Mar 22, 2012

विजय-मद और जनता रूपी द्रौपदी


मुलायम जी,

जय बजरंगबली । भले ही यह संबोधन कुछ लोगों को हिंदुत्ववादी लगे पर हम जानते हैं कि आप अखाड़े के आदमी हैं और अखाड़े में जानी लीवरों या राजू श्रीवास्तवों से काम नहीं चलता, वहाँ तो 'बजरंगबली की जय' ही काम आती है । तो बजरंगबली ने मेहर कर ही दी । वैसे आपको भी इतनी उम्मीद तो नहीं ही थी । एक बार तो एकदम निराश से हो चले थे और यहाँ तक कह दिया था कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए आप कांग्रेस को समर्थन दे सकते हैं । खैर, अच्छा हुआ कि उसकी नौबत नहीं आई । पहले आपके छोटे भाई अमर सिंह जी कामरेड सुरजीत के साथ जाकर आपकी कम और खुद की ज्यादा भद्द पिटवा चुके थे । बाहर आकर बोले- 'हमारी तो वहाँ कुत्ते जैसी भी कदर नहीं हुई' । वैसे हमें लगता है कि ऐसा कहकर उन्होंने कुत्ते का अधिक अपमान किया । कुत्तों की क्या कदर होती है उन्हें पता ही नहीं । कुत्ता किसी भी सुन्दरी के गाल चाट सकता है । आपको पता है एक बार ब्रिटनी ने कहा था कि वह अपने कुत्ते के साथ दफ़न होना चाहती है । इतना तो सतीत्त्व कुंती, मंदोदरी और तारा ने भी नहीं दिखाया था । कुत्ता बनते ही आदमी किसी भी पार्टी का प्रवक्ता या महासचिव बनने के योग्य हो जाता है ।

वैसे यह जनता है बड़ी अजीब । द्रौपदी की तरह पाँच पांडवों के बीच बारी-बारी से धक्के खाती रहती है और दुशासनों से साड़ी खिंचवाती रहती है । करे भी तो क्या, स्वयंवर में आते ही ये लोग हैं । ढेरी में सारे बैंगन काने हैं । जितना चाहो उलटो-पलटो कुछ होना-जाना नहीं । आपको क्या पता था कि बात इस तरह पल्ले बँध जाएगी । यदि स्पष्ट बहुमत नहीं आता और सबसे बड़ी पार्टी के नाते जोड़-तोड़कर गठबंधन सरकार बनाते तो कम से कम यह तो कह सकते थे कि गठबंधन के चलते यह या वह संभव नहीं हो सका या लोकतंत्र की रक्षा के लिए थूक कर चाटना पड़ा मगर अब तो वह रास्ता भी नहीं बचा है । फिर भी अपन ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है जो ज्यादा चक्कर में डाल सके । लेपटोप और बेरोजगारी भत्ता देना है सो जैसे-जैसे बजट आता जाएगा देते जाएँगे । और यदि क़र्ज़ भी लेना पड़ा तो क्या फर्क पड़ता है । कौन सा अपने को चुकाना पड़ता है । जो आगे आएगा सो भुगतेगा । और वह भी क्या भुगतेगा ? वह भी कह देगा कि पिछली सरकार खजाना ही खाली कर गई । इसी तरह पिछली सरकारों पर आरोप लगाते साठ बरस बीत गए । किसी का क्या बिगड़ा ? लोकतंत्र मज़े से चल रहा है ।

आपको बहुमत मिलने पर भक्तों ने कहा- गुरु, अब छोड़ो लखनऊ और बस, जल्दी से दिल्ली का रास्ता पकड़ो और प्रधान मंत्री बन जाओ । वैसे यदि किसी को उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत मिल जाए तो वह भारत क्या, सारे योरप या अमरीका का प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति बनने के योग्य हो जाता है । सो हम तो कहते हैं कि बड़ा सोचो और इस साल नवम्बर में अमरीका के राष्ट्रपति का नामांकन पत्र भर दो । आप कहेंगे कि यह कैसे हो सकता है ? क्यों नहीं हो सकता ? जब सारी दुनिया ग्लोबल गाँव हो गई है तो उसी गाँव का एक व्यक्ति सरपंच का चुनाव क्यों नहीं लड़ सकता ? और यदि नहीं लड़ सकता तो फिर बिना बात 'ग्लोबल गाँव-ग्लोबल गाँव' कहकर लोगों को क्यों उल्लू बना रहे हो ? ग्लोबल गाँव का केवल इतना ही अर्थ थोड़े है कि हमारी वेल्थ तो हमारी और तुम्हारी 'वेल्थ कोमन' । यह नहीं चलेगा । क्या योरप और अमरीका के हथियार और कोकाकोला हमारे यहाँ बेचने के लिए ही दुनिया ग्लोबल गाँव है क्या ?

वैसे आप हमारे डिपार्टमेंट के आदमी हैं । मूलतः आप एम.ए., बी.टी. हैं और हम एम.ए., बी.एड.हैं । और फिर जब आप बी.टी. कर रहे थे तो हमारे एक वरिष्ठ मित्र उसी बी.टी. कालेज में पढ़ाते थे । सो कुछ और भी रिश्ता बनता है मगर हम इस तरह रिश्ता जोड़कर आपसे कोई अनुचित लाभ नहीं चाहते । हम तो कोई दस बरस पहले रिटायर हो चुके हैं । आप भी यदि कहीं मास्टरी करते तो अब तक रिटायर हो ही चुके होते । अच्छा हुआ जो आपने नौकरी नहीं की । बड़े निर्दय नियम हैं नौकरी के । साठ साल का होते ही सारे संबंध भुलाकर धक्का मार देते हैं जैसे कि गौभक्त दूध निकालते ही गौमाता को बाहर जाकर पोलिथिन की थैलियाँ और गालियाँ खाने के लिए धक्का मार कर निकाल देते हैं ।

हम तो आपको एक नेक सलाह देना चाहते हैं कि यदि हो सके तो इस बहुमत का सदुपयोग कीजिए । आपके साथ तो मनमोहन जी जैसी गठबंधनीय मजबूरी भी नहीं है कि कलमाड़ी या राजा को कुछ नहीं कह सकें और दूल्हा बने दिनेश त्रिवेदी को कोलकाता से एक फोन आने पर ही घोड़ी पर से नीचे उतार दें । आपके पिछले शासन को लोग गुंडा-राज कहते हैं और आपने भी इसका कोई खास विरोध नहीं किया । माया ने तो भविष्यवाणी कर दी है कि थोड़े दिनों में ही लोग गुंडा-राज के तंग आकर उनके राज को याद करेंगे । सो आप बेटे की मदद करने के लिए यू.पी. में रहें । आपके होते हुए ही भाई लोगों ने नेताजी के विजय-जुलूस में बीच सड़क पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं । तो आपके दिल्ली चले जाने पर पता नहीं क्या करेंगे ?

वैसे भी प्रदेश की राजनीति अधिक अच्छी है । यदि केन्द्र में हों तो कभी अमरीका का दबाव, कभी आतंकवाद का चक्कर, कभी रेल दुर्घटना, कभी सेना की समस्या, कभी तेल के भावों में वृद्धि । अपना प्रदेश का काम ठीक है । मज़े से मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में से शहद पीते रहो और कोई कुछ कहे तो कहा जा सकता है कि केन्द्र ने पक्षपात किया, विकास के लिए पूरी धनराशि नहीं दी आदि । और केन्द्र सरकार, जो कि गठबंधन होने के कारण हमेशा ही किसी न किसी संकट में रहेगी, तो उसका भी भयादोहन किया जा सकता है । ऐसे में उससे डरने की तो ज़रूरत ही नहीं है ।

ठीक है, खुशी में ही चलाईं मगर गोली तो गोली है पता नहीं कब किधर चल जाए ? हमने कई शादियों में ऐसे ही कई लोगों को मरते या घायल होते देखा है । मगर इन लोगों को भी कितना रोका जाए । आदमी गम छुपा सकता है मगर खुशी को छुपाना बहुत मुश्किल है । आज ही आपने पढ़ा होगा कि ममता की पार्टी की एक सांसद के गार्ड ने रेल में एक यात्री पर पेशाब कर दिया और अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई । हम कहते हैं, न ही की जाएगी । तभी हमारे यहाँ एक कहा जाता है कि जी, फलाँ की क्या बात करते हो ? आजकल तो उनके पेशाब में चिराग जलते हैं । यह हाल तो एक सांसद के गार्ड का है, तो साहब, जो कोई खुद ही नेता बन जाए तो फिर उसका तो कहना ही क्या ? वह तो जो न करे सो थोड़ा । पास में बंदूक हो और आदमी किसी को दिखाए नहीं, यह कैसे हो सकता है ? बंदूक तो होती ही दिखाने के लिए है जिससे कि लोग पहले से ही जान जाएँ कि फलाँ के पास बंदूक है । हमारे यहाँ बहुत से रिटायर्ड फौजी हैं । वे जब भी किसी बरात में जाते हैं तो मूँछ लगाकर और वर्दी पहन कर, कंधे पर दुनाली लटकाकर जाते हैं । बताने की ज़रूरत ही नहीं होती कि वे कौन हैं ?

जब वानर सीता की खबर लेकर आए तो उन्होंने सुग्रीव के बगीचे 'मधुवन' के फल खाए और बगीचे को उजाड़ने लगे । जब रखवालों ने मना किया तो उन्हें मुक्के जमा दिए । जब रखवाले सुग्रीव के पास शिकायत लेकर गए तो सुग्रीव समझ गए कि सीता की सुधि ले आए हैं । यदि ऐसा नहीं होता तो फल खाने और बाग उजाड़ने का साहस नहीं कर सकते थे । सो यह तो उत्तर प्रदेश के विजय का उत्सव है । आजकल तो छोटे से कालेज के अध्यक्ष पद पर विजयी नेता के समर्थक विजय-जुलूस में दुकानें लूट लेते हैं । महाभारत के युद्ध के बाद विजय-मद में मस्त यादवों ने, जब कोई नहीं मिला तो खुद ही आपस में लड़कर काम निबटा दिया । विजय-मद बहुत बुरा होता है । किसी भी शराब से ज्यादा नशीला ।

बाराती जब लड़की वाले के यहाँ जाते हैं तो रसिकता दिखाना उनका अधिकार होता है । चुने हुए नेता तो एक प्रकार से उस इलाके के दामाद हो जाते हैं । हमने तो नेताओं के चहेतों और किसी शासक जाति के कर्मचारियों को स्वयं को सरकारी दामाद बताते सुना है । वे न तो ड्यूटी पर जाते और रिश्वत ऊपर से खाते हैं । अब ये तो जीते हुए नेता हैं । इनके मद का क्या ठिकाना ? जिसके चारों तरफ लोग चक्कर लगाते हों, भले ही वह अपने कर्मों से छिनाल और शक्ल से गधी हो, पर उसे इठलाने से कोई नहीं रोक सकता । सो आपको इन मतियाए सेवकों को थोड़ा नियंत्रण में रखना होगा । जिसे पीने की पक्की आदत है वह पिएगा तो सही फिर भी उसे कहा जा सकता है कि भैया, घर पर बैठकर पी लिया कर । पोर्न फिल्म देखने के लिए शाम का इंतज़ार कर लें । यह क्या कि सदन में ही चालू हो जाएँ । और यदि ऐसा करना अनिवार्य ही हो तो वहाँ से उठ जाएँ या टी.वी. वालों से बचें या फिर टी.वी. वालों को सदन में ही न आने दें । थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए । इस देश की जनता अभी पिछड़ी हुई है । कुछ भी हो यह भारत है । अब भी थोड़ी बहुत शर्म बची हुई है, कल का पता नहीं । कोई अमरीका या इटली तो है नहीं कि राष्ट्रपति क्लिंटन या प्रधान मंत्री बर्लुस्कोनी कुछ भी करें और कुर्सी पर बने रहें ।

वैसे यदि चुने हुए लोगों में दागी संतों का हिसाब लगाया जाए तो सभी दलों में आधे तो दागी हैं ही । यह पार्टियों और जनता दोनों की मज़बूरी है । उम्मीदवार जीतने वाला होना चाहिए । और इस देश में भले आदमी के लिए जीतना तो दूर, चुनाव खर्चा जुटाना भी मुश्किल है । और जब सारे ही गए-बीते हैं तो जनता किसी को वोट दे, कुर्सी पर कोई तो गया-बीता ही बैठेगा फिर चाहे वह इस पार्टी का हो या उस पार्टी का । और फिर बहुत शीघ्र ही इस देश में तमिलनाडु वाली स्थिति हो जाएगी- कभी करुणानिधि तो कभी जयललिता । वैसे ही कभी आप और कभी माया । फेयर डील । कोई विकल्प ही नहीं बचेगा । राष्ट्रीय दलों की तो जैसी हालत है वैसी किसी खजुहे कुत्ते की भी नहीं होती ।

जनता को तो मरना ही है चाहे विषाक्त भोजन खाकर मरे या भूख से या कुपोषण से या किसी सेवक की गोली से या डाक्टर की दवा से या सड़क दुर्घटना में- यही उसके लिए स्वाभाविक मौत है । और फिर ज्ञानी लोग कह गए हैं कि यदि किसी को गुड़ से मारा जा सकता है तो ज़हर का खर्चा क्यों किया जाए ?

फिर भी यदि आप विकास और प्रदेश के औद्योगीकरण के बारे में सोच रहे हैं तो अपने पास बिना गाय के दूध बनाने की अनूभूत और घरेलू तकनीक है । रामपुर के चाकू और एटा, इटावा के कट्टे हमारे राजस्थान तक प्रसिद्ध हैं । अमरीका से हथियार मँगाकर वहाँ के कारीगरों और उद्योगपतियों को फायदा पहुँचने की बजाय क्यों न अपने ही लोगों को चांस दिया जाए । और भी बहुत सी संभावनाएँ और योजनाएँ हैं हमारे पास, यदि आपके पास समय, दूर-दृष्टि और पक्का इरादा हो तो ।

२०-३-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. वाह साहेब, मान गए आपकी धार को

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  2. इसे कहते हैं धुलाई करना, खिंचाई करना।
    जोशी साहब, कमेंट्स से सक्रियता मत नापियेगा बस इतना समझ लीजिये कि हम मुरीद हुये जाते हैं आपकी लेखनी के।

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