Mar 25, 2012

पूनम पांडे का ट्वीट - बुरा न मानो कोहली है

पूनम पांडे
क्या संबोधन दें, समझ में नहीं आ रहा है । वैसे यदि तुम आज से दस बरस पहले किसी केन्द्रीय विद्यालय में ग्यारहवीं या बारहवीं कक्षा में पढ़ रही होती तो हम तुम्हें हिंदी पढ़ा रहे होते मगर तुम्हारी तो पाठशाला ही दूसरी है । तुम कबीर-स्कूल की नहीं बल्कि बिपाशा बसु की छात्रा हो जहाँ वे प्रेम की भाषा सिखाती हैं । उनके पास भी प्रेम के एक ही पेपर की डिग्री है । प्रेम के दो भाग होते हैं एक तन और दूसरा मन । सामान्यतया प्रेम तन से होकर मन तक जाता है । मन के बिना तन का प्रेम अधिक दिन तक टिकता नहीं । तुमने अपनी अन्तः प्रेरणा से ही स्वयंपाठी विधार्थी के रूप में इस छोटी सी उम्र में ही तन के प्रेम की एम.ए. और डी.लिट. कर ली है । और हालत यह है कि तुम्हारी प्रेम पाठशाला अर्थात ट्विटर पर एक लाख से भी अधिक विद्यार्थी दूरस्थ और सचित्र शिक्षा ग्रहण करने आ चुके हैं । और हमारे ब्लॉग पर हाल यह है कि बामुश्किल तीन साल में कोई अठारह हजार लोगों ने ही क्लिक किया है ।


तुमने अपने कर्त्तव्य में बहुत पारदर्शिता का परिचय दिया है । मगर हर चीज की अति बुरी होती है सो टीम इण्डिया के विश्व कप जीतने पर तुम्हारे पारदर्शी उपहार की चर्चा मात्र से ही टीम इण्डिया इतनी चकाचौंध हो गई कि अब तक हालत पतली चल रही है । जैसे बुद्ध को दान में देने के लिए जब एक बुढ़िया के पास कुछ नहीं था तो उसने अपना अधखाया अनार ही उन्हें भेंट में दे दिया । लोग समझते हैं कि तुम्हारे पास देह दिखाने के अलावा और कुछ नहीं है सो बार-बार उसी का प्रदर्शन कर रही हो । हम भी यही समझते थे । वैसे हम तुम्हारे बारे में अधिक नहीं जानते मगर क्या करें नेट पर नवभारत पढ़ते हैं और वे लोग सबसे पहले तुम्हारा ही फोटो सचित्र दिखाते हैं सो बिना कोशिश किए ही तुम्हारा परिचय मिल जाता है । अधिकतर लोग तुम्हें देह प्रदर्शन के लिए ही जानते हैं मगर तुम्हारे दो-तीन ट्वीट पढ़ कर हमें लगा कि तुममें भाषा की अच्छी समझ है जैसे कि तुमने कर्नाटक के पोर्न गेट पर जो कमेंट्री दी कि 'पार्टी ने कहा इलेक्शन के लिए तैयार रहो और माननीय सदस्य समझ बैठे कि इरेक्शन के लिए तैयार रहो' । क्या पकड़ है भाषा की ? और अब १८ मार्च २०१२ को क्रिकेट में पाकिस्तान की हार में कोहली के योगदान पर अपने ट्विटर में लिखा 'बुरा न मानो कोहली है' । क्या महीन और ज़हीन व्यंग्य है ? भाषा की अपनी इस विदग्धता का सदुपयोग करो । ऐसी पकड़ बहुत कम लोगों में होती है ।

मगर ये मीडिया वाले तुम्हें इस प्रतिभा का उपयोग नहीं करने दे रहे हैं । तुम सोचती हो कि तुम अपनी इस पारदर्शिता से पब्लिसिटी बटोर रही हो और मीडिया वाले समझ रहे हैं कि तुम्हारे नाम से उनकी साईट पर अधिक लोग क्लिक कर रहे हैं । हमें तो लगता है दो ठग मिल कर एक दूसरे को ठग रहे हैं और इस चक्कर में बेचारे पाठकों का कचूमर निकल रहा है । एक कहानी है – ‘भेड़िया आया’ । उस कहानी की तरह लोग तुम्हारे ट्विटर को अब सीरियसली नहीं ले रहे हैं और यदि कभी तुमने अपना विश्व कप वाला वादा पूरा भी कर दिया तो शायद इसे भी एक ‘कभी पूरा न होने वाला आश्वासन’ समझ कर लोग देखें ही नहीं । जैसे कि अब राखी सावंत को कोई सीरियसली नहीं ले रहा है । अब तो लोग तुम्हें पूरे कपड़ों में देख कर ज्यादा आश्चर्यचकित होते हैं ।

पता नहीं आजकल तुम क्या काम करती हो ? सुना है पहले संत शिरोमणि विजय माल्या के कलेंडर में काम किया था उसी की कमाई से काम चला रही हो । हम तुम्हें एक सलाह देना चाहते हैं कि तुम कविता करने लग जाओ । सुंदरियों का साहित्य में बहुत अभाव है । साहित्य में सुंदरियों की कमी के कारण आजकल साहित्यकारों को अधेड़ साहित्यकारिणियों से काम चलाना पड़ रहा है । बूढ़ी साहित्यकारिणियाँ अपनी रचनाओं के साथ अपने चालीस साल पुराने फोटो भेजती हैं और पाठक उन्हें ही सच मानकर रचनाएँ पढ़ लेते हैं ।

कवि सम्मेलनों में तो दो ही रस चलते हैं- हास्य-व्यंग्य और शृंगार । और तुम्हारे पास दोनों ही हैं । और हम तो कहते हैं कि सौंदर्य होने के बाद पाठक और श्रोता सारे रस अपने आप ही ढूँढ़ लेते हैं । मंचों पर संचालक और कवि द्विअर्थी वाक्यों से काम चलाते हैं जब कि तुम्हारे पास तो ऐसे-ऐसे एक-अर्थी संवाद हैं जो कई-कई अर्थ देते हैं । सच कहते हैं कि यदि एक कविसम्मेलन के एक-दो लाख भी माँगोगी तो भी लोग देंगे और सारे साल फुर्सत नहीं मिलेगी । सोच कर देखना । तुम्हें किसी को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । अपने आप स्थापित कवि दौड़े-दौड़े आएँगे । उन्हें भी तुम्हारे जैसे सहारे की ज़रूरत है क्योंकि बूढ़े मंचीय कवियों की हालत एक कुटनी जैसी हो जाती है । तुम्हारे बहाने उन्हें भी कवि सम्मलेन मिलते रहेंगे । सोच कर देखना ।

बस, हम तुम्हें एक बात से सावधान करना चाहते हैं कि जैसे तुमने कोहली के बारे में लिखते हुए हनुमान जी का उल्लेख किया है । वे बेचारे बाल ब्रह्मचारी हैं, उन्हें तो बख्शो । उनका डिपार्टमेंट तुमसे नितांत भिन्न है । यदि उन्हें गुस्सा आ गया तो पूँछ की ऐसी फटकार लगाएँगे कि सारे ट्वीट भूल कर टर्राती फिरोगी ।

हो सके तो विराट कोहली को क्षमा करो । एक वही तो थोड़ा ठीक खेल रहा है । क्यों उसका तप-भंग करने पर तुली हो । मुम्बई में और बहुत से संत पड़े हैं, उन्हें आभारी बनाओ ।

१९-३-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. श्रीमान जी, (हमारे विद्यालय में गुरु जनों को ऐसे ही संबोधित करते थे), आपके लेखों का कायल तो कब से ही हूँ और नियमित पाठक भी. आपके व्यंग्य की शैली, जो मधुर भी है और पैनी भी, मुझे बहुत अच्छी लगती है. हनुमान जी वाली बात बहुत पसंद आयी कि " ... नहीं तो पूंछ की ऐसी फटकार लगेगी कि ट्वीटर की जगह टर्राते फिरोगी"

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