग्री वितरण, आँगनबाड़ी, गौशाला आदि में पटवारी, पंच, ग्राम सेवक से लेकर मंत्री तक जाने कितने लोग घुसे हुए हैं ऊपर से लेकर नीचे तक ? ले-दे कर पचास साठ हजार महिने के पड़ते हैं उस पर हज़ार तरह के खर्चे अलग । कभी पार्टी की रैली के लिए आदमी जुटाओ, कभी स्वागत-द्वार बनवाओ, कभी चुनाव आ गया तो पार्टी को चंदा दो । जनता तो आप जानते हैं कि नेताओं के नाम से कटे पर पेशाब भी करने को तैयार नहीं । मेरे जैसों को ही भरना पड़ता है । और अब यह दो परसेंट टेक्स और बढ़ा दिया । इस महँगाई में सेवा करना भी मुश्किल हो गया ।

हमें सेवक की पीड़ा से दुःख हुआ । सोचा, भले ही कम हो मगर पेंशन में ये सब झंझट तो नहीं । अब जीवन में कभी भी कोई वित्त-मंत्री हमें टेक्स के दायरे में नहीं ला सकता ।

हमारी बातचीत चल ही रही थी कि तोताराम आ गया और सारा मामला सुन कर बोला- अरे बंधु, आप किस के चक्कर में आ गए । इस आदमी से न तो कभी कोई महान काम हुआ है और न होनेवाला । बहुत डरपोक है यह मास्टर । तुम्हें कोई खतरा नहीं है । जब हत्या, अपहरण, बलात्कार करने वाले लोग संसद और विधान सभाओं में बैठे हैं । जेल में पड़े हुए भी 'माननीय' हैं । किसी के चेहरे पर कोई शिकन है ? और अरबों की कमाई करके भी कोई टेक्स नहीं देते हैं तो तुम क्यों चिंतित हो रहे हो । तुम्हें सभी संकटों से बचाने की जिम्मेदारी तो उन्हीं की है । तुम तो उन कंगूरों की नींव के पत्थर हो । सेवक तो दिल्ली जयपुर में बैठते हैं । करोड़ों रुपए वेतन, सुविधाओं और सांसद निधि के रूप में पेलते हैं किसी पर लगा है कोई टेक्स ?

अपन काहे के सेवक हैं ? अपना तो धंधा है, और वह भी छोटा-मोटा । और धंधा भी ऐसा जिसका कागज पर कोई सबूत नहीं । तुम तो अब बी.पी.एल. कार्ड के लिए आवेदन करो, सुना है सारी सब्सीडी सीधे खाते में ट्रांसफर होगी । और मौका लगे तो यू.पी. में भी कार्ड बनवालो और लगे हाथ बेरोजगारी भत्ता और लेपटॉप भी पेलो । उत्तिष्ठ जाग्रत.....

और वे उठकर चल पड़े ।

१७ मार्च २०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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