Mar 6, 2012

तू रंडी मैं भांड


लालू जी,
जय राम जी की । कल ही अखबार में पढ़ा कि आप हरिहरनाथ मंदिर में मूर्तियों पर ५५ किलो चाँदी के पत्तर लगवाएँगे । बहुत खुशी हुई और हमसे ज्यादा खुशी भगवान को होगी क्योंकि भगवान तो भाव के भूखे होते हैं, चढ़ावे की रकम के नहीं । शबरी ने अपने जूठे बेर भगवान को खिलाए, विदुर की पत्नी ने तो भावविभोर होकर कृष्ण को केले के छिलके ही खिला दिए । करमा बाई के पास बाजरे की खिचड़ी के अलावा कुछ नहीं था सो उसका ही प्रसाद लगा दिया और जब तक भगवान के खा नहीं लिया तब तक वहाँ से हटी नहीं । तो आप भी न तो चिंता करें और न ही अपनी इस तुच्छ भेंट को लेकर शर्मिंदा हों । भगवान आपकी यह तुच्छ भेंट अवश्य स्वीकार करेंगे । वैसे विदुर की पत्नी, शबरी, करमाबाई ने तो अपनी तुच्छ भेंटों के बदले कोई कामना नहीं थी पर अपन तो साधारण सांसारिक आदमी हैं, कुछ न कुछ तो कामना होगी ही । वैसे आप भी भगवान से क्या माँगेंगे ? बेटे-बेटियाँ तो भगवान की दया से लिमिट से ज्यादा ही हैं, स्वास्थ्य भी ठीक है, दिल्ली में बड़ा और सब सुविधाओं से युक्त सरकारी मकान भी है । बहुत कम कीमत में संसद की कैंटीन का बढ़िया खाना है । फिर और क्या चाहिए ?

कबीर की बात और थी । वे तो आधी और रूखी में ही संतुष्ट थे । सुनते हैं अपने जेल के दिनों में समय बिताने के लिए, बाँचने को तो आपने भी कबीर वाणी बाँची थी, मगर बाँचने और गुनने में बहुत अंतर है और उस पर आचरण करना तो और भी कठिन है ।
कथनी मीठी खांड सी करनी विष की लोय ।
कथनी तज करनी करे तो विष अमरित होय ।।


कबीर की तरह आधी और रूखी यदि चार दिन भी खानी पड़ जाए तो चेहरे पर चिकनाई की जगह झुर्रियाँ उभर आएँ । अब ब्रोकली का सूप और झींगा मछली खाने के बाद रूखी-सूखी में स्वाद भी क्या आएगा ?

नेता और रंडी की बड़ी मुसीबत है । जैसे कि किसी लाभ की सीट पर जीवन भर नौकरी करने वाले अधिकारी, जिसके चारों ओर लोग दिन-रात मँडराते रहते थे, और रिटायरमेंट के बाद जब कई-कई दिन तक कोई झाँकता तक नहीं, तो बड़ी दुर्दशा हो जाती है और वह इसी दुःख में जल्दी ही मर लेता है । यही हाल रंडी का भी होता है । जब ग्राहक आने बंद हो जाते हैं तो वह आदत से लाचार अपनी तरफ से चाय पिला कर भी ग्राहकों को बुलाती है । इसी तरह नेता के लिए भी लोगों की भीड़ में बतियाना, हास-परिहास करना, पत्रकारों को इंटरव्यू देना संजीवनी की तरह होता है । हालाँकि आप अब भी पत्रकारों की निगाह से ओझल नहीं हुए हैं पर वो भी क्या ज़माना था जब हार्वर्ड तक में मनेजमेंट पढ़ाने जाते थे और अब मैडम बात करने के लिए भी टाइम नहीं देतीं । पहले विशेष सरकारी ट्रेन या विमान से ख्वाजा साहब के यहाँ जाते थे और अब अपने सिर पर ५५ किलो चांदी रखा कर हरिहरनाथ के यहाँ पैदल जाना पड़ रहा है ।

पर क्या करें, गरीबी बड़ी बुरी होती है । जब रामचरित मानस में गरुड़ जी काक भुशुण्डी जी से पूछते हैं कि कौन सा दुःख सबसे बड़ा होता है, तो काक भुशुण्डी जी कहते हैं-
नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं ।


आप भी पता नहीं, किस पूर्व कर्म-फल के कारण दारिद्र्य दुःख से पीड़ित हैं अन्यथा क्या आप हरिहरनाथ महाराज के लिए मात्र ५५ किलो चाँदी ही ले जाते ? एक तो जन-सेवा का जुनून और फिर इतना बड़ा परिवार और उस पर छः सात लड़कियाँ । लोग भले ही कहें कि लड़का-लड़की समान होते हैं पर बंधु, लड़के वाला कुछ भी खर्चा न करे तो भी चलेगा मगर लड़की वाले को तो अपनी नाक के लिए खर्चा करना ही पड़ता है । और कोई शादी से ही मामला थोड़े निबट जाता है ? कभी करवा चौथ, तो कभी सावन के सिन्धारे, कभी भात, कभी छूछक । लड़की के बाप का तो जीवन भर पीछा नहीं छूटता । हमारे तो तीन लड़के हैं । दहेज नहीं लिया । सो बिना अधिक खर्चा किए काम निबट गया । पर आपके तो छः-सात लड़कियाँ । हम तो खैर, सरकारी नौकर थे । आपके पास तो वह सहारा भी नहीं रहा । पता नहीं, कैसे-कैसे कष्ट उठाकर निस्वार्थ जन-सेवा की होगी । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती राबड़ी देवी भी किसी अन्नपूर्णा से कम नहीं हैं जिन्होंने किसी तरह सब्जी और दूध बेचकर बच्चों को पाला और मेयो जैसे साधारण स्कूल में पढ़ाया ।

इसलिए आप निःसंकोच यह तुच्छ भेंट लेकर भगवान की सेवा में जाइए । वे इसे अवश्य स्वीकार करेंगे ।

और कोई भी भले ही आपका महत्त्व न समझे मगर हम जानते हैं कि आपका भारतीय राजनीति में कितना खुशनुमा योगदान है । जीवन में सुख-दुःख तो आते रहते हैं । ये किसी सरकार के किए कम होने वाले नहीं हैं । ये तो देह धरे के दंड हैं जो सुर, नर, मुनि सब को भोगने पड़ते हैं । हालाँकि लोहिया जी बहुत गंभीर बात किया करते थे संसद में, मगर उनके पास तो बहुमत तो क्या अल्पमत भी नहीं था । चन्द्र शेखर और सुब्रमण्यम स्वामी की तरह पूरा एकल अभिनय था और तिस पर कांग्रेस के पास तगड़ा बहुमत । सो बेचारे विदूषक होकर रह गए । इसके बाद राजनारायण आए जिन्होंने जनता का अच्छा मनोरंजन किया मगर वे अधिक दिन नहीं टिक सके । इसके बाद आपने एक लंबी पारी खेली । अब भी माशा अल्ला क्या बिगड़ा है । फिर संसद रूपी फिल्मी दुनिया में आपकी दूसरी पारी शुरु होगी । काम तो जैसे चलता है, चलता रहेगा मगर लोग आपको बहुत मिस करते हैं । हमारा तो अधिकांश साहित्य ही आपके यशोगान से भरा पड़ा है । अब राजनीति में दिग्विजय टाइप लोगों की बयान बाजियाँ चलती हैं उनमें कटुता अधिक है आप जैसा हास्य का छल-छल बहता झरना नहीं ।


जैसे सचिन में अभी बहुत क्रिकेट बचा हुआ है या ‘इस सीमेंट में जान है’ वैसे ही अभी भी आप में बहुत हास्य बचा हुआ है, देशवासियों के दुःखी मूड को सुधारने के लिए, भले ही कुछ क्षण के लिए ही हो । आजकल आप शांत हैं । सभी कलाकार ऐसे नहीं होते जो दुःख में भी हँस और हँसा सकें । आपने भी सुख के दिनों में ही अच्छा हास्य दिया है । सुख में हास्य बहुत सुगम हो जाता है । भूख में तो चाँद में भी रोटी नज़र आती है मगर जब पेट भरा हो तो गरमी की दोपहरी में भी बसंत की सी अनुभूति होती है, हर मौसम प्यार का मौसम लगता है, बात-बिना बात हँसने को मन करता है । आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे लगता है । हम आपके हास्य के सबसे बड़े प्रशंसक रहे हैं । हमने आपके वेद-वाक्यों पर सबसे अधिक लिखा है ।

महान व्यक्ति सूर्य की तरह उगते और छिपते दोनों समय एक ही रंग में नज़र आते हैं । सो आप भी इस अकेलेपन को वनवास की तरह मानकर शांत रहें । यही तो आपके हास्य कलाकार की, कथनी और करनी की परीक्षा का समय है । खैर छोड़िए, भगवान सब जानता है कि कौन किस भाव से आया है- निःस्वार्थ भाव से आया है या कुछ माँगने या फिर जूते चुराने आया है । उसे उल्लू बनाने की कोशिश करने से कोई फायदा नहीं है । वह कोई वोटर थोड़े ही है जो १५ रुपए की एक देसी थैली पिलाकर वोट ले लिया । कहा भी है- चतुराई रीझे नहीं, मन रीझे मन के भाय ।

आप तो इस एकांत और जन-उपेक्षा से उपजे तनाव को दूर करने के लिए एक किस्सा सुनिए ।

एक बूढ़ी महिला रोज हनुमान जी को एक तोला तेल चढ़ाती और अपने बेटों के लिए लाखों करोड़ों का धन माँगती । हनुमान जी बहुत परेशान हो गए । एक दिन उन्होंने उसे जम कर लात मारी और कहा- तुझे इतने पैसे दूँ इससे तो अच्छा इतने में तेल का एक तालाब ही बनवा लूँ । रोज दो पैसे का तेल चढ़ाती है और माँगती है लाखों-करोड़ों ।

कहानी तो कहानी है । इसका अर्थ निकालने लगेंगे तो परेशानी हो जाएगी ।

ऐसे समय में जब साली मक्खी भी मुँह पर नहीं बैठती उस समय हम आपके सुख-दुःख में शामिल हो रहे हैं । अच्छा समय आने पर इस निःस्वार्थ व्यक्ति को भूल नहीं जाइएगा ।

२-३-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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